इन कविताओं में योग के महत्व और उसके द्वारा मिलने वाले शारीरिक और मानसिक लाभों का वर्णन किया गया है। योग को एक सरल और प्रभावी उपाय के रूप में प्रस्तुत किया गया है जो न केवल शारीरिक स्वास्थ्य को सुधारता है बल्कि मानसिक शांति और संतुलन भी प्रदान करता है।
योग दिवस पर 3 कवितायेँ
योगा नित दिन करना है
योगा नित दिन करके हमको, तन-मन स्वस्थ बनाना है। दूषित पर्यावरण के प्रकोप से, खुद को हमें बचाना है।
यकृत, गुर्दा, हृदय रोगों को, पास न आने देना है। जीवन के इस भाग – दौड़ में, चाहे कितनी उलझन हो।
थोड़ा समय निकाल हमें भी, अनुलोम-विलोम करना है। खुद पर संयम रखकर हमको, शरीर संतुलित बनाना है।
दुर्लभ जीवन पाया हमनें, काया कंचन बनाना है। सारे व्याधियों को दूर भगाने, योगा नित दिन करना है।
रविबाला ठाकुर”सुधा”
आज से करना योगा
योगा के अभ्यास से,रोगमुक्त हो जाय। मन सुंदर तन भी खिले,पहला सुख वह पाय। पहला सुख वह पाय,निरोगी काया ऐसी। सावन की बौछार,सुखद होती है जैसी। अब तो मानव जाग ,अभी तक दुख क्यों भोगा? शुरू करो मिल साथ,आज से करना योगा।।
सुचिता अग्रवाल ‘सुचिसंदीप’
तिनसुकिया असम
योग मन का मीत है
करना नित अभ्यास फैला योग का प्रकाश योग है मरहम भी योग तो है साधना
प्रात: काल उठा करो योग खूब सारा करो बाद स्नान ध्यान करो योग है आराधना
कम खाओ गम खाओ सेहत खूब बनाओ मन के मालिक बनो रोगों को न थामना
स्वर्ण जैसा रहे तन सदा शुद्ध रहे मन देह धन हो संचित ऐसी रहे कामना
प्रकृति का हो वरण दोषों का हो निवारण जीवन में शांति रहे राज भोग कीजिये
तन सदा स्वस्थ रहे मन सदा स्वच्छ रहे व्यर्थ न हो धन व्यय ऐसा योग कीजिये
दूर करता तनाव शांत रहता स्वभाव दिनभर स्फूर्ति मिले सब लोग कीजिये
ध्यान चित्त का गीत है योग मन का मीत है लगा लो ध्यान आसन दूर रोग कीजिये *
धनेश्वरी देवांगन “धरा “
ये कविताएं सरल, प्रवाहमयी और प्रेरणादायक भाषा में रची गई हैं। कविताओं का उद्देश्य पाठकों को योग के लाभों से अवगत कराना और उन्हें इसे अपने दैनिक जीवन में अपनाने के लिए प्रेरित करना है।
कविताओं का सार:
इन कविताओं में योग के दैनिक अभ्यास से जीवन में आने वाले सकारात्मक परिवर्तनों का वर्णन किया गया है। योग के माध्यम से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है, और यह जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और खुशहाली का संचार करता है। ये कविताएं पाठकों को योग के प्रति जागरूक करने और इसे अपने जीवन का अभिन्न अंग बनाने की प्रेरणा देती हैं।
स्वतंत्रता दिवस पर कविता :- हर वर्ष 15 अगस्त को मनाया जाता है। सन् 1947 में इसी दिन भारत के निवासियों ने ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता प्राप्त की थी। यह भारत का राष्ट्रीय त्यौहार है। पूरे भारत में अनूठे समर्पण और अपार देशभक्ति की भावना के साथ स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है। देश के प्रथम नागरिक और देश के राष्ट्रपति स्वतंत्रता दिवस की पूर्वसंध्या पर “राष्ट्र के नाम संबोधन” देते हैं। इसके बाद अगले दिन दिल्ली में लाल किले पर तिरंगा झंडा फहराया जाता है, जिसे 21 तोपों की सलामी दी जाती है। इसके बाद प्रधानमंत्री देश को संबोधित करते हैं। आयोजन के बाद स्कूली छात्र तथा राष्ट्रीय कैडेट कोर के सदस्य राष्ट्र गान गाते हैं। लाल किले में आयोजित देशभक्ति से ओतप्रोत इस रंगारंग कार्यक्रम को देश के सार्वजनिक प्रसारण सेवा दूरदर्शन (चैनल) द्वारा देशभर में सजीव (लाइव) प्रसारित किया जाता है। स्वतंत्रता दिवस की संध्या पर राष्ट्रीय राजधानी तथा सभी शासकीय भवनों को रंग बिरंगी विद्युत सज्जा से सजाया जाता है, जो शाम का सबसे आकर्षक आयोजन होता है।
स्वतंत्रता दिवस पर कविता
स्वतंत्रता की मुस्कान
दो सौ वर्षों की गुलामी के बाद, हमारा भारत देश हुआ आजाद। गांधी – भगतसिंह थे जैसे वीर, कोई था गरीब कोई था अमीर। देश की आजादी के लिए भारतीय हुए कुर्बान, बड़ी शिद्दत से मिली है, स्वतंत्रता की मुस्कान।
अंग्रेजी अधिकारीयों की तानाशाही, हिन्दुस्तान पर जुल्म का कहर ढाई। चारों तरफ था अन्याय – अत्याचार, हिंसा से करते गोरे हुकूमत का प्रचार। देश की आजादी के लिए लोगों ने दी बलिदान। बड़ी शिद्दत से मिली है, स्वतंत्रता की मुस्कान।
लक्ष्मीबाई- दुर्गावती जैसी नारी – शक्ति, लोगों को सिखाया देश-प्रेम की भक्ति। सुभाषचंद्र बोस चंद्रशेखर की ऐसी थी कहानी, नाम सुनकर कांपते अंग्रेज और मांगते थे पानी। आजादी के लिए लाचार था भारत का इंसान, बड़ी शिद्दत से मिली है, स्वतंत्रता की मुस्कान।
संघर्ष को आगे बढ़ाए स्वतंत्रता – सेनानी, हो गए शहीद लेकिन कभी हार न मानी। मंगल पांडे खुदीराम बोस का था श्रेष्ठ योगदान, बड़ी शिद्दत से मिली है, स्वतंत्रता की मुस्कान।
संघर्ष – बलिदान है आजादी का सूत्र, कई स्त्रियों ने गंँवाई वीर भाई – पुत्र। हमें आजादी मिली है कई संघर्षों के बाद, मेरे देश वासियों इसे रखना तुम आबाद। सभी महापुरुषों का मैं करूं सहृदय गुणगान, बड़ी शिद्दत से मिली है, स्वतंत्रता की मुस्कान।
15 अगस्त को लहराओ शान से तिरंगा, न करो हिन्दुस्तान में धार्मिक द्वेष – दंगा। हिन्दू-मुस्लिम और सिख – ईसाई, हम आपस में हैं सब भाई – भाई। परोपकार से तुम भी बनालो अपनी पहचान, बड़ी शिद्दत से मिली है, स्वतंत्रता की मुस्कान।
अकिल खान
यूं ही नहीं ये तिरंगा महान है
यूं ही नहीं ये तिरंगा महान है। यही तो मेरे देश की पहचान है। हो गए कितने ही प्राण न्यौछावर इसके सम्मान में, आज भी इस तिरंगे के लिए सबकी एक हथेली पर जान है। मेरे दिलो जिस्मों जान से ये सदा आती है, ये तिरंगा ही तो मेरा ईमान है। मिट गए देश के खातिर कैसे -कैसे देश भगत यहाँ, गांधी,तिलक,सुभाष व जवाहर जैसे फूल इस तिरंगे की पहचान है। भूला नहीं सकता कभी ये देश इन वीर जवानों को, भगत सिंह,राज गुरु,सुखदेव जैसे वीर जवान इस तिरंगे के लिए हुए कुर्बान है। घटा अमृत बरसाती है , फिज़ा गीत सुनाती है, धरा हरियाली बिछाती है, कई रंग कई मज़हब के होकर भी सबके हाथो में,
एक ही तिरंगा और सबकी ज़ुबान पर एक ही गान है। उत्साह की लहर शांति की धारा बहाती है नदियां, हम भारतीय की पहचान बताती ये धरती सुनहरी नीला आसमान है। करते है वतन से मुहब्बत कितनी ना पूछो हम दीवानों से, वतन के नाम पर सौ जान भी कुर्बान है। एक ही तिरंगे के साये में कई तरह के फूल खिलते व खुशबू महकती है, रंग,नस्ल, जात, मज़हब भिन्न- भिन्न होकर भी एक ही धरा के हम बागबान है। लिखी जाती है मुहब्बत की कहानियां पूरी दुनिया में, मगर मुहब्बत का अजूबा ताज को बताकर मिलता हिंदुस्तान को स्वाभिमान है। ज़मी तो इस दुनिया में बहुत है पैदा होने के लिए, “तबरेज़” तू खुशनसीब है जिस ज़मी पर पैदा हुआ वो हिंदुस्तान है।
तबरेज़ अहमद बदरपुर नई दिल्ली
लहराता तिरंगा बजता राष्ट्रीय गान
कहीं लहराता तिरंगा बजता राष्ट्रीय गान कहीं कहीं कहीं देश के नारे शहीदों का सम्मान कहीं
पूजा थाली दीप सजाकर चली देश की ललनाएँ!! भैया द्वारे सूत खोलकर रक्षा की ले रही दुआएँ।।
रंग बिरंगी सजी थी राखी भीड़ लगी थी बाजारों में! खिली खिली देश की गली दो दो पावन त्यौहारों मे!
दोनों प्रहरी इस मिट्टी के संजोग ये कैसा आज है आई? इधर बहन की रक्षक बैठे उधर सीमा पर सैनिक भाई!
जाता सावन दुख भी देता फिर न मिलेगा ऐसा रूप! पल न बीते भादों आता ऐसा इनका जोड़ी अनूप!!
गोल थाल सी निकली चंदा सावन पुन्नी अति मनभावन! शिवशंकर का नमन करे सब बम बम भोले मंत्र है पावन!
शाम सबेरे दिन भर आनंद लो फिर आ गयी है रात! वत्स कहे शुभ रात्रि सभी को राम लला को नवाकर माथ!
– राजेश पान्डेय वत्स
तिरंगा हाथ में ले काफिला जब गुजरता है
तिरंगा हाथ में ले काफिला जब – जब गुजरता है । जवानी जोश जलवा देख शत्रु का दिल मचलता है।।
कसम है हिन्दुस्तां की जां निछावर फिर करेंगे हम, नज़र कोई दिखा दे तो लहू रग – रग उबलता है ।
महक सोंधी मिट्टी की जमीं मेरी सदा महकाये , सलामत खूब हिन्दोस्तां रहे झिल-मिल चमकता है।
जरूरत यदि पड़े तो सर कटा दें देश की खातिर , जवां इस देश पर कुरबान होने को तरसता है ।
अमन का ताज भारत पे खिले हरदम दुआ करते , तिरंगे फूल से आजाद गुलशन अब महकता है।
दुआ हो गर खुदा का हम जनम हर बार लेंगे अब , झुकाते शीष हम आशीष हरदम ही झलकता है ।
कहे दिल से “धरा” भी ,फ़क्र करते हैं वतन पर हम , तिरंगा हिन्द का अब चाँद पर भी फहरता है।
धनेश्वरी देवांगन धरा रायगढ़ छत्तीसगढ़
राष्ट्रीय पर्व पर कविता
तीन रंगों का मैं रखवाला खुशहाल भारत देश हो। मेरी भावनाओं को सब समझें ऐसा यह सन्देश हो।
जब-जब होता छलनी मेरा सीना मैं भी अनवरत रोता हूँ । मेरे दिल की तो समझो मैं भी कातर और ग़मज़दा होता हूँ। सब के मन को निर्मल कर दो प्यार का समावेश हो। मेरी भावनाओं को सब समझें मेरा यह सन्देश हो। तीन रंगों का मैं ….
जब मेरी खातिर लड़ते-लड़ते मेरे सपूत शहीद हो जाते हैं | मेरी ही गोद में सिमटकर वे सब मेरे ही गले लग जाते हैं। बोझिल मन से ही सही उन्हें सहलाऊँ ऐसा मेरा साहस हो। मेरी भावनाओं को सब समझें मेरा यह सन्देश हो। तीन रंगों का मैं ….
जाकर उस माता से पूछो जिसने अपना लाल गँवाया है। निर्जीव देह देखकर कहती मैंने एक और क्यों न जाया है | तेरे जैसी वीरांगनाओं से ही देश का उन्नत भाल हो। मेरी भावनाओं को सब समझें मेरा यह सन्देश हो। तीन रंगों का मैं ….
मेरे प्यारे देश को शूरवीरों की आवश्यकता, अनवरत रहती है । उन प्रहरियों की सजगता के कारण ही, सुरक्षित रहती धरती है । आ तुझे गले लगाऊँ, तुझ पर अर्पण सकल आशीर्वाद हों । मेरी भावनाओं को सब समझें मेरा यह सन्देश हो। तीन रंगों का मैं ….
मैं भी सोचा करता हूँ पर इस व्यथा को किसे सुनाऊँ मैं। छलनी होता मेरा सीना अपनी यह पीड़ा किसे दिखाऊँ मैं। देश की खातिर देह उत्सर्ग हो यही सबका अंतिम प्रण हो। मेरी भावनाओं को सब समझें मेरा यह सन्देश हो। तीन रंगों का मैं ….
श्रीमती वैष्णो खत्री (मध्य प्रदेश)
*पुलवामा हमले में शहीद को अश्रुपूरित विनम्र श्रद्धांजलि
आतंकी हमले की निंदा करके ये रह जाएंगे। और शहीदों की अर्थी पर पुष्प चढ़ाकर आएंगे।।
इससे ज्यादा कुछ नहीं करते ये भारत के नेता हैं। आज देश का बच्चा-बच्चा इन को गाली देता है।।
सीमा पार से आतंकी कैसे हमले कर जाते हैं? दिनदहाड़े देश के 40 जवान मर जाते हैं।।
सत्ता के सत्ताधारी अब थोड़ी सी तो शर्म करो। एक-एक आतंकी को चुनकर के फांसी पे टांक धरो।।
घटना सुनकर के हमले की दिल मेरा थर्राया है। सोया शेर भी आज गुफा से देखो कैसे गुर्राया है?
सैनिक की रक्षा हेतु अब कदम बढ़ाना ही होगा। संविधान परिवर्तित कर कानून बनाना ही होगा।।
कितनी बहिनें विधवा हो गई और कितनों का प्यार गया। उस माँ पर क्या बीती होगी जिसका फूलों सा हार गया।।
जितने हुए शहीद देशहित उनको वंदन करता हूं। उनके ही चरणों में मैं अपने शीश को धरता हूँ।।
दे दी हमें आजादी पर कविता
दे दी हमें आजादी तो , भुला देंगे क्या उनको l रहने को न मिला चैन से, हिन्दोस्तां में जिनको ll
खाईं जिन्होंने गोलियाँ , अनाज के बदले I हँस फाँसी स्वीकारी , सुख – चैन के बदले ll
गिल्ली , मैच , ताँश न भायी , खेल किया बन्दूक से l दुश्मन मुक्त कराया भारत , खून किया जब खून से ll
पड़ा मूलधन ब्याज चुकी न , नमन करें हम उनको l रहने को न मिला चैन से , हिन्दोस्तां में जिनको ll
जरा निकलकर बाहर आओ , अपनी इस तस्वीर से I उस भारत को फिर से देखो , सींचा जिसको खूँ – नीर से ll
नशा भयंकर बिना मधु के , आजादी के खातिर l कभी नींद औ भूख लगी न , राष्ट्र भक्ति के शातिर ll
आओ ‘माधव’ तुम्हें बुलाता , नत मस्तक है उनको l रहने को न मिला चैन से , हिन्दोस्तां में जिनको Il
सन्तोष कुमार प्रजापति “माधव”
मेरा देश महान
मेरा देश महान भैया ! मेरा देश महान ।। सिर पर मुकुट हिमालय का है पावँ पखारे सागर
पश्चिम आशीर्वाद जताता पूरब राधा नागर हर पनघट से रुन झुन छिड़ती मधुर मुरलिया तान ।।
नदिया झरने हर दम इसके कल कल सुर में गावे कनक कामिनी वनस्पति भी खिल खिल कर इठलावे
हर समीर हो सुरभित महके बिखरे जान सुजान ।।
इसकी हर नारी सावित्री हर बाला इक राधा नूतन अर्चन के छन्दों पर साँस साँस को साधा
प्रेम से पूजते मानव पत्थर बन जाते भगवान ।।
इसकी योगिक शक्ति को हर देश विदेश सराहावे इसकी संस्कृति को देखो झुक झुक शीश नवावे
जन गण मन का भाग्य विधाता गए तिरँगा गान ।।
रीति रिवाज अलग हैं इसके अलग अलग हैँ भाषा भारतवासी कहलाने की किन्तु एक परिभाषा
मिल जुल कर खेतों में काटती मक्का गेहूँ धान ।।
घायल की गति घायल जाने मीरा कहे दीवानी चुनरी का दाग छुड़ाऊँ कैसे
खरी कबीर की बानी मेरो मन कहाँ सुख पावे सही सूर का बान ।।
चहल पहल शहरों में इसके गाँवो में भोलापन जंगल मे नव जीवन इसके
बस्ती में कोलाहल कण कण में आकर्षण इसके हर मन मे एक आन ।।
सुशीला जोशी मुजफ्फरनगर
सबसे बढ़कर देशप्रेम है
प्रेम की वंशी, प्रेम की वीणा। प्रेम गंगा है……प्रेम यमुना ।।
प्रेम धरा की मधुर भावना। प्रेम तपस्या,प्रेम साधना ।।
प्रेम शब्द है,प्रेम ग्रंथ है । प्रेम परम् है,प्रेम अनंत है।।
प्रेम अलख है,प्रेम निरंजन । प्रेम ही अंजन,प्रेम ही कंचन।।
प्रेम लवण है , प्रेम खीर है । प्रेम आनंद औ’प्रेम ही पीर है।।
प्रेम बिंदु है,प्रेम सिंधु है । प्रेम ही प्यास,प्रेम अंबु है।।
प्रेम दुःखदायी,प्रेम सहारा । प्रेम में डूबो.. मिले किनारा ।।
प्रेम धरा की मधुर आस है । प्रेम सृजन है,प्रेम नाश है ।।
प्रेम मानव को ‘मानव’ बनाता । प्रेम शिला में.. ईश्वर दिखाता ।।
प्रेम दया है,प्रेम भाईचारा। प्रेम स्नेही….प्रेम दुलारा ।।
प्रेम प्रसून है,प्रेम गुलिस्तां । प्रेम से बनता पूरा हिंदोस्ताँ ।।
जित देखिए प्रेम ही प्रेम है पर सबसे बढ़कर देशप्रेम है ।।
निमाई प्रधान ‘क्षितिज’
प्राणों से प्रिय स्वतंत्रता….
शहीदों के त्याग,तप की अमरता हमें प्राणों से प्रिय है स्वतंत्रता! धमकी से ना हथियारों से, हमलों से अत्याचारों से, न डरेंगे,न झुकेंगे राणा की संतान हैं विजयी विश्व तिरंगा हमारी, आन, बान, शान हैं! अगणित बलिदानों से, अर्जित है स्वतंत्रता हमें प्राणों से……. नफरतों की आग से,फूंकते रहो बस्तियां, अफवाहों से,भय से बढ़ाते रहो दूरियां, गीता,कुरान संग पढ़ेंगे, मंदिर-मस्जिद दिलों में रहेंगे, सीने पर जुल्म की, चलाते रहो बर्छियां, अश्रु,स्वेद रक्त सिंचित स्वतंत्रता, हमें प्राणों से…… पैगाम अमन के देती रहूंगी, हर रोज संकल्प ये लेती रहूंगी, लहू से गीत आजादी के, वन्देमातरम लिखती रहूंगी, किसी कीमत पर स्वीकार नहीं परतंत्रता, हमें प्राणों से प्रिय है स्वतंत्रता….
डॉ. पुष्पा सिंह’प्रेरणा’ अम्बिकापुर, सरगुजा(छ. ग.)
मेरा देश सिखाता है
हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख ईसाई, हर मजहब से नाता है। सब धर्मों की इज्ज़त करना, मेरा देश सिखाता है।
इक दूजे के बिना अधूरे, हिन्दू मुस्लिम रहते हैं। खुद को मिलकर के बड़े, गर्व से हिन्दुस्तानी कहते हैं । दीवाली में अली जहां हैं, शब्द राम का रमजानों में आता है सब धर्मों की इज्ज़त करना, मेरा देश सिखाता है।
आजादी में की लड़ी लड़ाई , हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख ईसाई ने। सीने पर गोली खायीं हर, मजहब की तरुणाई ने । आजादी का श्रेय देश में, हर मजहब को जाता है। सब धर्मों की इज्ज़त करना, मेरा देश सिखाता है।
हिन्दू मस्जिद जाता है, मुस्लिम भी मंदिर जाते है। भारतवासी होने के , मिलकर संबंध निभाते हैं। हमको एक देखकर के, दुश्मन भी भय खाता है सब धर्मों की इज्ज़त करना, मेरा देश सिखाता है। रचयिता किशनू झा
आज तिरंगा लहरायेगा
आज तिरंगा लहरायेगा आजादी की शान। इसके नीचे पूरे होंगे दिल के सब अरमान। जय जय हिन्दुस्तान। जय जय वीर जवान।।
हुई गुलामी सहन नहीं तब, फूँक शंख आजादी का। अलख जगी भारत मे घर-घर, खून खौल गया वीरों का। सिर पर कफन बाँध कर निकले होने को बलिदान।
आज…..। इस….। जय…..।जय….।
वीर सावरकर ,तात्या टोपे, झाँसी की लक्ष्मी बाई। भगत सिंह आजाद वीर ने दुश्मन को ललकार लगाई। आजादी के महायज्ञ में हुए सभी बलिदान।।
आज….।इस…। जय…।जय…।
भारत के कोने-कोने में, जंग छिड़ी आजादी की। छोड़े घर -परिवार रिश्ते, राह चले आजदी की। सभी एक मंजिल के राही हिन्दू मुसलमान।।
आज…..।इस…। जय…।जय…।
अनमोल अपनी आजादी, बच्चों! तुम रखवाली करना। जाति धर्म का भेद भुलाकर, सदा एक होकर रहना। यही एकता देगी जग में भारत को पहचान।।
आज….।इस….। जय….।जय….।
पुष्पाशर्मा”कुसुम”
वह भारत देश हमारा है
जहाँ तिरंगा लहराता, मंदिर मस्जिद गुरुद्बारा है, वह भारत देश हमारा है ••••
उत्तर में गिरिराज हिमालय दक्षिण सागर लहराते , राम कृष्ण गौतम गाँधी की, दसों दिशा गाथा गाते , अविरल बहती जिस छाती में माँ गंगा की धारा है , वह भारत देश हमारा है!
भेदभाव है नहीं जहाँ पर सब जिसको माँ कहते हैं, एक डोर मन बँधे जहाँ पर जय भारत सब कहते हैं , प्रेम शाँति “गणतंत्र” हमारा दिया विश्व को नारा है, वह भारत देश हमारा है
वेद पुराण बसे कण-कण में विश्व गुरु कहलाता है, योग ज्ञान सारी दुनियाँ को जो भारत सिखलाता है, मानवता ही सत्य धर्म है जो भारत सिखलाता है फैला है जिस देश से”नीलम” आज यहाँ उजियारा है, वह भारत देश हमारा है!! नीलम सोनी सीतापुर,सरगुजा (छत्तीसगढ़)
हिन्दूस्तां वतन है
हिन्दूस्तां वतन है, अपना जहां यही है। यह आशियाना अपना, जन्नत से कम नहीं है। उत्तर में खड़ा हिमालय, रक्षा में रहता तत्पर।
चरणों को धो रहा है, दक्षिण बसा सुधाकर। मलयागिरि की शीतल, समीर बह रही है। हिन्दू स्तां…।यह….।
फल -फूल से लदे, तरुओं की शोभा न्यारी, महकी हुई है ,प्यारी केसर की खिलती क्यारी। कलरव पखेरुओं का, तितली उछल रही है। हिन्दू स्तां….।यह…।
अनमोल खजानों से ,वसुधा भरी है सारी। खेतों मे बिखरा सोना, होती है फसलें सारी। ये लहलहाती फसलें, खुशियाँ लुटा रही है। हिन्दू स्तां …।यह…।
मिट्टी में इसकी हम सब, पलकर बड़े हुये हैं। आने न आँच देंगे, ऐसा ही प्रण लिये हैं। मिट जायें हम वतन पर, तमन्ना यह रही है।
हिन्दू स्तां वतन है, अपना जहां यही है। यह आशियाना अपना, जन्नत से कम नहीं है।
पुष्पा शर्मा ” कुसुम’
तिरंगे की शान पर कविता
सिर्फ तिरंगा फहराने से, बढ़ेगी कैसे हमारी शान। जिन्होंने दी है कुर्बानियाँ, उनका करें सदा सम्मान।।
फले-फूले परिवार उनके, जो देश के लिए कुर्बान। पूरा समाज शिक्षित बने, सबके हों पूरे अरमान।।
प्रगति पथ पर बढ़ते रहें, पूरी दुनिया में पहचान। विज्ञान फलित होता रहे, मिले ज्ञान को सम्मान।।
हक बराबर सबको मिले, सबके लिए ये संविधान। ना जाति ना वर्गभेद रहे, हो अधिकार एक समान।।
सेदोका रचना विधान सेदोका 05/07/07 – 05/07/07 वर्णक्रम की षट्पदी – छः चरणीय एक प्राचीन जापानी काव्य विधा है । इसमें कुल 38 वर्ण होते हैं , व्यतिक्रम स्वीकार नहीं है । इस काव्य के कथ्य कवि की संवेदना से जुड़ कर भाव प्रवलता के साथ प्रस्तुत होने वाली यह एक प्रसिद्ध काव्य विधा है, जिसके आगमन से हिन्दी काव्य साहित्य की श्रीवृद्धि हुई है । उदाहरण स्वरूप मेरी एक सेदोका रचना यहाँ प्रस्तुत है, अवश्य देखें ——-
मरु प्रदेश मेघों का आगमन है, जीवन संदेश सूखे तरु का तन मन हर्षित अलौकिक ये वेश ।
टीप : वर्णक्रम – 05,07,07 – 05,07,07 । निर्दिष्ट भाव से आश्रित प्रत्येक पंक्तियाँ “हाइकु” की तरह स्वतंत्र होना इसकी एक महत्वपूर्ण विशेषता होती है । दो कतौते से एक सेदोका पूर्ण होता है । आपके श्रेष्ठ सेदोका कविता बहार पर आमंत्रित हैं ।
01) कोमल फूल सह जाते हैं सब व्यक्तित्व अनुकूल वरना कभी मसल कर देखो लहू निकालें शूल ।
02) कंटक पथ सफर पथरीला साथी संग जीवन कर लो साझा होगा लक्ष्य आसान मिलेगी सफलता ।
03) मरु प्रदेश मेघों का आगमन है, जीवन संदेश सूखे तरु का तन मन हर्षित अलौकिक ये वेश ।
04) बस गईं वे —- खयालों में जब से भले वो साथ नहीं पर हम तो उनके साथ रहे कभी अकेले नहीं ।
05) यादों के साये हवा के संग संग मानो खुशबू हैं ये भीतर आते बंद कर लो चाहे खिड़की दरवाजे ।
06) क्रय-विक्रय जीवन के सफर कुछ नहीं हासिल केवल व्यय जिम्मेदारी के हाट गिरवी पड़े ठाठ ।
07) बड़े अजीब खण्डहर निर्जीव देखने आते लोग चले जाते हैं यही अकेलापन है उसका नसीब ।
{08}
पेड़ों का दुःख कुल्हाड़ी की आवाज सुन कर मनुष्य रहता चुप धूप से तड़पती बूढ़ी पृथ्वी है मूक ।
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{09}
मौसमी मार पेड़ हुए निर्वस्त्र पत्तियाँ समा गईं काल के गाल फूटो नई कोंपलें क्यों करो इंतजार ?
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□ प्रदीप कुमार दाश “दीपक”
पद्ममुख पंडा स्वार्थी के सेदोका
प्रचण्ड गर्मी सहता गिरिराज पहन हिमताज रक्षक वह है हमारे देश का हमको तो है नाज़
वृक्षारोपण एक अभिवादन जो बना देता वन पर्यावरण सुरक्षित रखने खुश हो जाता मन
नाप सकते मन की गहराई काश संभव होता समुद्र में भी हो फसल उगाई ग़रीबी की विदाई
सत्यवादी जो परेशान रहता अग्नि परीक्षा देता पूरी दुनिया उसे हंसी उड़ाती वो चूं नहीं करता
अंधा आदमी मन्दिर चला जाता खुद को समझाता उसे देखने जो दिखता ही नहीं आंखों के होते हुए
उसके घर देर भी है सर्वदा अंधेर भी है सदा न्याय से परे मिलता परिणाम खास हो या कि आम
जो करते हैं अथक परिश्रम क्या थकते नहीं हैं? सच तो यह कि बिना थके कभी काम ही नहीं होता!!
अनवरत जीवन रथ चले सुबह सांझ ढले मज़ाक नहीं कि परिवार पले बिना आह निकले
मेरी कुटिया मुझे आराम देती मेरी खबर लेती बिजली नहीं तो भी प्रकाश देती ठंडक बरसाती
सत्यवादी जो परेशान रहता अग्नि परीक्षा देता पूरी दुनिया उसे हंसी उड़ाती वो चूं नहीं करता
अंधा आदमी मन्दिर चला जाता खुद को समझाता उसे देखने जो दिखता ही नहीं आंखों के होते हुए
उसके घर देर भी है सर्वदा अंधेर भी है सदा न्याय से परे मिलता परिणाम खास हो या कि आम
जो करते हैं अथक परिश्रम क्या थकते नहीं हैं? सच तो यह कि बिना थके कभी काम ही नहीं होता!!
अनवरत जीवन रथ चले सुबह सांझ ढले मज़ाक नहीं कि परिवार पले बिना आह निकले
मेरी कुटिया मुझे आराम देती मेरी खबर लेती बिजली नहीं तो भी प्रकाश देती ठंडक बरसाती
पद्म मुख पंडा स्वार्थी
धनेश्वरी देवांगन धरा के सेदोका
खिले कलियाँ नहा शबनम में फूलों के मौसम में अलि बहके बसंती बयार है अनोखा त्यौहार है ** कली मुस्काये कैसी है आवारगी? छायी है दीवानगी दिल दहके उमंग अपार है प्यारा -सा संसार है ** समा है हसीं मौसम है फूलों का आनंद है झूलों का गुल महके बागों में बहार है सोलह श्रृंगार है ** शाम मस्तानी
रूत है जवां- जवां गुल करे है बयां पिक चहके कली में निखार है फिज़ा में खुमार है
धनेश्वरी देवांगन ” धरा”
क्रांति की सेदोका रचना
जमाना झूठा बना साधु इंसान बेच रहा ईमान पैसों के लिए बन रहा हैवान होता है बदनाम।।
घिसे किस्मत चप्पल की तरह बदलता इंसान क्षण भर में बन जाता हैवान पैसों के लालच में।।
मां की मूरत लगे खूबसूरत चंद्रमा की तरह रौशन करें बच्चों के जीवन से छंटता अंधियारा।।
बने अमीर बेचकर जमीर कमाता है रुपया आज इंसान चैन के तलाश में खो बैठा है खुशियां।।
बगैर वस्त्र सड़क के किनारे ठिठुर रहा बच्चा कठिन घड़ी कोई न देता साथ जरूरत के वक्त।।
सड़क पर पेपरों से लिपटा अबोध बच्चा मिला सूरत प्यारा किस्मत का है मारा है कोई बेसहारा।।
होते सबेरे खगों का कलरव लगता बड़ा न्यारा नन्हा परिंदा भर रहा उड़ान गगन की तरफ।।