Tag: बाबूराम सिंह की कविता हिंदी में

  • माँ दुर्गा पर कविता -बाबूराम सिंह

    माँ दुर्गा पर कविता -बाबूराम सिंह

    दुर्गा या आदिशक्ति हिन्दुओं की प्रमुख देवी मानी जाती हैं जिन्हें माता, देवीशक्ति, आध्या शक्ति, भगवती, माता रानी, जगत जननी जग्दम्बा, परमेश्वरी, परम सनातनी देवी आदि नामों से भी जाना जाता हैं। शाक्त सम्प्रदाय की वह मुख्य देवी हैं।

    माँ दुर्गा पर कविता -बाबुराम सिंह

    नित चरणों में रहे श्रध्दाभाव वर दो भक्ति अनन्य हो।
    मातेश्वरी तूं धन्य हो।।
    अज-जग में सर्वत्र माँ मै सुचि पांव की धूल रहूँ।
    सुवासित हो माता जीवन बनकर मै ऐसा फूल रहूँ।
    मानवता मर्यादा का अनूठा शुभ पावन कूल रहूँ।
    कुछ भी हो जाये मात तेरे भक्तों के समतूल रहूँ।
    करो दया भूल से कदापि अपराध ना जघन्य हो।
    मातेश्वरी तूं धन्य हो।।
    पथप्रदर्शक परम पावन सबके प्राण आधार तुम्हीं हो।
    सदगुण शील सत्य सार कीदेवी हो औ प्यार तुम्हीं हो।
    सुघड़ता कोमलताई पै करूणामयी असवार तुम्ही हो।
    लखचौरासी भवसागर भवकुपों की पतवार तुम्ही हो।
    माँ करूणा सागर से गहरा जिससे गहरा ना अन्य हो।
    मातेश्वरी तूं धन्य हो।।
    दमन शमन कुमार्ग काटती सदा क्लेश तुम्ही हो।
    धर्म रक्षकऔ जग तारन को हे माता अशेष तुम्ही हो।
    पतित पावन परमेश्वरी जन-जन की रत्नेश तुम्ही हो।
    कण-कणकी तारनहारी वरण-वरण के भेष तुम्ही हो।
    सुधा सरस तुम्ही माते तुम्ही शंख पंचजन्य हो।
    मातेश्वरी तूं धन्य हो।।
    पामर पतित हूँ मै माता चरणों निज लगा लेना।
    सुसुप्त हृदय के भावों को आलोकित कर जगा देना।
    भूल चूक क्षमा कर मुझको भी भव्य बना लेना।
    डगमग नईया भव सागर से खेके पार लगा देना।
    कुछऐसा करदो माता मिटजायें सभी दुख दैन्य जो।
    मातेश्वरी तूं धन्य हो ।।
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    बाबूराम सिंह कवि
    बड़का खुटहाँ , विजयीपुर
    गोपालगंज (बिहार)841508
    मो॰ नं॰ – 9572105032
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  • मित्र और मित्रता पर कविता – बाबूराम सिंह

    मित्र और मित्रता पर कविता

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    हो दया धर्म जब मित्र में,सुमित्र उसको मानिए।
    ना मैल हो मन में कभी, कर्मों को नित छानिए।
    आदर सेवा दे मित्र को,प्यार भी दिल से करो।
    दुखडा उस पर कभी पड़े, दुःख जाकर के हरो।
    मित्रों से नाता कभी भी ,भूल कर तोड़ों नहीं।
    पथ बिचमें निज स्वार्थवश,ज्ञातरख छोड़ी नहीं।

    भाव रख उत्तम हमेशा , साथ चलना चाहिए।
    दीजीये सुख शान्ति उसे,आप भी सुख पाइए।
    कभी भूल मित्र से होजा ,उछाले ना फेकना।
    सुदामा कृष्ण मित्रता का, नमूना भी देखना।
    दे जुबान अपने मित्र को,पिछे कभी न डोलिए।
    मन खुशरख उसका सदा,सुमधुर वचन बोलिए।

    करना सहायता मित्र की ,हर बात मन से सुनो।
    अहम वहम सब छोड दो,मोड़ जीवन पथ चुनो।
    शुचि मित्र से महके जीवन,यह कभी भूलो नहीं।
    निज मान और सम्मान में,फँस नहीं फूलो कहीं।
    निज वचन बुद्धि विचारमें,नहीं तम गम हम घुसे।
    करो मित्र का कल्याण सदा,सुकर्म में जोड़ उसे।

    ना कर्म पथ छूटे कभी,जगत में जबतक रहो।
    विष पी अधर मुस्का सदा ,मित्र संग में सब सहो।
    मित्र भाव भव्य लगाव को ,कदापि न ठुकराइए।
    श्रध्दा प्रेम विश्वास आश , नित नूतन जगाइए।
    जग जीत चाहे हार हो , सार में कायम रहे।
    मिशाल मित्रों का अनूठा , है सदा सबही कहे।

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    बाबूराम सिंह कवि
    बडका खुटहाँ, विजयीपुर
    गोपालगंज (बिहार )841508
    मो॰ नं॰ – 9572105032
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  • रामधारी सिंह दिनकर/ बाबूराम सिंह

    रामधारी सिंह दिनकर जी

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    तेईस सितम्बर  सरस,सन उन्नीस सौ आठ।
    बालक एक जन्म लिया,शुभ सेमरिया घाट।।

    बेगु   सराय  बिहार  में ,  है  सेमरिया   घाट।
    होनहार बालक हुआ,मिला न जिनका काट।।

    मन में ज्ञानालोक ले ,सुख-दुख सह आघात।
    नाम रामधारी  पड़ा ,हुआ  जगत विख्यात।।

    महा  धर्मज्ञ   मर्मज्ञ   थे , राह  प्रदर्शक  नेक।
    सुकवि हृदय विशाल रहे,लख लाखों में एक।।

    शारद  यशस्वी  लाल  थे ,भव्य भारती भाल।
    शैली  लेखन की सरस,कौशल कला कमाल।।

    शुभ वाणी  विचार बुध्दि, उत्तम  नेक  उदार।
    साहित्य  में  लवलिन  हो ,करते सत्य प्रचार।।

    भाषा  सुन्दर  मृदु  वचन,रहे  गुणों की खान।
    दया  धर्म  सुमर्म  लिये , दिनकर  रहे  महान।।

    नाम  काम  उनका  सदा ,अमर रहे इतिहास।
    काव्य महक से उनके ,चहुँदिशि सदा सुवास।।

    दिनकरजी व्दारा सृजित,कालजयी हरशब्द।
    वैभव  हिन्दी   का  अहा , हूँ  बर्णन निःशब्द।।

    जन्म  जयंती  पर महा ,संस्मरण  कर  याद।
    हर्ष व  गौरव की सदा,सु-अनुभूति आबाद।।

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    बाबूराम सिंह कवि
    बडका खुटहाँ, विजयीपुर
    गोपालगंज (बिहार)841508
    मो॰नं॰ – 9572105032
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  • मानवता पर ग़ज़ल – बाबूराम सिंह

    मानवता पर ग़ज़ल

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    तपस्या तपमें गल कर देखो।
    सत्य धर्म पर चल कर देखो।।

    प्रभु भक्ति शुभ नेकी दान में,
    अपना रूख बदलकर देखो।

    दीन-दुखीअबला-अनाथ की,
    पीड़ा बीच पिघल  कर  देखो।

    सेवा समर्पण  शुभ  कर्मों  में,
    शुचि संगत में ढ़ल कर देखो।

    त्याग  संतोष होश रखो जग,
    सचमें सदा मचल कर देखो।

    करूणा  दया  हया  मध्य रह,
    पग-पग नित संभलकर देखो।

    क्या करनाथा क्या कर डाला,
    अपना करखुद मलकर देखो।

    कपट  दम्भ  पाखंड -पाप से,
    पल-पल प्यारे टल कर देखो।

    बर्बादी   तज  बाबूराम  कवि,
    सभी प्रश्नों का हल कर देखो।

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    बाबूराम सिंह कवि,गोपालगंज,बिहार
       मोबाइल नम्बर- 9572105032
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  • तन की माया पर कविता – बाबूराम सिंह

    गजल

    तन की माया पर कविता

    तनआदमी का जग मेंअनमोल रतन है।
    बन जायेअति उत्तम बिगड़ा तो पतन है।

    सौभाग्य से है पाया जाने कब मिले,
    नर योनी में हीं कटता आवागमन है।

    सेवा, तपस्या ,त्याग मध्य ही राग अनुपम,
    शुभ गुणआचरणको जगत करता नमन है।

    सच्चाई अच्छाई से सुफल इसे बना लो,
    आखिर साथ जाता सिर्फ तनपै कफन है।

    सुख श्रोत सभी से सत्य मीठा वचन बोल,
    विष त्याग कवि बाबूराम झूठा वचन है।

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    बाबूराम सिंह कवि,गोपालगंज,बिहार
    मोबाइल नम्बर-9572105932
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