छतीसगढ़ दाई

छतीसगढ़ दाई गमकत  हे  संगाती     चंदन समान माटी        नदिया पहाड़ घाटी                    छतीसगढ़ दाई। लहर- लहर खेती     हरियर हीरा मोती         जिहाँ बाजे रांपा-गैंती                   गावै गीत भौजाई। भोजली … Read more

युवा वर्ग आगे बढ़ें

स्वामी विवेकानंद

युवा वर्ग आगे बढ़ें छन्द – मनहरण घनाक्षरी  युवा वर्ग आगे बढ़ें, उन्नति की सीढ़ी चढ़ें,       नूतन समाज  गढ़ें,               एकता बनाइये।  नूतन विचार लिए,   कर्तव्यों का भार लिए,         श्रम अंगीकार किए,                    कदम बढ़ाइए। आँधियाँ हैं सीमा … Read more

धरती हमारी माँ

धरती हमारी माँ हमको दुलारती है                  धरती हमारी माँ।                आँचल पसारती है                धरती हमारी माँ।   बचपन मे  मिट्टी खायी                फिर  हम  बड़े हुए। जब पाँव … Read more

वर्षा ऋतु (मनहरण घनाक्षरी) -सुश्री गीता उपाध्याय

विषय :- वर्षा ऋतु
विधा:-मनहरण घनाक्षरी
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सजल सघन बन,
उमड़ घुमड़ घन,
बिखर गगन भर-
देखो सखी आ गया।

घरर घरर घर,
गरज गरज कर,
तमक चमक हर-
दिशा चमका गया।

झरर झरर झर,
धरर धरर धर,
तरर बतर कर,
जल बरसा गया।

सरर सरर सर,
फरर फरर फर,
इधर उधर कर,
सबको भिगा गया।

दादुर टरर टर,
हर्ष पूर्ण स्वर भर
इत उत कूद कर,
खुशी दरसा गया।

सूखी माटी भीग चली,
बह गयी गली गली,
नार नदी सब बहे,
सर सरसा गया।

हल बैल बीज लिए,
खेत में कृषक गए,
नव गीत छेड़ रहे,
उमंग समा गया।

धरती सरस पगी ,
ममता छलक लगी,
बीज नव जीवन पा,
उठ कर आ गया।

—सुश्री गीता उपाध्याय
रायगढ़ छत्तीसगढ़