अंग्रेजी नव-वर्ष- अभिनंदन
कुण्डलिया
🚩१.🚩
कहें तेईस अलविदा, स्वागत है नववर्ष|
मंगल मोद मना रहे़ं , है प्रतीक्षा सहर्ष ||
है प्रतीक्षा सहर्ष, स्वप्न चौबीस के सजे|
हर्षित जनमन आज, नूतन संवत् विराजे||
विनय करे ‘गोपाल’ , खुशी बाँटते सब रहे़ं।
अंग्रेजी वर्ष की ,शुभेच्छा भी सभी कहें ||
🚩२.🚩
मंगलमय नववर्ष हो, खुशमय हो परिवार।
घर में मिल-जुल कर रहें,बाँटें सबको प्यार।।
बाँटें सबको प्यार, सब बनिए परम प्रबुद्ध।
नया साल कीजिए,तन मन को निर्मल,शुद्ध।।
विनय करे गोपाल,हो हर्षित मुदित मधुमय।
यूं करलें कुछ काम, हो नव वर्ष मंगलमय ।।
✍️आचार्य गोपाल जी उर्फ आजाद अकेला (बरबीघा वाले)
Author: कविता बहार
अंग्रेजी नव-वर्ष- अभिनंदन
नव वर्ष पर कविता
नव वर्ष
आ गया नववर्ष,क्या संदेह,क्या संभावना है?
शेष कुछ सुकुमार सपने,और भूखी भावना है।
हैं विगत के घाव कुछ,जो और गहरे हो रहे हैं,
बात चिकनी और चुपड़ी,सभ्यता या यातना है!
ओढ़कर बाजार को,घर घुट रहा है लुट रहा है,
ग्लानि की अनुभूति दे जाती कटुक,शुभकामना है।
नींद उनको फूल की शैय्या मेंं भी आती नहीं है,
किन्तु पर्यक वंचितों का,कंटकों से ही बना है।
शुद्धता हो रंग मेंं ये ध्यान रख पाते कदाचित!
ज्ञात होता रंग किन निर्दोष रक्तों से सना है !!
और कब तक मैं हँसू,होकर प्रताड़ित भाग्य बोलो,
पत्थरों के देवता के सामने रोना मना है।
धूप,दीपक,गंध,पूजा,अर्चना वह क्या करेगा!
श्रम करे तो साधना है,प्रेम ही आराधना है।
नव्यता की भ्राँति है,नववर्ष यदि मन जीर्ण हो तो,
वस्तुतः नववर्ष जीवन हर्ष की शुभ सर्जना है।
हो सुसंस्कृतियाँ प्रवाहित,लोकमंगल भाव लेकर,
पर्व तो कल्याण की नव प्राण की अभ्यर्थना है।
रेखराम साहू(बिटकुला/बिलासपुर)नया साल का स्वागत – विजय कन्नौज
नया साल का स्वागत – विजय कन्नौज
आही आही कुछ देके जाही
नया साल कुछ ले के आही।।
जय गंगान
नवा पुराना मा काहे भेद।
अपन करनी अपन मा देख
ऊपर निंधा तरी छेद,
जय गंगान
जइसन करनी तइसन भेद।
कहे कवि विजय के लेख
कुछ करनी कुछ हे भेष
जय गंगान
सुख सुख ल भोगहू मितान
दुख मां झन देहू ध्यान
निज करनी अपन देख
जय गंगान
जउन जयइसन करनी करही
ओ वइसन जगा मा परही
नवा बच्छर के नवा अंजोर
जिनगी के नइये,ओर छोर
जय गंगान
जुन्ना बच्छर के कर विदाई
आपस में झन लड़व भाई
मनखे मनखे एक समान
जय गंगान
जुन जैसन करही,फल उंहे ले पाही
आही आही कुछ कुछ लेके आही।
नया बच्छर हा कुछ लेके आही
जय गंगानशिक्षक का आशीर्वाद
शिक्षक का आशीर्वाद
अमूर्त को मूर्त रूप देकर,जग को दिखलाया है,
शिक्षक,समाज में ज्ञान का महत्व को बताया है।
शिक्षक,शिक्षा से अज्ञानी को ज्ञानी है बनाया
शिक्षक,संसार मे सभी लोगों को है अपनाया।
बेशक,गुरू – कृपा से शिष्य हुए हैं आबाद,
जीवन में अनमोल है,शिक्षक का आशीर्वाद।असहायों का ज्ञान से रोशन होता है जमीर,
ज्ञान अर्जित सभी करते हैं,गरीब हो या अमीर।
बुराईयों का अंत कर,फैलाइए ज्ञान का प्रकाश,
ज्ञान का मंदिर है विद्यालय,क्यों होते हो हताश।
शिक्षा से,समाज को कुरीतियों से करो आजाद,
जीवन में अनमोल है,शिक्षक का आशीर्वाद।अस्पृश्यता,रंगभेद थी समाज की बुराई,
इनके विरूद्ध “शिक्षा” ने लडी है लडाई।
सांप्रदायिकता,सती-प्रथा का हुआ है अंत,
जब आए समाज में,शिक्षा का महान संत।
अशिक्षा का दैत्य ने,शिक्षा का किया फरियाद,
जीवन में अनमोल है,शिक्षक का आशीर्वाद।गरीबी से लडकर,शिष्य बना है बडा अफसर,
ज्ञान से मिली पहचान,अब जीता है खुलकर।
सही गलत में फर्क करना वह जान लिया,
अपने गुरूओं को वह सर्वश्रेष्ठ मान लिया।
श्रेष्ठ ज्ञान से बन गया,शिष्य एक दिन उस्ताद,
जीवन में अनमोल है,शिक्षक का आशीर्वाद।5 सितम्बर को सभी मनाईए ‘शिक्षक दिवस’,
डा.सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी का बढाईए,यश।
सभी लोगों को शिक्षा के बारे में बताओ,
अज्ञानता को लोगों के जेहन से हटाओ।
गुरूजनों,बुद्धिजीवियों को सहृदय धन्यवाद,
जीवन में अनमोल है,शिक्षक का आशीर्वाद।हर-एक की दुनिया में,एक ऐसा होता है इंसान,
अथक प्रयासों से,शिष्य को बनाते हैं वो महान।
कहता है’अकिल’गुरू के लिए बोलूँ ये बोल,
“गुरू बनाता है शिष्य का जीवन अनमोल।”
श्रेष्ठ ज्ञान से बनाईए अपने,बुद्धि को फौलाद,
जीवन में अनमोल है,शिक्षक का आशीर्वाद।अकिल खान.
सदस्य, प्रचारक “कविता बहार” जिला – रायगढ़ (छ.ग.).हिन्दी की पुकार पर कविता
हिन्दी की पुकार पर कविता
हिन्दी हिन्द की शान है,हिन्दी हिन्द की जान है,
हिन्दी हिन्द की वरदान है,हिंदी पर अभिमान है।
उमंगों के तरंग में,हिंदी है भावनाओं का समंदर,
एकता का प्रतीक है ये,भर लो हृदय के अंदर।
हिन्दी है सबसे प्यारी भाषा,करो सभी स्वीकार,
हिन्द का करो उद्धार यही है,हिन्दी की पुकार।
हिंदी की आजादी के लिए,कई वीर हुए कुर्बान,
अथक-अडिग प्रयत्नों से हिंदी बना है महान।
अंग्रेजों के साथ,गुलामी का भी हुआ गमन,
हिन्दी है अपनी जुबाँ,हिन्द है अपना वतन।
हिंदी की आशियाना में है,मार्मिकता बेशुमार,
हिन्द का करो उद्धार यही है,हिन्दी की पुकार।
पृथ्वी,गगन,पवन,और गवाह है बरसात,
हिंदी से तृप्त हैं,विश्व के सभी मानव जात।
हिंदी है सौहार्द, हिंदी है अमन की परिभाषा,
आजादी हो सर्वत्र,हिंदी की यही है अभिलाषा।
“सर्वे भवन्तु सुखिनः” हिंदी भाषा की है गुहार।
हिन्द का करो उद्धार यही है,हिन्दी की पुकार।
कभी न मुरझाने वाली हिंदी है,एक चमन,
हिंदी की महत्ता बयां करती है,धरा-गगन।
कहता है ‘अकिल’ हिंदी का किजीए रक्षा,
बड़ी ही शिद्दत से मिली है हिंदी की दीक्षा।
हिन्द है हमारा वतन,हिन्दी को दो सभी दुलार,
हिन्द का करो उद्धार यही है,हिन्दी की पुकार।
अकिल खान.
सदस्य, प्रचारक “कविता-बहार” जिला – रायगढ़ (छ.ग.).