Category: छत्तीसगढ़ी कविता

  • गौ सिरतोन ईमान

    गौ सिरतोन ईमान

    जबले मारे गोरी नैइना के बान।
    जीना मोर होगे कठिन हो गय परेशान ।
    (गौ सिरतोन ईमान) x 2
    ले गय मोर जान गौ सिरतोन ईमान.

    मय नइ आये पाछु ,सुनले बेईमान ।
    मया करे बर तय हो गय अघुआन ।

    (गौ सिरतोन ईमान) x 2
    ले गय मोर जान गौ सिरतोन ईमान.

    ए…. रातभर तोरे, फोटूएडिट करव .
    बस तोरे संग , मय चैटिंग करव ।
    खुश रहस तय अऊ का चाहिये मोला
    तोरे बर ही तो, बाल सेटिंग करव ।
    तय मोर शान गोरी तय ही मोर गुमान।
    संग तोरे रिहो सदा देवतहो जुबान।
    कोरस…… ऐ आ

    हाँ.

    हाथ भर भर ले,मेंहदी रचा लेवव।
    बस तोरे नांवके, गोदना गोदा लेवव।
    खुश रहस तय अउ का चाहिये मोला
    तोरे बर ही तो, काजर लगा लेवव।
    तय मोर पिरित साथी तय ही मोर परान।
    बरत रह

    कोरस…… ऐ आ

    तोर मोर जोही संगी ,जइसे धनुष बान।

    (गौ सिरतोन ईमान) x 2
    ले गय मोर जान गौ सिरतोन ईमान.

  • गुरू घासीदास जी पर हिंदी कविता

    गुरू घासीदास छत्तीसगढ़ राज्य के रायपुर जिले के गिरौदपुरी गांव में पिता महंगुदास जी एवं माता अमरौतिन के यहाँ अवतरित हुये थे गुरू घासीदास जी सतनाम धर्म जिसे आम बोल चाल में सतनामी समाज कहा जाता है, के प्रवर्तक थे। विकिपीडिया

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    महान व्यक्तित्व पर हिन्दी कविता

    गुरू घासीदास जी पर हिंदी कविता

    चलसंगी गुणगान गाबो, घांसीबबा के।
    गुरु के नांव बगराबो, सतनाम के।

    गिरौदपुरी के नाम हे, देशबिदेश म।
    पंथ चलतहे ईहां, गुरुआदेश म।
    अमृत कुंड के पानी, देथे जिनगानी ।
    सुग्घर धाम एहर, छत्तीसगढ़ प्रदेश म।
    चल संगी आशीष पाबो, बाबाधाम के।
    गुरु के नांव बगराबो, जै सतनाम के।

    मनखे मनखे एके ये, गुरु संदेश म।
    ऊंच नीच दूर होथे, जेकर उपदेश म।
    मिलजुल रहना हे, बबा के कहना ये।
    नई उलझ साथी, अब दुख कलेश म।
    पिरित भाव जगाबो, जे हावे काम के।
    गुरु के नांव बगराबो, जै सतनाम के।

  • गाय पालन पर छत्तीसगढ़ी कविता

    गाय पालन पर छत्तीसगढ़ी कविता

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    जानवरों पर कविता

    पैरा भूँसा ,कांदी-कचरा,कोठा कोंन सँवारे,
    हड़ही होगे ,बछिया कहिके रोजेच के धुत्कारे।।

    बगियाके बुधारू ,छोड़िस,
    गउधन आन खार।
    बांधे-छोरे जतने के,
    झंझट हे बेकार।।

    बछिया आगे शहर डहर अउ
    पारा-पारा घुमय।
    कोनो देदे रोटी-भात
    लइका मन ह झुमय।।

    देखते-देखत बछिया संगी
    घोसघोस ले मोटागे।
    चिक्कन-देहें ,दिखन लागय
    मन सबके हरसागे।।

    आना होगे एक दिन संगी
    बुधारू के हाट।
    देख परिस ,बछिया ल
    लालच करिस घात।।

    धरे-धरिस बछिया ल
    बछिया ह लतियारे।
    पुचकारय त बुधारू ल
    बछिया मुड़ म मारय।।

    आँखी डबडब होवत रहय
    गउधन के संगवारी।
    मन म गुनत-सोंचत रहय
    ये कइसन रखवारी…
    अउ ये कइसन गद्दारी….???


    धनराज साहू बागबाहरा

  • टेचराही….(व्यंग) दिन आगे कइसा

    टेचराही….(व्यंग) दिन आगे कइसा

    गोरर-गोरर के
    जिनगी सही
    चलत हे नेट,
    महिना पुट
    भरे परथे
    भरे झन पेट।

    दु दिन आघु
    मटकत रहिथे
    आरो मोबाइल म
    फोन आथे छोकरी के
    कहिथे ,स्टाइल म।

    जल्दी भरवा लो
    आपके सेवा
    हो जाही बंद,
    कसके लेवव
    फेसबुक, वाट्सअप
    के आनंद।

    मरता
    का न करता
    लगा थे जुगाड़,
    लइका के
    फीस पटे झन पटे
    हो भले आड़।

    मुड़ खुसारे
    नटेरे आँखी
    अंगरी चलत हे,
    निसा धरे
    लत परगे
    रात-दिन कलत हे।

    चुहक डरिस
    नेट वाला
    मंगलू के पइसा,
    बिन सुवारी
    रही जही
    दिन आगे कइसा।।


    धनराज साहू

  • समझाये सबो मोला (छत्तीसगढ़ी गजल)

    पगला कहे दुनिया समझाये सबो मोला ।
    का तोर मया हे दिखलाये सबो मोला ।।

    मन मोर भरम जाये वो ही गोठ ला करथें
    दुरिहा चले जावों भरमाये सबो मोला ।

    मँगनी के मया नोहे मया हावे जनम के
    निंदा करें सब झन बिचकाये सबो मोला ।

    कइसे तोला छोड़ँव मर जाहूँ लगे अइसे
    अर्थी मा मढ़ाये अलगाये सबो मोला ।

    अब तोर बिना सपना सबो अँगरा लगे हे
    सपना मोला खोजे दँवलाये सबो मोला ।

    गुन गुन के परेशान करे मोर जँवारा
    काँटा के बिछौना घिरलाये सबो मोला ।

    का नाम धरे हस तै बता दे ये मयारू
    चिनहा बता अब तो मँगवाये सबो मोला ।

    कोशिश करे दुनिया मर जाये अब मुदिता
    दिन रात हे पाछू सुलगाये सबो मोला ।

    *माधुरी डड़सेना"मुदिता"*