Tag: *लोक गीत

लोकगीत लोक के गीत हैं। जिन्हें कोई एक व्यक्ति नहीं बल्कि पूरा लोक समाज अपनाता है। सामान्यतः लोक में प्रचलित, लोक द्वारा रचित एवं लोक के लिए लिखे गए गीतों को लोकगीत कहा जा सकता है। लोकगीतों का रचनाकार अपने व्यक्तित्व को लोक समर्पित कर देता है। शास्त्रीय नियमों की विशेष परवाह न करके सामान्य लोकव्यवहार के उपयोग में लाने के लिए मानव अपने आनन्द की तरंग में जो छन्दोबद्ध वाणी सहज उद्भूत करता हॅ, वही लोकगीत है।

  • तन्नक सुपारी हमें दैयो

    तन्नक सुपारी हमें दैयो

    तन्नक सुपारी हमें दैयो

    तन्नक सुपारी हमें दैयो ओ मोरे लाल ,
    बढई भैया मित्र हमारे-(२)
    खेरे का डंडा मंगाय दैयो ओ मोरे लाल -(२)
    तन्नक सुपारी हमें दैयो ओ मोरे लाल..

    लोहार भैया मित्र हमारे-(२)
    खेरे का डंडा में लोहे का कुंडा लगाय दैयो ओ मोरे लाल -(२)
    तन्नक सुपारी हमें दैयो ओ मोरे लाल..

    कसार भैया मित्र हमारे-(२)
    खेरे का डंडा में लोहे का कुंडा में पीतल के घुँघरू लगाय दैयो ओ मोरे लाल -(२)
    तन्नक सुपारी हमें दैयो ओ मोरे लाल..

    सुनार भैया मित्र हमारे-(२)
    खेरे का डंडा में लोहे का कुंडा में पीतल के घुँघरू में सोने की लड़ियाँ लगाय दैयो ओ मोरे लाल -(२)
    तन्नक सुपारी हमें दैयो ओ मोरे लाल..

    जोहरी भैया मित्र हमारे-(२)
    खेरे का डंडा में लोहे का कुंडा में पीतल के घुँघरू में सोने की लड़ियों में हीरे और मोती लगाय दैयो ओ मोरे लाल -(२)
    तन्नक सुपारी हमें दैयो ओ मोरे लाल..

    • संकलित
  • खुदीराम के नाम का गान /मनीभाई नवरत्न

    खुदीराम के नाम का गान /मनीभाई नवरत्न

    खुदीराम बोस भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महान क्रांतिकारी थे, जिन्होंने देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। उनके साहस, बलिदान और देशप्रेम को समर्पित एक गीत प्रस्तुत है:

    खुदीराम के नाम का गान /मनीभाई नवरत्न

    खुदीराम के नाम का गान

    (Verse 1)
    वो नन्हा वीर था, पर दिल में जोश था,

    नादान नहीं था , उसे होश था
    जिसके बलिदान से, महका हिंदुस्तान।

    वो प्रकाश, खुदीराम बोस था .

    (Chorus)
    खुदीराम, तुम हो अमर,
    देशभक्ति की ज्योत प्रखर।

    खुदीराम, तुम हो अमर,
    देशभक्ति की ज्योत प्रखर।

    (Verse 2)
    कम उम्र में ही, वो बना क्रांतिकारी,
    भारत की गुलामी , उसको लगता था भारी ।
    बम पिस्तौल, बन गये उसके साथी,
    दुश्मनों के मन में जला दी दहशत की बाती।

    (Chorus)
    खुदीराम, तुम हो अमर,
    देशभक्ति की ज्योत हो प्रखर।


    खुदीराम, तुम हो अमर,
    देशभक्ति की ज्योत हो प्रखर।

    (Verse 3)
    वो हंसते-हंसते फांसी पे झूल गया,
    देश के लिए , सब कुछ भूल गया।
    वीरों की धरती पे , जन्मा वो महान,
    याद रहेगी सदा , तेरा बलिदान जवान।

    (Chorus)
    खुदीराम, तुम हो अमर,
    देशभक्ति की ज्योत हो प्रखर।

    खुदीराम, तुम हो अमर,
    देशभक्ति की ज्योत हो प्रखर।

    (Outro)
    तुमको,कभी ना भूलेंगे,
    तुम्हारी रंग में घुलेंगे।
    खुदीराम, तेरा नाम रहेगा सदा,
    देश का सच्चा वीर, तू ही हमारा।


    यह गीत खुदीराम बोस के साहस, बलिदान और देशप्रेम को समर्पित है। उनके बलिदान ने स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन को और भी मजबूत किया और आज वे भारतीय इतिहास के अमर वीरों में गिने जाते हैं।

  • मोर गांव मोर मितान

    मोर गांव मोर मितान

    मोर गांव मोर मितान जिसके रचनाकार अनिल जांगड़े जी हैं । कविता ने ग्रामीण परिवेश का बहुत सुंदर वर्णन किया है। आइए आनंद लें ।

    मोर गांव मोर मितान

    मोर गांव मोर मितान

    मोर गाॅंव के तरिया नदिया,नरवा मोर मितान
    रूख राई म बसे हवय जी,मोर जिंनगी परान।

    गली खोर के मॅंय हंव राजा,
    दुखिया के संगवारी हंव
    दया धरम हे सिख सिखानी
    बैरी बर मॅंय कटारी हंव
    बिन फरिका के दुवारी हंव रे
    मोर अलग पहचान
    मोर गांव के तरिया नदिया,नरवा मोर मितान।

    गाॅंव के कुकुर बिलई संग हे
    मोर सुघर मितानी
    परछी बइठे बुढ़वा बबा मोर
    करथे मोर सियानी
    मॅंय गाॅंव के लहरिया बेटा
    दाई ददा भगवान
    मोर गाॅंव के तरिया नदिया,नरवा मोर मितान।

    गाॅंव म शीतला ठाकुर देवता
    करथे हमर रखवारी
    छानी परवा टूटहा कुरिया
    हवय हमर चिनहारी
    बोरे बासी खा के कमाथन
    माटी म उगाथंन धान
    मोर गाॅंव के तरिया नदिया, नरवा मोर मितान।

    🖊️ अनिल जांगड़े
    सरगांव मुंगेली छत्तीसगढ़
    8120861255

  • लोक गीत -उपमेंद्र सक्सेना

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    लोक गीत -उपमेंद्र सक्सेना

    जाकी लाठी भैंस बाइकी, बाकौ कौन नाय अबु जनि है
    कमजोरन की लुगाइनन कौ,दइयर तौ भौजाई मनि है।

    ब्याहु पड़ौसी को होबन कौ, बाके घरि आए गौंतरिया
    पपुआ ने तौ उनमैं देखी, गौंतर खाउत एक बहुरिया
    बाके पीछे बौ दीबानो, औरन कौ बौ नाहीं गिनि है
    कमजोरन की लुगाइनन कौ, दइयर तौ भौजाई मनि है।

    जाने केते बइयर डोलैं, फाँसैं केती बइयरबानी
    खेलैं चाल हियन पै अइसी, करै न कोऊ आनाकानी
    अपुनी मस्ती मैं जो झूमै, बातु नाय काहू की सुनि है
    कमजोरन की लुगाइनन कौ,दइयर तौ भौजाई मनि है।

    आजु दबंग माल हड़पत हैं, आउत है जेतो सरकारी
    केते तड़पैं लाचारी से, उनै नाय देखैं अधिकारी
    भूलि गओ औकात हियन जो, बातु- बातु पै लाठी तनि है
    कमजोरन की लुगाइनन कौ, दइयर तौ भौजाई मनि है।

    काबिल अबु घूमत सड़कन पै, ऐरे- गैरे मौजु मनाबैं
    सरकारी ठेका लइके बे, हैं उपाधियन कौ बँटबाबैं
    मूरख हियन दिखाबैं तुर्रा, आपसु मैं फिरि उनकी ठनि है
    कमजोरन की लुगाइनन कौ,दइयर तौ भौजाई मनि है।

    अपुनी जुरुआ से लड़िबै जो, औरु मेहरुहन जौरे जाबै
    बाको सबु पइसा लुटि जाबै, अपुनी करनी को फल पाबै
    फुक्कन कौ तौ सबु गरियाबैं, कोऊ उनको काम न बनि है
    कमजोरन की लुगाइनन कौ,दइयर तौ भौजाई मनि है।

    रचनाकार -✍️उपमेंद्र सक्सेना
    ‘कुमुद- निवास’
    बरेली (उत्तर प्रदेश)

  • होबै ब्याहु करौ तइयारी – उपमेंद्र सक्सेना

    होबै ब्याहु करौ तइयारी


    चलिऔ संग हमारे तुमुअउ, गौंतर खूब मिलैगी भारी
    राम कली के बड़े लला को, होबै ब्याहु करौ तइयारी।

    माँगन भात गई मइके बा, लेकिन नाय भतीजी मानी
    बोली मौको बहू बनाबौ, नाय करौ कछु आनाकानी
    जइसे -तइसे पिंड छुड़ाओ, खूबै भई हुँअन पै ख्वारी
    राम कली के बड़े लला को, होबै ब्याहु करौ तइयारी।

    पहिना उन कौ भात बाइ के, भइया औ भौजाई आए
    टीका करिके बाँटे रुपिया, घरि बारिन कौ कपड़ा लाए
    गड़ो- मढ़ौ फिरि लगी थाप, बइयरबानी देउत हैं गारी
    राम कली के बड़े लला को, होबै ब्याहु करौ तइयारी।

    बाके घरै लगुनिया आए, ढोलक बजी लगुन चढ़बाई
    बाने पहिले ऐंठ दिखाई, खूबै रकम हाय बढ़बाई
    पइसा मिलै बाय कौ तौ बस, होय बहुरिया केती कारी
    राम कली के बड़े लला को, होबै ब्याहु करौ तइयारी।

    दाबत होय बँटैगो खूबइ, हियाँ कुल्लड़न मै सन्नाटा
    आलू भरिके बनैं कचौड़ी, हलबाइन ने माढ़ो आटा
    गंगाफल आओ है एतो,बनै खूब बा की तरकारी
    राम कली के बड़े लला को, होबै ब्याहु करौ तइयारी।

    नैकै दूर बरात जायगी, खूब बराती नाचैं- गाबैं
    घोड़ी पै बइठैगो दूल्हा, जीजा बा के पान खबाबैं
    निकरौसी जब होय कुँआ पै,पाँय डारि बइठै महतारी
    राम कली के बड़े लला को, होबै ब्याहु करौ तइयारी।

    रचनाकार ✍️उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट
    ‘कुमुद- निवास’, बरेली (उत्तर प्रदेश)