आओ प्रिय कोई नवगीत गाएँ
चलो जीवन में कुछ परिवर्तन लाएँ
कुछ अच्छा याद रखें कुछ बुरा भूल जाएँ
आओ प्रिय मैं से हम हो जाएँ।
यादों का पुलिंदा जीवन में
जाने कब से सिसक रहा है
आओ प्रिय कुछ गिले-शिकवे मिटाएँ।
शिद्दत से चाहा था कभी हमें
मुद्दत से वो दौर नहीं आया
अनकही सी पहेली है जीवन
आओ प्रिय कुछ सवालों को सुलझाएँ।
क्या कभी क्षीण लम्हों को तुम जीवंत बना पाओगे?
क्या कभी तुम मुझे समझ पाओगे?
क्या कभी मुझे स्नेह दे पाओगे?
मेरे मासूम सवालों को कभी सुलझाओगे?
काश ! कितना सुंदर होता
यदि तुम्हारा जवाब हां होता
जीवन बगिया में बहारों का समां होता
मौसम ने ये बेईमां होता
दर्द का न कोई इंतहां होता।
फिर से “मैं” से हम हो जाते
नवरस नवरंग में हम घुल जाते
दफन एहसास समझा पाते।
क्यों न एक नव परिवर्तन लाएँ
मर्म मेरा समझो जिद अपनी छोड़ो
आओ प्रिय हृदय तार जोड़ो
झंकृत कर दे जीवन को जो
वो बंधन न तोड़ो।
फिर से इक मधुमास लाएँ
कुछ अच्छा याद रखें कुछ बुरा भूल जाएँ
आओ प्रिय मैं से हम हो जाएँ।