गणपति को विघ्ननाशक, बुद्धिदाता माना जाता है। कोई भी कार्य ठीक ढंग से सम्पन्न करने के लिए उसके प्रारम्भ में गणपति का पूजन किया जाता है।
भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी का दिन “गणेश चतुर्थी” के नाम से जाना जाता हैं। इसे “विनायक चतुर्थी” भी कहते हैं । महाराष्ट्र में यह उत्सव सर्वाधिक लोक प्रिय हैं। घर-घर में लोग गणपति की मूर्ति लाकर उसकी पूजा करते हैं।
विधान- 26 मात्रा प्रति चरण , चार चरण दो-दो सम तुकांत हो, 16-26 वीं मात्रा पर यति, चरणांत- गुरु गुरु 22
हरिपदी छंद गणेश वंदन
प्रथम नमन हे गणपति देवा, तुम सबसे प्यारे।
सकल सँवारो काज गजानन, हे देव हमारे।
शिव प्रियप्रथम पूज्य हे प्रभुजी,गौरी के जाए।
एकदन्त करुणा के सागर, गणपति कहलाए।
मोदक मिसरी, पान पताशा, से भोग लगाऊँ।
विघ्न हरण हो सबसे पहले, मैं तुम्हें मनाऊँ।
तन के कष्ट सभी प्रभु हरना, मेरी मन पीरा।
सृजन करूँ नित मैं छंदों का,बिनहुए अधीरा।
मेरा सृजन बने सुन्दरतम, सब के हितकारी।
दूर करो संशय सब मेरे, प्रभु भाव विकारी।
पूजूँ प्रथम आपको प्रभुवर, मैं तुम्हें मनाऊँ।
वंदन हित हिय करूँ समर्पित, चौपाई गाऊँ।
विघ्न नही हो हे प्रभु लेखन, चरणों में आया।
चाहूँ नित सत्यार्थ सुलेखन, यही भाव लाया।
शिव सुत वंदन गौरी नंदन, हे जग के देवा।
गणपति करहुँ तुम्हारा वंदन,चरणों की सेवा।
रिद्धि सिद्धि के संग पधारो, हे मेरे दाता।
हे प्रभु मेरे लेख सुधारो, शरणागति आता।
गणनायक हे देव गणेशा, हे भव भयहारी।
सेवा तेरी करूँ हमेशा, मानस शुभकारी।
बाबूलालशर्मा विज्ञ
बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
सिकंदरा, दौसा, राजस्थान