विरह पर दोहे -बाबू लाल शर्मा
विरह पर दोहे सूरज उत्तर पथ चले,शीत कोप हो अंत।पात पके पीले पड़े, आया मान बसंत।। फसल सुनहरी हो रही, उपजे कीट अनंत।नव पल्लव सौगात से,स्वागत प्रीत बसंत।। बाट निहारे नित्य ही, अब तो आवै कंत।कोयल सी कूजे निशा,ज्यों ऋतुराज बसंत।। वस्त्र हीन तरुवर खड़े,जैसे तपसी संत।कामदेव सर बींधते,मन मदमस्त बसंत।। मौसम ले अंगड़ाइयाँ,दामिनि गूँजि … Read more