Category: अन्य काव्य शैली

  • सतनाम पिरामिड रचना

    सतनाम पिरामिड रचना

    हे
    नर
    तज तू
    नशाखोरी
    जाति प्रपंच
    चोरी, व्यभिचार
    असत,हिंसा,हत्या
    अपना   सतनाम
    करूणा निधान
    देगा सम्मान
    वही सच्चा
    महान
    धर्म
    है।


    #मनीभाई”नवरत्न”

  • गीता एक जीवन धर्म

    गीता एक जीवन धर्म

    गीता एक जीवन धर्म

    यह कविता भगवद गीता के महत्व और उसके जीवन में अनुपालन के लाभ को दर्शाती है। इसे आगे बढ़ाते हुए प्रस्तुत है:

    महाभारत अर्जुन और कृष्ण

    गीता का ज्ञान

    गीता महज ग्रंथ नहीं, है यह जीवन धर्म।
    अमल कर उपदेश को, जान ले ज्ञान मर्म।
    गीता से मिलती, जीने का नजरिया।
    सुखमय बनाती जो अपनी दिनचर्या।

    ज्ञान झलके व्यवहार में।
    सहारा बने मझधार में।
    कहती गीता, फल मिलेगी, कर लो निस्वार्थ कर्म।
    गीता महज ग्रंथ नहीं, है यह जीवन धर्म।

    अर्जुन को सिखाया कृष्ण ने जीवन का सार,
    कर्म पथ पर बढ़ चलो, नहीं हो कोई विकार।
    न देखो फल की इच्छा, न हो मोह का जाल,
    सत्य और धर्म की राह पर हो तुम्हारा बाल।

    धैर्य और संतोष का पाठ, गीता हमें सिखाए,
    संकट के क्षणों में भी, संयम हमें दिलाए।
    जो भी हो कठिनाई, साहस से उसे सुलझाओ,
    गीता के उपदेश से जीवन को संवारो।

    अहम का त्याग करो, नफरत को भूल जाओ,
    सच्चाई की राह पर, सदा चलते जाओ।
    प्रेम और दया से, बनाओ अपना जीवन,
    गीता के ज्ञान से, पाओ मोक्ष का द्वार।

    योग और ध्यान का महत्व, गीता ने समझाया,
    अंतर्मन की शांति में, सच्चा सुख पाया।
    जो भी हो जीवन की दिशा, तुम स्वंय हो राहगीर,
    गीता के संदेश से, बनो जीवन के अधिकारी।

    गीता का संदेश है अमर, नश्वर इस संसार में,
    उसका पालन करके देखो, सुख मिलेगा हर द्वार में।
    सत्य, अहिंसा, और प्रेम की हो महक हर दम,
    गीता महज ग्रंथ नहीं, है यह जीवन धर्म।

    हर जीवन में गीता का प्रकाश फैलाओ,
    अंधकार में भी राह की ज्योति बन जाओ।
    धर्म, कर्म, और सत्य का हो आदर हर समय,
    गीता का ज्ञान अपनाकर, पाओ सच्चा प्रेम।


    यह कविता गीता के उपदेशों की महत्ता और उसके जीवन में अनुपालन से मिलने वाले सुख और शांति को दर्शाती है। गीता का ज्ञान हमें सही दिशा में चलने और जीवन को सफल और संतोषजनक बनाने की प्रेरणा देता है।

    4o

    मनीभाई नवरत्न

  • साक्षात्कार :  निर्मोही जी से व्हाट्सएप गुफ्तगू

    साक्षात्कार :  निर्मोही जी से व्हाट्सएप गुफ्तगू

    साक्षात्कार :  निर्मोही जी से व्हाट्सएप गुफ्तगू

    manibhai Navratna
    मनीभाई पटेल नवरत्न

    13/07/2017, 14:42:17: मनी भाई: आदरणीय बालकदास ‘निर्मोही ‘ जी
    नमस्कार ,
    कैसे है आप ? आशा है कि आप सकुशल होंगे।

    13/07/2017, 14:44:07: बालकदास ‘निर्मोही’ जी: सादर नमस्कार सर, मैं सकुशल हूँ और आशा करता हूँ कि आप भी सकुशल होंगे।

    13/07/2017, 14:44:49: मनी भाई: जी बिल्कुल सर

    13/07/2017, 14:44:59: मनी भाई: लिखना यह था कि हम और आप आदरणीय नवल प्रभाकरजी और आदरणीय  संजय कौशिक “विज्ञात” के द्वारा संचालित “ये शब्द बोलते हैं” ग्रुप में सदस्य के रूप में जुड़े हुये हैं । अभी आप अवगत ही होंगे कि “ये शब्द बोलते हैं “साहित्यिक व्हाट्सएप ग्रुप में अभी साप्ताहिक प्रतियोगिता 10 जुलाई 2017 से 16 जुलाई 2017 के बीच किसी महान साहित्यकार को लेकर साक्षात्कार लिखना है।जो कि एक गद्य की विधा ही है। मेरी दृष्टि से आप एक महान साहित्यकार के साथ ही साथ मेरे प्रेरणा स्त्रोत भी रहे हैं । अतः आपसे अनुरोध है कि मुझे आप अपना छोटी सी साक्षात्कार लेने की अनुमति प्रदान करेंगे ताकि मैं भी प्रतियोगिता में सहभागी बन सकूं।

    13/07/2017, 14:46:02: बालकदास ‘निर्मोही’ जी: अवश्य

    13/07/2017, 14:46:20: बालकदास ‘निर्मोही’ जी: सहमति देता हूँ, आपको हृदय से धन्यवाद आपने मुझे महान साहित्यकार जैसे शब्दों से नवाजा ये आपकी भावनाओं में बसे हुए मेरे प्रति प्यार और लगाव मात्र है, हृदय से धन्यवाद।

    13/07/2017, 14:48:04: मनी भाई: सर आपको बताना चाहूँगा ; इस साक्षात्कार की खास बात यह रहेगी कि आपको व्हाट्सएप के जरिए ही अपनी बात रखनी होगी । अतः आपसे विशेष अनुरोध है कि मेरे लिए कुछ समय प्रबंध करने की कृपा करेंगे ।

    13/07/2017, 14:49:49: बालकदास ‘निर्मोही’ जी: जी हाँ, आप सवाल कीजिए

    13/07/2017, 14:52:31: मनी भाई: बहुत बहुत धन्यवाद आपका महोदय।
    सबसे पहले मैं आपका हृदय से अभिनंदन करता हूँ ।आपने जो मेरे लिए अपना अमूल्य समय , अपने व्यस्ततम जिन्दगी से निकाली है ।इसके लिये मैं सदा आभारी रहूँगा ।

    13/07/2017, 14:53:00: बालकदास ‘निर्मोही’ जी: शुक्रिया

    13/07/2017, 14:54:39: मनी भाई: सर्वप्रथम पाठकों को आपके बारे में संक्षिप्त रूप से बताना चाहूँगा कि आप उत्कृष्ट कवियों और लेखकों में आपका नाम शुमार किया जाता है ।इसके साथ ही आप सरल हृदय और मिलनसार व्यक्तित्व के धनी हैं । बाकी का परिचय आप अपने और परिवार के बारे में पाठकों को अपने श्रीमुख से स्वयं अवगत करायें।

    13/07/2017, 14:55:34: बालकदास ‘निर्मोही’ जी: जी, अवश्य

    13/07/2017, 15:00:23: बालकदास ‘निर्मोही’ जी: मेरा पूरा नाम बालक दास गर्ग है किंतु अपनी रचनाओं में *बालक ‘निर्मोही”* लिखता हूँ, मेरा जन्म 01 जुलाई 1971 को ग्राम अकलतरा, तहसील व थाना भाटापारा, जिला रायपुर (वर्तमान में जिला बलौदाबाजार है) (छ. ग.) में एक गरीब कृषक परिवार में हुआ था। माताजी का नाम श्रीमती रामबाई एवं पिता जी का नाम स्व. श्री सुकुल गर्ग है, दो बड़ी बहन एवं पांच भाईयों में मैं सबसे छोटा हूँ, मैं विवाहित हूँ तथा मेरी तीन होनहार बेटियाँ है जो कि मेरे आन बान और शान हैं, बड़ी बेटी कला संकाय में स्नातकोत्तर शिक्षा के साथ ही, डी. सी. ए. तथा पी. जी.डी. सी. ए. कर चुकी है तथा गृहस्थ जीवन में प्रवेश कर चुकी है, दूसरी बेटी कम्प्यूटर साईंस में इंजीनियरिंग कर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारियों में लगी हुई है तथा तीसरी बिटिया कॉमर्स विषय के साथ स्नातक कर रही (अन्तिम वर्ष) हैं, मेरी धर्म पत्नि घर की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने में कदम से कदम मिलाकर मेरी मदद करती हैं वह एक निजी अस्पताल में नर्स है। दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के बिलासपुर मण्डल में मैं तृतीय श्रेणी कर्मचारी हूँ। तथा बिलासपुर ही मेरा वर्तमान निवास स्थान है। लिखने का शौक बचपन से है, लेखन के अलावा मुझे गायन एवं वादन में भी बचपन से रुचि है, स्वरचित, सस्वर छत्तीसगढ़ी लोकगीत आकाशवाणी के बिलासपुर (छ. ग.) केंद्र से प्रसारित होती है। डॉ० बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर को मैं आदर्श मानता हूँ क्योंकि अभावों, और विपरीत परिस्थितियों, विपत्तियों और चुनौतियों से संघर्ष कर ऊपर उठने की प्रेरणा मिलती है।

    13/07/2017, 15:02:49: मनी भाई: हर साहित्यकार अपने भावनायें व्यक्त करने हेतु साहित्य के विविध विधाओं का सहारा लेता है। आपने अभी तक साहित्य के क्षेत्र में कौन कौन से विधा में कलम चलाई है और आप किस विधा में याद रखे जाना पसंद करेंगे?

    13/07/2017, 15:08:49: बालकदास ‘निर्मोही’ जी: वैसे तो मूल रूप से छत्तीसगढ़ी में ही लिखता हूँ किन्तु हिंदी में अभी तक छन्द घनाक्षरी, माहिया, दोहा, और मात्र दो कुण्डलियां ही लिख पाया हूँ जो कि गिनती में बहुत ही कम है इसके साथ साथ सजल तथा तुकांत अतुकांत सामान्य कविताएं लिखता हूँ जैसे- मैं बादल हूँ, हो न जाये महाविनाश, हे मन, हे कवि, माँ, उम्र सत्तर नज़र कमजोर, नाहक ही तुझे मीत माना, हे कलमकार, तुम कौन हो, काश्मीर समस्या पर आधारित सजल लगा ट्रिगर पर देखो तो मानवता का ताला है, बढ़ा चढ़ाकर हाँकने में क्या जाता है इत्यादि मेरी रचनाएँ है और भी कविताएं है किंतु समयाभाव के कारण पूर्ण विवरण दे पाना संभव नहीं है। जैसा कि मैने पहले ही बताया मेरी शिक्षा सिर्फ और सिर्फ बारहवीं तक ही है इसलिए मेरी कविताओं में कोई कठिन शब्द नहीं होते हैं और ईमानदारी से सच कहूँ तो मेरे मन मस्तिष्क में विधाओं की बाध्यता नहीं है, साहित्य के क्षेत्र में मैं अभी विद्यार्थी हूँ इसलिए हर एक विधा को सीखने और लिखने की इच्छा है, किसी भी एक विधा को ही लेकर चलने को मैं सोचा भी नहीं हूँ।

    13/07/2017, 15:09:58: मनी भाई: जैसा कि आपने बताया कि आप रेलवे के कर्मचारी हैं ।फिर भी अपने व्यस्त दिनचर्या में साहित्य सेवा के लिए समय प्रबंधन कैसे कर पाते हैं ?

    13/07/2017, 15:13:18: बालकदास ‘निर्मोही’ जी: लेखन कार्य से मुझे अत्यधिक शांति मिलती है, और मेरी थकान भी दूर हो जाती है इसलिए रात में भोजन पश्चात 10 बजे से 12 बजे तक कभी कभी तारीख और दिन भी बदल जाते हैं कहने का अर्थ यह है कि, 1.00 और दो बजे तक भी लिखता हूँ , शनिवार और रविवार को कार्य पर नहीं जाना होता है इसलिए अधिकांश लेखन कार्य शुक्रवार और शनिवार रात को ही करता हूँ, बाकी दिन नहीं के बराबर लिख पाता हूँ।

    13/07/2017, 15:13:41: मनी भाई: आप अपने बिलासपुर अंचल के किस- किस साहित्यिक मंचों से जुड़े हुए हैं ?

    13/07/2017, 15:17:15: बालकदास ‘निर्मोही’ जी: आपने बहुत ही अच्छा सवाल किया, मै मुख्य रूप से राष्ट्रीय कवि संगम से विगत दो वर्ष से जुड़ा हुआ हूँ और बिलासपुर मण्डल के कोषाध्यक्ष के रूप उत्तरदायित्व भी निभा रहा हूँ, इसके पूर्व मेरे भीतर का रचनाकार कहीं खो गया था, जिसे राष्ट्रीय कवि संगम में ढूंढ़ पाया। इसके अलावा साहित्य कला परिषद (सीपत) और समन्वय साहित्य परिषद के सदस्यों से भी जुड़ा हुआ हूँ किन्तु विधिवत सदस्यता नहीं लिया हूँ। व्हाट्सएप समूह की बात करूं तो, राष्ट्रीय कवि संगम, बिलासपुर कवि संगम, कलम के सिपाही, हम तेरे सफर, साहित्य साधना और तीन प्रमुख समूह है जिनमे देश भर के जाने माने वरिष्ठ साहित्यकार जुड़े हुए हैं वो है, साहित्यकार समूह, ये शब्द बोलते हैं, तथा अखिल भारतीय हाइकु मंच, इसके अलावा फेसबुक के छत्तीसगढ़ी साहित्य मंच है।

    13/07/2017, 15:19:01: मनी भाई: क्या आपको कभी किसी काव्य सम्मेलनों में प्रतिभागी बनने का सौभाग्य मिला है और ऐसे सम्मेलन , साहित्यिक जीवन को किस तरह से प्रभावित करता है ?

    13/07/2017, 15:25:39: बालकदास ‘निर्मोही’ जी: काव्य गोष्ठी की बात करूं तो, विगत दो वर्ष से प्रति माह किन्तु सम्मेलन में एक ही बार जा पाया हूँ, सच्चाई यही है कि सम्मेलन के लायक स्वयं को परिपक्व नहीं मानता हूँ, अभी कुछ दिन और….
    साहित्यिक सम्मेलन के प्रतिभागी बनने पर निश्चित रूप से मनोबल में वृद्धि होती है और लोकप्रियता के साथ ही लेखन क्षमता भी बढ़ती है ऐसा मैं मानता हूँ।

    13/07/2017, 15:26:09: मनी भाई: वैसे साहित्यकार पुरस्कार पाने के लिये नहीं रचता परन्तु उसको मिला सम्मान उसे अच्छे रचना लिखने के लिए प्रेरित जरूर करती हैं ।क्या आपको कभी सम्मानित होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है?

    13/07/2017, 15:31:16: बालकदास ‘निर्मोही’ जी: “सम्मान” कैसे परिभाषित करूँ? अवश्य ही काबिलियत के अनुरूप मुझे सम्मान मिला है श्रीफल के रूप में, साक्षात्कार हेतु आपने मुझे चुना इसे भी मैं अपना सौभाग्य और सम्मान समझता हूँ किन्तु, आपका तात्पर्य यदि बड़े मंचों में भारी भरकम सम्मान, स्मृति चिन्ह, प्रमाण पत्र है तो मैं कहूँगा नहीं।

    13/07/2017, 15:31:35: मनी भाई: आपके काव्य का मुख्यतः वर्ण्य विषय क्या होता है ?

    13/07/2017, 15:35:43: बालकदास ‘निर्मोही’ जी: विषय की व्यापकता है किंतु मुख्य विषय राष्ट्रीय एकता, राष्ट्र जागरण, नारी, गरीब, गरीबी,बेटियाँ, बलात्कार पीड़िता, किसान, और विशेष रूप से पर्यावरण।

    13/07/2017, 15:36:28: मनी भाई: आपकी अब तक कौन कौन सी रचनाएँ स्थानीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी है ?

    13/07/2017, 15:46:17: बालकदास ‘निर्मोही’ जी: किसी भी दैनिक समाचार पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित कराने की मैने आज तक अपने तरफ से कोई प्रयास ही नहीं किया किन्तु फिर भी राष्ट्रीय कवि संगम की मासिक पत्रिका “कविता कुञ्ज” तथा “एहसास” (वार्षिक) पत्रिका और श्री अजय जैन जी के द्वारा संचालित वेब पत्रिका मातृ भाषा डॉट कॉम पर हो न जाये महाविनाश मेरी कविताएं प्रकाशित हो चुकी है।

    13/07/2017, 15:46:38: मनी भाई: आपको ऐसी कौन-कौन सी रचनाएँ हैं जिसे आप समाज के लिये बहुत प्रभावी मानते हैं और जिसे पढ़कर पाठकों का प्यार आपको मिला है ? क्या कुछ पंक्तियाँ हमारे पाठकों के लिए शेयर करना चाहेंगे ?

    13/07/2017, 15:49:18: बालकदास ‘निर्मोही’ जी: जी हाँ , अवश्य आपके पाठकों के लिए एक छन्द प्रस्तुत है, इसे मैं आमजन के लिए अत्यधिक प्रभावी मानता हूँ क्योंकि इसमें संदेश है।
    *बेटियाँ बचाओ यारों*

    बेटियाँ ही आन बान बेटियाँ ही सब कुछ,
    लाडली पिता की वो तो घर के भी लाज हैं।
    वीरता से भरी पड़ी बेटियों की गाथा यारों,
    लोहा लेती बेटियाँ ही कल और आज है।
    फूलों की महक जैसे पंछी की चहक जैसे,
    संगीत की शोभा जैसे सुर और साज है।
    बेटियाँ बचाओ यारों नाज़ करो उन पर,
    कर रही बेटियाँ तो सारे काम काज है।

    13/07/2017, 15:54:44: मनी भाई: साहित्य के क्षेत्र में अभी आप किस उद्देश्य को लेकर चल रहे हैं ? तात्पर्य यह है कि अभी आपको किस विषय पर कलम चलाने की ख्वाहिश बची है ?

    13/07/2017, 16:02:27: बालकदास ‘निर्मोही’ जी: जैसा कि मैंने पहले भी बताया कि, विषय व्यापक है, अलावा छत्तीसगढ़ी गीत भी लिखना चाहता हूँ। एकांकी या नाट्य विधा पर लिखना चाहता हूँ, और प्रयासरत भी हूँ, किन्तु समयाभाव और इस विधा का पूर्ण ज्ञान न होने के वजह से कुछ कर पाने में असफल हो जाता हूँ। एक बात अवश्य है कि, आज से 5- 6 वर्ष पूर्व “नासूर का अंत” नाम से संवाद सहित एक पटकथा लिख चुका हूँ, समापन करने में एक पेज बाकी है जिसे आज तक पूर्ण नहीं कर पाया हूँ, आपको यह भी अवगत कराना चाहता हूँ कि, संकोच और झिझक के वजह से आज तक मैंने किसी के समक्ष समीक्षा हेतु रखा भी नहीं, जैसा कि मैने पूर्व में भी बताया कि, शिक्षा 12वीं मात्र है और व्याकरण में मैं अधिक कमजोर हूँ यह कहते हुए मुझे जरा भी संकोच नहीं है जबकि मुझे ज्ञात है कि आप मेरा साक्षात्कार ले रहे हैं और इसे सब पढ़ेंगे भी बढ़ा चढ़ाकर कहना मुझे कतई पसंद नहीं है। श्रीमान, मैं कुछ भी लिखने बैठता हूँ तो व्याकरण का डर पहले दस्तक़ दे जाते हैं।

    13/07/2017, 16:03:07: मनी भाई: अपने समकालीन कवियों या लेखकों में से आप किसके रचना से ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं और उनमें क्या खास बात होती है ?

    13/07/2017, 16:04:48: बालकदास ‘निर्मोही’ जी: व्हाट्सएप और फेसबुक के माध्यम से जब कभी पढ़ता हूँ तो आदरणीय श्री राजेश जैन ‘राही” जी के दोहे, आदरणीय श्री विजय कुमार राठौर जी और आदरणीय श्री अरुण कुमार निगम जी के लगभग सभी विधाओं में लिखे रचनाओं से प्रभावित हूँ, इसके अलावा श्री सतीश सिंह, सुजीत कुमार सिंह , कवि शिव विनम्र, श्रीमती रजनी तटस्कर जी के गजलों से वीर रस के लिए कवि दिनेश दिव्य जी से अत्यधिक प्रभावित हूँ।

    13/07/2017, 16:05:02: मनी भाई: आपने अपना उपनाम “निर्मोही ” रखना पसंद क्यों किया? इसके पीछे की तथ्य संक्षेप में बताने का कष्ट करेंगे ।

    13/07/2017, 16:07:11: बालकदास ‘निर्मोही’ जी: आपने यह तो अवश्य सुना या पढ़ा होगा कि, नाम बड़ा या काम, नाम बड़े और दर्शन छोटे, ऊँचा दुकान फीका पकवान…. स्वभाव से मैं अत्यधिक भावुक,और सभी से प्यार करने वाला हूँ इसके ठीक विपरीत “निर्मोही” मुझे सटीक लगा मैं औरों की तरह सरल लिखकर कठोर हो या बहादुर लिखकर कमजोर हो ये मुझे नापसंद है।

    13/07/2017, 16:07:46: मनी भाई: लोगों के समक्ष आप किस रूप में याद किया जाना पंसद करेंगे ?

    13/07/2017, 16:08:58: बालकदास ‘निर्मोही’ जी: देश प्रेमी

    13/07/2017, 16:10:10: मनी भाई: हो सकता है अभी आपका साक्षात्कार पढ़ने के बाद किसी पाठक के मन में आपसे बातचीत या मिलने की जिज्ञासा उत्पन्न हो तो , क्या उन्हेंं आप अपना संपर्क व पता शेयर करेंगे ।

    13/07/2017, 16:12:00: बालकदास ‘निर्मोही’ जी: अवश्य, ये मेरा व्हाट्सएप नंबर है 08319497141, शनिवार और रविवार सुबह 10.00 से रात 11.00 बजे तक कभी भी बाकी के दिनों में रात्रि 08.00 से 10.00 बजे तक संपर्क कर सकते हैं, पता- रेलवे आवास क्रमांक, 1257/2, टाईप-II, एन. ई. कालोनी, बिलासपुर, (छ. ग.)
    495004

    13/07/2017, 16:17:05: मनी भाई: बहुत बहुत धन्यवाद!
    आपने मेरे लिये व्यस्ततम जिन्दगी से अपना डेढ़ – दो घण्टे से अधिक का बहुमूल्य समय दिया । आपका यह अहसान जीवन भर नहीं भुलाया जा सकता। ईश्वर करे कि आप साहित्य के आसमान में सितारे की तरह प्रदीप्तमान रहें।
    आप उन बुलन्दियों को छू पाये जहाँ सभी पहुँचने के लिए प्रयासरत है ।

    13/07/2017, 16:19:17: बालकदास ‘निर्मोही’ जी: सादर शुक्रिया, नमस्कार आप से बात करके मैं भी अत्यधिक प्रफुल्लित हुआ।

    13/07/2017, 16:19:51: मनी भाई: जी ! मेरी यह खुशनसीबी है । आप दिन मंगलमय हो । धन्यवाद 

    13/07/2017, 16:20:30: बालकदास ‘निर्मोही’ जी: पुनः धन्यवाद आपको।

    13/07/2017, 16:20:52: मनी भाई:

     “अभी आपने बहुमुखी प्रतिभा के धनी,   मिलनसार, स्पष्टवादी  और निश्छल आदरणीय श्री बालकदास ‘निर्मोही’ के बारे में पढ़ा कि उनका जीवन किस तरह संघर्षों से भरा हुआ था  । गुदड़ी के लाल होते हुए भी  उन्होंने बारहवीं की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद  साहित्य साधना में लगे रहे ।आज वे अपने अंचल के एक प्रतिष्ठित साहित्यकारों में शुमार किए जाने लगे हैं ।
    उन्हें इस मुकाम पर पहुंचने के बाद भी घमण्ड छू तक नहीं पाया है और अनवरत सीखने की ललक बनी हुई है ।
    मैं मनीलाल पटेल “मनीभाई ” उनके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ ।”

    साक्षात्कारकर्ता :-
    मनीलाल पटेल ” मनीभाई “
    भौंरादादर बसना महासमुंद ( छग )

  • मनीभाई के हाइकु अर्द्धशतक भाग 10

    मनीभाई के हाइकु अर्द्धशतक भाग 10

    मनीभाई के हाइकु अर्द्धशतक भाग 10

    हाइकु

    1
    मानवाधिकार
    जब जग ने जाना
    राष्ट्र संयुक्त।

    2
    वैश्विक ताप
    संकट में है राष्ट्र
    सुधरो आप।

    3
    विश्व की शांति
    पृथ्वी की सुरक्षा
    आतंक मिटा।

    4
    अस्त्र की होड़
    विकास या विनाश
    अंधे की दौड़।

    5
    भारत आया
    रंग भेद खिलाफ
    संसार जागा।

    6
    चुनौती देता
    पर्यावरण रक्षा
    हे राष्ट्र!जुड़ो।

    7

    “मैं” और “तुम”
    खींच गई लकीर
    चलो “हम” हों।
    8

    अस्त्र होती है
    हिंसा की प्रतिमूर्ति
    लेती हैं शांति।

    9

    अस्त्र करती
    हिंसा प्रतिबाधित
    देती हैं शांति।

    10

    धर्म संकट
    अंधायुग में ज्योति
    युयुत्सु गति।

    11

    आत्महत्याएं
    है असमाजिकता
    संभल जाओ।

    12

    हैं आत्महत्या
    समाजिक बंधन
    घातक रोग।

    13

    अनिच्छा जीना
    निरूद्देश्य घूमना
    ज्यों आत्मघात।

    14

    गिद्ध विलुप्त~
    मानव ने धर ली
    उनका रूप।

    हाइकु: बाजरा

    15

    किसान खु्श~
    निकले फूलझड़ी
    बाजरा बाली।
    ✍मनीभाई”नवरत्न”

    16

    बाजरा खड़ी~
    पोषण भरपूर
    पके खिचड़ी।
    ✍मनीभाई”नवरत्न”

    17
    पोषण भरी~
    बाजरे की रोटियां
    कैल्शियम से।
    ✍मनीभाई”नवरत्न”

    हाइकु : रसभरी

    18/
    मीठी गोलियां~
    पेट को लाभ देती
    रसभरियां।
    ✍मनीभाई”नवरत्न”

    19/
    बेवफा नहीं~
    रसभरी होठों से
    चूमे चिठ्ठियां।
    ✍मनीभाई”नवरत्न”

    20/
    मीठी व प्यारी~
    रूह को मिठास दे
    ये रसभरी।
    ✍मनीभाई”नवरत्न”

    हाइकु : नागफनी

    21/

    विषम दशा~
    साहसी नागफनी
    जीके दिखाता।
    *,✍मनीभाई”नवरत्न”*
    22/
    जुदा कुरूप~
    गमला में सजता
    मैं नागफनी।
    *,✍मनीभाई”नवरत्न”*
    23/
    कंटीला बन
    वजूद से लड़ता
    ज्यों नागफनी।
    *,✍मनीभाई”नवरत्न”*
    24/
    जालिका वस्त्र~
    शूल बना श्रृंगार
    नागफनी की।
    *,✍मनीभाई”नवरत्न”*
    25/
    हाथ बढ़ाता~
    डसता नागफनी
    फन उठाके।
    *,✍मनीभाई”नवरत्न”*

    हाइकु : सीप

    26/
    दर्द उत्पत्ति~
    रेत मोती में ढले
    अद्भुत सीप।

    27/

    बादल सीप~
    तेज आंधी के साथ
    गिराये मोती।

    मनीभाई”नवरत्न”

    शीत प्रकोप – मनीभाई नवरत्न

    धुंधला भोर
    कुंहरा चहुं ओर
    कुछ तो जला.
    जाने क्या हुई बला
    क्या हुआ रात?
    कोई बताये बात।
    ख़ामोश गांव
    ठिठुरे हाथ पांव
    ढुंढे अलाव।
    अब भाये ना छांव
    शीत प्रकोप
    रात में गहराता
    ना बचा जाता।

    Manibhai Navrtna

    हाइकु : परछाई

    28/

    हर सफर~
    बनके परछाई
    चलना सखि।
    *✍मनीभाई”नवरत्न”*

    29/

    शुभ विवाह~
    मंडप परछाई
    हल्दी निखरा।
    *✍मनीभाई”नवरत्न”*

    30/

    भीषण गर्मी~
    पीपल परछाई
    गंगा की घाट।
    *✍मनीभाई”नवरत्न”*

    31/

    चंद्र ग्रहण~
    परछाई धरा की
    केतु है माया।
    *✍मनीभाई”नवरत्न”*

    32/

    सूर्य ग्रहण~
    परछाई धरा की
    राहू की साया।
    *✍मनीभाई”नवरत्न”*

    हाइकु: श्रावण

    33/
    सजे कांवर
    सावन सोमवार
    शिव के धाम।
    34/
    गेरुआ रंगा
    सावन का महीना
    शिव का बाना।
    35/
    सर्पों की पूजा
    श्रावण शुक्ल पक्ष
    नागपंचमी ।
    36/
    रक्षाबंधन
    सजती रोली संग
    थाली में राखी ।
    37/
    श्रावण मास
    पुत्रदा एकादशी
    संतान सुख।।
    38/
    प्रकृति पर्व
    हरेली अमावस
    श्रावण मास ।

    39/

    फैली भू पर
    शेष वर्ण प्रखर
    वंदे जै गंगे।

    मनीभाई नवरत्न

    40/

    नागपंचमी~
    सपेरे हाथ नाग
    रोटी जुगाड़।
    ✍मनीभाई”नवरत्न”

    हरित ग्राम

    हरित ग्राम~
    हरी दीवार पर
    पेड़ का चित्र।
    छाया कहीं भी नहीं
    दूर दूर तक।
    नयनाभिराम है
    महज भ्रम।
    खुद आंखों में झोकें
    धुल के कण।

    ✍मनीभाई”नवरत्न”

    41/

    अस्त्र होती है
    हिंसा की प्रतिमूर्ति
    लेती हैं शांति।

    42/

    अस्त्र करती
    हिंसा प्रतिबाधित
    देती हैं शांति।

    43/

    धर्म संकट
    अंधायुग में ज्योति
    युयुत्सु गति।

    44/

    आत्महत्याएं
    है असमाजिकता 
    संभल जाओ।

    45/

    हैं आत्महत्या
    समाजिक बंधन
    घातक रोग।

    46/

    अनिच्छा जीना
    निरूद्देश्य घूमना
    ज्यों आत्मघात।

     शुभ विवाह

    47/

    बेचैन वर
    प्रतीक्षारत वधु
    शुभ विवाह।

    48/

    हरिद्रालेप
    पीतांबर के संग
    शुभ विवाह।

    49/

    देवपूजन
    मंडप पे रसोई
    शुभ विवाह

    50/

    दूल्हे के सिर
    इतराता सेहरा
    शुभ विवाह।

    51/

    चांद मुखड़ा
    घुंघट में दुल्हन
    शुभ विवाह।

    52/

    बंटे मिठाई
    बजती शहनाई
    शुभ विवाह।

    53/

    कन्या विदाई
    पिता नैनन अश्रु
    शुभ विवाह।

    54/

    प्रेम विश्वास
    सुख दुख के साझे
    शुभ विवाह।

    मनीभाई”नवरत्न”

  • प्रेमचन्द साव प्रेम पर कविता

    प्रेमचन्द साव प्रेम पर कविता

    (1)
    हिमालय है मुकुट जैसा,
    चरण में हिन्द महासागर।
    कहीं पर राम जन्मा है,
    कहीं राधा नटवर नागर।
    है अपना देश मुनियों का,
    जहाँ पर धर्म पलता हैं।
    ये भारत वर्ष हैं अपना,
    जहाँ है प्रेम का गागर।

                   (2)
    जुबां पर प्रेम की बोली,
    हृदय में धर्म को धारो।
    कहीं मनभाव में जीना,
    कहीं मनभाव को मारो।
    मगर माँ भारती को,
    जो दिखाए द्वेष से आंखें।
    नहीं एकपल करो देरी,
    तुरत ही दुष्ट संघारो।

                (3)
    नहीं हो द्वेषता मन में,
    न ही कोई भी दंगा हो।
    जो सबका पाप धोती है,
    सदा सुरभित वह गंगा हो।
    भले मर मिट जाए हम,
    इस जहाँ में गम नहीं यारों।
    मगर इस देश में अपने,
    लहराता तिरंगा हो।

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    प्रेमचन्द साव प्रेम
    बसना,महासमुंद
    मो.नं. 8720030700
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