अब नहीं सजाऊंगा मेला

अब नहीं सजाऊंगा मेला अक्सर खुद कोसाबित करने के लिएहोना पड़ता है सामने . मुलजिम की भांति दलील पर दलील देनी पड़ती है . फिर भी सामने खड़ा व्यक्तिवही सुनता है ,जो वह सुनना चाहता है .हम उसके अभेद कानों के पार जाना चाहते हैं .उतर जाना चाहते हैंउसके मस्तिष्क पटल पर बजाय ये सोचे … Read more

तुम तो लूटोगे ही प्यारे,लुटेरों की बस्ती में

तुम तो लूटोगे ही प्यारे,लुटेरों की बस्ती में पुकार रहे हो किससे बंदेखुद ही हो रहबर अपना।छिप रहे हो कहां कहां पे कहीं नहीं है घर अपना ।। आबरू की फिक्र है तुझे जाएगी कभी जो सस्ती में ।।तुम तो लूटोगे ही प्यारे ,हुस्न पाई लुटेरों की बस्ती में।। तेरी जिद करने को हासिल इस … Read more

घर के कितने मालिक -मनीभाई नवरत्न

घर के कितने मालिक वाह भाई !मैंने ईंटें लाई ।सीमेंट ,बालू , कांक्रीट, छड़और पसीने के पानी सेखड़ा कर लियाअपना खुद का घर।बता रहा हूँ सबकोमैं असल मालिक। ये “मैं और मेरा “मेरे होते हैं सोने के पहले।जैसे ही आयेगी झपकी।आयेंगे इस घर केऔर भी मालिकबिखेरेंगे कुतरेंगे सामान ।वही जिसे मैं कहता थाएन्टीक पीस।बताता था … Read more

मैं उड़ता पतंग मुझे खींचे कोई डोर

मैं उड़ता पतंग मुझे खींचे कोई डोर मैं उड़ता पतंग ….मुझे खींचे कोई डोर।तेरी ही ओर।।मेरा टूट न जाए धागा।भागा ….भागा…भागा ….मैं खुद से भागा।जागा.. जागा….जागा.. कभी सोया कभी जागा ।कुछ ख्वाहिशें हैं ,कुछ बंदिशें हैं।पग-पग में देखो साजिशें है ।जिसने जो चाहा है कब वो पाया है ।पल पल में तो मुश्किलें है ।यह … Read more

प्रेम का अनुप्रास बाकी

प्रेम का अनुप्रास बाकी आर आर साहू, छत्तीसगढ़: ” प्रेम का अनुप्रास बाकी “ सत्य कहने और सुनने की कहाँ है प्यास बाकी।क्या विवशता को कहेंगे,है अभी विश्वास बाकी। आस्थाओं,धारणाओं,मान्यताओं को परख लो,रह गई संवेदना की आज कितनी साँस बाकी। दृष्टिहीनों को तमस् का बोध कैसे हो सकेगा,है नहीं जिनके दृगों में ज्योति का उल्लास … Read more