Tag 16 मात्रिक मुक्तक

अब तो मन का रावण मारें

किसी भी राष्ट्र के सर्वतोमुखी विकास के लिए विद्या और शक्ति दोनों देवियों की आराधना और उपासना आवश्यक है। जिस प्रकार विद्या की देवी सरस्वती है, उसी प्रकार शक्ति की देवी दुर्गा है। विजया दशमी दुर्गा देवी की आराधना का…

हम तुम दोनों मिल जाएँ

हम तुम दोनों मिल जाएँ मुक्तक (१६मात्रिक) हम-तुम हम तुम मिल नव साज सजाएँ,आओ अपना देश बनाएँ।अधिकारों की होड़ छोड़ दें,कर्तव्यों की होड़ लगाएँ। हम तुम मिलें समाज सुधारें,रीत प्रीत के गीत बघारें।छोड़ कुरीति कुचालें सारी,आओ नया समाज सँवारें। हम…

धर्मपत्नी पर कविता

धर्मपत्नी पर कविता ( विधाता छंद, २८ मात्रिक ) हमारे देश में साथी,सदा रिश्ते मचलते है।सहे रिश्ते कभी जाते,कभी रिश्ते छलकते हैं। बहुत मजबूत ये रिश्ते,मगर मजबूर भी देखे।कभी मिल जान देते थे,गमों से चूर भी देखे। करें सम्मान नारी…

सुख-दुख की बातें बेमानी

सुख-दुख की बातें बेमानी ( १६ मात्रिक ) मैने तो हर पीड़ा झेली,सुख-दुख की बातें बेमानी। दुख ही मेरा सच्चा साथी,श्वाँस श्वाँस मे रहे संगाती।मै तो केवल दुख ही जानूं,प्रीत रीत मैने कब जानी,सुख-दुख की बातें बेमानी। साथी सुख केवल…

village based Poem

अब तो मेरे गाँव में

अब तो मेरे गाँव में . ( १६,१३ )अमन चैन खुशहाली बढ़ती ,अब तो मेरे गाँव में,हाय हलो गुडनाइट बोले,मोबाइल अब गाँव में। टेढ़ी ,बाँकी टूटी सड़केंधचके खाती कार में,नेता अफसर डाँक्टर आते,अब तो कभी कभार में। पण्चू दादा हुक्का…

उड़ जाए यह मन

उड़ जाए यह मन (१६ मात्रिक) यह,मन पागल, पंछी जैसे,मुक्त गगन में उड़ता ऐसे।पल मे देश विदेशों विचरण,कभी रुष्ट,पल मे अभिनंदन,मुक्त गगन उड़ जाए यह मन। पल में अवध,परिक्रम करता,सरयू जल मन गागर भरता।पल में चित्र कूट जा पहुँचे,अनुसुइया के…

समय सतत चलता है साथी

समय सतत चलता है साथी गीत(१६,१६) कठिन काल करनी कविताई!कविता संगत प्रीत मिताई!! समय सतत चलता है साथी,समय कहे मन त्याग ढ़िठाई।वक्त सगा नहीं रहा किसी का,वन वन भटके थे रघुराई।फुरसत के क्षण ढूँढ करें हमकविता संगत प्रीत मिताई। समय…

आओ सच्चेे मीत बनाएँ

आओ सच्चेे मीत बनाएँ (१६,१६)आओ सच्चेे मीत बनाएँ,एक एक हम वृक्ष लगाएँ।बचपन में ये सुन्दर होते ,नेह स्नेह के भाव सँजोते। पालो पोषो गौरव होता।मधुर भाव हरियाली बोता।आज एक पौधा ले आएँ,आओ सच्चे मीत बनाएँ। यौवन मे छाँया दातारी,मीठे खट्टे…

वर्षा-विरहातप

वर्षा-विरहातप (१६ मात्रिक मुक्तक ) कहाँ छिपी तुम,वर्षा जाकर।चली कहाँ हो दर्श दिखाकर।तन तपता है सतत वियोगी,देखें क्रोधित हुआ दिवाकर। मेह विरह में सब दुखियारे,पपिहा चातक मोर पियारे।श्वेद अश्रु झरते नर तन से,भीषण विरहातप के मारे। दादुर कोकिल निरे हुए…

मीत देश वंदन की ख्वाहिश

मीत देश वंदन की ख्वाहिश धरती पर पानी जब बरसेमनभावों की नदियाँ हरषे।नमन् शहीदों को ही करलें,छोड़ो सुजन पुरानी खारिश।मीत देश वंदन की ख्वाहिश। आज नेत्र आँसू गागर है,यादें करगिल से सागर है।वतन हितैषी फौजी टोली,कर्गिल घाटी नेहिल बारिश,मीत देश…