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  • महदीप जंघेल की कविता

    महदीप जंघेल की कविता

    बाल कविता
    बाल कविता

    बचपन जीने दो

    भविष्य की अंधी दौड़ में,
    खो रहा है प्यारा बचपन।
    टेंशन इतनी छोटी- सी उम्र में,
    औसत उम्र हो गया है पचपन।

    गर्भ से निकला नहीं कि,
    जिम्मेदारी के बोझ तले दब जाते,
    आपको ये बनना है,वो बनना है,
    परिवार के लोग बताते।

    तीन साल के उम्र में ही,
    बस्ता का बोझ उठाते है।
    कंपीटिशन ऐसा है कि ,
    रोज कोचिंग करने जाते है।

    सारा दिन प्रतिदिन अध्यापन का,
    कितना मानसिक बोझ उठाएंगे।
    प्रतियोगिता के अंधी दौड़ में,
    अपना प्यारा बचपन कब बिताएंगे?

    हँसी खुशी से भरा प्यारा सा,
    बचपन का अमृत उसे पीने दो।
    मानसिक दबाव कम होगा उनका,
    हँस खेलकर भी जीने दो।

    रचनाकार-महदीप जँघेल
    ग्राम-खमतराई
    खैरागढ़

    mahdeep janghel
    mahdeep janghel

    जय हो मोर छत्तीसगढ़ महतारी

    जय हो जय हो ,महामाई
    मोर छत्तीसगढ़ दाई।
    माथ नवांवव ,पांव पखारौं ,
    तैं हमर महतारी।
    जय हो जय हो महामाई…

    तोर भुइँया ले मइया,
    अन्न उपजत हे।
    तोर अन्नपानी ले हमर,
    जिनगी चलत हे।
    हाथ जोर के ,पइंया लांगव
    अशीष देदे दाई।।
    जय हो, जय हो महामाई….

    मैनपाट हवय तोर,
    मउर मुकुट हे,
    इंद्रावती तोर ,
    चरण धोवत हे।
    हाथ जोर के विनती करन,
    शरण आवन दाई।।
    जय हो, जय हो महामाई…

    महानदी के इंहा ,
    धार बोहत हे।
    जम्मो छत्तीसगढ़िया मन,
    तोला सुमरत हे।
    किरपा करइया ,दुःख हरइया,
    होगे जीवन सुखदाई ।।

    जय हो ,जय हो महामाई,
    मोर छत्तीसगढ़ दाई।।

    नारियों का सम्मान-महदीप जंघेल

    जहाँ होता है बेटियों का सम्मान,
    उस देश का बढ़ जाता है मान।।

    अब दीवारों से बंधी ,नही रही बेटियाँ,
    बड़े -बड़े सपने गढ़ रही बेटियाँ।।

    जब तेज प्रचंड ,ज्वाला रूप धरती है!
    तब धरती आकाश ,पाताल डोलती है।

    नारी है देश समाज का मान,
    दुर्गा ,काली, लक्ष्मी,इनके है नाम।।

    जीवन रूपी नैया की,
    पतवार बन जाती है,
    वक्त पड़े जब,तलवार बन जाती है।

    करो न कभी ,नारियों का अपमान,
    क्षमा नही करेंगें, तुम्हे भगवान।।

    नारियाँ होती है ,माँ के समान
    बहु,बहन,बेटियाँ, इनके नाम।।

    जो करे नारियों का मान सम्मान,
    कहलाते है वही ,सच्चा इंसान।।

    महदीप जंघेल
    ग्राम-खमतराई

    हमर सुघ्घर छत्तीसगढ़

    ➖➖➖➖➖➖

    एक ठन राज हवे सुघ्घर ,
    नाम हे जेकर छत्तीसगढ़।।
    राजधानी हवे सुघ्घर रायपुर,
    हाईकोर्ट जिहां हे बिलासपुर।
    दंतेवाड़ा में लोहा खदान!
    ऊर्जा नगरी कोरबा महान।।
    धमतरी में हवे बड़े गंगरेल बांध,
    जम्मो झन के बचावय परान।।
    जिहां चित्रकोट अउ हवे तीरथगढ़,
    नाम हे जेकर छत्तीसगढ़ ।।

    डोंगरगढ़ म मइया बम्लेश्वरी,
    दंतेवाड़ा म मइया दंतेश्वरी।।
    रतनपुर म मइया महामाया ,
    जेकर कोरा हे हमर छतरछाया।
    गरियाबंद के हवे बड़े राजिम मेला,
    पैरी ,सोंढुर,महानदी के बोहवय रेला।
    बड़े- बड़े पहाड़ के गढ़ ,हवे रामगढ़,
    नाम हे जेकर छत्तीसगढ़।।

    भिलाई इस्पात कारखाना के,
    हवे काम महान,
    जेन हवे दुरुग भिलाई के शान।।
    कोरिया म हवे बड़े-बड़े कोयला खदान,
    टिन म सुकमा के अव्वल स्थान।।
    नारायणपुर के अबुझमाड़ ,
    जेन छत्तीसगढ़ के पहिचान हे।
    संगीत नगरी कहाये ,खैरागढ़।
    वोकर पूरा एशिया में अब्बड़ नाम हे ।
    जेकर बोली भाखा हवे मीठ अब्बड़,
    नाम हे जेकर छत्तीसगढ़

    छत्तीसगढ़ के खजुराहो ,
    भोरमदेव ल कहिथे।।
    अरपा ,पैरी, महानदी के,
    कलकल धार बहिथे।।
    अइसन सुघ्घर राज म रहिके ,
    अपन जिनगी ल गढ़।।

    एक ठन राज हवे सुघ्घर,
    नाम हे जेकर छतीसगढ़।।

    रचनाकार
    महदीप जंघेल ,

    माता के महिमा

    जय ,जय हो मइया दुर्गा,
    तोरेच गुण ल सब गावै।
    जय ,जय हो मइया अम्बे,
    सब तोरेच महिमा बखावै।।
    तोर शरण म आए बर मइया,
    जन-जन ह सोहिरावै।।
    जय,जय हो मइया दुर्गा……..

    पापी मन के नाश करे बर,
    दुनिया में तैं अवतारे।
    दानव मन ल मार के दाई,
    ये जग ल तैं ह उबारे।।
    पापी ,अतियाचारी असुरा मन ,
    सब देख तोला डर्राये।।
    जय-जय हो मइया दुर्गा………

    शक्ति रूप धरे तै जग में,
    दुर्गा काली कहाए।
    महिषासुर जइसे दानव ले,
    ये धरती ल तैं ह बचाए।।
    आदि शक्ति तैं माता भवानी,
    सब तोरेच लइका कहाए।।
    जय,जय हो मइया दुर्गा……  

    अन्नदाता किसान

    हमर किसान भाई, हमर किसान ,
    काम करे जियत भर ले ,जाड़ा चाहे घाम।।
    हमर किसान भाई……….

    सुत उठ के बड़े बिहनियां!
    नांगर धरके जाय,
    मंझनी मंझना घाम पियास मा!
    खेत ल कमाय।
    हमू करब काम संगी ,हमर किसान ,
    काम करे जियत भर ले ,जाड़ा चाहे घाम ।।
    हमर किसान भाई ….

    धान ,गेंहू ,चना, राहेर,
    खेत म वोहा बोवत हे।
    रखवारी करे बर ,
    मेड़ में घलो सोवत हे।।
    माटी के बेटा हरे,हमर किसान ,
    काम करे जियत भर ले,जाड़ा चाहे घाम ।।
    हमर किसान भाई……

    हरियर- हरियर खेत ल देख,
    मन ओकर हरियाय।
    कोठी भर-भर अन्न ल देख,
    ओकर अंतस गदगदाय।।
    रात- दिन मेहनत करथे ,लेवत राम नाम ,
    काम करे जियत भर ले ,जाड़ा चाहे घाम..
    हमर किसान भाई………

    भूखे लांघन खेत में काम ,
    सरग ,भुइँया ल बनाय।
    संसार के जम्मो भूख मिटाके,
    खुद चटनी बासी ल खाय।।
    हमर किसान हरे,हमर भगवान,
    रात दिन काम करे,देवे अन्न के दान।।
    हमर किसान भाई………

      महदीप जंघेल
                                 

    गांधी जी को प्रणाम

    वर्ष 1600 में ईस्ट इन्डिया कम्पनी
    जब भारत आया।
    साथ अपने, विदेशी ताकत भी लाया।।

    फूट डालो शासन करो नीति अपनाया।
    राजा महाराजाओं को,आपस में खूब लड़ाया।।
    धन दौलत माल खजाना,भारत का।
    लूट -लूटकर अपने वतन भिजवाया।।

    गरीबी,भुखमरी,और बेरोजगारी देश में बढ़ता गया।
    गरीब मजदूर मरता गया।।
    दिनो-दिनअंग्रेजो का ,अत्याचार बढ़ता गया।
    हिंसाऔर शोषण रूपी तपन चढ़ता गया।।

    तब 2 अक्टूबर सन 1869 पोरबंदर में,
    आई एक आंधी।
    जन्म लिया एक महापुरुष ने,
    नाम था मोहनदास गांधी।।

    अंग्रेजो के घर से ही ,कानून पढ़कर आया।
    अहिंसा ,और सत्यता की, धर्मनीति अपनाया।।
    देशभक्ति की ज्योति ,सबके मन में जलाया।।
    अंग्रेजो से लोहा लेकर, देश से उन्हें भगाया।।

    स्वच्छता का संदेश दिया ,
    बहन बेटियों का किया सम्मान।।
    युगपुरुष कहलाये वो,जिनको मिला महात्मा नाम।।
    ऐसे राष्ट्रपिता श्री महात्मा गांधी जी को
    मेरा शत शत प्रणाम।
    मेरा शत शत प्रणाम।

    महदीप जंघेल
    ग्राम-खमतराई
    विकासखण्ड-खैरागढ़
    जिला-राजनांदगांव

  • मनीलाल पटेल उर्फ़ मनीभाई नवरत्न की 10 कवितायेँ (खंड २)

    मनीलाल पटेल उर्फ़ मनीभाई नवरत्न की 10 कवितायेँ (खंड २)

    यहाँ पर मनीलाल पटेल उर्फ़ मनीभाई नवरत्न की 10 कवितायेँ एक साथ दिए जा रहे हैं आपको कौन सी कविता अच्छी लगी हो ,कमेंट कर जरुर बताएँगे.

    हिंदी कविता 1 आगे बढ़ो

    आगे बढ़ो , आगे बढ़ो ,पीछे ना हटो तुम ।
    रख के खुद से भरोसा,मुश्किलों से निपटो तुम।

    उबड़ खाबड़ है तेरी राह ।
    मंजिल पर रहे तेरी निगाह ।
    खोये ना कभी आत्मबल को
    करना पड़े चाहे आत्मदाह।
    वतन मांगता है बलिदान
    वतन के लिए मर मिटो तुम ।।1।।

    अन्याय के खिलाफ तेरा विद्रोह हो।
    पद-प्रतिष्ठा पर कभी ना मोह हो।
    तोड़ सके ना तुझे कोई लालच
    इरादे तेरे मजबूत जैसे लौह हो।
    साजिशें चल रही फूट डालने की
    आपस में ना बंटो तुम ।।2।।

    मिलती नहीं जीत आसान से
    आस रखो अपने भगवान से ब।
    बहुत जी चुके बंधनों के दायरे में
    अब मरना है हमें स्वाभिमान से ।
    बहुत कर चुके क्रांति लाने की बातें
    अब करो सिद्धांतों को ना रटो तुम।।3।।

    हिंदी कविता 2 नारी!

    हे नारी!
    तू क्यों शर्मशार  है?
    समाज से भला क्यों गुहार है?
    मत मांग, इससे
    कोई दया की भीख ।
    वो सब बातें जिनमें
    पुरूष का वर्चस्व,
    उन सबको तू सीख।।
    हे नारी!
    तू क्यों शर्मशार  है?

    है तुझमें भी अदम्य क्षमता
    कम क्यों आंकती, तु खुद को।
    इतिहास साक्षी, तेरे कारनामों  से ।
    मत समेट अपने वजूद को।
    चारदीवारी से बाहर आ ,
    खुद से मिलने के लिए ।
    तू कली ! धूप से ना मुरझा
    तैयार हो खिलने के लिए ।

    कोई कब तक लड़ेगा ,
    तेरी हिस्से की लड़ाई ।
    आखिर कब तक चलेगी ,
    पीछे-पीछे बन परछाई ।
    तुझे अबला जान के ही
    तेरा अपमान हुआ है ।
    देर ही सही हर युग में,
    मगर तेरा सम्मान हुआ है ।
    चल एक हो अन्याय के खिलाफ ।
    तेरी बिखराव ही
    तेरी दुर्गति का कारण है ।

    मत कोस अपने भाग्य को
    ये जीवन संघर्ष का रण है।
    जब हर तरफ तू
    संबल नजर आयेगी ।
    ये धरा तेरे कर्मों से
    स्वर्ग बन उभर आयेगी ।
    हे नारी!
    तू क्यों शर्मशार  है?

    रचयिता :- मनीभाई “नवरत्न”

    हिंदी कविता 3 काव्य विषय की विराटता-

    ये काव्य युग,
    सम्मान का युग है।
    चलो अच्छी बात है।
    हमें खुशी है
    एक कवि के होने के नाते,
    समाज के कुछ तो काम आते।
    पर ध्यान रहे ,
    सारा श्रेय मुझे ही लेना बेमानी है।
    चूंकि सम्मान की पीछे
    और भी कहानी है।
    कंगूरा सा कवि लालायित है
    चमकने को जमाने में।
    नींव सा रचना
    अभी भी छटपटा रही है
    पहचान पाने में।
    बिन नींव के कंगूरे की
    एक अधूरी दास्तां है।
    कवि का वजूद भी तो
    कविता से ही वास्ता है।
    और कविता का वास्ता
    ईश्वर, प्रकृति से,
    सामाजिक रीति से।
    दीन-हीन की दशा से
    मौसम-रंग-दिशा से।
    कवि तो बौना है
    उस अर्जुन की भांति
    जो यह समझ लेता
    कि महाभारत युद्ध
    अपने दम पर जीता।
    जानके अनजान रहता
    काव्य विषय की महत्ता
    उसका विराट स्वरूप।
    मनीभाई’नवरत्न’,

    हिंदी कविता 4 अंतकाल

    मुझे शिकवा नहीं रहेगी
    गर तू मुझे छोड़ दे,
    मेरे अंतकाल में।
    मुझे खुशी तो जरूर होगी
    कि हर लम्हा साथ दे ,
    तू मेरे हर हाल में।
    हां !मैं जन्मदाता हूँ।
    तेरा भाग्यविधाता हूँ।
    मुझे अच्छा लगता है,
    जो कभी समय बिताता हूँ.
    तेरे संग मैं।

    मेरा चिराग है तू
    सबको बताता हूँ.
    कभी मुस्कुराता हूँ
    और आंखें भर जाता हूँ।
    जो अपना कहके तुझे
    मेरा हक जताता हूँ।
    और ना दे पाता समय
    जितना तेरे लिए संसाधन जुटाता हूँ।

    लोग कहे तू मेरी छायाप्रति
    मेरे वंश की पकड़े मशाल ज्योति।
    मुझसे ही निर्धारित भविष्य मेरा
    मैं कृषक हूँ और तू फसल मेरा।
    कल जो तू होगा
    मेरे परवरिश से।
    कल तो मेरा भी होगा
    मेरे परवरिश से।

    तू बोझ नहीं मेरा
    फूल की डाली है।
    घर का कोना कोना सजा दे
    वो भावी माली है।
    तुझे ताड़ना और फटकार
    मेरी मजबूरी है।
    आ पास आ ,करूँ लाड़ दुलार
    तू मेरी कमजोरी है।
    धीरे धीरे तुझमें सिमटता
    मेरा जीवन सारा।
    तेरे संग बहता जाऊँ
    है ये मोह की धारा।

    जग में कुसंस्कारों की
    चलती है चाकू छूरियां।
    मेरे रहते परवाह ना कर
    अभी जान बची है
    इस ढाल में।
    तुझे शिकवा नहीं रहेगी
    कि मैंने छोड़ दिया अकेला
    तेरे अंतकाल में।

    हिंदी कविता 5 आरक्षण का बाना

    तथाकथित उच्च वर्ग
    जवाब मांग रहा है,
    निम्न वर्ग से –
    ‘रे अछूत !
    तुझे लज्जा नहीं आती।
    आरक्षण के दम पर
    इतरा रहा है ।
    हमारे हक का खा रहा है ।
    तेरी औकात क्या ?
    तेरी योग्यता क्या ?
    भूल गया अपना वर्चस्व ,
    भुला दी तूने ,
    मनुस्मृति की लक्ष्मण रेखाएं ।
    संविधान को कवच बनाकर
    तू उत्छृंलन हो गया है।
    पैरों के दासी ,
    अपने पैरों में खड़ा होने की,
    कोशिश मत कर ।
    हिम्मत है तो, द्वंद कर ।
    आरक्षण का बाना हटा
    मुझसे शास्त्रार्थ कर ।’

    व्यंग्य की बाणों से ,
    जख्मी ने प्रत्युत्तर दिया-
    ” वाह रे कुलश्रेष्ठ !
    तू बोलता है कि
    मैं ब्रह्मा के मुख से पैदा हुआ हूं ।
    तेरे मुख से ये कुटिल बातें ,
    शोभा नहीं देती ।
    तूने कहा ,जातियां जन्मजात हैं
    हमने मान लिया ।
    फिर कहा ,
    प्रत्येक जाति के कर्म विधान हैं ।
    हमने स्वीकार लिया ।
    सौभाग्य माना हमने,
    जन सेवा करके ।
    नव निर्माण करके
    जग का श्रृंगार किया ।
    अति प्राचीन
    भारतीय संस्कृति को आधार दिया ।
    सामाजिक नियमों में बांधकर
    तूने जी भर शोषण किया ।
    धर्म और ईश्वर के नाम पर
    भयभीत किया ।
    पर अपने लिए नियम
    लचीला रखा,
    जब अपनी स्वार्थ पूरी करनी थी।
    हमने जब सीमाएं तोड़ी ,
    तो नर्क का दंड विधान किया ।
    वो तो खुश किस्मत हुए
    कि संविधान का रास्ता दिखा ।
    हमारे विकास के लिए
    एक अवसर दिखा।
    आज तुम्हें इस बात का कष्ट है-
    कि हमने शिक्षामृत चखा ।
    वर्षों से छीना गया अधिकार को परखा।

    आज तुम्हें तकलीफ है,
    क्यों हम सेवा क्षेत्र में आरक्षित हैं ?
    तो सुन तेरे शब्दों में,
    “शूद्रों के लिए सेवा का क्षेत्र हो ,
    यह भी तो तेरी मनुस्मृति की देन है।”
    मुझे शौक नहीं कि
    आरक्षण के नाम पर
    समाज से सहानुभूति मिले ।
    जातिगत भेदभाव टूटे ,
    समभाव से प्रकृति खिले ।
    योग्य का चुनाव हो ,
    आरक्षण की दीवार हटा दो ।
    परंतु उससे पहले ,
    जाति की अवधारणा मिटा दो।
    कोई सवर्ण नहीं ,
    कोई अवर्ण नहीं ।
    सब प्रकृति की है संतान ।
    जातियों में बंटकर
    अलग ही रहेंगे ,
    नहीं बनेगा कभी भी,
    अपना भारत महान।

    मनीभाई नवरत्न

    हिंदी कविता 6 हमें बता दो जानेमन

    जब-जब होता है प्रथम मिलन.
    चित्त विचलित हो जाता सजन .
    ऐसे में करें क्या हम जतन
    जरा हमें बता दो जानेमन ।

    तन में जोर नहीं ,विक्षिप्त मन।
    दिल होता है, असंतुलन।
    ऐसे में करें क्या हम जतन
    जरा हमें बता दो जानेमन ।

    जाओ ना दूर, मेरे सरकार ।
    बता ही दो कुछ प्रतिकार ।
    सुखमय हो जाए जीवन
    दुख दारुन व्यथा करो निवार।

    मुझे ले जाओ , अपने शरण।
    शनैः शनैःहो जाए,ना मरण।
    ऐसे में करें क्या हम जतन
    जरा हमें बता दो जानेमन ।

    छा जाती है दिन में तंद्रा ।
    रात को गायब होती निंद्रा ।
    अपलक करें चिंतन
    लेकर हम विविध मुद्रा ।

    किंचित भी नहीं है भेदावरण।
    प्रेम पथ पे बढ़ते चरण।
    ऐसे में करें क्या हम जतन
    जरा हमें बता दो जानेमन ।

    मनीभाई नवरत्न

    हिंदी कविता 7 पागल

    कल से पागल मानसिक विकार से ।
    आज घायल हैं समाज की दुत्कार से।
    ऐसी कजरा जिसमें श्वास हैं ।
    पागलखाने फुटपाथ ही आवास है ।

    जो बसाए रहे घर संसार ।
    वही संसार करती है अस्वीकार।
    चलते फिरते बने मनोरंजन का साधन।
    क्योंकि घृणित है भोजन वसन वासन।

    हुजूर  के लिए आनंददायक पागल शब्द ।
    असभ्य संज्ञा पाकर भी हम निस्तब्ध।
    तेरे लिए जिंदगी में निराशा की भरमार।
    हम पर तो जिंदगी ही तनाव का भंडार।

    फिर भी समाज के रखवाले
    कभी तो हमें भी बुलाओ ।
    खोई हुई मान सम्मान मन की शांति दिलाओ ।
    हमें भी समाज की प्रगति करना है ।
    पर पहल यही कि हमें सभ्य समाज में रहना है।

    मनीभाई नवरत्न

    हिंदी कविता 8 सीमेंट के जंगल

    कौन कहता है?
    हमने तोड़ा नाता जंगल से,
    क्या हमें पता नहीं कि
    जंगल में मंगल होता है ।

    बेशक! हमारे स्वभाव से न झलके
    अपनी जंगलियत ।
    पर कई बार उजागर किये
    कर्मों से पशुता की निशानी ।

    जंगल का राजा जो भी हो,
    पर आज हमारी हुकूमत है।
    हमारे रहते किसी हिंसक की
    आखिर क्यूँ जरूरत है?

    गांव को नजरअंदाज करके
    हमने जंगल की सफाई की है।
    पानी न दे सके तो क्या?
    आग की लपटें तो दी है?
    पेड़ न रोप सके तो क्या?
    हमने जंगल में दिल लगाया है।

    शिला तोड़-तोड़ के
    एक नया जंगल सजाया है।
    जहाँ ऊँची-ऊँची इमारतें है ।
    धरा की झुर्रियों सी सड़कें
    दीमक-सी लगती विशाल जन सैलाब
    उर्वरा भू को बंध्य बनाती “सीमेंट के जंगल” ।

    मनीभाई नवरत्न

    हिंदी कविता 9 हर चीज जुड़ी विज्ञान से

    देखोगे जब तुम ध्यान से
    पाओगे हर चीज जुड़ी विज्ञान से ।
    पहले तो लगता है अनजान से
    पर आया सब तो पहचान से ।

    यह शाखा पत्ते फूल
    यह मिट्टी पत्थर धूल।
    सब का एक ही मूल
    जो बना इलेक्ट्रान प्रोटान से।।  

    यह आंख कान नाक
    यह मन दिल दिमाग ।
    सब तो शरीर के ही भाग ।
    जो जुड़ी है प्राण से ।।  

    यह सूरज चांद सितारे
    यह नदियां सागर किनारे ।
    सब है प्रकृति के सहारे ।
    जिसका संबंध है ब्रह्मांड से।।

    मनीभाई नवरत्न

    हिंदी कविता 10 गुमनाम है क्यों प्रतिभाएं ?

    गुमनाम है क्यों प्रतिभाएं ?
    क्या उन्हें अवसर की तलाश है ?
    या फिर दाने दाने को मोहताज हैं ?
    क्या बड़ा है उनके लिए?
    सपना या भूख ।
    बेशक भूख!
    क्योंकि भूख मिटने से नींद अच्छी आती है
    और अच्छी नींद में अच्छे सपने आते हैं।

    मनीभाई नवरत्न

    जनता राजा-मनीभाई नवरत्न

    (1)
    लोकतंत्र क्या है?
    स्वतंत्रता का पर्याय ।
    जहाँ होती है जनता राजा,
    और चलती है
    उसके बनाये गये कानून ।
    लोकतंत्र में,
    मंत्री होते हैं सेवक ।
    चुने जाते हैं राजा से
    हर पाँच साल में।
    पर सेवा तो ,
    निस्वार्थ भावना है।
    फिर क्यों होती है लड़ाई?
    इन सेवकों ने,
    बना दिया है चुनाव को
    महाभारत का कुरूक्षेत्र।
    🖋_मनीभाई नवरत्न_

    (2)
    “राजा के सेवक हजार”
    जो खाते हैं मेवा,
    और रखते हैं जेब में सेवा।
    उसे दिखाते हैं तभी
    जब लेते हैं सेल्फी।
    जो दिखता है दीवार पर
    टीवी में, अखबार पर।
    मीडियाकर्मी फेंके
    जबरदस्त आर्कषण।
    राजा को होता है
    जिससे साक्षात् दर्शन।
    ये तो वही देखता है ,
    सुनता है, समझता है।
    जो मंत्री चाहता है।
    राजा में नहीं है
    संजय सा दूरदृष्टि
    वो तो धृतराष्ट्र है ।
    🖋_मनीभाई नवरत्न_

    (3)
    राजा बड़ा रूखा है
    लगता है कई दिनों से भूखा है।
    और भूखे को सदा ,
    पेट का सूझता है
    वो जरा मान-सम्मान को,
    कम बूझता है।
    काम की तलाश में
    सौ कोस दूर चलता है।
    अधूरे सपने साथ ले,
    चार आने पर बहलता है ।
    अपने घर में
    राज करने के बजाय
    दासता झेल रहे बाहर ।
    आज रास्ते बने हैं
    इनके आसरे ।
    जहाँ काटते अपना सफर।
    🖋_मनीभाई नवरत्न_

    तांत्रिक पर कविता

    तांत्रिक साधक है, या विकास में बाधक है ।
    इस पर चर्चा-परिचर्चा, होती बड़ी मादक है।

    जब विज्ञान कुछ दुर जाके,असर खोती है।
    समझ लो तंत्र-मंत्र जादू-टोना शुरू होती है ।

    यह पूजा या खेल, या कड़ी है विज्ञान की।
    बहुरंगी,विक्षप्त ने देखो, स्वयं को महान की।

    कुछ भी लिख दे, हम बिना प्रमाण के।
    यह स्वभाव नहीं ,कवि और विज्ञान के ।

    यह समझ बन, मैं लिखने से कतराता हूँ ।
    आध्यात्मिकता से परे,भौतिकता में पाता हूँ ।

    गुलामी की कफन

    गुलामी की कफन जला के , सजाया है गुलिस्तान।

    महकता रहे गुल सा , अपना प्यारा हिंदुस्तान ।।
    आज फिर दस्तक दे ना कयामत की वो घड़ियां
    आगाह करती है, मेरी गीत की दास्तान ।।

    हम क्या थे ,क्या हो चले ।
    शूरवीरों की शहादत से बनी वजूद खो चले ।
    आज के दिन का मिलना नहीं था आसान।
    अपने ही घर में रह गये थे बन कर मेहमान।
    धीमा-धीमा सुलगा अपना स्वाभिमान।
    जब भगत राजगुरु सुखदेव ने दी
    फांसी में झूल की अपनी जान ।
    आज फुल को खिलाने के बजाय
    कांटे के बीज बो चले ।
    शूरवीरों की शहादत से बनी वजूद खो चले।

    कुछ भटक गए हैं इंसानियत से
    फैला रहे आतंक का साया।
    मजहब का नाम देकर ,
    डरा-धमकाकर जन्नत को श्मशान बनाया ।
    फिर से चलनी होगी उन राहों में
    जिन राहों को बापू और बाबा ने दिखाया।
    प्रेम की गठरी छोड़के नफरत की बोरी ढो चले ।
    शूरवीरों की शहादत से बनी वजूद खो चले।।

    राजनीति और भ्रष्टाचार

    राजनीति और भ्रष्टाचार
    पहिये हैं एक गाड़ी के ।
    सेवा है राजनीति देशभक्तों का
    खेल है ये अनाड़ी के ।।


    सफेद लिबास में मत जाना,
    नजरें धोखा खा जायेगी ।
    भ्रष्टता की कालिमा तुझे
    पीठ पीछे नजर आयेंगी ।
    अब नहीं होते राम विक्रमादित्य
    चस्का है सबको बंगला गाड़ी के ।।

    जहां लड़ा जाये सत्ता पाने को,
    वहाँ समाज सेवा कोसों दूर है ।
    एक दूजे की टांग खींचे जिसे पाने को
    उस कुर्सी में कुछ बात जरूर है।
    खींचातानी, चुगली निन्दा
    जायज सब पैंतरे, इस खेल में  खिलाड़ी के।।


    अनपढ़ अपराधी को समाज दूतकारें ।
    पर राजनीति इन्हें सहर्ष स्वीकारें ।
    लोकतंत्र की पांव है राजनीति
    भ्रष्ट रंग ना चढ़ाओ।
    नीतियाँ होती आमजन की ,
    जिसको अंतिम पंक्ति ले जाओ।
    राजनीति पुष्प है,
    भ्रष्टाचार खरपतवार है  बाड़ी के।।

    -मनीभाई नवरत्न

    काम को काम सिखाता है

    काम को काम सिखाता है ।
    नाम ही नाम कमाता है ।
    आदमी भी मदद अपनी खुद कर जाता है।
    अपना काम आप करो हर काम तमाम करो ।
    No pain, no gain. Try again.

    कांटा को कांटा निकालता है ।
    लोहा ही लोहा काटता है।
    आदमी खुद के लिए खतरा बन जाता है।
    बात को समझा करो खुद में ना उलझा करो
    No pain, no gain. Try again.

    बात को बात बढ़ाता है।
    हाथ ही हाथ मिलाता है ।
    आदमी अपनी भीड़ में खो जाता है ।
    रास्ता न जाम करो , सब को सलाम करो
    No pain, no gain. Try again.

    मनीभाई नवरत्न

    चलो ऐसा राष्ट्र बनाएं

    चलो ऐसा राष्ट्र बनाएं,
    जिसकी पहचान,
    रंग, वर्ण, जाति से ना हो।
    ना हो संप्रदाय, हमारे मूल पहचान में।
    बांटें नहीं खुद को
    नदी पर्वत के बहाने ।
    भाषा, बोली को मानें हम तराने।
    चलो ऐसा राष्ट्र बनाएं।
    राष्ट्र तो है दीपक
    आलोकित होता संपूर्ण विश्व ।
    दीये से दीये जुड़ते जाएं
    अंधेरा छंट जायें
    मन की आंखों से ।
    तभी जानेंगे तेरी रोशनी,
    मेरी रोशनी से फर्क नहीं ।
    आगे बढ़ें एक लक्ष्य लेके
    हम मानस पुत्र
    भक्षक नहीं रक्षक हैं
    अखिल ब्रम्हांड का
    जो हम सबका परिवार है।

    मनीभाई नवरत्न

    manibhainavratna

    manibhai navratna

    जब जिंदगी की हो जाएगी छुट्टी

    जब जिंदगी की हो जाएगी छुट्टी ।

    तब तू नहीं मैं नहीं रह जाएगी मिट्टी।

    प्यार की फैली है खुशबू इस जहां में ।
    कल बदल जाएगी क्या रखा है इस समां में ।
    जाना होगा तुझे सब छोड़कर
    भेज दे वह जब बुलावे की चिट्ठी ।

    अपने करीब के माहौल को फिर से सजा लो।
    कल क्या होगा किसने जाना आओ मजा लो ।
    ढूंढे है तूने सुख चैन क्या वे मिलेंगे तुझे कभी।
    जिंदगी की जब हो जाएगी छुट्टी

    🖋मनीभाई नवरत्न

    यूं तो हर किसी का होता है एक परिवार

    यूं तो हर किसी का होता है एक परिवार ।
    पर मेरा परिवार बना है यह सारा संसार ।

    कभी उलझी हुई, कभी सुलझी हुई ।
    चारों ओर बिछी हुई, लोगों के प्यार ने हमको पाला।


    यह जीवन मकड़ी का जाला,
    सिरा जिसका हमें ना मिला ।।

    कभी खिलती हुई कभी सिमटती  हुई,
    खुशबू से महकती हुई, धरती मां ने मुझमे जान डाला।
    यह जीवन फूलों की माला,
    सिरा जिसका हमें ना मिला ।।

    कभी सुलगती हुई, कभी बुझती हुई,
    खुशियों से चहकती हुई, दोस्तों का बोलबाला।
    यह जीवन ग़मों का निवाला ,
    सिरा जिसका हमें ना मिला ।।

    यह जीवन मुझे लावारिस का ,
    यह जीवन मेरे आंखों की बारिश का।
    यह जीवन मेरी गुजारिश का ,
    सिरा जिसका हमें ना मिला।।

    -मनीभाई नवरत्न

    स्काउट जम्बुरी गीत

    सबसे अपना गहरा नाता है ,
    सबसे अपनी है प्रीति।
    आओ एक दूजे को मान दें ,
    समझे सबकी संस्कृति ।।
    स्काउट गाइड सीखाता
    अनुशासन का पाठ ,
    चलो हिलमिल जायें हम सब
    मिटाके आपस की दूरी।।
    जम्बूरी….. मिलके रहना सीखायेंं…
    जम्बुरी…..सेवा भाव जगायें…..
    जम्बुरी….. हम सबके लिए यादगार बनें
    आज प्रकृति रक्षा के लिए , है जरूरी….

  • कवि रमेश कुमार सोनी की कविता

    कवि रमेश कुमार सोनी की कविता

    कवि रमेश कुमार सोनी की कविता

    हाइकु
    कविता संग्रह

    बसंत के हाइकु – रमेश कुमार सोनी

    1

    माली उठाते/बसंत के नखरे/भौंरें ठुमके।

    2

    बासंती मेला/फल-फूल,रंगों का/रेलमपेला।

    3

    फूल ध्वजा ले/मौसम का चितेरा/बसंत आते।

    4

    बागों के पेड़/रोज नया अंदाज़/बसंत राज।

    5

    बासंती जूड़ा/रंग-बिरंगे फूल/दिल ले उड़ा ।

    6

    आओ श्रीमंत/दिखाऊँ कौन रँग/कहे बसंत।

    7

    फूल-भँवरे/मदहोश श्रृंगारे/ऋतुराज में।

    8

    बसंत गली/भौंरें मचाए शोर/मधु की चोरी।

    9

    बसंत आते/नव पल्लव झाँके/शर्माते हरे।

    10

    खिले-महके/बसंत लौट जाते/प्यार बाँटते।

    11

    कोई तो रोके/मेरा बसंत जाए/योगी बनके।

    12

    खिले-बौराए/कनक सा बसंत/झरे बौराए ।

    13

    बसंत बप्पा/जाओ जल्दी लौटना/खिलाने चम्पा।

    14

    फूल चढ़ाने/पतझर के कब्र/बसंत आते।

    15

    बसंत लाता/सौंदर्य का उत्सव/रंगों का मेला।

    16

    बासंती ‘गिफ्ट’/फूल तोड़ना मना/भौरों को ‘लिफ्ट’ ।

    रमेश कुमार सोनी कबीर नगर-रायपुर, छत्तीसगढ़

    बसन्त की सौगात

    शर्माते खड़े आम्र कुँज में
    कोयली की मधुर तान सुन
    बाग-बगीचों की रौनकें जवाँ हुईं
    पलाश दहकने को तैयार होने लगे
    पुरवाई ने संदेश दिया कि-
    महुआ भी गदराने को मचलने लगे हैं।
    आज बागों की कलियाँ
    उसके आने से सुर्ख हो गयी हैं
    ज़माने ने देखा आज ही
    सौंदर्य का सौतिया डाह ,
    बसंत सबको लुभाने जो आया
    प्रकृति भी प्रेम गीत छेड़ने लगी।
    भौरें-तितलियों की बारातें सजने लगी
    प्रिया जी लाज के मारे
    पल्लू को उँगलियों में घुमाने लगीं,
    कभी मन उधर जाता
    कभी इधर आता
    भटकनों के इस दौर में
    उसने -उसको चुपके से देखा
    नज़रों की भाषाओं ने
    कुछ लिखा-पढ़ा और
    मोहल्ले में हल्ला हो गया।
    डरा-सहमा पतझड़
    कोने में खड़ा ताक रहा है
    बाग का चीर हरने,
    सावन की दहक
    अब युवा हो चली है,
    व्याह की ऋतु
    घर बदलने को तैयार थी,
    फरमान ये सुनाया गया-
    पंचायत में आज फिर कोई जोड़ा
    अलग किया जाएगा
    कल फिर कोई युवा जोड़ी
    आम की बौरों की सुगंध के बीच
    फंदे में झूल जाएगा!
    प्यार हारकर भी जीत जाएगा
    दुनिया जीतकर भी हार जाएगी;
    इस हार-जीत के बीच
    प्यार सदा अमर है
    दिलों में मुस्काते हुए
    दीवारों में चुनवाने के बाद भी ।
    बसंत इतना सब देखने के बाद भी
    इस दुनिया को सुंदर देखना चाहता है
    इसलिए तो हर ऋतु में
    वह जिंदा रहता है
    कभी गमलों में तो
    कभी दिलों में
    बसंत कब,किसका हुआ है?
    जिसने इसे पाला-पोषा,महकाया
    बसंत वहीं बगर जाता है
    तेरे-मेरे और हम सबके लिए
    रंगों-सुगंधों को युवा करने।
    ——
    रमेश कुमार सोनी
    बसना, छत्तीसगढ़
    7049355476

    कोई आखिरी दिन नहीं होता

    ज़माना भूल चुकाउन्हें जिन्होंने कभी प्यार को खरीदना चाहा,
    मिटाना चाहा, बर्बाद करना चाहा-
    प्रेमी युगलों को सदा से
    लेकिन वे आज भी जिन्दा हैं–

    कुछ कथाओं में एवं
    कहीं बंजारों के कबीलों के गीतों में ठुमकते हुए|
    प्यार ऐसे ही जिन्दा रहता है
    जैसे- वृद्धाश्रम में यादें,
    आज सहला रहे थे
    अपने अंतिम पलों को
    हम दोनों वो कह रही थी–

    तुम्हारे पहले चुम्बन की उर्जा
    अब तक कायम है वर्ना….
    और मैं भी उसी दिन मर गया था–
    जिस दिन तुम्हें पहली बार देखा था
    जिन्दा तो मुझे तुम्हारी नज़रों ने रखा है|
    वृद्धाश्रम में केक काटते हुए
    प्यार आज अपनी हीरक जयंती मना रही है
    मानो आज उनका ये आखिरी दिन हो!

    वैसे बता दूँ आपको प्यार के लिए
    कोई आखिरी दिन नहीं होता
    और प्यार कभी मरता नहीं
    यह सिर्फ देह बदलता है ज़माने बदलते हैं |

    रमेश कुमार सोनी LIG 24 कबीर नगर रायपुर छत्तीसगढ़ 7049355476

    जूड़े का गुलाब

    स्त्री और धरती
    दोनों में से बहुत लोगों ने
    सिर्फ स्त्रियों को चुना
    और प्रेम के नाम पर
    उनके पल्लू और जूड़ों में बँध गए;

    प्रदूषणों का श्रृंगार किए
    विधवा वेश सी विरहणी वसुधा
    कराहती रही
    तुम्हारी बेवफाई पर|

    उसकी गोद में कभी जाओ
    तो पाओगे
    लाखों स्त्रियों के रिश्तों का प्यार एक साथ,
    प्यार जब भी होता है तब–
    बहारें खिलनी चाहिए,
    संगीत के सोते फूटने चाहिए….;

    कोई कभी भी नहीं चाहता कि–
    कोई उसे बेवफा कहे
    मजबूरियाँ आते–जाते रहती हैं|
    प्यार जो एक बार लौटा
    तो दुबारा नहीं लौटता,
    ना ही मोल ले सकते
    और ना ही बदल सकते;

    इसलिए सँवारतें रहें
    अपनी धरती को
    अपने प्रेयसी की तरह|
    कहीं कोई तो होगी
    जो आपके खिलाए हुए गुलाब को
    अपने जूड़े में खोंचने को कहेगी
    उस दिन गमक उठेगी
    धरती और आपका बागीचा
    सुवासित हो जाएगा गुलाब,
    स्त्रियाँ और वसुधा अलग कहाँ हैं?

    रमेश कुमार सोनी LIG 24 कबीर नगर रायपुर छत्तीसगढ़ 7049355476

    खिड़की-रमेश कुमार सोनी

    खिड़कियों के खुलने से दिखता है-
    दूर तक हरे-भरे खेतों में
    पगडंडी पर बैलों को हकालता बुधारु
    काकभगोड़ा के साथ सेल्फी लेता हुआ
    बुधारु का ‘टूरा’ समारु
    दूर काली सड़कों को रौंदते हुए
    दहाड़ती शहरी गाड़ियों के काफिले
    सामने पीपल पर बतियाती हुई
    मैना की जोड़ी और
    इसकी ठंडी छाया में सुस्ताते कुत्ते।


    खिड़की को नहीं दिखता-
    पनिहारिन का दर्द
    मजदूरों के छाले
    किसानों के सपने
    महाजनों के पेट की गहराई
    निठल्ली युवा पीढ़ी की बढ़ती जमात
    बाज़ार की लार टपकाती जीभ
    कर्ज में डूब रहे लोगों की चिंता और
    अनजानी चीखों का वह रहस्य
    जो जाने किधर से रोज उठती है और
    जाने किधर रोज दब भी जाती है।


    खिड़की जो मन की खुले तो
    देख पाती हैं औरतें भी-
    आज कहाँ ‘बुता’ में जाना ठीक है
    किसका घर कल रात जुए की भेंट चढ़ा
    किसके घर को निगल रही है-शराब
    किसका चाल-चलन ठीक नहीं है
    समारी की पीठ का ‘लोर’ क्या कहता है;
    सिसक कर कह देती हैं वे-
    ‘कोनो जनम मं झन मिलय
    कोनो ल अइसन जोड़ीदार’ ।


    बंद खिड़की में उग आते हैं-
    क्रोध-घृणा की घाँस-फूस
    हिंसा की बदबूदार चिम्मट काई
    रिश्तों को चाटती दीमक और
    दुःख की सीलन
    इन दिनों खिड़की खुले रखने का वक्त है
    आँख,नाक,कान के अलावा
    दिल की खिड़की भी खुली हो ताकि
    दया,प्रेम,करुणा और सौहाद्र की
    ताजी बयार से हम सब सराबोर हो सकें ।


    रमेश कुमार सोनी, बसना

    अक्षय पात्र -रमेश कुमार सोनी



    किसी बीज की तरह
    प्यार भी उगता है और
    हरिया जाता है
    जीवन सारा ।
    महकने लगते हैं
    प्यार के वन ,
    बहने लगते हैं
    गीतों का सरगम
    लोग सुनने लगते हैं
    प्यार के किस्से बड़े प्यार से
    छुप – छुपाकर ।


    प्यार के साथ ही उग आते हैं
    खरपतवार जैसे
    काँटो का जिस्म लिए लोग
    कुल्हाड़ी और आरे जैसी इच्छाएँ
    प्यार का शोर फैल जाता है
    अफवाहों और कानाफूसी की दुनिया में
    मारो – काटो
    जला दो , जिंदा चुनवा दो
    जैसे शब्द हरे हो जाते हैं
    प्यार का खून चूसने ।


    प्यार फिर ठूँठ बना दिए जाते हैं ,
    बीज बनने से पहले
    कुतर गए लोग इसका फल
    प्यार को भी अब
    रेड डाटा बुक में रखना होगा ,
    कैसे कह सकोगे तुम
    मेरे प्यार के बाद भी
    बचेगा तुम्हारे संसार के लिए
    थोड़ा सा प्यार ,
    लोग भूल जाते हैं कि –
    प्यार का अक्षय पात्र दिलों में होता है
    सदा से धड़कता हुआ सुर्ख युवा ।
    रमेश कुमार सोनी,बसना

    साइकिलों पर घर

    अलग-अलग पगडंडियों से
    गाँवों के मजदूर
    अपनी जरूरतें
    मुँह पर चस्पा किए

    साइकिलों से खटते हुए
    पहूँचते हैं शहर में ,
    शहर में है –
    उनके खून – पसीने को

    पैसों में बदलने की मशीन ।
    साइकिलों में टँगे होते हैं –
    बासी, मिर्च और प्याज के साथ
    परिवार की ताकत का स्वाद,

    काम करता है मजदूर
    अपने इसी मिर्च की भरभराहट खत्म होने तक ,

    इनकी छुट्टियों को जरूरतों ने
    हमेशा से खारिज कर रखा है,

    वापसी साइकिलों में टँगे होते हैं –
    घर की जरूरतें और उम्मीद
    शहर उम्मीदों और
    जरूरतों का विज्ञापनखोर है ।

    इसी तरह टँगा होता है
    साइकिलों पर घर
    जहाँ डेरा डाला गाँव बना लिया

    इन्हीं से बची है –
    खूबसूरती संवारने की ताकत
    एक स्वच्छ और सुंदर शहर
    साइकिलों पर टिका हुआ है।


    ——— ———
    रमेश कुमार सोनी
    कबीर नगर- रायपुर छत्तीसगढ़
    संपर्क- 7049355476

    बधाई हो तुम…

    भुट्टा खाते हुए
    मैंने पेड़ों पर अपना नाम लिखा
    तुमने उसे अपने दिल पे उकेर लिया,
    तुमने दुम्बे को दुलारा
    मेरा मन चारागाह हो गया;
    मैंने पतंग उड़ाई
    तुम आकाश हो गयीं
    मैं माँझे का धागा
    जो हुआ तुम चकरी बन गयी|
    ऐसा क्यों होता रहा?
    मैं कई दिनों तक
    समझ ना सका
    एक दिन दोस्तों ने कहा–
    ये तो गया काम से,
    और तुम तालाबंदी कर दी गयी
    मेरे जीवन के कोरे पन्ने पर
    बारातों के कई दृश्य बनते रहे
    और गलियों का भूगोल बदल गया|
    तुम्हारी पायल ,
    बिंदी और महावर वाली निशानियाँ
    आज भी मेरे मन में अंकित है
    किसी शिलालेख की तरह,
    किसी नए मकान पर
    शुभ हथेली की पीले छाप के जैसी
    मैं देखना चाह रहा था
    बसंतोत्सव और मेरा बसंत
    उनके बाड़े में कैद थी|
    मैं फटी बिवाई जैसी
    किस्मत लिए कोस रहा था
    आसमान को तभी तरस कर
    मेघ मुझे भिगोने लगी
    इस भरे सावन में
    मेरा प्यार अँखुआने लगा
    हम भीगते हुए भुट्टा खा रहे हैं
    और उसने अपने दांतों में दुपट्टा दबाते हुए
    धीरे से कहा–बधाई हो तुम….
    और झेंपते हुए उसने
    गोलगप्पे की ओर इशारा किया…..|
    – रमेश कुमार सोनी LIG 24 कबीर नगर रायपुर छत्तीसगढ़ 7049355476

    मुस्कुराता हुआ प्रेम

    प्रेम नहीं कहता कि–
    कोई मुझसे प्रेम करे
    प्रेम तो खुद बावरा है
    घुमते–फिरते रहता है
    अपने इन लंगोटिया यारों के साथ–
    सुख–दुःख,घृणा,बैर,
    यादें और हिंसक भीड़ में;

    प्रेम सिर्फ पाने का ही नहीं
    मिट जाने का दूसरा नाम भी है|
    प्रेम कब,किसे,कैसे होगा?
    कोई नहीं जान पाता है
    ज़माने को इसकी पहली खबर मिलती है,
    यह मुस्कुराते हुए मलंग के जैसे फिरते रहता है;

    कभी पछताता भी नहीं कहते हैं
    लोग कि–
    प्रेम की कश्तियाँ डूबकर ही पार उतरती हैं|
    मरकर भी अमर होती हैं
    लेकिन कुछ लोगों में
    यह प्रेम श्मशान की तरह दफ़न होते हैं
    वैसे भी यह प्रेम कहाँ मानता है–

    सरहदों को, जाति–धर्म को
    ऊँच–नीच को
    दीवारों में चुनवा देने के बाद भी
    हॉनर किलिंग के बाद भी
    यह दिख ही जाता है
    मुस्कुराता हुआ प्रेम
    मुझे अच्छा लगता है….|

    रमेश कुमार सोनी LIG 24 कबीर नगर रायपुर छत्तीसगढ़ 7049355476

  • बिपिन रावत पर हिंदी कविता

    भारत का अभिमान – बिपिन रावत पर हिंदी कविता

    भारत के जवान हैं देश की शान,
    देश के लिए हर पल होते हैं कुर्बान।
    ऐसे ही एक महान शख्स का सुनाता हूं कहानी,
    जिसका हिन्दुस्तान और दुनिया भी है दीवानी।
    बहुत ही पवित्र और गौरवशाली है वह स्थान,
    जन्म लिए जहां पर वीर बिपिन रावत महान।
    दिल में देश प्रेम और निडरता था अखंड,
    जन्म स्थान का नाम है पौड़ी- उत्तराखंड।
    रावत जी के पिता थे मेजर,हिंद-सेना की शान,
    बिपिन रावत जी बन गए,भारत का अभिमान।

    tiranga

    प्रारंभिक शिक्षा का यूं चला था सिलसिला,
    शिक्षा ग्रहण किए सेंट एडवर्ड स्कूल शिमला।
    सैन्य वर्ग की शिक्षा के लिए हुए जब काबिल,
    देहरादून के सैन्य अकादमी में हो गए शामिल।
    जहां मन लगा पढे़ रावत जी वहां तक,
    हासिल किए सैन्य – शिक्षा में स्नातक।
    हर तरफ सजी थी सैन्य अभ्यास की महफिल।
    बड़ी मेहनत से हासिल किए उन्होंने एम.फिल।
    अदम्य साहस-वीरता का उन पर था वरदान,
    बिपिन रावत जी बन गए,भारत का अभिमान।

    गोरखा राइफल में प्रवेश कर मचा दि हलचल।
    रावत जी के नेतृत्व से दुश्मन डरते हर- पल।
    दहशतगर्दों के मंसूबों को कर दिया था भंग,
    “उरी”द सर्जिकल स्ट्राइक से दुनिया है दंग।
    ब्रिगेडियर – पद से बढ़ाया हिंद का सम्मान।
    यश-कीर्ति मिला संभाला जब कांगो-कमान।
    भारत माता के सपूत को नहीं भूलेगा ये जहान,
    बिपिन रावत जी बन गए ,भारत का अभिमान।

    आपातकाल सैनिक कार्यवाई में हरदम थे दक्ष,
    सैन्यवर्ग में पदोन्नत होकर बने सेना के अद्यक्ष।
    दुश्मनों के छक्के छुड़ाए चाहे देश हो या विदेश,
    30 दिसंबर 2020 को बने पहले सी.डी.एस.।
    वीर रावत जी के पराक्रम से कौन था अनजान,
    बिपिन रावत जी बन गए,भारत का अभिमान।

    दुर्घटना में हो गए शहीद वीर बिपिन रावत महान,
    नि:शब्द हैं सभी गमगीन हो गया संपूर्ण हिंदुस्तान।
    फैल गया यह खबर हर गांव-शहर गली-गली,
    भारत माता के सपूत को भावपूर्ण श्रद्धांजलि।
    अकिल करे लेखनी से हर पल उनका बखान,
    नौजवानों करो देश – सेवा बनो सच्चा-इंसान।
    नित्य लब पे हो हरदम हिन्दुस्तान का गुणगान,
    बिपिन रावत जी बन गए ,भारत का अभिमान।

    अकिल खान रायगढ़ जिला – रायगढ़ (छ.ग.)
    पिन – 496440.

  • मनुष्य का मन- ताज मोहम्मद

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    हिंदी कविता : मनुष्य का मन- ताज मोहम्म

    मनुष्य का मन…
    कौतूहल में कितना शान्त अशान्त रहता है।
    एक द्वंद सा…
    सदैव उसके जीवन में स्वतः चलता रहता है।

    कितना सरल जीवन होता है,
    जो प्रारम्भ में मनुष्य को मिलता है।

    मनुष्य आदि से अ से ज्ञ तक पढ़ता है,
    इसी में उसका अतिरिक्त अनादि रचता है।

    व्यक्ति स्वयं की त्रुटियों से,
    जीवन को कितना कठिन बना देता है।
    फिर…स्वयं के अतिरिक्त,
    वह सभी पर दोष मढ़ता है।

    सम्पूर्ण जीवन काल में…
    मनुष्य चिंताओं की चिता में जलता है।
    एक द्वंद सा…
    सदैव उसके जीवन में स्वतः चलता रहता है।

    हर पद ताल के जीवन में,
    कर्तव्य कितने होते हैं।
    सभी की आशाओं के अनुरूप,
    मनुष्य जीवन कहाँ जीते हैं।

    ना जानें भाग्य विधाता को,
    क्या थी सूझी।
    जो उसने जीवन में,
    विपत्तियों को देने की सोची।

    स्वयं से विचार विमर्श करके,
    मनुष्य खुद को समझा देता है।
    और कुछ क्षण के लिए जीवन को,
    समुद्र सा शान्त कर देता है।

    सम्पूर्ण जीवन काल में…
    मनुष्य चिंताओं के बवण्डर में रहता है।
    एक द्वंद सा…
    सदैव उसके जीवन में स्वतः चलता रहता है।

    ताज मोहम्मद
    287 कनकहा मोहनलालगंज
    लखनऊ-226301
    मोबाइल नंबर-9455942244