Tag: Hindi poem on Shri Ganesh Chaturthi

भाद्रपद शुक्ल श्रीगणेश चतुर्थी : गणेश चतुर्थी हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। यह त्योहार भारत के विभिन्न भागों में मनाया जाता है किन्तु महाराष्ट्र में बडी़ धूमधाम से मनाया जाता है। पुराणों के अनुसार इसी दिन गणेश का जन्म हुआ था।गणेश चतुर्थी पर हिन्दू भगवान गणेशजी की पूजा की जाती है। कई प्रमुख जगहों पर भगवान गणेश की बड़ी प्रतिमा स्थापित की जाती है। इस प्रतिमा का नौ दिनों तक पूजन किया जाता है। बड़ी संख्या में आस पास के लोग दर्शन करने पहुँचते है। नौ दिन बाद गानों और बाजों के साथ गणेश प्रतिमा को किसी तालाब इत्यादि जल में विसर्जित किया जाता है।

  • हरिपदी छंद में गणेश वंदन

    गणपति को विघ्ननाशक, बुद्धिदाता माना जाता है। कोई भी कार्य ठीक ढंग से सम्पन्न करने के लिए उसके प्रारम्भ में गणपति का पूजन किया जाता है।

    भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी का दिन “गणेश चतुर्थी” के नाम से जाना जाता हैं। इसे “विनायक चतुर्थी” भी कहते हैं । महाराष्ट्र में यह उत्सव सर्वाधिक लोक प्रिय हैं। घर-घर में लोग गणपति की मूर्ति लाकर उसकी पूजा करते हैं।

    विधान- 26 मात्रा प्रति चरण , चार चरण दो-दो सम तुकांत हो, 16-26 वीं मात्रा पर यति, चरणांत- गुरु गुरु 22

    गणेश
    गणपति

    हरिपदी छंद गणेश  वंदन

    प्रथम नमन हे गणपति देवा, तुम सबसे प्यारे।
    सकल सँवारो  काज गजानन, हे  देव  हमारे।
    शिव प्रियप्रथम पूज्य हे प्रभुजी,गौरी के जाए।
    एकदन्त करुणा के सागर, गणपति कहलाए।

    मोदक मिसरी, पान पताशा, से भोग लगाऊँ।
    विघ्न हरण हो सबसे  पहले, मैं तुम्हें मनाऊँ।
    तन के कष्ट सभी  प्रभु हरना, मेरी  मन पीरा।
    सृजन करूँ नित मैं छंदों का,बिनहुए अधीरा।

    मेरा सृजन बने सुन्दरतम, सब के हितकारी।
    दूर करो संशय  सब मेरे, प्रभु  भाव विकारी।
    पूजूँ प्रथम आपको  प्रभुवर, मैं तुम्हें मनाऊँ।
    वंदन हित हिय  करूँ समर्पित, चौपाई गाऊँ।

    विघ्न नही हो हे प्रभु लेखन, चरणों में आया।
    चाहूँ नित सत्यार्थ सुलेखन, यही भाव लाया।
    शिव सुत वंदन गौरी नंदन, हे  जग  के  देवा।
    गणपति करहुँ तुम्हारा वंदन,चरणों की सेवा।

    रिद्धि  सिद्धि  के  संग  पधारो, हे मेरे  दाता।
    हे  प्रभु  मेरे लेख सुधारो, शरणागति आता।
    गणनायक हे  देव  गणेशा, हे भव भयहारी।
    सेवा  तेरी  करूँ  हमेशा, मानस   शुभकारी।

    बाबूलालशर्मा विज्ञ
    बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ

    सिकंदरा, दौसा, राजस्थान

  • उत्सव की घड़ियाँ-मधुसिंघी

    गणपति को विघ्ननाशक, बुद्धिदाता माना जाता है। कोई भी कार्य ठीक ढंग से सम्पन्न करने के लिए उसके प्रारम्भ में गणपति का पूजन किया जाता है।

    भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी का दिन “गणेश चतुर्थी” के नाम से जाना जाता हैं। इसे “विनायक चतुर्थी” भी कहते हैं । महाराष्ट्र में यह उत्सव सर्वाधिक लोक प्रिय हैं। घर-घर में लोग गणपति की मूर्ति लाकर उसकी पूजा करते हैं।

    गणेश
    गणपति

    उत्सव की घड़ियाँ

    घड़ियाँ सुख की आज आई ,गणपति लाये उत्सव ।
    मन से मन को जोड़ने का, करना है हमको जतन।
    घड़ियाँ सुख की आज आई।

    1)विपदा कोई भी आ जाये,विघ्नहर्ता कर देते अंत।
    सच्चे दिल से नाम ले लो ,कट जायेंगे पाप अनंत ।
    घड़ियाँ सुख की आज आई।

    2)अभिलाषा कोई भी मन की,पूर्ण करते ये तुरंत।
    कृपादृष्टि हम पर होगी 2, तिर जायेंगे भव अनंत।
    घड़ियाँ सुख की आज आई।

    3)श्रद्धा तन मन से हमारी, हो जाये जीवन बसंत
    भक्ति सद्भावों से करते 2,खुशियाँ पायी है अनंत।

    घड़ियाँ सुख की आज आई,गणपति लाये उत्सव।
    मन से मन को जोड़ने का, करना है हमको जतन।
    घड़ियाँ सुख की आज आई।

    मधुसिंघी

  • गणपति अराधना- कवयित्री क्रान्ति

    गणपति अराधना

    विघ्नहारी मंगलकारी
    गणपति लीला अनेक-2

    सज रहे हैं मंडप प्रभु
    बज रहे हैं देखो ताल
    झूम रहे हैं भक्त तुम्हारे
    प्रभु कर उनका उद्धार
    विघ्नहारी…………….
    गणपति…………..2

    Ganeshji
    गणेशजी

    हर घर में तेरी छवि प्रभु
    तू ही सबका तारण हार
    दुखियों की झोली भर दे
    प्रभु कर इतना उपकार
    विघ्नहारी……………..
    गणपति……………..2

    जल रहे हैं दीपक प्रभु
    मिट रहा है अंधकार
    तेरे ही गुणगान से आज
    गूंज रहा देखो संसार
    विघ्नहारी…………
    गणपति…………….2

  • निषादराज के दोहे : जय गणेश 

    निषादराज के दोहे जय गणेश 

    जय गणेश जय गजवदन,कृपा सिंधु भगवान।
    मूसक वाहन  दीजिये, ज्ञान बुद्धि वरदान।।01।।

    शिव नंदन गौरी तनय, प्रथम पूज्य गणराज।
    सकल अमंगल को हरो,पूरण हो हर काज।।02।।

    हाथ जोड़ विनती करूँ, देवों के सरताज।
    भव बाधा सब दूर हो,ऋद्धि सिद्धि गणराज।।03।।

    मंगलकारी देव तुम,मंगल करो गणेश।
    जग वंदन तुम्हरे करें,काटो सबका क्लेश।।04।।

    गिरिजा पुत्र गणेश की,बोलो जय-जयकार।गणपति  मेरे  देव तुम, देवों  के  सरकार।।05।।

    मूसक  वाहन  साजते, एक दन्त  भगवान।
    नमन करूँ गणदेव जी,आओ बुद्धि निधान।।06।।

    प्रथम पुज्य  वन्दन करूँ, महादेव के लाल।
    ऋद्धि सिद्धि दाता तुम्हीं,तुम हो दीनदयाल।।07।।

    देवों  के  सरताज  हो, ज्ञान वान  गुणवान।
    गणपति बप्पा मोरिया,लीला बड़ी महान।।08।।

    तीन लोक चौदह भुवन,तेरी जय-जयकार।
    हे गणपति गणदेवता,हर लो दुःख अपार।।09।।

    सुर नर मुनि सब हैं भजे,तुमको हे शिव लाल।
    प्रमुदित माता पार्वती,जय हो दीन दयाल।।10।।

    कैलाशी शिव सुत सुनो,करो भक्त कल्याण।
    सब जन द्वारे आ खड़ा,आज बचालो प्राण।।11।।

    महादेव के  लाल तुम, सभी  झुकाते शीष।
    हम निर्धन लाचार हैं,दो हमको आशीष।।12।।

    गणनायक हे शंभु सुत,विघ्न हरण गणराज।
    सकल क्लेश संताप को,त्वरित मिटा दो आज।।13।।

    वक्रतुंड शुचि शुंड है, तिलक त्रिपुंडी भाल।
    छबि लखि सुर नर आत्मा,शिव गौरी के लाल।।14।।

    उर मणिमाला शोभते,रत्न मुकुट सिर साज।
    मोदक हाथ कुठार है, सुन्दर मुख गणराज।।15।।

    पीताम्बर तन पर सजे,चरण पादुका धार।
    धनि शिव ललना सुख भवन,मेरे तारणहार।।
    16।।

    ऋद्धि सिद्धि पति शुभ सदन,महिमा अमिट अपार।
    जन्म विचित्र चरित्र है, मूसक वाहन द्वार।।17।।

    एक रदन गज के बदन,काया रूप विशाल।
    पल में हरते दुःख को, हे प्रभु दीन दयाल।।18।।

    माता गौरा के तनय, ज्ञान बुद्धि भण्डार।
    गहे शरण प्रभु राखिये,हम हैं दीन अपार।।19।।

    शिवा शंभु के लाल तुम,करुणा बड़े निधान।
    विपदा  में  संसार  है, हरो  कष्ट  भगवान।।20।।
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    दोहाकार:-
    बोधन राम निषादराज”विनायक”
    सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

  • गणेश स्तुति गणनायक देवा,बिपदा मोर हरौ-बोधन राम निषादराज

    गणेश स्तुति

    ganesh chaturthi
    गणेश चतुर्थी विशेषांक

    जय गणेश गणनायक देवा,बिपदा मोर हरौ।
    आवँव तोर दुवारी मँय तो, झोली मोर भरौ।।1।।

    दीन-हीन लइका मँय देवा,आ के दुःख हरौ।
    मँय अज्ञानी दुनिया में हँव,मन मा ज्ञान भरौ।।2।।

    गिरिजा नन्दन हे गण राजा, लाड़ू हाथ धरौ।
    लम्बोदर अब हाथ बढ़ाओ,किरपा आज करौ।।3।।

    शिव शंकर के सुग्घर ललना,सबके ख्याल करौ।
    ज्ञानवान तँय सबले जादा,जग में ज्ञान भरौ।।4।।

    जगमग तोर दुवारी चमके,स्वामी चरन परौं।
    एक दंत स्वामी हे प्रभु जी,तोरे बिनय करौं।।5।।
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    छंदकार:-
    बोधन राम निषादराज”विनायक”
    सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)