अब नहीं सजाऊंगा मेला
अब नहीं सजाऊंगा मेला अक्सर खुद कोसाबित करने के लिएहोना पड़ता है सामने . मुलजिम की भांति दलील पर दलील देनी पड़ती है . फिर भी सामने खड़ा व्यक्तिवही सुनता है ,जो वह सुनना चाहता है .हम उसके अभेद कानों के पार जाना चाहते हैं .उतर जाना चाहते हैंउसके मस्तिष्क पटल पर बजाय ये सोचे … Read more