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  • भारत के वीर – पंडित अमित कुमार शर्मा

    भारत के वीर – पंडित अमित कुमार शर्मा

    शहीद, indian army
    शहीद, indian army



    उगा है सूरज जो आज खुशियों का
    लहर रहा तिरंगा
    जो भारत का
    चमक उठी है जो सबके चेहरे पर
    ये देन है वीर जवानों का।

    चलते हैं बर्फ पर
    जब हम अपने बिस्तर में होते है
    जब हम गाते हैं खुशियों के गीत
    तब दुश्मन को मौत की नींद सुलाते है।

    सजता है जो हर त्योहार
    होती है खुशियों की बहार
    जो चैन की सांस हम लेते हैं
    ये भारत के वीरों की है शान।

    जो हर पल वन वन भटकते फिरते हैं
    जमीं से आसमां तक पहरा देते हैं
    तिरंगे को लहराने में
    अपने प्राण को छोड़ जाते हैं।

    किसी का सिंदूर धूलता है
    किसी के भाई होते है
    देश की सुरक्षा की खातिर
    बेटे मां से अलग होते हैं।

    इनकी वीरता का वर्णन
    सूरज से भी लंबा
    समंदर की गहराई से भी बड़ा है
    जो तिरंगा ओढ़ आज जमी में दफन हुआ है।

    इनकी वीरता और साहस का हम सभी नाज करते हैं
    भारत के वीर सपूतों को
    हम हर दिन याद करते हैं।

    दुश्मन के खून की बूंदों से
    इस वतन को सींचा है
    जान को अपनी न्योछावर कर
    तिरंगे को सीने पर लहराया है।

    भारत के इन जवानों को
    तहे दिल से प्रणाम करते हैं
    पाकिस्तान में जय भारत माता
    कहने वाले को
    विंग कमांडर अभिनंदन कहते हैं।

    पंडित अमित कुमार शर्मा
    प्रयागराज,उत्तर प्रदेश

  • चूमता तिरंगा आसमान – हरिश्चन्द्र त्रिपाठी

    चूमता तिरंगा आसमान – हरिश्चन्द्र त्रिपाठी

    शहीदों पर कविता
    शहीदों पर कविता

    आन बान शान का ,विधान आज देखिये,
    हो रहा है देश का ,उत्थान आज देखिये।1।

    अप्सरा भी स्वर्ग से,उतरने को उतावली,
    धन्य भरत-भूमि की मुस्कान आज देखिये।2।

    सप्तरंगी परिधान अम्बर को मोह रहा-
    चूमता तिरंगा आसमान आज देखिये।3।

    नित्य नव प्रशस्त पन्थ देश-प्राण बढ़ रहा,
    जिसके हाथ में सजग कमान आज देखिये।4।

    ऊॅच-नीच,भेदभाव ,शोषण-दमन नहीं,
    समरस का हो रहा बिहान आज देखिये।5।

    हौंसले बुलन्द यहॉ देशवासियों के हैं ,
    ‘हरीश’ वे प्रणम्य नव जवान आज देखिये।6।

    राष्ट्र-धर्म से बड़ा न धर्म कोई भी यहॉ,
    द्रोहियों का मिटता निशान आज देखिये।7।

    नित विकास का नया स्तम्भ बन रहा,
    देश का है पूज्य संविधान आज देखिये।8।

    मौलिक एवम अप्रकाशित।

    हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’,
    रायबरेली (उप्र)-

  • सच्चा ज्यूरी – रामनाथ साहू ” ननकी “

    सच्चा ज्यूरी – रामनाथ साहू ” ननकी “

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    दीदार जरूरी है ।
    जगत नियंता प्रिय प्रतिपालक ,
    मुझसे क्यों दूरी है ।।

    परम प्रकाशक कण -कण के ,
    अति अद्भुत नूरी है ।
    बस आभास करा दो अपना ,
    अब क्या मगरूरी है ।।

    काँटों में भी प्यारा अनुभव ,
    अपनापन तूरी है ।
    तम भी आनंद प्रदायक हो ,
    आत्मसात पूरी है ।।

    तेरी रहमत से दिन रातें ,
    मेरी सिंदूरी है ।
    तुझे याद कर नृत्य करे नित ,
    अब चित्त मयूरी है ।।

    घनानंद हे आकर बरसो ,
    कौसुम कस्तूरी है ।
    अपने लायक मुझे बना लो ,
    सच्चा तू ज्यूरी है ।।


    रामनाथ साहू ” ननकी “
    मुरलीडीह ( छ. ग. )

  • श्रृंखलाएँ – रामनाथ साहू ननकी

    श्रृंखलाएँ – रामनाथ साहू ननकी

    kavitabahar logo
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    हे काव्य कामिनी ,
    तुम ही मेरी ताकत हो ।
    नूर इलाही दावत हो ।।
    अल्लाह खुशी सरगम सी
    सुब्हो शाम इबादत हो ।।

    हे चित्त स्वामिनी ,
    छंद प्रीत की पदावली ।
    सदा सुगंधित एक कली ।।
    कमलिनी गंध स्वर्गिक सुख ,
    प्रेमिल नयी भावाँजली ।।

    हे भव्य भामिनी ,
    हर अंक पृष्ठ पर होते ।
    प्रणयी उर्वरता बोते ।।
    अंतः प्रेरित मति मंथन ,
    प्रेमालिंगन के गोते ।।

    हे दिवा यामिनी ,
    हो सदैव त्रिकुट उपस्थित ।
    अनुकूलित शुभे व्यवस्थित ।।
    प्रगटित सभी श्रृंखलाएँ ।
    कवि मन सृज प्रिय अभ्यर्थित ।।


    रामनाथ साहू ” ननकी “
    मुरलीडीह ( छ. ग. )

  • कोहिनूर की आभा – डिजेन्द्र कुर्रे कोहिनूर

    कोहिनूर की आभा – डिजेन्द्र कुर्रे कोहिनूर

    सत्यनाम के ज्ञान का,करो हृदय में ध्यान।
    गुरुवर की पाकर कृपा,बनना परम महान।।

    सत्य वचन नित बोलिए,यह मिश्री का घोल।
    तन मन को पावन करें,अनुपम मीठे बोल।।

    पावनता मन में रहे , फैले ज्ञान प्रकाश।
    दर्पण सम स्वछन्द हो,जीवन का आकाश।।

    बढ़ जाता मन भाव में,सहज प्रखर विश्वास।
    जब करते हम पर कृपा ,गुरुवर घासीदास।।

    परम प्रर्वतक सत्य के , गुरुवर बंदी छोर।
    सत प्रकाश फैला गए,दुनिया में चहुँ ओर।।

    श्वेत ध्वजा लहरा रही , जग में चारों ओर।
    धरती से आकाश तक,सत्यनाम की शोर।।

    गुरुवर के दरबार में, नित्य झुकाकर शीश।
    पापीजन को भी मिले,शुभ पावन आशीष।।

    कोहिनूर करने लगा , गुरुपद का गुणगान।
    तब मिटते मन से सहज,क्रोध कपट अभिमान।।


    डिजेन्द्र कुर्रे”कोहिनूर”
    छत्तीसगढ़(भारत)