उषाकाल पर कविता /नीलम
ज़मीं,आसमान,चाँद,नदियाँ,झीलें, पहाड़,सागर,बादल,अधखिली कलियाँ और सुबह की ताज़गी दुनियाँ के बेहतरीन अध्यापक हैं,ये हमें वो सिखाते हैं,जो कभी किताबों में नहीं लिखा जा सकता •••••
इंद्रधनुष के रंग उड़े हैं/ बाबू लाल शर्मा *विज्ञ*
इंद्रधनुष के रंग उड़े हैं/ बाबू लाल शर्मा *विज्ञ* इन्द्र धनुष के रंग उड़े हैं. देख धरा की तरुणाई।छीन लिए हाथों के कंगन. धूम्र रेख नभ में छाई।। सुंदर सूरत का अपराधी. मूरत सुंदर गढ़ता हैकौंध दामिनी ताक ताक पथ. चन्दा नभ में चढ़ता है. नारी का शृंगार लुटेरापाहन लगता सुखदाई।इन्द्रधनुष…………..।। यौवन किया तिरोहित नभ … Read more
गणपति पर कविता – नीरामणी श्रीवास नियति
गणपति पर कविता गणपति बप्पा आ गए ,भादो के शुभ माह।भूले भटके जो रहे , उन्हें दिखाना राह ।।उन्हें दिखाना राह , कर्म सत में पग धारे ।अंतस के खल नित्य , साधना करके मारे ।नियति कहे कर जोड़, चाहते हो गर सदगति ।शरणागत हो आज , ध्यान करना है गणपति ।। गणपति बप्पा मोरिया … Read more
घर-घर में गणराज – परमानंद निषाद
“घर-घर में गणराज” परमानंद निषाद द्वारा रचित एक कविता है जो गणेश चतुर्थी के अवसर पर भगवान गणेश की महिमा और उनकी पूजा के महत्व को दर्शाती है। यह कविता गणेश उत्सव की खुशी, भक्ति, और सांस्कृतिक समृद्धि को प्रकट करती है। *घर-घर में गणराज (दोहा छंद)* आए दर पे आपके, कृपा करो गणराज।हे लम्बोदर … Read more