बलात्कार पर आक्रोश कविता

बलात्कार पर आक्रोश कविता तीन बरस की गुड़िया तिल तिल मरके आखिर चली गयी,आज अली के गढ़ में बिटिया राम कृष्ण की छली गयी,नन्हे नन्हे पंख उखाड़े, मज़हब के मक्कारों ने,देखो कैसे ईद मनाई,दो दो रोज़ेदारों ने, कोमल अंग काट…

हिंदी कविता संग्रह

हिंदी कविता संग्रह

बलात्कार पर आक्रोश कविता तीन बरस की गुड़िया तिल तिल मरके आखिर चली गयी,आज अली के गढ़ में बिटिया राम कृष्ण की छली गयी,नन्हे नन्हे पंख उखाड़े, मज़हब के मक्कारों ने,देखो कैसे ईद मनाई,दो दो रोज़ेदारों ने, कोमल अंग काट…

मुक्तिबोध: एक आत्मसातात्मक प्रयास क्यों मैं रातों को सो नहीं पाताअनसुलझे सवालों का बोझ ढो नहीं पाता…रूचि, संस्कार, आदत सब भिन्न होते हुए भीक्यों मुक्तिबोध से दूर हो नहीं पाता…क्यों मैं रातों को सो नहीं पाताअनसुलझे सवालों का बोझ ढो…
जल से जीवन जगत चराचर जल से जीवन जगत चराचर जल ही है जीवन और प्राण जल बिन अस्तित्व नहीं कोई हैं समक्ष हमारे कई प्रमाण l जीवन का कोई काज न ऐसा जल बिन हो जाए जो पूरा धरती…
आओ हम सौगंध उठाएँ प्रेम, सौहार्द्र, भ्रातृत्व भाव कीधरा पर अखंड ज्योति जलाएँभेदभाव न हो जाति धर्म काआओ हम सौगंध उठाएँ lईश्वर, अल्लाह, राम, रहीम कीपूज्य धरा को स्वर्ग बनाएँएक पिता हम सबका मालिकएकता का संदेश फैलाएँ lऊँच, नीच,मज़हब,संप्रदाय काभेदभाव …
हमर गंवई गाँव 1 आबे आबे ग सहरिया बाबूहमर गंवई गाँवगड़े नही अब कांटा खोभातुंहर कुँवर पांवआबे आबे सहरिया बाबूहमर गंवई गाँव।। 2 गली गली के चिखला माटीवहु ह अब नंदागे।पक्की सड़क पक्का नालीहमरो गांव म छागे।लइका मन बर स्कूल…
बचपन पर कविता चिलचिलाती हुई धूप मेंनंगे पाँव दौड़ जाना,याद आता है वो बचपनयाद आता है बीता जमाना।माँ डांटती अब्बा फटकारतेकभी-कभी लकड़ी से मारतेभूल कर उस पिटाई कोजाकर बाग में आम चुराना।याद आता है वो बचपनयाद आता है बीता जमाना।या…
अचरज मा परगे कोठी तो बढ़हर के* छलकत ले भरगे।बइमानी के पेंड़ धरे पुरखा हा तरगे॥अंतस हा रोथे संशो मा रात दिन।गरीब के आँसू हा टप-टप ले* ढरगे॥सुख के सपुना अउ आस ओखर मन के।बिपत के आगी मा सब्बो* हा …

बच्चे होते मन के अच्छे खेल कूद वो दिन भर करते,रखते हैं तन मन उत्साह।पेड़ लगा बच्चे खुश होते,चलते हैं मन मर्जी राह।।मम्मी पापा को समझाते,बन कर ज्ञानी खूब महान।बात बडों का सुनते हैं वे,रखते मोबाइल का ज्ञान।। रोज लगा…
अभाव-गुरु “उस वस्तु का नहीं होना” मैं,जरूरत सभी जन को जिसकी।प्रेरक वरदान विधाता का,सीढ़ी मैं सहज सफलता की।।1अभिशाप नहीं मैं सुन मानव,तेरी हत सोंच गिराती है।बस सोंच फ़तह करना हिमगिरि,यह सोंच सदैव जिताती है।।2वरदान और अभिशाप मुझेतेरे ही कर्म बनाते…
सीमा पर है जो खड़ा सीमा पर है जो खड़ा , अपना सीना तान ।उसके ही परित्याग से , रक्षित हिंदुस्तान ।।रक्षित हिंदुस्तान , याद कर सब कुरबानी ।करे शीश का दान , हिंद का अद्भुत दानी ।।कह ननकी…
इस कविता के प्रत्येक चरण में 16 मात्रा वाले छंद का प्रयोग किया गया है:- मानव जीवन ईश्वर का रहस्यमय वरदान है।आज के मानव का एकमात्र उद्देश्य अति धन-संग्रह है,जिसके लिए वे अपनों का भी खून बहाने से नहीं हिचकते।वे…
शपथ उठाती हूं मैं भारत की बेटी शपथ उठाती हूं मैं भारत की बेटीमैं कभी भी सर नहीं झुकाऊंगीलाख कर लो तुम भ्रूण की हत्याफिर भी जन्म मै लेती ही जाऊंगी। कब तक तुम मुझको मारते रहोगेकभी तो तुम्हें मुझपे…