
वेतन पर कविता / स्वपन बोस “बेगाना”
वेतन पर कविता कर्म करों फल मिलेगा मेहनत तो महिना भर हों गया, फिर वेतन कब मिलेगा ।सूनों सहाब डालोगे वेतन,समय पर तभी तो फिर कर्म का सुंदर फूल खिलेगा। सूनों सहाब हम कर्मचारियों की कहानी, हमें बस एक तारीख…
वेतन पर कविता कर्म करों फल मिलेगा मेहनत तो महिना भर हों गया, फिर वेतन कब मिलेगा ।सूनों सहाब डालोगे वेतन,समय पर तभी तो फिर कर्म का सुंदर फूल खिलेगा। सूनों सहाब हम कर्मचारियों की कहानी, हमें बस एक तारीख…
पतझड़ और बहार/ राजकुमार ‘मसखरे’ ये घुप अंधेरी रातों मेंधरा को जगमग करने दीवाली आती जो जगमगाती ! सूखते,झरते पतझड़ मेंशुष्क जीवन को रंगनेवो होली में राग बसंती गाती ! झंझावत, सैलाब लिएजब पावस दे दस्तक,तब फुहारें मंद-मंद मुस्काती !…
“जलती धरती” नामक कविता, जिसे रितु झा वत्स द्वारा रचा गया है, एक व्यक्तिगत अनुभव को अभिव्यक्ति देती है। इस कविता में, रचनाकार ने जलती धरती के माध्यम से मानव जीवन के अनेक पहलुओं को व्यक्त किया है। धरती की…
आशा बैजल की जलती धरती नामक हिंदी कविता में विभिन्न भावनाओं और संवेदनाओं को समाहित है। “जलती धरती” एक कविता है जो धरती की संताप और विपदाओं को बयान करती है। “जलती धरती” में, कविताकार धरती के विभिन्न प्राकृतिक विपदाओं…
पशु-पक्षी हमारे मित्र होते है। उन्हें प्यार,दुलार देना एवं उनकी सुरक्षा हमारी जिम्मेदारी है । लेकिन हम मनुष्य अपने स्वार्थ के लिए उन्हें मार देते है।हमे ये नही भूलना चाहिए कि पर्यावरण का संतुलन बनाने में उनका अहम योगदान होता है।यदि उनकी क्षति होती है ,तो हम भी नही बच पाएंगे। इस कविता के माध्यम से मूक प्राणियों की करुण पुकार है।
छत्तीसगढ़ शासकीय भवनों के नाम ये नाम छत्तीसगढ़ी हरे हैं ।है स्वाद मीठे रस से भरे हैं ।।जानो सभा आज विधान के हैं ।देवी ” मिनीमातु ” सियान से हैं ।। अध्यक्ष के धाम बने सियासी ।” संवेदना ” है…
जलती धरती / भावना मोहन विधानी वृक्ष होते हैं धरती का सुंदर गहना,हरियाली के रूप में धरा ने इसे पहनाहरे भरे वृक्षों को काट दिया मनुष्य ने,मनुष्य की क्रूरता का क्या कहना?तेज गर्मी से जलती जा रही धरती,अंदर ही अंदर…
जलती धरती/चन्दा डांगी बचपन मे हमने देखीहर पहाड़ी हरी भरी नज़र आता नही पत्थर कोई वहाँकटते गये जब पेड़ धरती होने लगी नग्न सिलसिला ये चलता रहाअब पत्थर नज़र आतेपेड़ो का पता नहींलाते थे हम सामान कपड़े की थैलियों मे…
जलती धरती /हरि प्रकाश गुप्ता सरल धरती जलती है तो जलने दीजिए।पेड़ कटते हैं तो कटने दीजिए।।भले ही जल जाए सभी कुछ यहांपर पर्यावरण की न चिंता कीजिए।कुछ तो रहम करो भविष्य के बारे में अपने लिए न सही आगे…
जलती धरती/शिव शंकर पाण्डेय न आग के अंगार से न सूरज के ताप से।।धरा जल रही है, पाखंडियों के पाप से।।सृष्टि वृष्टि जल जीवन सूरज।नार नदी वन पर्वत सूरज।।सूरज आशा सूरज श्वांसा।सूर्य बिना सब खत्म तमाशा।सूर्य रश्मि से सिंचित भू…