विश्व विकलांगता दिवस
विकलांगता अभिशाप नहीं, दिव्यांग है ये ईश्वर का।
कमजोरी बन जायेगी ताकत, जरुरत सुअवसर का ।
मनीभाई नवरत्न की कलम से
3 दिसंबर 1982 को विकलांगता दिवस मनाया जाना जागरूकता अभियान है विकलांगता जन्म से या फिर युद्ध, आतंकवाद , दुर्घटना, प्राकृतिक आपदाओं से होती है। समाज के विकलांगों की दयनीय स्थिति को देखते हुए सरकार ने सन 1995 में विकलांगता अधिनियम पारित किया । जिसके तहत उन्हें पर्यावरण शिक्षा एवं नौकरियों में 3% आरक्षण का प्रावधान किया गया । आजकल रेलगाड़ियों बसों हवाई यात्रा में दिव्यांगों के लिए खास व्यवस्था है । ताकि वे अपने काम को बिना किसी परेशानी के कर सकें। सबसे अहम बात यह है कि चाहे कितना भी अच्छा वातावरण समाज उन्हें क्यों ना दे? लेकिन सबसे ज्यादा जरूरी है दिव्यांगों के प्रति लोगों का नजरिया बदलना ।
विकलांगता की चोट सबसे ज्यादा तब लगती है जब उन्हें दीन और हीन समझा जाता है। तब उनकी रही सही शक्ति भी कम हो जाती है और उनका मनोबल टूटने लगता है। यदि मनुष्य विकलांग है या हो जाता है तब उसका प्रबंधन जरूरी है । उसके पुनर्वास के लिए समाज एवं सरकार को सामने आना होगा। उनका मनोबल जॉन मिल्टन, हेलेन केलर , स्टीफन हॉकिंस, सूरदास जैसे महान विकलांग व मनुष्य के व्यक्तित्व और कृतित्व द्वारा बढ़ाया जा सकता है। विकलांगता दिवस विकलांगों के प्रति नजरिया बदलने और उन्हें सुअवसर मुहैया कराने की गुहार करता है।
मुख्य बिंदु
- सयुंक्त राष्ट्र संघ ने 3 दिसंबर 1991 से प्रतिवर्ष अन्तरराष्ट्रीय विकलांग दिवस को मनाने की स्वीकृति प्रदान की थी।
- संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 1981 को अन्तरराष्ट्रीय विकलांग दिवस के रूप में घोषित किया था।
- सयुंक्त राष्ट्र महासभा ने सयुंक्त राष्ट्र संघ के साथ मिलकर वर्ष 1983-92 को अन्तरराष्ट्रीय विकलांग दिवस दशक घोषित किया था।
- भारत में विकलांगों से संबंधित योजनाओं का क्रियान्वयन सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के आधीन होता है।
- संगम योजना का संबंध भारत में विकलांगों से संबंधित है।
समाज को संदेश
दुनिया में आज हज़ारों- लाखों व्यक्ति विकलांगता का शिकार है। विकलांगता अभिशाप नहीं है क्योंकि शारीरिक अभावों को यदि प्रेरणा बना लिया जाये तो विकलांगता व्यक्तित्व विकास में सहायक हो जाती है।
मेडम केलर कहती है कि विकलांगता हमारा प्रत्यक्षण है, देखने का तरीक़ा है। यदि सकारात्मक रहा जाये तो अभाव भी विशेषता बन जाते हैं। विकलांगता से ग्रस्त लोगों को मजाक बनाना, उन्हें कमज़ोर समझना और उनको दूसरों पर आश्रित समझना एक भूल और सामाजिक रूप से एक गैर जिम्मेदराना व्यवहार है। हम इस बात को समझे कि उनका जीवन भी हमारी तरह है और वे अपनी कमज़ोरियों के साथ उठ सकते है।
पंडित श्रीराम शर्मा जी ने एक सूत्र दिया है, किसी को कुछ देना है तो सबसे उत्तम है कि आत्म विश्वास जगाने वाला उत्साह व प्रोत्साहन दें।
भारत में विकलांगता
विज्ञान के इस युग में हमने कई ऊंचाइयों को छुआ है। लेकिन आज भी हमारे देश, हमारे समाज में कई लोग है जो हीनदृष्टि झेलने को मजबूर है। जबकि ये लोग सहायता एवं सहानुभूति के योग्य होते है। विश्व विकलांग दिवस पर कई तरह के आयोजन किये जाते है, रैलियां निकाली जाती है, विभिन्न कार्यक्रम किये जाते हैं लेकिन कुछ समय बाद ये सब भुला दिया जाता है, लोग अपने-अपने कामों में लग जाते है और विकलांग-जन एक बार फिर हताश हो जाते है। विकलांगता शारीरिक अथवा मानसिक हो सकती है किन्तु सबसे बड़ी विकलांगता हमारे समाज की उस सोच में है जो विकलांग-जनों से हीन भाव रखती है और जिसके कारण एक असक्षम व्यक्ति असहज महसूस करता है।