Tag: *जीवन पर कविता

  • मेरी जीवन यात्रा

    मेरी जीवन यात्रा

    मेरी ये यात्रा
    मुट्ठी बंद शून्य से
    अशून्य की ओर।
    जैसे ही नैन खुले,
    चाहिए खिलौने।
    और एक चमकता भोर।

    पाने की तलाश।
    जिसकी बुझे ना प्यास।
    ये कुछ पाना ही बंधन है ।
    पर जो मिल रहा
    मन कैसे कह दे
    सब धोखा है, उलझन है।

    ये जो घोंसला तिनकों का
    मेरी आंखो के सामने।
    जिसमें आराम है सुरक्षा है।
    ठंड में गरम
    और गर्म में शीतल ।
    लगता बहुत अच्छा है।

    मेहनत से जुटा
    जो कुछ भी
    लगती हमारी उपलब्धि ।
    पर जो बांट न सके
    उसका क्या वजन
    वो मात्र एक रत्ती।

    ये क्या अर्जन?
    ये क्या धन ?
    धिक ऐसा जीवन
    सब व्यर्थ गया।
    जो सौंप ना पाऊं मूल्य
    भावी जन को
    तो समझो सब अनर्थ गया।

    समय और स्वेद से
    जुटाए गये दो सिक्के।
    फेंके नहीं जाते आसानी से।
    घोंसला बना जो सुंदर
    पसीना है जिसमें
    बना तो नहीं महज बानी से।

    मुझे आभास था
    मैं खुश हूं।
    पर मेरा ज्ञान थोथा और उथला।
    जब जब डाल हिले
    आक्रांत होता भय से
    टिक ना पायेगा मेरा घोंसला।

    क्या यही जीवन का स्वाद
    मैंने जी भर खाया
    कराहता पेट फूलन से।
    समझा था स्वयं को
    मिश्री का दाना
    क्यों तरसता रह गया घुलन से।

    अच्छा होता
    उड़ जाता घोंसला
    बताता क्या होता जीवन?
    भूलभुलैया से मुक्त होता
    उड़ता बेबसी तोड़ के
    पा तो जाता मुक्त गगन।

    मैं टिकने के चक्कर में
    नापना ही भूल गया
    अपना ये सफर।
    निरर्थक बातों में
    जश्न ही मनाता
    इसीलिए दूर ही रह गया शिखर।

    अब मेरी यात्रा
    अशून्य से शून्य की ओर
    फिर मुड़ चला है।
    जैसे शाम की बेला में
    पंछी थक हार के
    वृक्ष को आ चला है।

    मनीभाई नवरत्न

  • जिंदगी पर हरिगितिका छंद

    Submit : 16 Sep 2022, 10:56 AM
    Email : [email protected]

    1. रचनाकार का नाम
      दूजराम साहू अनन्य
    2. सम्पर्क नम्बर
      8085334535
    3. रचना के शीर्षक
      जीनगी
    4. रचना के विधा
      हरिगितिका छंद
    5. रचना के विषय
      जिनगी
    6. रचना
      हरिगितिका छंद

    ये जिंदगी फोकट गवाँ झन , बिरथा नहीं जान दे ।
    आँखी अभी मा खोल तयँ हा, आघू डहर ध्यान दे ।
    तन फूलका पानी सही हे , बनय हाड़ा माँस के ।
    अनमोल जिंदगी कर लेवव, भरोसा नइ साँस के ।।

    दूजराम साहू अनन्य🙏🙏🙏

    1. रचनाकार का पता
      दूजराम साहू अनन्य,
      निवास -भरदाकला,
      पोष्ट- – बलदेवपुर
      जिला-खैरागढ़ ( छ.ग.)
  • जिंदगी एक पतंग – आशीष कुमार

    जिंदगी एक पतंग – आशीष कुमार

    उड़ती पतंग जैसी थी जिंदगी
    सबके जलन की शिकार हो गई
    जैसे ही बना मैं कटी पतंग
    मुझे लूटने के लिए मार हो गई

    सबकी इच्छा पूरी की मैंने
    मेरी इच्छा बेकार हो गई
    कहने को तो आसमान की ऊँचाईयाँ मापी मैंने
    चलो मेरी ना सही सबकी इच्छा साकार हो गई

    ऐसा भी ना था कि पाँव जमीन पर ना थे मेरे
    किसी ना किसी से मेरी डोर अंगीकार हो गई
    मगर जमाने भर की बुरी नजर थी मुझ पर
    मुझे काटने के लिए हर पतंग तैयार हो गई

    पंख लगाकर उड़ना था मुझे
    मेरी यह इच्छा स्वीकार हो गई
    जब तक साँस चली उड़ाया गया
    फिर यह जिंदगी मिट्टी में मिलने के लिए लाचार हो गई

    सबको खुशियाँ देता रहा मैं
    मेरी खुशियाँ सब पर उधार हो गई
    हर रंग देखा पल भर की जिंदगी में
    जाते-जाते सबकी यादें बेशुमार हो गई

                            – आशीष कुमार
                             मोहनिया बिहार

  • क्या भला रह जायेगा

    क्या भला रह जायेगा

    hindi gajal
    hindi gazal || हिंदी ग़ज़ल

    वो परिंदा, ये परिंदा, सब छला रह जायेगा
    क्या बचा था,क्या बचा है,क्या भला रह जायेगा | १ |

    एक दिन सारे ईमानों धर्म को भी बेचकर,
    आदमी अंदर से केवल खोखला रह जायेगा । २।

    आज का कोमल कमल जो खिल रहा है झील में,
    कौन जाने कल को केवल अधखिला रह जायेगा।३।

    वक्त के शायद किसी नाजुक गली या मोड़ पर,
    हर कोई बस जिंदगी में एकला रह जायेगा।४।

    स्मारकें बनकर कोई जो दिख रही ऊँची महल,
    बाद में स्मृति चिन्ह वो भी धुंधला रह जायेगा ॥५॥

    मानवों के हाथ की केवल कमाई कर्म है
    अंत ईश्वर हाथ सारा फ़ैसला रह जायेगा।६।