महदीप जंघेल की कविता
महदीप जंघेल की कविता बचपन जीने दो भविष्य की अंधी दौड़ में,खो रहा है प्यारा बचपन।टेंशन इतनी छोटी- सी उम्र में,औसत उम्र हो गया है पचपन। गर्भ से निकला नहीं कि,जिम्मेदारी के बोझ तले दब जाते,आपको ये बनना है,वो बनना है,परिवार के लोग बताते। तीन साल के उम्र में ही,बस्ता का बोझ उठाते है।कंपीटिशन ऐसा … Read more