पिता पर कविता~बाबूलाल शर्मा
पिता पर कविता-बूलालशर्मा पिता ईश सम हैं दातारी। कहते कभी नहीं लाचारी। देना ही बस धर्म पिता का। आसन ईश्वर सम व्यवहारी।१ तरु बरगद सम छाँया देता। शीत घाम सब ही हर लेता! बहा पसीना तन जर्जर कर। जीता मरता…
कुण्डलियाँ छंद दोहा और रोला के संयोग से बना छंद है। इस छंद के ६ चरण होते हैं तथा प्रत्येकचरण में 24 मात्राएँ होती है।
पिता पर कविता-बूलालशर्मा पिता ईश सम हैं दातारी। कहते कभी नहीं लाचारी। देना ही बस धर्म पिता का। आसन ईश्वर सम व्यवहारी।१ तरु बरगद सम छाँया देता। शीत घाम सब ही हर लेता! बहा पसीना तन जर्जर कर। जीता मरता…
महर्षि वेद व्यासजी का जन्म आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को ही हुआ था, इसलिए भारत के सब लोग इस पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाते हैं। जैसे ज्ञान सागर के रचयिता व्यास जी जैसे विद्वान् और ज्ञानी कहाँ मिलते…
मतदाता पर कुण्डिलयाँ?? भाग्य विधाता भाग्य विधाता देश का, स्वयं आप श्रीमान।मिला वोट अधिकार है, करिये जी मतदान।।करिये जी मतदान, एक मत पड़ता भारी।सभी छोड़कर काम, प्रथम यह जिम्मेदारी।।कहे अमित यह आज, नाम जिनका मतदाता।मिला श्रेष्ठ सौभाग्य, आप ही भाग्य…
गुरू घासीदास छत्तीसगढ़ राज्य के रायपुर जिले के गिरौदपुरी गांव में पिता महंगुदास जी एवं माता अमरौतिन के यहाँ अवतरित हुये थे गुरू घासीदास जी सतनाम धर्म जिसे आम बोल चाल में सतनामी समाज कहा जाता है, के प्रवर्तक थे।
बेटी पर कविता बेटी जा पिया के घर , गुड़िया नहीं रोना । सजा उस घरोंदे को, साफ सुथरा रखना।। साफ सुथरा रखना, पति सेवा तुम…
कुण्डलिया की कुण्डलियाँ। ********************************कुंडलिया लिख लें सभी, रख कुछ बातें ध्यान।**दोहा रोला जोड़ दें, इसका यही विधान।**इसका यही विधान,आदि ही अंतिम आये।**उत्तम रखें तुकांत, हृदय को अति हरषाये।**कहे ‘अमित’ कविराज, प्रथम दृष्टा यह हुलिया।**शब्द चयन है सार, शिल्प अनुपम कुंडलिया।*…
पाप-कुण्डलियाँ निर्जन पर्वत में अगर , करो छुपाकर पाप ।आज नहीं तो कल कभी , …
अनेकता में एकता कविता (1)हमे वतन से प्यार है ,भारत देश महान।अनेकता में एकता , इसकी है पहचान।।इसकी है पहचान , ये है रंग रंगीला।मिल जाते सबरंग…
* धनतेरस * धनतेरस पर कीजिए , धन लक्ष्मी का मान ।पूजित हैं इस दिवस पर , …
अमित की कुण्डलियाँ माता भव भयहारिणी, करिये हिय भयहीन।*जगजननी जगदंबिका, जीवन कृपा अधीन।जीवन कृपा अधीन, मातु सुत तुम्हीं सम्हारो।विनती बारंबार, व्यथा से हमें उबारो।कहे ‘अमित’ कविराज, आप ही सुख-दुख दाता।सुनिये करुण पुकार, आज ओ मेरी माता। भव्य भवानी भाविनी, भवपाली…