Category: छत्तीसगढ़ी कविता

  • आगे परब झंडा के -बोधन राम निषादराज विनायक

    आगे परब झंडा के -बोधन राम निषादराज विनायक

    आगे परब झंडा के

    आगे परब झंडा के,दिन अगस्त मास म।

    mera bharat mahan
    भारत देश तिरंगा झंडा

    चलो झंडा  लहराबो ,खुल्ला अगास म।।

    आगे परब झंडा के………………….

    रंग केसरिया हे ,तियाग के  पहिचान के।

    खून घलो खौलिस हे,देश के जवान के।।

    आजादी मनावत हन,उंखरे परयास  म।

    आगे परब झंडा के,…………………

    चलो झंडा लहराबो………………….

    सादा रंग शांति अउ,सुरक्छा बतावत हे।

    मया भरे नस-नस म ख़ुशी ल मनावत हे।।

    रक्छा करत बइठे,भारत माता के आस म।

    आगे परब झंडा के…………………

    चलो झंडा लहराबो…………………

    हरियर पहिचान हे,भुइयां के हरियाली के।

    करौ काम सबो रे ,देश के खुशिहाली के।।

    बनौ भागीदारी  सबो ,देश  के विकास म।

    आगे परब झंडा के………………….

    चलो झंडा लहराबो………………….

    लगे चकरी बिच में ,अशोक सारनाथ के।

    जीवन के गति अउ,उन्नति दुनों साथ के।।

    बित जही जिनगी,हंसी,ख़ुशी,उल्लास म।

      आगे परब झंडा के………………….

    चलो झंडा लहराबो………………….

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    रचनाकार :–बोधन राम निषादराज “विनायक”

  • सामाजिक बदलाव पर छत्तीसगढ़ी कविता

    सामाजिक बदलाव पर छत्तीसगढ़ी कविता

    सामाजिक बदलाव पर छत्तीसगढ़ी कविता

    सामाजिक बदलाव पर छत्तीसगढ़ी कविता
    छत्तीसगढ़ी कविता

    करलई होगे संगी ,करलई होगे गा।
    छानी होगे ढलई ,करलई होगे गा ।।
    पहिली के माटी घर ,मोला एसी लागे।
    करसी के पानी म ,मोर पियास भागे।
    मंझन पहा दन, ताश अऊ कसाड़ी म।
    टेढ़ा फंसे रे ,   हमर बिरथा-बाड़ी म।
    ए जमाना बदलई ,  करलई होगे गा ।
    करलई होगे संगी ,   करलई होगे गा ॥


    टीवी म झंपाके, लईका,सियान तको ।
    रेसटीप अउ फुगड़ी खेल नंदागे सबो।
    कइसे होही, हामर लइका के भविष्य ?
    मोबाईल गेम म आंखी बटरागे  दूनो।
    नइ होत गोठ बतरई,करलई होगे गा ।
    करलई होगे संगी,   करलई होगे गा ॥


    बईलागाड़ी लुकागे ,आ गय हे ट्रेक्टर ।
    फटफटी कुदात हें ,सइकिल हे पंक्चर।
    खरचा बढ़ा के ,बनथें अपन म सयाना।
    गरीबी कार्ड के रहत लें, मनमाने खाना।
    नइ होत हे कमई-धमई ,करलई होगे गा ।
    करलई होगे संगी,    करलई होगे गा ।।


    पहिली कस पहुना , कोई आवत नईये।
    बबा ह लईका ल,  कथा सुनावत नईये।
    कोठी म धान उछलत ,  भरावत नईये।
    गुरुमन ल चेला हर ,     डरावत नईये।
    मुर्रा लई कस होगे दवई,करलई होगे गा।
    करलई होगे संगी,     करलई होगे गा ॥
    (रचयिता :- मनी भाई भौंरादादर, बसना)

    मनीभाई नवरत्न की १० कवितायेँ

     मनीभाई ‘नवरत्न’, छत्तीसगढ़

  • छत्तीसगढ़ी संस्कृति

    छत्तीसगढ़ी संस्कृति

    1 नवम्बर छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना दिवस 1 November Chhattisgarh State Foundation Day
    1 नवम्बर छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना दिवस 1 November Chhattisgarh State Foundation Day

    दक्षिण कोशल के बीहड़ वन में
    साल, सागौन की है भरमार
    सतपुड़ा पठार शोभित उत्तर में
    मध्य है महानदी बस्तर पठार
    देखो छत्तीसगढ़ की छटा मनोहर
    चलो करें हम वन विहार ।।


         है छत्तीसगढ़ का खेल ये अनुपम
         फुगड़ी,लंगड़ी,अटकन-बटकन
          कैलाश गुफा, बमलेश्वरी मंदिर का
          देख नजारा खो जाता है मन
         ऐसे भव्य प्रदेश में आकर
         बाँटू  सभी से अपना प्यार ।।


    यहाँ खाने को व्यंजन लजीज़ है
    चीला, भजीया- भुजिया ,मुठिया
    साबूदाने की खिचड़ी की स्वाद
    और मशहुर यहाँ की है पकवान
    खूब खिलाते,प्यार लुटाते
    और करते आदर सत्कार ।।


         छत्तीसगढ़ी नारी की मनोहारी आभूषण
         झुमका, खिनवा, लुरकी, तिरकी
         पहनावा की भी बात निराली
         लहगा, साया, सलुखा, लुगरी
         देख मेरा मन बसा यही पर
         छत्तीसगढ़ी नारी की मनमोहक श्रंगार।।


    लोकगीत यहाँ की बड़ी ही उतम
    चंदैनी,पाँडवानी और ढोलामारू
    भाँति-भाँति के जनजाति यहाँ मिलते
    अधरीया,अतरा, गोंडा,उरावं
    ऐसी लोकसंस्कृति को देखकर
    जीवन हो जाता साकार ।।


         पर्वत सिंहावा में ऋषि श्रंगी बसते
         गुरु घासीदास,गहिरा महान
         गौरा-गौरी के लोकनृत्य से
         परिचित है सब लोग जहाँन
         ऐसी विहंगम नृत्य को देखने
          आता रहूँगा बार- बार।।

    ✒️बाँके बिहारी बरबीगहीया