बाबूराम सिंह की कुण्डलियां
बाबूराम सिंह की कुण्डलियां मानुष तनअनमोल अति,मधुरवचन नितबोल।रहो परस्पर प्यार से ,जन -मन मधुरस घोल।।जन-मन मधुरस घोल,जीवन सुज्योति जलेगा।होगा कर्म अकर्म , हृदय में पुण्य फलेगा।।कह बाबू कविराय ,कुचलो पाप अधर्म फन।पुनः मिले ना मिले,सोच लो यह मानुष तन।।* देना सुख से प्यार को ,यही परम सौभाग्य।क्षणभंगुर जीवन अहा ,जाग सके तो जाग।।जाग सके तो … Read more