Category: हिंदी कविता

  • हर क्षण नया है



    हर क्षण नया है।

    साल नया आ गया गौर से देखो हर क्षण नया होता है।
    कुछ मिलता है, कुछ खोना होता है।
    हर क्षण नया होता है।

    जीवन के इस सफर में, कोई अपना कोई पराया होता है।
    सुख, दुःख की दो धार में,हर क्षण नया होता है।

    लोग मिलते हैं बिछड़ते हैं। जो जिसे दिल से चाहें वो मिल नहीं पाते है। कृष्ण तो इस युग में हैं,पर राधा कहीं नहीं मिलते है।

    बहुत मतलबी हो गया ये सारा जहां।
    जिसने सब कुछ दिया, उसने सब कुछ खोया है। नया साल तों,आते जाते रहेंगे,यह हर क्षण नया है।

    जाने वाले साल के अधुरी सपनों को, आने वाले साल में पुरी करनी है।
    कर्म फल अटूट है, जैसे करनी,वैसी भरनी है।यह कुछ भी न पुराना है।
    हिसाब से चलना जनाब, नया जमाना है।

    जाने वाले साल में कितनों के दिल टूटें
    चलो अच्छा हुआ, जो तोड़े दिल वो लोग थे झुठे।राजा रंक हुए,रंक राजा हुए,कई अच्छे फिल्मों ने दर्शकों के दिलों को छूएं । कोई सत्ता में आसीन हुए, कोई सत्ता से बाहर हुए।सब माया का जाल है। यही मनुष्य का हाल है।

    कोई प्यारा इंसान हमसे विदा हो गया
    दिल में दर्द देकर हमसे जुदा हो गया।
    कोई नया मेहमान किलकारी देकर जगत में आया है। खुद रोया हमें हंसाया है।सूख दुःख से भरा,यह मानव तन है । करता है,, बेगाना कवि,, सभी को हैप्पी न्यू ईयर 2024
    सबसे सुंदर मनुष्य जीवन का हर क्षण है।


    स्वपन बोस,, बेगाना,,
    9340433481

  • लो..और कर लो विकास पर कविता

    *लो..और कर लो विकास !*

    ग्लेशियर का टूटना और ये भूकम्प का आना
    भूस्खलन,सुरंग धसना और बादल फटना,
    सरकार और कॉरपोरेट जगत तो मानते हैं
    ये सभी है महज एक सहज प्राकृतिक घटना !

    इस तरह की कई हादसों का जिम्मेदार है
    विकास की भूख और कई-कई परियोजना ,
    होटल,रिसॉर्ट,पुल,बांध,विभिन्न अवैध खनन
    और अनियंत्रित मानव बसाहट का होना !

    कई नाजुक पहाड़ों में बाँध,बैराज का बनना
    नदियों के कई अविरल प्रवाह को रोकना ,
    पहाड़ों का पारिस्थिकीय तंत्र को बिगाड़ कर
    पहाड़ को खोदकर,खतरनाक टनल बनाना !

    कई-कई किलोमीटर का सुरंग को बना कर
    पूरा का पूरा पहाड़ खोदकर खोखला करना,
    दैत्याकार क्रेन,भारी-भारी निर्माण उपकरण
    चट्टानी सीने को बारूद से उड़ाना व तोड़ना !

    नदियों से बेतहाशा रेत खनन,प्लांट लगाना
    पेड़ों की कटाई कर,पहाड़ों में ड्रिल करना,
    इन सभी का जिम्मेदार कौन है ? हम ही हैं
    ये मानव निर्मित परिस्थितियों का होना !

    कुदरत के हत्यारों अब सम्हल भी जाओ तुम
    विकास के आड़ में इतना भी दोहन न करना,
    अभी एक ज्वलंत उदाहरण हैं हमारे सामने
    इकचालिस मजदूरों का सुरंग में फँसे होना !


    — *राजकुमार ‘मसखरे’*

  • आत्म ज्ञान ही नया दिन

    जिस दिन जीवन खुशहाल रहे,
    जिस दिन आत्मा ज्ञान प्रकाश रहे,
    उस दिन दीवाली है।
    जिस दिन सेवा समर्पण भाव रहे,
    जिस दिन नवीन अविष्कार
    रहे
    नव वर्ष आने वाली हैं।
    जिस दिन घर घर पर दीप
    जले,
    जिस दिन पापियन निज हाथ मले
    उस दिन दीवाली है।
    नव वर्ष की खुशहाल त्योहार
    उस दिन हम मनायेंगे।
    जिस दिन भारत भुमि में नव दिन ज्योति जलायेंगे।।
    नया वर्ष मनायेंगे,
    नव दुर्गा नव रूप लेकर,, भक्तों का मन हर्षायेगे।।

    कौशल्या राज दुलारे हैं,
    दशरथ प्राण प्यारे हैं।
    पंच शतक बनवास काट,फिर अवध में राम पधारे हैं।।

  • कल्पना शक्ति पर कविता

    कल्पना शक्ति बनाम मन की अभिव्यक्ति!

    भावावेश में आकर,
    कल्पनाओं के देश में जाकर,
    अक्सर बहक जाता हूं,
    खुद को पंछी सा समझ कर,
    उड़ता हूं, उन्मुक्त गगन में,
    खुशी से, चहक जाता हूं!
    यह मेरे, मन की, भड़ास है
    या कि छिछोरा पागलपन,
    क्या कुछ है, मुझे नहीं पता,
    लगता है जैसे कि, कच्चा कोयला हूं,
    जब तब, अंगार लगती है तो,
    जलता है दिल और दहक जाता हूं!
    सामाजिक पाखण्ड और वैभव का घमंड,
    हृदय को मेरे, यूं तार तार कर देता है,
    धनी गरीब का फासला, किसलिए भला?
    मेरे भविष्य के सपनों को, बेज़ार कर देता है!
    जाति बिरादरी की यह प्राचीन परम्परा,
    कब तक सहेगी यह, रत्न प्रसविनी धरा?
    निर्बल को बल मिले, सत्य को मिले अभिव्यक्ति
    दूर दिगंत में विचर रही , हमारी कल्पना शक्ति!


    पद्म मुख पंडा ग्राम महा पल्ली पोस्ट लोइंग
    जिला रायगढ़ छत्तीसगढ़ pin 496001

  • नव वर्ष का उत्सव !

    *नव वर्ष का उत्सव !*


    मैंने नव वर्ष का उत्सव
    आज ये नही मनाया है……….!
    किसे मनाऊँ,किसे नही
    कुछ समझ न आया है …..!!

    चाहे ये विक्रम संवत हो
    या जो ग्रेगोरियन रंगाया है
    चाहे अपना शक संवत हो
    या हिजरी ने जो नचाया है !..मैंने..

    गर दिन खराब चल रहा तो
    दिन को दीन क्यों बताया है,
    जब अपना जेब गरम है तो
    देखो फिर ये कैसी माया है !.मैंने..

    आज भी वही दिन व रात
    कुछ भी अंतर न पाया है,
    न तुम बदले न हम बदले
    अब काहे को भरमाया है !…मैंने..

    ग़रीब झोपड़ी बद से बदतर
    आज और कैसे उड़ आया है,
    वो तेरा गुरुर और ये मेरा अहं
    आज फिर से टकराया है !…मैंने..

    सत्य छोड़,इस झूठ प्रपंच को
    आज तूने फिर सिरजाया है ,
    आकण्ठ ….डूबे भ्रट्राचार को
    हटाने,कोई कदम उठाया है!..मैंने..

    ये निर्भया,भय से काप रहे
    कितनों को जिंदा जलाया है,
    राजनीति के चतुर खिलाड़ी
    राजधर्म कहाँ छोड़ आया है!.. मैंने..

    जल,जंगल,जमीन रक्षा हेतु
    क्या इस पर दीप जलाया है,
    अपने स्वार्थ के ख़ातिर तूने
    ‘हसदेव’ जैसों से टकराया है !

    मैंने नव वर्ष का उत्सव
    आज नही मनाया है ……….!
    किसे मनाऊँ,किसे नही ?
    कुछ समझ न आया है …….!!

    — *राजकुमार मसखरे*
    मु.भदेरा (पैलीमेटा/गंडई)
    जिला- के.सी.जी (छ.ग.)