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  • अमर शहीदों पर कविता – महदीप जँघेल

    अमर शहीदों पर कविता – महदीप जँघेल

    tiranga


    जिसके दम पर खड़ा है भारत,
    जिसे पूरा राष्ट्र करे सलाम।
    भारत के ऐसे अमर शहीदों को,
    हमारा शत् शत् है प्रणाम।

    आजादी के लिए खून बहाकर,
    देते वीर देशभक्ति का पैगाम।
    राष्ट्र के लिए मर मिटने वाले,
    अमर शहीदों को सादर प्रणाम।

    गुलामी का जंजीर तोड़कर,
    किया राष्ट्र धर्म का काम।
    वीर सपूतों को जन्म देने वाले,
    अमर शहीदों को हमारा प्रणाम।

    ये वीर बलिदानी अगर न होते,
    न जाने कब तक रहते गुलाम?
    मातृभूमि के लिए रक्त समर्पित,
    ऐसे वीरों को सादर प्रणाम।

    मत भूलना याद शहीदों की,
    किया जिन्होंने महान काम।
    त्याग और बलिदान की मूरत,
    ऐसे अमर शहीदों को प्रणाम।

    देश सेवा में घर परिवार छोड़के,
    बाजी लगाते है अपनी जान की,
    ठंड वर्षा भूख प्यास सहकर,
    रक्षा करते देश के सम्मान की।

    देश की खातिर जीते और मरते,
    इनका सदैव करें सम्मान।
    देश प्रेम जिनका धर्म रहा है,
    ऐसे अमर शहीदों को शत-शत प्रणाम।

    महदीप जँघेल
    ग्राम- खमतराई,खैरागढ़
    जिला-राजनांदगांव (छ.ग)

  • सूरज पर कविता – सुकमोती चौहान “रुचि

    सूरज पर कविता – सुकमोती चौहान “रुचि

    सूरज पर कविता - सुकमोती चौहान "रुचि

    रवि की शाश्वत किरण – सी
    सरिता की अनवरत धार – सी
    लेखनी मेरी चलती रहना
    जन-जन की वाणी बनकर
    मधुर संगीत घोलती रहना
    उजड़े जीवन की नीरसता में।
    छा जाना मधुमास बनकर
    पतझड़ की वीरानी में।

    तुम्हें करनी है यात्रा
    जीवन के अवसान तक
    साँसों में समा
    विश्वपटल की शिला पर
    उकेरनी है तुम्हें
    यथार्थ का चित्र।

    दीन दुखियों के आँसू में डूब
    अलापना है पीर की गहराई
    तुम्हें पढ़नी पड़ेगी
    मूक नैनों के रुखे भाव
    बड़े गहरे हैं अंदरुनी घाव।

    खोकर अपना वजूद
    जल, दीप की तरह
    समाज को दिखा राह
    सुख साधन व सम्मान
    सम अवसर हो उपलब्ध।
    व्यवस्था के नाम पर
    कुचला न जाए
    फिर कोई एकलव्य।

    छेड़,ओजस्वी तान
    ला,ऐसी सुधा वृष्टि
    मुरझाई कली भी
    हो जाए हरी-भरी
    रग-रग में भर जाए चेतना
    चल पड़े कदम सत्य पथ पर
    स्वार्थ ,मोह,राग,द्वेश त्यागकर।

    कितने काम पड़े हैं अधूरे
    सारे कर्तव्य करने हैं पूरे
    मोड़ना है वह संस्कार की धार
    बह चली जो पश्चिम की ओर
    सींचना है भारत वसुंधरा को
    लाकर वैचारिक परिवर्तन की नीर।

    उठानी है तुम्हें वह
    सदियों से दबी आवाज़
    कुप्रथाओं को मिटा
    विसंगति की भंवर से
    निकालना है भव -नाव
    और बसाना है सुराज
    जिस पर हो भारतीय होने का नाज।

    दुनिया की चकाचौंध में
    भूल न जाना तू लक्ष्य
    वरना,जग हो जायेगा भ्रष्ट
    मिट जायेगा वैभव – ए – भवन
    खो जायेगा चैन- ए- अमन
    उजड़ जायेगा वतन – ए – चमन
    सजग हो तू प्रण ले।
    मानवता प्रतिष्ठित कर दे,
    खोई स्वाभिमान जगा दे।

    हे लेखनी! तू सदा रह प्रयास रत
    बूँद – बूँद से भरता है घट
    तू बहती रह सर्व कल्याण हेतु
    बनकर दो वैषम्य का सेतु
    तुम्हारी तप से होगी
    कविता- भागीरथी
    देवलोक से अवतरित
    उस कविता की छींटें भी
    दे सदा कोई सीख
    मलिन मन हो जाए पावन
    धरा यह लगे मधुवन।

    तुम्हारी आह्वान से हो
    जागरण क्रांति का सूत्रपात
    तेरी मुखरित स्वर से हो
    सर्वोदय का नव प्रभात
    धरती की कण-कण से
    सद्भावना की सुगंध आये
    नील गगन में परिंदे
    गुणों का सुयश गायें।

    सुकमोती चौहान “रुचि”

  • बाल कविता सुन्दर वन में – पद्ममुख पंडा

    बाल कविता सुन्दर वन में – पद्ममुख पंडा

    सुन्दर वन में, एक अजब सा खेल हो गया,
    टिमकु भालू और चमकी बंदरिया का मेल हो गया।
    आपस में, दोनों को इतना प्यार हो गया,
    कि, हमेशा एक दूसरे का मदद गार हो गया।


    जंगल में इसकी चर्चा खूब चलने लगी,
    चंपक शेर को यह बात बहुत खलने लगी।
    चमकी को बुलाकर, चंपक ने खूब डांटा,
    “हमारे होते हुए, तुमने टिमकु को छांटा?,”


    चमकी बोली अरे भाई आप तो महान् हैं,
    टिमकू तो फिर भी आपके भाई समान है
    अपने बड़े दिल में, मन को साफ़ कीजिए
    मुझे भी बहन मानकर, आप माफ़ कीजिए।


    #स्वरचित एवम् मौलिक रचना
    पद्म मुख पंडा ग्राम महा पल्ली पोस्ट ऑफिस लोइंग जिला रायगढ़ छत्तीस गढ़

  • आधुनिकता की आग – पं. शिवम् शर्मा

    आधुनिकता की आग – पं. शिवम् शर्मा

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    जरा सी नई धूप क्या लगी सिनेमा जगत की ,
    जिस्म की जमी पर !
    नस्ल की फसल बढ़ भी ना पाई की पक गई !!

    लिवास छोटे – छोटे और छोटे होते ही चले गए !
    नंगे जिस्म पर पेटिंग रच गई !!

    कट गए पेड़ कपास के जमी से सभी के सभी !
    और इंसानों के जिस्म ने भी ,
    जानवरो की खाल उतार के ढक ली !!

    घर के दरख़्त सड़को पर बिखरे पड़े दिखते है !
    और घोसलो के परिंदो ने ,
    जमीं सारी की सारी अपने हक में कर ली !!

    बेंच डाली पुरखों की डेहरी औने पौने दाम में !
    और शहरों में दो कमरे की छत
    खरीदकर कहते है हमने खूब तरक्की कर ली !!

    आबरू उतार फेकी बेटियो ने आधुनिकता की
    आग में आज !
    और बताते है बेटो ने अपनी सोच छोटी कर ली !!

    बदल डाले प्रभु राम कृष्ण की कथा के सार सभी ,
    टी आर पी की चाह में !
    जिसे देख युवा तर्क देते है भगवान ने भी यही किया,
    हमने कौन सी गलती कर दी !!

    धर्म ग्रंथ मानस पुराण सब हुए झूठे किस्से कहानी !
    टीवी चैनलों ने अपनी अलग ही रामायण लिख दी !!

    पं. शिवम् शर्मा

  • वीर सपूत की दहाड़ – सन्त राम सलाम

    वीर सपूत की दहाड़ – सन्त राम सलाम

    tiranga



    चलते हुए मेरे कदमों को देखकर,
    जब मुझे पर्वत ने भी ललकारा था।
    सीना ताने शान से खड़ा हो गया,
    मैं भी भारत का वीर राज दुलारा था।।

    मत बताना मुझे अपनी औकात,
    मैंने पर्वतों के बीच में दहाड़ा था।
    तेरे जैसे कई पहाड़ी के ऊपर में,
    कई जानवरों को भी पछाड़ा था।।

    तुझे याद दिला दूं बीते हुए इतिहास,
    हमने पहाड़ों का सीना भी चीरा था।
    तेरे ऊपर तो हमारे तिरंगा खड़ा है,
    याद कर भारत में कितने वीरा था।।

    खूब रोए थे तुम वर्षों-वर्षो तक,
    तेरे छाती में जब नींव डाले थे।
    इतने जल्दी तुम कैसे भूल गए,
    याद करो सारे पत्थर काले थे।।

    घोड़े की टाप से जब तुम बहुत थर्राये,
    तब कराह से आह! शब्द निकला था।
    गुंजी थी आवाज अंग्रेजों की कान में,
    तब सुन आवाज अंग्रेज फिसला था।।

    घबराहट की पसीना आज भी बह रही,
    आज भी खूब दहशत है तेरे मन में।
    तेरे तन के पसीना तो आज भी बह रही ,
    भटक रही है तितर-बितर वन वन में।।

    पर्वतों में पर्वत एक अमूरकोट,
    जिसने सृष्टि प्रलय को देखा है।
    अनादि काल से निरन्तर अब तक।
    वंदनीय ये हिन्दूस्तान की लेखा है।।

    ज्यादा अकड़न भी ठीक नहीं होता,
    जिसमें ज्यादा अकड वही टूटता है।
    ज्यादा गरम होना भी बहुत जरूरी,
    बिना गरम किए लोहा कहां जूडता है।।
    जय हिन्द,,,,🇮🇳 जय भारत,,,,🇮🇳

    सन्त राम सलाम
    भैंसबोड़ (बालोद),छत्तीसगढ़