Category: हिंदी कविता

  • नमन करुँ मैं अटल जी

    नमन करुँ मैं अटल जी

    नमन करुँ मैं अटल जी तुमको नत हो बारम्बार,
    जन्म लिया भारत भूमि पर ,जन नेता अवतार।


    बन अजातशत्रु तुमने मन मोह लिया जन जन का
    भारत माँ पे निछावर हो,अर्पण किया तन मन का
    नमन करुँ हे संघ प्रचारक, कवि हृदय जन नेता।
    राजनीति के प्ररेक पोषक,राष्ट्र भक्ति प्रणेता।


    नमन करे ये कलम लेखनी ,बुझी हुई बती को
    जिसने जीवित कर दी है भारत की थाती को।
    नमन करुँ हे ओज दिवाकर, त्याग तुम्हारा अर्पण
    अश्रु पूरित नैनों से मैं करती सुमन समर्पण

    सरिता कोहिनूर

  • इन गुलमोहरों को देखकर

    कविता/निमाई प्रधान’क्षितिज’

    इन गुलमोहरों को देखकर

    दिल के तहखाने में बंद
    कुछ ख़्वाहिशें…
    आज क्यों अचानक
    बुदबुदा रही हैं?
    महानदी की…
    इन लहरों को देखकर!!

    कि ननिहाल याद आता है..
    इन गुलमोहरों को देखकर!!

    शाही अपना भी रूतबा था
    मामाजी के गाँव में!!
    बचपन में हम भी..
    हुआ करते थे राजकुमार..
    सुबहो-शाम घूमा करते थे
    नाना की पीठ पर होके सवार..
    हमारे हर तोतले लफ्ज़ आदेश..
    और हर बात फरमानी थी !
    उनका कंधा ही सिंहासन था
    और आंगन राजधानी थी !
    अपना दरबार तो बैठता था
    वहाँ पीपल की छांव में!
    शाही अपना भी रूतबा था
    मामाजी के गाँव में!!

    क्यों बचपन छटपटाता है?
    पीपल के…
    इन मुंडेरों को देखकर!!

    कि ननिहाल याद आता है..
    इन गुलमोहरों को देखकर!!

    ‘क्षितिज’ के पार खिसकती
    नन्हीं ढिबरी लिबलिबाती
    पहाड़ी की उस चोटी पर..
    और चंदा-मामा आ गये हैं
    दूधिली-मीठी-रोटी पर…!
    हम रोते-हँसते-खिलखिलाते
    सब रोटी चट कर जाते थे,
    और ‘चंदा मामा आओ न’
    कहकर गुनगुनाते थे !!

    क्यों नानी के हाथों से
    वो खाना याद आता है ?
    कबूतरों के..
    इन बसेरों को देखकर!!

    कि ननिहाल याद आता है..
    इन गुलमोहरों को देखकर!!

    पगडंडियों से सरकते
    सूरजमुखी के खेतों में…
    कहीं बचपन खिलखिलाता था !
    धूल,धुआँ और कोयले से आगे
    एक कांक्रीट की बस्ती में कैद…
    आज यौवन तिलमिलाता है ।

    दशहरे-दिवाली की छुट्टियों में
    क्यों भागता है मन?
    शहर की चकाचौंध से दूर
    पहाड़ी के पार…
    अमराई से झांकते हुए
    इन सवेरों को देखकर !!

    कि ननिहाल याद आता है..
    इन गुलमोहरों को देखकर!!
    *-@निमाई प्रधान ‘क्षितिज’*

  • चिड़िया पर कविता

    थके पंछी

    थके पंछी आज
    फिर तूँ उड़ने की धारले,
    मुक्त गगन है सामने
    तूँ अपने पंख पसारले।

    देख नभ में, नव अरुणोदय
    हुआ प्रसूनों का भाग्योदय,
    सृष्टि का नित नूतन वैभव
    साथियों का सुन कलरव
    अब हौंसला संभाल ले ।

    शीतल समीर बह रहा
    संग-संग चलने की कह रहा,
    तरु शिखा पर झूमते
    फल फूल पल्लव शोभते
    त्याग दे आलस्य निद्रा
    अवरुद्ध मग विकास का
    आज अब तो तूँ खोज ले।

    सरिता की बहती धारा
    झरते निर्झर का नजारा,
    धर्म उनका सतत बढना
    जब तक ना मिले किनारा।
    व्यवधान की परवाह न कर
    बढने का मंत्र विचार ले।

    टूट जायेंगे अड़चनों के शिखर,
    संशय चट्टानें जायेंगी, बिखर
    मुस्कुराती मंजिलों का काफिला,
    सामने आ जायेगा नजर ।
    बढ खुशी से मिली हुई
    सौगत को संभाल ले।
    तूँ अपने पंख पसार ले

    पुष्पा शर्मा”कुसुम”

  • भ्रूणहत्या-कुण्डलिया छंद


    भ्रूणहत्या-कुण्डलिया छंद

    साधे बेटी मौन को, करती  एक गुहार।
    जीवन को क्यों छीनते ,मेरे सरजनहार।
    मेरे सरजनहार,बतायें गलती मेरी।
    कहँ भू पर गोविंद , करे जो रक्षा  मेरी।
    “कुसुम”कहे समझाय  , पाप   जीवन भर काँधे।
    ढोवोगे दिन रैन ,दुःख यह मौनहि  साधे।

    पुष्पा शर्मा “कुसुम”

  • पथ की दीप बनूँगी

    पथ की दीप बनूँगी

    प्रिय तुम न होना उदास तेरे पथ की दीप बनूँगी ।
    फूल बिछा कर पग पर तेरे काँटे सदा वरण करूँ गी ।।
    तेरे पथ की दीप बनूँगी।

    ना  मन  हो  विकल  न उथल पुथल ।
    मनों भाव अर्पित कर अधर की मुस्कान बनूँगी ।

    तेरे पथ की दीप बनूँगी।

    जिन्दगी में कभी गम के बादल भी छाये ।
    प्रिय थाम लो हाथ मेरा तपन मैं हरूँगी ।

    तेरे पथ की दीप बनूँगी ।

    खुशी हो  या गम संग  हँस कर जियें ।
    विष वरण कर अमृत तेरे हाथ मैं  धरूँगी ।

    तेरे पथ की दीप बनूँ गी ।

    जिन्दगी के सफर में थक भी जाओ कभी ।
    कदमों पे तेरे प्रिय मैं हथेली धरूँगी ।

    तेरे पथ की दीप बनूँगी ।

    बनाया है रब ने इक दूजे के लिये ।
    आखरी  साँस तक तुमको तकती रहूँगी ।

    तेरे पथ की दीप बनूँगी।
    फूल बिछा कर पग पर तेरे काँटे सदा वरण करूँगी ।

    केवरा यदु “मीरा “