Tag: #सुकमोती चौहान ‘रूचि’

यहाँ पर हिन्दी कवि/ कवयित्री आदर० सुकमोती चौहान ‘रूचि’ के हिंदी कविताओं का संकलन किया गया है . आप कविता बहार शब्दों का श्रृंगार हिंदी कविताओं का संग्रह में लेखक के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा किये हैं .

  • बारिश पर कविता हिन्दी में

    बारिश पर कविता हिन्दी में

    यहां बारिश पर कविता हिन्दी में दिए जा रहे हैं आप इनको पढ़के आनंद लें।

    बारिश का मौसम

    सर सर सरसराता समीर
    चम चम चमकती चपला
    थम थम कर टपकती बूँदें
    अनेक सौगात लाती बहारें
    प्रेम का, खुशियों का
    बारिश के मौसम का।

    घनश्याम घिरे नभ घन में
    हरित धरा राधे की आँचल
    घनघोर बरसता पानी मध्य में
    लगता ज्यों खीर सागर बीच में
    बड़ी अड़चने हैं मिलन का
    बारिश के मौसम का।

    रिमझिम – रिमझिम लगी फुहार
    आई सावन की रसभरी बहार।
    थम – थमकर बहती बयार
    सावन की मनोहारी दृश्य से
    टूटा ध्यान योगी का
    बारिश के मौसम का।

    मूसलाधार जल वृष्टि के बाद
    प्रकृति के रूप सँवर निखरे
    ताल सरोवर पूरे, उछले
    पथ कीचड़ से लथपथ सने
    मुश्किलें भारी कहीं जाने का
    बारिश के मौसम का।

    मघा नक्षत्र की तीखी बौछार
    तन पर पड़ते हैं झर – झर
    स्पर्श की मधुर अहसास पल- पल
    मजा ही कुछ और होता है
    सावन में भीगने का
    बारिश के मौसम का।

    धसे धरा पर बीज जो
    सीना चिर बाहर निकले
    तिनके बिखरे हैं यहाँ – वहाँ
    हरी चूनर ओढ़ा सारा जहां
    सर्वत्र नज़ारा है हरियाली का
    बारिश के मौसम का।

    जब लगती दिन – रात की झड़ी
    थमती नहीं हरदम बरसती
    बाहर निकलना रुक जाता है
    घर के चबूतरे में बैठ तब
    आनंद लिया करते है वर्षा का
    बारिश के मौसम का।

    सुकमोती चौहान रुचि
    बिछिया, बसना , महासमुंद

    बारिश पर मुक्तक (सरसी छन्द)

    सुखद सुहाने ऋतु पावस में, पुलकित है हर गात,
    नदियाँ कलकल ताल लबालब, रिमझिम है बरसात,
    खिली हरित परिधान धरा, कौतुक करे समीर,
    मोहित हो धरती पर दिनकर, रंग बिखेरे सात।

    गीता द्विवेदी

    आओ प्रकृति की ओर

    आओ चलें  हम प्रकृति  की ओर,
    हमें कुछ कहती है, करती है शोर ।
    नित नित करो प्रकृति की सेवा,
    प्रकृति  देती है, जीवों  को मेवा ।।

    स्वस्थ जीवन शुद्ध हवा के लिए,
    दो वृक्ष लगाओ प्रकृति के लिए ।
    प्रकृति मां है  मां कह कर बुलाओ,
    अपना फर्ज निभाकर दिखलाओ ।।

    रखो पर्यावरण को शुद्ध सदा,
    बीमारियाँ नहीं मिलेगी यदा कदा ।
    सांसों में होगा चंदन का वास,
    पर्यावरण को तुम बना दो खास ।।

    पेड़ लगाओ जीवन बचाओ,
    हरियाली मन को मोह लेगी ।
    हरी-भरी होगी तेरी जीवन शैली,
    धरती माता न होगी फिर मैली ।।

    वर्षा देगी हमें, बूँदों की बौछार,
    खुशहाली होगी, होगा सुखद संसार ।
    हंसती हुई फसलें, मन को हर्षाएँगी,
    जगत के कण-कण, फिर मुस्कुरायेंगे ।।

    न  होगा  तपती धूप का प्रकोप,
    पेड़-पौधे मदमस्त हो झूमें नाचेंगे ।
    ताल तलैया मांदर  बजायेंगी ,
    मिलकर मीन दादुर तान‌ छेड़ेंगे ।।

    अनुपम होगी यह पृथ्वी मेरी,
    दिखेगी जैसी है वो रमा की सहेली ।।
    उजड़े मन में होगी बागों की बहार,
    खिल जायेगी आशाओं की कली ।।

    सुख समृद्धि अन्न धन से भरी धरा,
    रत्न से सुशोभित होती देखो जरा ।
    नीर-छीर का सागर से गहरा नाता,
    हरियाली जीव-जन्तु को है भाता ।।

    जब भी बारिश हँसते हुए आयेगी,
    देख खुशी खेतों में अंकुर फुटेंगे ।
    मन में होंगे उमंगों के तराने,
    ग्रीष्म में तरु मधुमास को लायेंगे ।।

    कुहूक-कुहूक गुंजेगी मीठी बोली,
    कोयल के संग-संग‌ मैं तो दोहराऊंगी ।
    आओ सुनो ननकी मिश्री की बात,

    प्रकृति से प्रकृति के साथ जुड़ जाऊंगी ।।

    ननकी पात्रे ‘मिश्री’
    [बेमेतरा, छत्तीसगढ़]

    बरसा आगे छत्तीसगढ़ी गीत


    गरजे बादर घनघोर,होगे करिया अंधियार…बादर छा गे–
    बिजुरी चमके अकास,बुझ गे भुंइया के प्यास…बरसा आगे—।।–।।


    नाचें रुख राई बन…..कूदें गर्रा घाटा…सूखा मर गे
    देवी देवंता आशीष..गिरे सूपा के धार…तरिया भर गे–।।–।।

    पीपर होंगे मतवार…भीजे डोली औ खार…पिंयरा परगे–
    कोयली कुहू कुहू…भवरा भूँउ..भूँउ….भुंइया तरगे—।।–।।

    खेते नांगर बईला…किसान होंगे हरवार… बीजा बिछ गे—
    ठंडा जीवरा परान…ठीना.फसल फरवार… आशा हो गे….।।–।।

    नाचे मन के मंजूर..होही धान भरपूर…आषाढ़ बार गे….
    सावन भादों के आस..तर गे धरती पियास…बरसा आ गे…।।–।।

    डॉ0 दिलीप गुप्ता

    प्रथम फुहार पर कविता

    आया शुभ आषाढ़, बदलने लगे नजारे |
    भीषण गर्मी बाद, लगे घिरने घन प्यारे ||
    देखे प्रथम फुहार, रसिक अपना मन हारे |
    सौंधी सरस सुगंध, मुग्ध हैं कविवर सारे ||
    सूचक है ग्रीष्मांत का, सुखद प्रथम बरसात यह |
    चंचल चितवन चाप को, मिला महा सौगात यह ||

    टपकी पहली बूँद, गाल पर मेरे ऐसे |
    अति अपूर्व अहसास, अमृत जलकण हो जैसे ||
    थिरक रहा मन मोर, हुआ अतिशय मतवाला |
    कृष्ण रचाये संग, रास लीला बृजबाला ||
    धरती लगती तृप्त है , गिरे झमाझम मेह है |
    शांत चराचर जग सभी, बरसा भू पर नेह है ||

    हरा भरा खुशहाल, मातु धरती का आँचल |
    उगे घास चहुँ ओर, गरजते घन घन बादल |
    हरियाली चहुँ ओर, हरित धरती की चूनर |
    प्रकृति करे श्रृंगार, लगा पत्तों की झूमर |
    धरती माँ के कोख में, फसल अकुंरित हो रहे |
    गर्भवती धरती हुई, सब आनंदित हो रहे ||

    सुकमोती चौहान रुचि

    पावस पर कविता

    पावस पनघट आज छलक रहा है।
    झर    रहा    नीर        बूँद  –  बूँद,
    प्रिय  स्मृति  से  मन    भींग रहा है।

    मैं  विरहिणी             प्रिय-प्रवासी,
    घन  पावस         तम-पूरित  रात।
    झूम-झूम   घन    बरस      रहे हैं,
    अलस – अनिद्रित  सिहरता गात।
    किसे  बताऊं         विरह-वेदना,
    सुख निद्रा से   जग रंग   रहा   है।

    झर    रहा    नीर        बूँद  –  बूँद,
    प्रिय  स्मृति  से  मन    भींग रहा है।

    झरती बूंदें,           तपता   तन है,
    विरह- विगलित   व्यथित मन है।
    चपला  चंचला      घन   गर्जन है,
    स्मृति-रंजित      उर स्पंदन   है।
    किसे दिखाऊँ      विकल चेतना,
    चेतन  विश्व तो    ऊंघ   रहा  है।

    झर रहा नीर          बूँद –  बूँद,
    प्रिय स्मृति से   मन  भींग रहा है।

    साधना मिश्रा,   रायगढ़-छत्तीसगढ़

    बादलो ने ली अंगड़ाई

    बादलो ने ली अंगड़ाई,
    खिलखलाई यह धरा भी!
    हर्षित हुए भू देव सारे,
    कसमसाई अप्सरा भी!

    कृषक खेत हल जोत सुधारे,
    बैल संग हल से यारी !
    गर्म जेठ का महिना तपता,
    विकल जीव जीवन भारी!
    सरवर नदियाँ बाँध रिक्त जल,
    बचा न अब नीर जरा भी!
    बादलों ने ली अंगड़ाई,
    खिलखिलाई यह धरा भी!

    घन श्याम वर्णी हो रहा नभ,
    चहकने खग भी लगे हैं!
    झूमती पुरवाई आ गई,
    स्वेद कण तन से भगे हैं!
    झकझोर झूमे पेड़ द्रुमदल,
    चहचहाई है बया भी!
    बादलों ने ली अंगड़ाई,
    खिलखिलाई यह धरा भी!

    जल नेह झर झर बादलों का,
    बूँद बन कर के टपकता!
    वह आ गया चातक पपीहा,
    स्वाति जल को है लपकता!
    जल नेह से तर भीग चुनरी,
    रंग आएगा हरा भी!
    बादलों ने ली अंगड़ाई,
    खिलखिलाई यह धरा भी!

    बाबू लाल शर्मा

    रिमझिम रिमझिम गिरता पानी

    रिमझिम रिमझिम गिरता पानी
    छमछम नाचे गुड़िया रानी
    चमक रही है चमचम बिजली
    छिप गईं है प्यारी तितली
    घनघोर घटा बादल में छाई
    सबके मन में खुशियाँ लाई
    नाच रहे हैं वन में मोर
    चातक पपीहा करते शोर
    चारों तरफ हरियाली छाई
    सब किसान के मन को भाई।

    अदित्य मिश्रा

    आया बरसात

    उमस भरी गर्मी को करने दूर,
    लेकर सुहावनी हवाऐं भरपूर।
    भर गया जल जो स्थान था खाली,
    सुखे मरूस्थल में भी छा गई हरियाली।
    भीग गए हर गली डगर – पात,
    मन को लुभाने, आया बरसात।

    कोयल कुहके पपीहा बोला,
    मोर नृत्य का राज खोला।
    काली घटा बदरा मंडरा गई,
    देख बावरी हवा भी शरमा गई।
    दामिनी करने लगी धरा से बात,
    मन को लुभाने, आया बरसात।

    कीट – पतंग और झींगुर की आवाज,
    आनंदित है प्राणी वर्षा का हुआ आगाज।
    सर्प – बिच्छू शुरू किए जीवन शैली,
    धरा के छिद्र से चींटियों की रैली।
    मेंढक की धुन से हो वर्षा की सौगात,
    मन को लुभाने, आया बरसात।

    भीगे धरा का एसा है वृतांत,
    साथ में है जीव कोई नहीं एकांत।
    सुखे हरे पत्तों में आयी मुस्कान,
    लेकर हल खेत चले किसान।
    करे स्वागत वर्षा का मानव जात,
    मन को लुभाने, आया बरसात।

    मछलियों की लगा जमघट,
    पक्षी – मानव करें धर – कपट।
    बच्चों की अनोखी कहानी,
    नाच उठे देख वर्षा का पानी।
    होती है सुन्दर मनभावन रात,
    मन को लुभाने, आया बरसात।

    कावड़ियों का ओंकारा,
    रथ – यात्रा का जयकारा।
    कुदरत का अनोखा रूप,
    कभी वर्षा कभी धूप।
    सोंचे मन बह जाऊँ हवा के साथ,
    मन को लुभाने, आया बरसात।

    – अकिल खान

    बरस मेघ खुशहाली आए

    बरसे जब बरसात रुहानी,
    धरा बने यह सरस सुहानी।
    दादुर, चातक, मोर, पपीहे,
    फसल खेत हरियाली गाए,
    बरस मेघ, खुशहाली आए।।

    धरती तपती नदियाँ सूखी,
    सरवर,ताल पोखरी रूखी।
    वन्य जीव,पंछी हैं व्याकुल,
    तुम बिन कैसे थाल सजाए,
    बरस मेघ, खुशहाली आए।।

    कृषक ताकता पशु धन हारे,
    भूख तुम्हे अब भूख पुकारे,
    घर भी गिरवी, कर्जा बाकी,
    अब ये खेत नहीं बिक जाए,
    बरस मेघ, खुशहाली आए।।

    बिटिया की करनी है शादी,
    मृत्यु भोज हित बैठी दादी।
    घर के खर्च खेत के हर्जे,
    भूखा भू सुत ,फाँसी खाए,
    बरस मेघ, खुशहाली आए।।

    कुएँ बीत कर बोर रीत अब,
    भूल पर्व पर रीत गीत सब।
    सुत के ब्याह बात कब कोई,
    गुरबत घर लक्ष्मी कब आए,
    बरस मेघ, खुशहाली आए।।

    राज रूठता, और राम भी,
    जल,वर्षा बिन रुके काम भी।
    गौ,किसान,दुर्दिन वश जीवन,
    बरसे तो भाग्य बदल जाए,
    बरस मेघ, खुशहाली आए।।

    सागर में जल नित बढ़ता है,
    भूमि नीर प्रतिदिन घटता है।
    सम वर्षा का सूत्र बनाले ,
    सब की मिट बदहाली जाए,
    बरस मेघ, खुशहाली आए।।

    कहीं बाढ़ से नदी उफनती,
    कहीं धरा बिन पानी तपती।
    कहीं डूबते जल मे धन जन,
    बूंद- बूंद जग को भरमाए,
    बरस मेघ ,खुशहाली आए।।

    हम भी निज कर्तव्य निभाएं,
    तुम भी आओ, हम भी आएं,
    मिलजुल कर हम पेड़़ लगाएं,
    नीर संतुलन तब हो जाए,
    बरस मेघ , खुशहाली आए।।

    पानी सद उपयोग करे हम,
    जलस्रोतो का मान करे तो।
    धरा,प्रकृति,जल,तरु संरक्षण,
    सारे साज– सँवर तब जाए,
    बरस, मेघ खुशहाली आए।।

    बाबू लाल शर्मा,बौहरा

    आया है बरसात

    आया है बरसात का मौसम,
    धोने सब पर जमीं जो धूल।
    चाहे ऊंचे बाग वृक्ष हों ,
    या हों छोटे नन्हें फूल।

    चमक रही अट्टालिकाएं,
    परत चढ़ी है मैल की ।
    बर्षा जल से धूल घुल जाय,
    अब तो पपड़ी शैल की।

    मन मंदिर भी धूमिल है,
    शमाँ भरा है धूंध से।
    देव भी अब चाह रहे हैं,
    पपड़ी टूटे जल बून्द से।

    मानवता भी लंबी चादर,
    ओढे है मोटी मैल की।
    दिव्यज्ञान बारिश हो तो,
    परत कटे अब तैल की।

    छाया वाले तरु भी देखो,
    हो गए हैं बड़े कटीले।
    ममता रूपी बून्द मिलेगा,
    छाया देंगे बड़े सजीले।

    प्रदूषण की मैल जमीं है,
    मानव नेत्र महान पर।
    इस बर्षा सब धूल घुल जाए,
    जमीं जो देश जहाँन पर।

    आशोक शर्मा,कुशीनगर,उ.प्र.

    उमड़ घुमड़ घन घिर सावन के

    उमड़ घुमड़ घन घिर सावन के,
    नभ से जल बरसाएँ।
    तपन हुई शीतल बसुधा की,
    सब के मन हरषाएँ ।।

    श्याम घटाअम्बर पर छाएँ,
    छवि लगती अति प्यारी।
    मघा मेघ अमृत बरसाएँ,
    मिटे प्रदूषण भारी ।।
    धुले गरल कृत्रिम जीवन का,
    प्रेम प्रकृति का पाएँ।
    उमड़ घुमड़ घन घिर सावन के,
    नभ से जल…..(1)

    हे घनश्याम मिटा दो तृष्णा,
    धरती और गगन की।
    बरसाओ घनघोर मेघ जल,
    देखो खुशी छगन की।।
    करदो पूर्ण मनोरथ जलधर,
    चातक प्यास बुझाएँ ।
    उमड़ घुमड़ घन घिर सावन के,
    नभ से जल……. (2)

    मन्द पवन झकझोरे लेती,
    चलती है इठलाती।
    शीत ताप वर्षा रितु पाकर,
    प्रकृति चली मदमाती।।
    सावन में घनश्याम पधारो,
    गीत खुशी के गाएँ।
    उमड़ घुमड़ घन घिर सावन के,
    नभ से जल…. (3)
    रमेश शर्मा

    रिमझिम वर्षा बूँद का संग्रह करो अपार



    पानी बरसे नित्य ही,
    आये दिन बरसात।
    जल से प्लावित है धरा,
    लगे फसल मत घात।।

    बादल आज घुमड़ रहे,
    करे ध्वनित अति शोर।
    बर्फ गिरे बरसात में,
    देख चकित हैं मोर।।

    वर्षा जल से तरु हरित,
    रूप शोभायमान।
    हरे भरे चहुँ ओर से,
    दिव्य दिखे खलिहान।।

    नित्य कृषक कर प्रार्थना,
    ईष्ट विनय करजोर।
    देख बरसते मेघ को,
    होता भाव विभोर।।

    रिमझिम वर्षा बूँद का,
    संग्रह करो अपार।
    कहे रमा ये सर्वदा,
    बुझे प्यास संसार।।

    मनोरमा चन्द्रा

    समझ ले वर्षारानी

    १३ मात्रिक मुक्तक
    . (वर्षा का मानवीकरण)

    बरस अब वर्षा रानी,
    बुलाऊँ घन दीवानी।
    हृदय की देखो पीड़ा,
    मान मन प्रीत रुहानी।

    हितैषी विरह निभानी,
    स्वप्न निभा महारानी।
    टाल मत प्रेम पत्रिका,
    याद कर प्रीत पुरानी।

    प्राण दे वर्षा रानी।
    त्राण दे बिरखारानी।
    सूखता हृदय हमारा,
    देह से नेह निभानी।

    तुम्ही जानी पहचानी,
    वही तो बिरखा रानी।
    पपीहा तुम्हे बुलाता,
    बनो मत यूं अनजानी।

    हार कान्हा से मानी,
    सुनो हे मन दीवानी।
    स्वर्ग में तुम रहती हाँ,
    तो हम भी रेगिस्तानी।

    सुनो हम राजस्थानी,
    जानते आन निभानी।
    समझते चातक जैसे,
    निकालें रज से पानी।

    भले करले मनमानी,
    खूब करले नादानी।
    हारना हमें न आता,
    हमारी यही निशानी।

    मान तो मान सयानी,
    यादकर पुरा कहानी।
    काल दुकाल सहे पर,
    हमें तो प्रीत निभानी।

    तुम्हे वे रीत निभानी,
    हठी तुम जिद्दी रानी।
    रीत राणा की पलने,
    घास की रोटी खानी।

    जुबाने हठ मरदानी,
    जानते तेग चलानी।
    जानते कथा पुरातन,
    चाह अब नई रचानी।

    यहाँ इतिहास गुमानी।
    याद करता रिपु नानी।
    हमारी रीत शहादत,
    लुटाएँ सदा जवानी।

    सतत देते कुर्बानी,
    हठी हे वर्षा रानी।
    श्वेद से नदी बहाकर,
    रखें माँ चूनर धानी,

    प्रेम की ऋतु पहचानी,
    लगे यह ग्रीष्म सुहानी।
    याद बाते सब करलो,
    करो मत यूँ शैतानी।

    निभे कब बे ईमानी,
    चले ईमान कहानी।
    आन ये शान निभाते,
    समझते पीर भुलानी।

    बात की धार बनानी,
    रेत इतिहास बखानी।
    तुम्ही से होड़ा- होड़ी,
    मेघ प्रिय सदा लगानी।

    व्यर्थ रानी अनहोनी,
    खेजड़ी यों भी रहनी।
    हठी,जीते कब हमसे,
    साँगरी हमको खानी।

    हमें, जानी पहचानी,
    तेरी छलछंद कहानी।
    तुम्ही यूँ मानो सुधरो,
    बचा आँखों में पानी।

    जँचे तो आ मस्तानी,
    बरसना चाहत पानी।
    भले भग जा पुरवैया,
    पड़ी सब जगती मानी।

    याद कर प्रीत पुरानी,
    झुके तो बिरखारानी।
    सुनो हम मरुधर वाले,
    रहे तो रह अनजानी।

    मान हम रेगिस्तानी,
    बरसनी वर्षा रानी।
    मल्हारी मेघ चढ़े हैं।
    समझ ले वर्षा रानी।

    बाबूलाल शर्मा

    धरती का सीना भिगोती है बारिश


    धरती का सीना भिगोती है बारिश।
    फूलों की मोती पिरोती है बारिश।
    अमृत बन प्यास बुझाती है बारिश ।
    कभी सैलाब लाके डुबोती है बारिश।
    मन मोर को भी लुभाती है बारिश ।
    नीड़ में छुपे पंछी को डराती है बारिश ।
    अन्न उगाकर जिंदगी संवारती है बारिश।
    कभी काली प्रतिमा से चिल्लाती है बारिश।
    रिमझिम छम छम गूंजती है बारिश ।
    कल कल झर झर कर झूमती है बारिश ।
    बाग के गुलशन उजाड़ती है बारिश।
    सिमटी हुई कली खिलाती है बारिश ।
    गंदगी भरे जग को नहलाती है बारिश।
    मच्छर मक्खी से महामारी फैलाती है बारिश ।
    कभी दोस्त कभी दुश्मन होती है बारिश ।
    प्रकृति से हाथापाई करती है बारिश।

    मनीभाई नवरत्न

  • विश्व बाल दिवस पर कविता

    विश्व बाल दिवस पर कविता

    जवाहरलाल नेहरू

    विश्व बाल दिवस पर दोहा:-

    बाल दिवस पर विश्व में,
    हों जलसे भरपूर!
    बच्चों का अधिकार है,
    बचपन क्यों हो दूर!!१


    कवि , ऐसा साहित्य रच,
    बचपन हो साकार!
    हर बालक को मिल सके,
    मूलभूत अधिकार!!२


    बाल श्रमिक,भिक्षुक बने,
    बँधुआ सम मजदूर!
    उनके हक की बात हो,
    जो बालक मजबूर!! ३

    बाबूलाल शर्मा

    अलबेला बचपन पर हास्य कविता

    मेरा बचपन बड़ा निराला,कुचमादों का डेरा था!
    अंतरमन में भरा उजाला,बाहर सघन अँधेरा था!


    खेतों की पगडँडियाँ मेरे,जोगिँग वाली राहें थी!
    हरे घास की बाँध गठरिया,हरियाली की बाँहें थी!
    चलता रहता में अनजाना,माँ बापू का पहरा था!
    मेरा बचपन बड़ा निराला,कुचमादों का डेरा था!!…….!!(१)

    गाय भैंस बहुतेरी मेरे,बकरी बहुत सयानी थी!
    खेतों की मैड़ों पर चरकर,बनती सबकी नानी थी!
    चरवाहे की नजरें चूकी,दिन में घना अँधेरा था!
    मेरा बचपन बड़ा निराला,कुचमादों का डेरा था!!……..!!(२)  

    साथी ग्वाले सारे मेरे, ‘झुरनी’ सदा खेलते थे!
    गहरी ‘नाडी’ भरी नीर से,मिलकर बहुत तैरते थे!
    चिकनी मिट्टी का उबटन था,मुखड़ा बना सुनहरा था!
    मेरा बचपन बड़ा निराला,कुचमादों का डेरा था!!…….!!(३)

    मोरपंख की खातिर सारे,बाड़ा बाड़ा हेर लिया!
    तब जाकर पंखों का बंडल,घर में मैनें जमा किया!
    एक रुपये में बेचे सारे,हरख उठा मन मेरा था!
    मेरा बचपन बड़ा निराला,कुचमादों का डेरा था!!……!!(४)

    ‘बन्नो’ की बकरी को दुहकर, हम छुप जाते खेतों में!
    डाल फिटकरी बहुत राँधते,और खेलते रेतों में!
    ‘कमली- काकी’ देय ‘औलमा’,दूध चुराया मेरा था!
    मेरा बचपन बड़ा निराला,कुचमादों का डेरा था!!……!!.(५)  

    भवानीसिंह राठौड़ ‘भावुक’
    टापरवाड़ा!!

    अच्छा था बचपन मेरा

    कहाँ फँस गए
    जिम्मेदारियों के दलदल में
    होकर जवान
    इससे तो अच्छा था
    बचपन मेरा

    न कोई दिखावा
    न कोई बहाना
    सब कुछ अपना ही अपना
    न मेरा
    न तेरा
    इससे तो अच्छा था
    बचपन मेरा

    सब कुछ मिल जाता था
    छोटी सी जिद्द से
    रोकर आँसू बहाने से
    अब तो
    बहाना पड़ता है पसीना
    शाम हो या सवेरा
    इससे तो अच्छा था
    बचपन मेरा

    सुबह खेलते, खेलते शाम
    न कोई चिंता
    न कोई काम
    हर एक का प्यारा
    हर कोई था प्यारा
    पर अब
    रिश्ते नाते भूल कर
    पैसे कमाने में
    बीत रहा जीवन तेरा
    इससे तो अच्छा था
    बचपन मेरा

    बलबीर सिंह वर्मा “वागीश”
    गॉंव – रिसालियाखेड़ा
    जिला – सिरसा (हरियाणा)

    नई सदी का बचपन

    न मिट्टी के खिलौनें,
    न वो पारम्परिक खेल।
    जहाँ पकड़म-पकड़ाई, छुपम-छुपाई
    चोर-सिपाही, बच्चों की रेल।
    अब न दादी के हाथ का मक्खन
    न नानी का वो दही-रोटा,
    राजा-रानी की कहानियाँ
    जो सुनाती थी दादी-नानी
    अब बन कर रह गई
    एक कहानी।


    स्कूल से सीधा पीपल पर जाना
    घंटो खेल खेलना और बतियाना
    मित्र मण्डली सँग घूमना
    वो बारिश में नहाना
    वो बच्चों का बचपन
    और बचपन की मस्ती
    न जाने कहाँ खो गई
    विज्ञान की इस नई सदी में
    शायद मोबाइल और कंप्यूटर
    के भेंट चढ़ गई।

    बलबीर सिंह वर्मा “वागीश”
    गॉंव – रिसालियाखेड़ा
    जिला – सिरसा (हरियाणा)


    मिट्टी जैसा होता है बचपन


    मिट्टी जैसा होता है बचपन
    जैसे ढालो ढल जाए
    कूट-पीट कर जैसा चाहो
    ये वैसा ही उभर आए!

    जल कर सोना कुंदन होता
    ऐसे ही बचपन कि कहानी
    जितना तपाए कुम्हार बर्तन को
    वो पक्का बनता उतना ही !!

    नवीन विचारों का प्रभाव
    ऐसा ही होता बचपन पर
    नीर पड़े जब माटी पर
    नव रूप मिले उसको नित पल !!!

    पक जाए बचपन बने जवानी
    जैसे तपे माटी सुहानी
    मिले गुण अब तक जो प्राणी
    वही फलेंगे पूरी जवानी !!!

    कुट ले पिट ले ऐ माटी तू
    बाद में न कहना कुम्हार से
    ‘मन’ तो थी बावरी बाबा
    तुम तो ‘मन’ को समझाते !!

    मंजु ‘मन’

    चाचा फिर तुम आओ ना

    चाचा नेहरु न्यारे थे
    हम बच्चों के प्यारे थे
    चाचा फिर तुम आओ ना
    हमको गले लगाओ ना

    दूर जहां तुम जाओगे
    बच्चों से मिल आओगे
    हमको साथ धुमाओ ना
    बच्चों से मिलवाओ ना,

    गुब्बारे हम टांगेंगे
    केक सभी हम काटेंगे
    नवम्बर चौदह आओ ना
    बाल दिवस मनवाओ ना,

    चाचा नेहरु सबके हो
    प्यार दुलार के पक्के हो
    स्वर्ग हमें दे जाओ ना
    प्यार हमें कर जाओ ना,

    तुम बच्चों में बच्चे हो
    अपने मन के सच्चे हो
    आशीषित कर जाओ ना
    हम पर प्यार लुटाओ ना,

    जन्म मुबारक तुमको हो
    हैप्पी हैप्पी बड्डे हो
    बांट मिठाई खाओ ना
    खुशियां मिल मनाओ ना।

    रचनाकार –रामबृक्ष बहादुरपुरी अम्बेडकरनगर यू पी

    बच्चे है कल का भविष्य

    बच्चे होते मन के सच्चे,

    है भविष्य के तारे,

    पढ़ते – लिखते – खेलते रहे,

    बने देश के सितारें |

    अच्छे – अच्छे पाठ इन्हे,

    है सिखाना हमे इन्हें,

    आसमा के तारो को,

    छुने का सपना इन्हे दिखाना हैं |

    प्रगति के मार्ग पर इन्हें बढ़ाना हैं,

    देश का भविष्य बदलना हैं,

    बच्चों को सजा सवार के,

    स्कुल हमे भेजना हैं|

    आज के बच्चे को कल का,

    देश का भविष्य बनाना हैं |

    जब मैं छोटा था – मनीभाई नवरत्न

    जब मैं छोटा था
    जब मैं छोटा था
    तब बहुत मोटा था ।
    तब ना थी चिंता ना जलन ना दर्द ।
    तब थी फटी हुई पेंट और नाक में सर्द ।

    आज फिर उसी पल को पाने की सोचता हूं ।
    गुमनाम जीवन में बचपन को खोजता हूं ।
    उस पल जब गिरता जमीन में
    तब उठाता कोई ।
    आज जब गिरता हूं तब दुनिया रहती खोई ।

    उस पल ऊटपटांग बातें
    दिल में घर कर जाती थी ।
    आज सच्ची कड़वी बातें
    नया संकट को लाती हैं
    तब नोट थे कागज के चिट्ठे ।
    जो लाती थी बेरकुट व नड्डे ।

    आज बन गए वे जिंदगी और जुनून ।
    जिसे पाने को लोग कर जाएं बंदगी और खून।
    बड़ा घिनौना ये जवानी की मारामारी ।
    बचपन में ही छुपी जीवन की खुशियां सारी ।

    तभी तो कहूं –
    “समाज को बाल अपराध से बचाएं ।
    बाल शिक्षा से उनको काबिल बनाए ।
    तब भ्रष्टाचार ना टिक पायेगी ।
    खुली बाजार में उसकी इज्जत लूट जाएगी।”

    मनीभाई नवरत्न

    हां मैं बच्चा हूं

    हां मैं बच्चा हूं ।
    अकल का थोड़ा कच्चा हूं।
    मुझे आता नहीं झूठ बोलना
    और फरेब करना
    मैं तो दिल से नेक और सच्चा हूं ।
    हां मैं बच्चा हूं ।
    ( मनीभाई रचित )

    बाल दिवस पर रुचि के तीन कविता

    1 बाल कविता – “बच्चे”

    बच्चों की आई बारी |
    है मस्ती की तैयारी ||
    आई छुट्टी गर्मी की |
    ठंडी – ठंडी कुल्फी की ||

    भोले -भाले प्यारे हैं |
    मीठे खारे तारे हैं ||
    कच्ची माटी के भेले |
    मिट्टी की रोटी बेलें ||

    छक्का मारे राहों में |
    टेटू छापे गालों में ||
    नाना -नानी आये हैं |
    ढेरों खाजे लाये हैं ||

    कवियित्री – सुकमोती चौहान “रुचि”

    2 भारत के वीर बच्चे हम

    भारत के वीर बच्चे हम
    वचन के पक्के,मन के सच्चे हम
    काट डालें अत्याचार का सर
    तलवार की वो धार हम।
    जला दें बुराइयों को
    आग की ओ लपटें हैं हम।
    उखाड़ दें अन्याय की जड़ें
    तूफान की ओ शबाब हम।
    बहा ले चलें गिरि विशाल
    नदी की हैं ओ सैलाब हम।
    मिलकर जिधर चलें हम
    बाधाओं से न डरें हम
    टकरायें हमसे किसमें है दम
    ओ मजबूत फौलाद हैं हम।
    वतन के रखवाले हम
    आजादी के मतवाले हम
    मातृभूमि के दुलारे हम
    वीरों ने अपने रक्त से सींचा
    उस चमन के महकते सुमन हम
    भारत के वीर बच्चे हम।

    कवियित्री – सुकमोती चौहान रुचि
    बिछिया, महासमुंद, छ. ग.

    3 शिशु

    कितनी अनुपम है यह छवि
    मस्ती में चूर अलबेली चाल
    कितनी प्यारी कितनी नाजुक
    नन्हें नरम हाथों की छुअन।
    क्या , है ऐसा कोमल? दुनिया का कोई स्पर्श?
    वह चपलता वह भोलापन
    प्यारी सूरत दर्पण सा मन
    पल में रोना पल में हँसना
    इतना सुखद इतना सुंदर
    क्या है ऐसा आकर्षक? दुनिया का कोई सौंदर्य?
    मन को आनंदित करे
    तुतली बातों की मिठास
    कितना मोहक ,कितना अनमोल
    अधरों की निश्छल मुस्कान
    क्या है ऐसा पावन? दुनिया में हँसी किसी की?
    पहले पग की सुगबुगाहट से
    थुबुक – थाबक चलना वह
    पग नुपूर की छन – छन में
    लहर सा नाचना वह
    बाल सुलभ वह चेष्टाएँ
    फीकी लगे परियों की अदाएँ
    क्या है इतना सुखदायी ? दुनिया का कोई वैभव विलास?

    कवियित्री – सुकमोती चौहान रुचि
    बिछिया, महासमुंद, छ. ग.

    बाल दिवस पर कविता के सामान आप के मन को आनंदित करे ऐसी कविता बहार की कुछ अन्य कविताये :- शाकाहारी दिवस पर कविता

  • गणतंत्र दिवस पर कविता

    गणतंत्र दिवस पर कविता

    गणतंत्र दिवस पर कविता : गणतन्त्र दिवस भारत का एक राष्ट्रीय पर्व है जो प्रति वर्ष 26 जनवरी को मनाया जाता है। इसी दिन सन् 1950 को भारत सरकार अधिनियम (1935) को हटाकर भारत का संविधान लागू किया गया था।

    Republic day

    गणतंत्र पर दोहा

    वीरों के बलिदान से,मिला हमें गणतंत्र।
    जन-जन के सहयोग से,बनता रक्षा यंत्र।।

    गणतंत्र दिवस हो अमर,वीरों को कर याद।
    अपनों के बलिदान से,भारत है आजाद।।

    भगत सिंह,सुखदेव को,नमन करे यह देश।
    आजादी देकर गए,सुंदर सा परिवेश।।

    आपस में लड़ना नहीं,हम सब हैं परिवार।
    बंद करें संवाद से,आपस के तकरार।।

    झंडा लहराते रहें,भारत की यह शान।
    गाएँ झंडा गीत हम,राष्ट्र ध्वज हो मान।।

    राजकिशोर धिरही

    गणतंत्र दिवस पर कविता

    सज रहा गांव गली

    सज रहा गांव गली, सज रहा देश।
    दिन ऐसा आया है ,  जो है विशेष।
    दुनिया बदल रही पल पल में।
    चलो आज हम भी  लगा लें रेस।
    जश्न ए आजादी का ,हम मनाएंगे
    चलो इक नया इंडिया, हम बनाएंगे ।
    तो आओ मेरे संग गाओ, मेरे यारा
    झूमते हुए लगालो ये नारा…
    वन्दे मातरम….


    सुनो सुनो ध्यान से, मेरी जुबानी।
    तकलीफ़ो से भरी, देश की कहानी।
    फिरंगियों ने की थी जो , मनमानी।
    पड़ गई जिनको  भी मुंह की खानी ।
    देश के वीरों का नाम, हम जगायेंगे।
    चलो इक नया इंडिया, हम बनाएंगे ।
    तो आओ मेरे संग गाओ, मेरे यारा
    झूमते हुए लगालो ये नारा…
    वन्दे मातरम….

    -मनीभाई नवरत्न

    जन गण मन गा कर देखो- राकेश सक्सेना

    बस एक बार छू भर कर देखो,
    दिल की तह से महसूस कर देखो,
    गांधी भगत पटेल की तस्वीर पर,
    ख़ून पसीने की बूंदें तो देखो।।

    कितना त्याग किया वीरों ने,
    तस्वीर में छिपी सच्चाई तो देखो,
    बीवी बच्चे परिवार का मोह,
    देश हित में छोड़ कर तो देखो।।

    भूखे-प्यासे जंगल बीहड़ों में,
    भटक-भटक जी कर तो देखो,
    मीलों पैदल चल चलकर,
    जनजन में भक्ति जगाकर देखो।।

    आज़ादी हमें मिली थी कैसे,
    एकबार तस्वीरें छू कर तो देखो,
    अनशन आंदोलन फांसी का दर्द,
    देशहित में मर कर तो देखो।।

    आज़ाद भारत में इतराने वालों,
    वीर सेनानियों के आंसू तो देखो,
    क्या हमने राष्ट्र धर्म निभाया,
    दिल पर हाथ रख कर तो देखो।।

    कालाबाजार, भ्रष्टाचारों से,
    मुक्त भारत के सपने तो देखो,
    वीर सेनानियों की तस्वीरों पर,
    सच्ची श्रद्धांजलि देकर भी देखो।।

    फिर गर्व से सर उठा कर देखो,
    फिर झण्डा ऊंचा लहराकर देखो,
    फिर दिल में भक्ति जगाकर देखो,
    फिर जन गण मन भी गा कर देखो।।

    राकेश सक्सेना

    आया दिवस गणतंत्र है

    आया दिवस गणतंत्र है
    फिर तिरंगा लहराएगा
    राग विकास दोहराएगा
    देश अपना स्वतंत्र है
    आया दिवस गणतंत्र है।
    नेहरू टोपी पहने हर
    नेता सेल्फ़ी खिंचाएगा।
    आज सत्ता विपक्ष का
    देशभक्ति का यही मन्त्र है
    आया दिवस गणतंत्र है।
    चरम पे पहुची मंहगाई
    हर घर मायूसी है छाई
    नौ का नब्बे कर लेना
    बना बाजार लूटतंत्र है
    आया दिवस गणतंत्र है।


    भुखमरी बेरोजगारी
    मरने की है लाचारी
    आर्थिक गुलामी के
    जंजीरो में जकड़ा
    यह कैसा परतन्त्र है
    आया दिवस गणतंत्र है।
    सरहद पे मरते सैनिक का
    रोज होता अपमान यहाँ
    अफजल याकूब कसाब
    को मिलता सम्मान यहां
    सेक्युलरिज्म वोटतंत्र है
    आया दिवस गणतंत्र है।
    सेवक कर रहा है शासन
    बैठा वो सोने के आसन
    टूजी आदर्श कोलगेट
    चारा खाकर लूटा राशन
    लालफीताशाही नोटतंत्र है
    आया दिवस गणतंत्र है।


    भगत -राजगुरु- सुभाष-गांधी
    चला आज़ादी की फिर आँधी
    समय की फिर यही पुकार है
    जंगे आज़ादी फिर स्वीकार है
    आ मिल कसम फिर खाते हैं
    देश का अभिमान जगाते हैं।
    शान से कहेंगे देश स्वतंत्र है
    देखो आया दिवस गणतंत्र है।


          ©पंकज भूषण पाठक”प्रियम”

    अमर रहे गणतंत्र दिवस

    अमर रहे गणतंत्र दिवस
    ले नव शक्ति नव उमंग
    अमर रहे गणतंत्र दिवस।
    ले नव क्रांति शांति संग।


    हो सबका ध्वज तले संकल्प।
    एक रहें हम नेक रहें।
    हो हम सबका एक विकल्प।
    ममता समता हो हम में


    नव भारत की नई नींव
    मज़बूत बनाएँ हम सबमें
    इस शक्ति का हो संचार
    कुर्बां होने की शक्ति हो।


    हममें निहित हो सदाचार।
    विश्व बंधुत्व पर कर विश्वास।
    ऐ बंधु कदम बढाये जा
    अंतिम श्वास तक नि:स्वार्थ।


    विश्व शांति की लिए मशाल।
    फैला दे जग में संदेश
    लिए विशाल लक्ष्य विकराल।
    जला दे अंधविश्वास की मूल।
    तोड़ दे जाति भाषा वाद।
    प्रगति के ये बाधक शूल।


    अमर रहे गणतंत्र दिवस।
    सच कर दो यह विश्वास
    अमर रहे गणतंत्र दिवस।

    • सुनील गुप्ता  सीतापुर सरगुजा छत्तीसगढ

    मैंने हिंदुस्तान देखा है

    मैंने जन्नत नहीं देखा यारों मैंने हिंदुस्तान देखा है
    भाईचारे से रहते हर हिंदू और मुसलमान देखा है
    गीता-क़ुरान रहते साथ और पवित्र गंगा कहते हैं
    हरे-भगवे की छोड़ बैर सब जय जय तिरंगा कहते हैं


    लहराओ तिरंगा और सब जय जयकार करो
    दुश्मन से ना लड़ो बुराइयों पर ही वार करो
    सलाम ऐसे सैनिक जो स्वार्थ नंगा कहते हैं
    घर वालों की फ़िकर छोड़ जय जय तिरंगा कहते हैं


    तीन रंग के झण्डे में अद्भुत सामर्थ्यता छाई है
    ना जाने कितनों ने इसकी ख़ातिर जान गवाई है
    इंक़लाबियों को याद कर सुनाओ उनकी कहानी
    गर्व से भरो सर्वदा भले ही आँख में ना आए पानी


    आज़ादी के ख़ातिर तुम भी हो जाओ मतवाले
    लड़ो अपने आप से बन जाओ हिम्मत वाले
    आज़ादी के दीवानों को कल हमने ये कहते देखा
    जय जय हिंदुस्तान के नारों को एक साथ रहते देखा

    -दीपक राज़

    नव पीढ़ी हैं हम

    नव पीढ़ी हैं हम हिन्दुस्तान के
    वंदे मातरम्,वंदे मातरम् गाएंगे

    सबसे बड़ा संविधान हमारा
    अम्बेडकर पर हमें है गर्व
    लोकतंत्र है अद्वितीय हमारा
    चलो मनाते हैं गणतंत्र पर्व
    आजादी के हैं परवाने
    वतन पे जान लुटाएंगे
    नव पीढ़ी हैं……

    हम हैं भारत माता के लाल
    हमारी बात ही कुछ और है
    दुनिया एक दिन मानेगी
    हम ही जमाने की दौर हैं
    हमारे हौसले हैं फौलादी
    कांटों में फूल खिलाएंगे
    नव पीढ़ी हैं…..

    अब होगा दिग्विजय हमारा
    शिखर पर परचम लहराएगा
    वो  दिन अब  दूर  नहीं है
    जब चांद पे तिरंगा छाएगा
    इरादे नेक हैं हमारे
    दुनिया को दिखलाएंगे
    नव पीढ़ी हैं……

    सुकमोती चौहान रुचि
    बिछिया,महासमुन्द,छ.ग.

    गणतंत्र दिवस पर कविता

    बोल वंदे मातरम्

    सांसों में गर सांसे है,
    और हृदय में प्राण है।
    अभिमान तेरा..है तिरंगा,
    और राष्ट्र..तेरी शान है।
    सिंह-सा दहाड़ तू…
    और बोल वंदेमातरम्…
    और बोल वंदेमातरम्….।


    है ये ओज की वही ध्वनि,
    जिससे थी अंग्रेजों की ठनी।
    हर कोनें-कोनें में जय घोष था,
    बाल-बाल में भरता जो रोष था।
    करके मुखर गाया जिसे सबने,
    वह गीत है वंदेमातरम्…..
    चल तू भी गा और मै भी गाऊं,
    हृदय के स्पंदन में वंदेमातरम्,
    और बोल वंदेमातरम्….
    और बोल वंदे मातरम्….।


    वीरों में जिसने अलख जगाया था,
    क्रांति लहर..को ज्वार दिलाया था।
    जिसने गगन में लहराया जय हिंद,
    वो राग है वंदे, वंदे मातरम्…
    वो राग है वंदे…..,वंदे मातरम्….।
    जिसे सुनकर शत्रु सारे कांपे थे,
    डरकर जिससे सरहद से वो भागे थे।
    गर्व करता है सैनिक जिसपे,
    वो जाप है अमर, वंदे मातरम्…।


    वो जाप है वंदे मातरम्,वंदे मातरम्।
    पंजाब,सिंध, गुजरात और मराठा,
    द्राविड़,उल्कल,बंग एकता का धार है।
    पहचान है हिन्द का है वंदेमातरम्,
    श्वास में जो ज्वाल सा निकले…,
    शब्द-शब्द में है जिसमें बसते मेरे प्राण हैं।
    वो गीत मेरा अभिमान है…..
    पुक्कू बोल जोर से वंदे मातरम्…..।।
    और बोल वंदे….मातरम्….।
    और बोल वंदे….मातरम्….।

        ©पुखराज यादव “प्राज”
           पता- वृंदावन भवन-163, विख- बागबाहरा,जिला- महासमुन्द (छ.ग.) 493448

    स्वतन्त्रता का दीप

    स्वतन्त्रता का दीप है ये दीप तू जलाये जा
    भारती जय भारती के गीत को तू गाये जा


    (१)
    अलख जो जग उठी है वो अलख है तेरी शान की
    ये बात आ खडी है अब तो तेरे स्वाभिमान की
    कटे नहीं,मिटे नहीं,झुके नहीं तो बात है
    अपने फर्ज पर सदा डटे रहे तो बात है
    तू भारती का लाल है ये भूल तो ना जायेगा
    जो देश प्रति है फर्ज अपने फर्ज तू निभाये जा !!
    भारती जय भारती के गीत को तू गाये जा !!

    (२)
    जो ताल दुश्मनों की है उस ताल को तू जान ले
    छुपा है दोस्तों में जो गद्दार तू पहचान ले
    भारती की लाज अब तो तेरा मान बन गयी
    नहीं झुकेंगे बात अब तो आन पे आ ठन गयी
    उठे नजर जो दुश्मनों की देश पर हमारे तो
    एक-एक करके सबको देश से मिटाये जा !!
    भारती जय भारती के गीत को तू गाये जा !!


    (३)
    मिली हमें आजादी कितनी माँ के लाल खो गये
    हँसते-हँसते भारती की गोद  जाके खो गये
    आजादी का ये बाग रक्त सींच के मिला हमें
    भेद-भाव में बँटे जो साथ में मिला इन्हें
    सौंप ये वतन गये जो हमसे उम्मीदें बाँध जो
    सँवार के उम्मींदे उनकी देश को सजाये जा !!
    भारती जय भारती के गीत को तू गाये जा !!
    स्वतन्त्रता का दीप है ये दीप तू जलाये जा !
    भारती जय भारती के गीत को तू गाये जा !!


    शिवाँगी मिश्रा

    भारत की शान पर हो जाऊंँ कुर्बान,
    लब पे सदा रहे भारत का गुणगान।
    देश के संविधान का एसा हुआ था आरंभ,
    26जनवरी1950 को गणतंत्र हुआ प्रारंभ।


    हिंदुस्तान है वीर पराक्रम योद्धाओं से भरा,
    देख युद्ध कौशल-साहस दुश्मन हम से डरा।
    बनो नेक इंसान न करो अनर्गल-बहस,
    मुबारक हो आप सभी को,गणतंत्र दिवस।

    इस आजादी की ख़ातिर कितने हुए बलिदान,
    मंगल पांडे लक्ष्मीबाई महात्मा गांधी जी महान।
    देश-प्रेम को अपनाकर देशद्रोहियों को भगाइए,
    परोपकार से नित-दिल में देश प्रेम को जगाइए।


    वीरों के पुत्र हो न,रखो हृदय में कशमकश,
    मुबारक हो आप सभी को,गणतंत्र दिवस।
    भारतीय सविधान के निर्माता को सादर नमन,
    भीमराव अंबेडकर जी थे स्वतंत्रता का चमन ।दुश्मन-अंग्रेजों की कूटनीति,हुआ था विफल,
    क्रांतिकारियों के कारण ये मुहिम हुआ सफल।


    मनाओ सभी 73वें गणतंत्र दिवस की-यश,
    मुबारक हो आप सभी को,गणतंत्र दिवस।

    हिंदुस्तान के सपूतों एक वादा करना,
    देश के दुश्मनों से हरगिज़ न डरना।
    नित करो अपने मातृभूमि से प्यार,
    देश रक्षा के लिए सदैव रहो तैयार।


    आतंकवाद-सांप्रदायिकता को दूर भगाओ,
    राष्ट्र रक्षा के लिए अभी से तैयार हो जाओ।
    दो सबको खुशियां न करो किसी को विवश,
    मुबारक हो आप सभी को,गणतंत्र दिवस।

    हिंदू-मुस्लिम,जैन-बौद्ध,और सिख-ईसाई,
    न करो लड़ाई आपस में है सब भाई-भाई।
    याद रखो,एकता में ही है बल और शक्ति,
    सदैव हृदय में रहे हिन्दुस्तान की भक्ति।


    देश के वीरों दिल में रहे देश भक्ति का रस,
    मुबारक हो आप सभी को,गणतंत्र दिवस।

    सब मिलकर फहराएं तिरंगा ये देश की शान है,
    सभी राष्ट्रों से अनमोल हमारा हिन्दुस्तान है।
    कहता है “अकिल” भारत देश है सबसे प्यारा,
    विश्व गुरू कहें-जन,सबके आंखों का है ये तारा।


    ज्ञान के प्रकाश से दूर हो अज्ञानता का तमस,
    मुबारक हो आप सभी को, गणतंत्र दिवस।

    अकिल खान

    गणतंत्र दिवस – डॉ एन के सेठी

    लोकतंत्र का पर्व मनाएं।
    सभी खुशी से नाचे गाएं।।
    दुनिया में है सबसे न्यारा।
    यहभारत गणतंत्र हमारा।।

    इसकी जड़ है सबसे गहरी।
    इसकी रक्षा करते प्रहरी।।
    सबसे बड़ा विधान हमारा।
    नमन करे जिसको जग सारा।।

    लोकतंत्र का महापर्व है।
    हमको इस पर बड़ा गर्व है।।
    भारत प्यारा वतन हमारा।
    ये दुनिया में सबसे न्यारा।।

    भिन्न – भिन्न जाती जन रहते।
    विविध धर्म भाषा को कहते।।
    नाना संस्कृतियों का संगम है।
    खुशियाँ होती कभी न कम है।।

    उत्सव अरु त्यौहार मनाते।
    इक दूजे से प्यार जताते।।
    नारी का सम्मान यहाँ है।
    मेहमान का मान यहाँ है।।

    वसुधा को परिवार समझते।
    सर्वसुख की कामना करते।।
    करती पावन गंगा-धारा।
    सूरज फैलाए उजियारा।।

    हम दुश्मन को गले लगाते।
    सबमिल गीत खुशी के गाते।।
    करता हमसे जो गद्दारी।
    मिटती उसकी हस्ती सारी।।

    रण में पीठ न कभी दिखाते।
    दुश्मन के हम होश उड़ाते।।
    त्याग शील पुरुषार्थ जगाएं।
    लोकतंत्र का मान बढ़ाएं।।

    ©डॉ एन के सेठी

    उत्सव यह गणतंत्र का

    उत्सव यह गणतंत्र का , राष्ट्र मनाये आज ।
    जनमानस हर्षित सकल , खुशी भरे अंदाज ।।
    खुशी भरे अंदाज , गगनभेदी स्वर गाते ।
    भारत भूमि महान , प्रणामी भाव दिखाते ।।
    कह ननकी कवि तुच्छ , असंभव सारे संभव ।।
    लालकिले से गाँव , सभी पर होते उत्सव ।।

    उत्सव में उत्साह का , दिखता प्यारा रंग ।
    तन मन की संलग्नता , दुनिया होती दंग ।।
    दुनिया होती दंग , किये हम काम अजूबे ।
    भारत बना अनूप , प्रेम के छंदस डूबे ।।
    कह ननकी कवि तुच्छ , सभी जन के अधरासव ।
    रंगबिरंगे दृश्य , बने अब प्यारे उत्सव ।।

    उत्सव के दिन आज है, गाओ मंगल गान ।
    जल थल अरु आकाश में , उड़े तिरंगा शान ।।
    उड़े तिरंगा शान , मोद से हर्षित सारे ।
    सजे धजे सब लोग , आज हैं अतिशय प्यारे ।।
    कह ननकी कवि तुच्छ , सभी सुख होते उद्भव ।
    झूमे धरती आज , मनाते है सब उत्सव ।।

    रामनाथ साहू ” ननकी “

    भारत गर्वित आज पर्व गणतंत्र हमारा

    धरा हरित नभ श्वेत, सूर्य केसरिया बाना।
    सज्जित शुभ परिवेश,लगे है सुभग सुहाना।।
    धरे तिरंगा वेश, प्रकृति सुख स्वर्ग लजाती।
    पावन भारत देश, सुखद संस्कृति जन भाती।।

    भारत गर्वित आज,पर्व गणतंत्र हमारा।
    फहरा ध्वज आकाश,तिरंगा सबसे प्यारा।।
    केसरिया है उच्च,त्याग की याद दिलाता।
    आजादी का मूल्य,सदा सबको समझाता।।

    सिर केसरिया पाग,वीर की शोभा होती।
    सब कुछ कर बलिदान,देश की आन सँजोती।।
    शोभित पाग समान,शीश केसरिया बाना।
    देशभक्त की शान,इसलिए ऊपर ताना।।

    श्वेत शांति का मार्ग, सदा हमको दिखलाता।
    रहो एकता धार, यही सबको समझाता।।
    रहे शांत परिवेश , उन्नति चक्र चलेगा।
    बनो नेक फिर एक,तभी तो देश फलेगा।।

    समय चक्र निर्बाध,सदा देखो चलता है।
    मध्य विराजित चक्र, हमें यह सब कहता है।।
    भाँति भाँति ले बीज,फसल तुम नित्य लगाओ।।
    शस्य श्यामला देश, सभी श्रमपूर्वक पाओ।।

    धरतीपुत्र किसान, तुम इनका मान बढ़ाओ।
    करो इन्हें खुशहाल,समस्या मूल मिटाओ।।
    रक्षक देश जवान, शान है वीर हमारा।
    माटी पुत्र किसान,बनालो राज दुलारा।।

    अपना एक विधान , देश के लिए बनाया।
    संशोधन के योग्य, लचीला उसे सजाया।।
    देश काल परिवेश ,देखकर उसे सुधारें।
    कठिनाई को देख, समस्या सभी निवारें।।

    अपना भारत देश, हमें प्राणों से प्यारा।
    शुभ संस्कृति परिवेश,तिरंगा सबसे न्यारा।।
    बँधे एकता सूत्र, पर्व गणतंत्र मनाएँ।
    विश्व शांति बन दूत,गान भारत की गाएँ।।

    गीता उपाध्याय’मंजरी’ रायगढ़ छत्तीसगढ़

    आओ मिलकर गणतंत्र सफल बनाएँ

    सागर जिसके चरण पखारे
    गिरिराज हिमालय रखवाला है
    कोसी गंडक सरयुग है न्यारी
    गंगा यमुना की निर्मल धारा है
    अनेकताओ में बहती एकता
    अदभुत गणतंत्र हमारा है
    केसरिया सर्वोच्च शिखर पर
    मध्य में इसके तो उजियारा है
    यह चक्र अशोक स्तंभ का देखो
    तिरंगे के नीचे में हरियाला है
    तीन रंग का ये अपना तिरंगा
    ये हम सबको प्राणों से प्यारा है
    वीर सपूतों की ये पावन धरती
    शहीदों ने स्व लहू से संवारा है
    जनता यहां करती है शासन
    अकेले आजाद वो रखबारा है

    आचार्य गोपाल जी

    प्यारा तिरंगा हमारा है

    रहे जान से भी प्यारा तिरंगा हमारा है |
    शहीदो खून से सींचा इसे सवारा है |
    झुकने ना देंगे लहर रुकने ना देंगे |
    पर्वतो शिरमोर हिमालय हमारा है |

    चरण पखारता सागर गरजता है |
    योगो युगो बहती गंगा नाम प्यारा है | 
    महाराणा लक्ष्मी रवानी शान कहानी है |
    आबरू वतन जंगल जीवन गुजारा है |

    गर्व हमे हम भारत के है लाल |
    हो पैदा वतन के वास्ते हम दुबारा है |
    चाल दुश्मनों  अब चलती  नही |
    दिया जवाब मुकम्मल हिन्द बहारा है |

    हो मजहब कोई सब भाई समझते है |
    पड़ी जरूरत वतन सबको पुकारा है |
    मिली आजादी लाखो कुर्बानियों सिला |
    रहे कायम यही स्वर्ग शहिदों इसारा है |

    आए चाहे कितनी आंधिया ओ तूफान |
    हम डिगे नहीं वतन परस्ती सहारा है |
    मांग लेगा जान वतन जब भी हमारी |
    रख हथेली गरदन खुद ही पसारा है |
    यूं ही चलती रहे जस्ने आजादी सदा |
    आंच आये माँ भारती नहीं हमको गवारा हैं |

    श्याम कुँवर भारती

    तिरंगे का सम्मान

    देशभक्ति का गीत आओ फिर दुहराते हैं
    पावन पर्व राष्ट्र का रस्मों रीत निभाते हैं।
    स्वतंत्र देश के गणतंत्र दिवस पर फिर से
    एक दिन के अवकाश का जश्न मनाते है।

    सूट-बूट में अफसर,नेता खादी लहराते हैं
    भ्रष्टाचार की कालिख़ खादी में छिपाते है।
    नौनिहाल बेहाल भूखे सड़क सो जाते हैं।
    भ्रस्टाचारी जेल में बैठ बटर नान उड़ाते हैं।

    सरहद पे जवान गोली से नहीं भय खाते हैं
    अपने देश के गद्दारों की गाली से घबराते हैं।
    राजनीति पर चौपाल पे चर्चा खूब कराते है।
    गन्दी है सियासत इसबात पे ठहाके लगाते है

    पर इस कचरे को साफ करने से कतराते हैं।
    घर आकर टीवी और बीबी से गप्पें लड़ाते हैं।
    सच्चाई सिसकती कोने में झूठे राज चलाते है
    भ्रस्टाचार के डण्डे में, झंडा तिरंगा फहराते हैं।

    तिरंगे को देना है तुझको अब सम्मान अगर
    देश का रखना है तुझको जो अभिमान अगर।
    आओ मिलकर फिर एक कसम हम खाते हैं।
    भय भूख और भ्रस्टाचार को देश से मिटाते है।

    जंगे-आज़ादी का गीत फिर एकबार दोहराते हैं।
    स्वाधीनता के गणतंत्र का फिर त्यौहार मनाते है।
    कट्टरता के जंजीरो से समाज को मुक्त कराते हैं
    वन्देमातरम जयहिंद का नारा बुलंद कर जाते है।

    भीतर बैठे गद्दारों को अब बेनक़ाब कर जाते हैं
    दुश्मन की छाती पर चढ़, राष्ट्रध्वज फहराते हैं।

    पंकज भूषण पाठक “प्रियम”

    आ गया गणतंत्र दिवस प्यारा

    जय जय भारत भूूमि तेरी जय जयकार

    आ गया गणतंत्र दिवस प्यारा, जश्न देश मना रहा।
    लहर लहर तिरंगा आज चहुंओर लहरा रहा।।
    स्वतंत्र गणराज्य से , सर्वोच्च् शक्ति भारत आज बन रहा।
    न्याय, स्वतंत्रता,समानता की कहानी विश्व पटल पर रख रहा।।

    एकता और अखंंडता की मिशाल बना हिंदुस्तान।
    बहु सांस्कृतिक भूमि,  संंप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य महान।।
    भाईचारा, बंंधुत्व की भावना यहां सदा पनपी हैं।
    भारत की सभ्यता संस्कृति तो सदा ही चमकी हैं।।

    नारी शक्ति सफलता के झंंडे नित गाड़ रही।
    सीमा पर दुश्मनों से सीधे टक्कर ले रही।।
    शिक्षा, स्वास्थ्य का आज रहा नहीं  हैं अभाव।
    हमें तो हैं इस भारत भूूमि से अटूट लगाव।।

    समाज, धर्म के साथ सब भाषाएं यहां पनप रही हैं।
    सांमजस्य पूूर्ण व्यवहार से मानवता यहां खिल रही है।।
    लाल किले की प्रराचीरें गणतंत्र संंग स्वतंत्रता की याद दिलाती है।
    गांव की गलियां भी दूूूधिया रोशनी में नहाती हैं।।

    गरीबी, बेेेेरोजगारी, अशिक्षा शनैै: शनैः मिट रहे हैं।
    भण्डार इस धरा के धान से नित भर रहे हैं।।
    याद आती हमेें शहीदों की कुर्बानी खूब।
    उग रही है आजादी की सांस में नयी दूब।।

    रंगीन अंदाज में खुलकर हम भारतवासी जीते हैं।
    आज  भी हम भावों से रीते हैं।।
    सरहद पर जवान धरती मांं की  रक्षा में मुस्तैद हैं।
    स्वतंत्र है, गणतंत्र हैैं, बेेेडियों में नहीं कैद हैं।

    सामाजिक, सांस्कृतिक,   राजनैतिक, आर्थिक रूप से भारत मजबूत हैं।
    भारत शांति, अहिंंसा का विश्व में असली दूत हैं।।
    आओ हम सब गणतंत्र का सम्मान करेें।
    स्वतंत्रता संग गणतंत्र पर अभिमान करें।।

    विजयी भव का आशीर्वाद हमने पााया हैं।
    खुद भी जागे हैंं,दूसरों को भी जगाया हैैं।।
    पल्लवित, पुुष्पित भारत माता,  सत्यमेव जयतेे हमारा गहना।
    हिंदी, हिन्दू, हिंदोस्तान, हम हैंं विश्वगुरू हमारा क्या हैं कहना।।

    जय जय भारत भूमि तेरी जय जयकार।
    जय जय भारत भूमि तेरी जय जयकार।।
    धार्विक नमन, “शौर्य”, असम

    सत्यमेव   जयते   का   नारा   भ्रष्टमेव   जयते  होगा

    राजनीति  का  दामन  थामे  अपराधों की चोली है|
    चोली चुपके से दामन के कान में कुछ तो बोली है|
    अपराधी  फल  फूल  रहे हैं  नोटों की फुलवारी में|
    नेता  खेला  खेल   रहे   हैं   वोटों   की  तैयारी  में|
    अपराधों  का  उत्पादन  है  राजनीति  के  खेतों में|
    फसल  इसी  की  उगा रहे नेता चमचों व चहेतों में|
    नाच  रही  है  राजनीति  अपराधियों  के प्रांगण में|
    नौकरशाही  नाच  रही  है  राजनीति  के आँगन में|
    प्रत्याशी चयनित होता है जाति धर्म की गिनती पर|
    हार-जीत निश्चित होती है भाषणबाजी  विनती पर|
    मुर्दा भी जिन्दा  होकर  मतदान  जहाँ कर जाता है|
    लोकतन्त्र का जिन्दा सिस्टम जीते जी मर जाता है|
    जहाँ   तिरंगे   के  दिल पर तलवार चलाई जाती है|
    संविधान  की  आत्मा  खुल्लेआम  जलाई जाती है|
    वोटों   का   सौदा   होता   है  सत्ता  की  दुकानों में|
    खुली  डकैती  होती  है  अब कोर्ट कचहरी थानों में|
    निर्दोषों  को  न्याय  अदालत  पुनर्जन्म  में  देती  है|
    दोषी   को   तत्काल   जमानत  दुष्कर्म  में  देती  है|
    शोषित जब  भी  अपने अधिकारों से वंचित होता है|
    लोकतंत्र  का  पावन  चेहरा  तभी  कलंकित होता है|
    भ्रष्टाचारियों का विकास जब दिन प्रतिदिन ऐसे होगा|
    सत्यमेव   जयते   का   नारा   भ्रष्टमेव   जयते  होगा|

    देशभक्ति  की  प्रथम निशानी सरहद की रखवाली है

    देशभक्ति  की  प्रथम निशानी सरहद की रखवाली है|
    हर  गाली से  बढ़कर  शायद  देश द्रोह  की  गाली है|
    जिनको  फूटी  आँख  तिरंगा  बिल्कुल नहीं सुहाता है|
    निश्चित   ही  आतंकवाद   से  उनका   गहरा  नाता है|
    राष्ट्रवाद   के  कथित  पुजारी   क्षेत्रवाद   के  रोगी  हैं|
    देश  नहीं  प्रदेश  ही  उनके  लिए  सदा  उपयोगी  हैं|
    महापुरुष  की  मूर्ति  तोड़ने  वाले  भी  मुगलों  जैसे|
    गोरी, बाबर, नादिर, गजनी, अब्दाली  पगलों   जैसे|
    मीरजाफरों, जयचन्दों, का  जब जब  पहरा होता है|
    घर  हो  चाहे  देश  हो  अपनों  से  ही खतरा होता है|
    पूत   कपूत  भले  होंगे  पर  माता  नहीं   कुमाता  है|
    ऐसा  केवल  एक  उदाहरण  मेरी   भारत  माता   है|
    माँ  की  आँखों  के  तारे  ही माँ को आँख दिखाते हैं|
    आँखों  में  फिर  धूल  झोंककर आँखों से कतराते हैं|
    भारत  माँ  के  मस्तक  पर  जब पत्थर फेंके जाते हैं|
    छेद हैं  करते  उस  थाली  में  जिस  थाली में खाते हैं|
    कुछ  बोलें  या  ना  बोलें  बस  इतना  तो हम बोलेंगे|
    देशद्रोहियों    की   छाती   पर    बंदेमातरम्   बोलेंगे|
    भारत माता  की  जय  कहने  से  जो  भी कतराते हैं|
    भारत   तेरे   टुकड़े    होंगे   कहकर   के   गुर्राते   हैं|
    ऐसे  गद्दारों  को  चिन्हित  करके  उनकी  नस तोड़ो|
    किसी  धर्म  के  चेहरे  को आतंकवाद से मत जोड़ो|

    प्रतिशोधों  की  चिंगारी  को  आग  उगलते  देखा है


    प्रतिशोधों  की  चिंगारी  को  आग  उगलते  देखा है|
    काले  धब्बे  वाला  उजला  धुँआ  सुलगते  देखा  है|
    नफरत का सैलाब भरा है पागल दिल की दरिया में|
    भेदभाव  का  रंग  भरा  है अब भी हरा केशरिया में|
    गौरक्षक  के  संरक्षण  में  गाय  को  काटा  जाता है|
    जाति-धर्म  के  चश्में  से  इन्सान  को बाँटा जाता है|
    धरती से अम्बर तक जिनकी ख्याति बताई जाती है|
    उन्हीं पवन-सुत की भारत में  जाति  बताई जाती है|
    जातिवाद  जहरीला   देखा  सामाजिक  संरक्षण  में|
    भारत   बंद   कराते   देखा   जातिगत  आरक्षण  में|
    हमने   जिन्दा  इंसानों  को  जिन्दा  ही  सड़ते  देखा|
    मुर्दों   को   हमने   कब्रों-शमशानों  में  लड़ते   देखा|
    देखा  हमने  धर्मग्रंथ  के  आयत  और  ऋचाओं को|
    ना  हो   दंगा,  नहीं   करेंगे  आपस  में  चर्चाओं  को|
    देख   लिया    धर्मान्धी   ठेकेदारों    वाली    पगदण्डी|
    देख  लिया  है  हमने  मुल्ला,पण्डित पापी पाखण्डी|
    धर्मान्धी   लिबास   पहन  जब   मानव   नंगा   होता  है|
    अमन-शान्ति की महफिल में फिर खुलकर दंगा होता है|

    आजादी गुलाम हुई


    फसल  बाढ़  में  चौपट  भी है  नहर खेत भी सूखे हैं|
    सबकी   भूख   मिटाने  वाले  अन्न-देवता   भूखे   हैं|
    सबका  महल  बनाने  वाले  मजदूरों  की  छतें  नहीं|
    पेड़  के  नीचे  सोते  परिवारों   के घर  के  पते  नहीं|
    उजियारे  के  बिन  अँधियारा   कैसा  दृश्य बनाएगा|
    फुटपाथों  पर  भूखा बचपन कैसा भविष्य बनाएगा|
    माँ  के  गहने  बेंच  के  शिक्षा  सब  पूरी करते देखा|
    पी. एच. डी.  बेरोजगार  को  मजदूरी  करते  देखा|
    पाकीज़ा   रिश्तों   को   हमने  तार-तार  होते  देखा|
    अपनी  अस्मत  को  लुटते  एक  बेटी को रोते देखा|
    दरिन्दगी,  वहशी,  हैवानी,  लालच बुरी निगाहों पर|
    घर  में जलती  बहू, बहन-बेटी  जलती  चौराहों  पर|
    नही  समझ  में  आता  है  अब  सुबह हुई या शाम हुई|
    गुलामी    आजाद   हुई   या   आजादी    गुलाम   हुई|
                  —-“अली इलियास”—-

    चलो तिरंगा लहराएँ

    गणतंत्र दिवस का नया सबेरा,   
    यूँ ही ना मुस्काया।
              चढ़े सैकड़ों बलिवेदी पर, 
              तब ये शुभदिन आया।
    लाखों जुल्म सहे हमने,
    तब आजादी को पाया।
                विधि लिखा विद्वानों ने,    
                भारत गणतंत्र बनाया।
    जन मन के प्राँणों से प्यारा, 
    भारत देश सजाया।

             श्रद्धा से कर वंदन उनको, 
               आज प्रदीप जलाएँ।

    उनके तप का पावन ध्वज,  
    चलो तिरंगा लहराएँ।
                 रविबाला ठाकुर”सुधा”

  • होली पर कविता

    होली पर कविता

    होली पर कविता होली वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण भारतीय और नेपाली लोगों का त्यौहार है। यह पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। प्राचीन काल में लोग चन्दन और गुलाल से ही होली खेलते थे। समय के साथ इनमें भी बदलाव देखने को मिला है। कई लोगों द्वारा प्राकृतिक रंगों का भी उपयोग किया जा रहा है, जिससे त्वचा या आँखों पर किसी भी प्रकार का कुप्रभाव न पड़े। टीवी9 भारतवर्ष द्वारा घर पर होली के रंग बनाने एवं रासायनिक रंगों से दूर रहने की सलाह दी गई है।

    होली पर कविता

    होली पर कविता

    होली की छाई है गजब की खुमारी
    लाल लाल दिखे सब नर नारी.

    देवरजी ने हरा रंग डाला
    ननदजी ने पीला रंग डाला
    जीजाजी ने गुलाबी रंग डाला
    सिंदूरी रंग पे हाय ये दिल हारा
    होहह पियाजी का रंग सब पे है भारी
    होली की छाई है गजब खुमारी
    लाल लाल…..

    पीकर भांग नागिन सी हुई चाल
    रंग बिरंगे रंगरसिया लगे सबके गाल
    विदेशिया लगे स्टाइल इन्द्रधनुषी बाल
    बुढ़े लगाते ठुमके ताल में दे ताल
    होहह रंग उड़े फूल बरसे फूलवारी
    होली की छाई है ….
    लाल लाल….

    गर्म गर्म बड़ा पकोड़े टमाटर की चटनी
    गिलास गिलास ठंढ़ाई पापड़ी की चखनी
    मीठी मीठी गुझिंया ,चीनी की चाशनी
    खट्टी मिट्ठी नमकीन लगती हो सजनी
    होहह इस बार की होली है बड़ी करारी
    होली की छाई है…
    लाल…..

    ✍ सुकमोती चौहान रुचि
    बिछिया,महासमुन्द,छ.ग.

    होली आई रे

    होली आई रे, आई रे, होली आई रे !

    तन-मन में उमंग भर लाई रे !

    रंग बरस रहा है, रस बरस रहा,

    जन-मन का मगन मन हरष रहा,

    नव रंगों के कलश भर लाई रे !

    नवनीत-से गाल, गुलाल-भरे,

    गोरी झांक रही खिड़की से परे,

    चोरी-चोरी से नजर टकराई रे !

    रण-भूमि में रंग बसंत का था,

    पथ तेरा सिपहिया अनंत का था,

    तुझे मिली विजय सुखदाई रे !

    हवन करें, पापों

    o आचार्य मायाराम ‘पतंग’

    हवन करें, पापों तापों को, देशप्रेम ज्वाला में ।

    कपट, ईर्ष्या, द्वेष, घृणा, भूले स्नेहिल हाला में ॥

    शीतजनित आलस्य त्यागकर, सब समाज उठ जाए।

    यह मदमाती पवन आज तन-मन में जोश जगाए ।

    थिरक उठें पग सभी जनों के मिलकर रंगशाला में ।

    कपट, ईर्ष्या, द्वेष, घृणा, भूले स्नेहिल हाला में ॥

    भाषा और प्रांत भेदों की हवा न हम गरमाएँ ।

    छूआछूत की सड़ी गंध से, मुक्त आज हो जाएँ।

    पंथ, जाति का तजकर अंतर, मिलें एक माला में ।

    कपट, ईर्ष्या, द्वेष, घृणा, भूले स्नेहिल हाला में ॥

    भारत भू के कण-कण में, धन प्रेमसुधा बरसाएँ ।

    गौरवशाली राष्ट्र परम वैभव तक हम ले जाएँ ।

    मिट जाए दारिद्र्य, विषमता, परिश्रम की ज्वाला में।

    कपट, ईर्ष्या, द्वेष, घृणा, भूले स्नेहिल हाला में ।

    हवन करें पापों तापों को, देशप्रेम ज्वाला में ॥

    बह चली बसंती वात री।

    बह चली बसंती वात री।
    मह मह महक उठी सब वादी
    खिल उठी चांदनी रात री।

    सब रंग-रंग में रंग उठे
    भर अंग अंग में रंग उठे
    रग रग में रंग लिए सबने
    उड़ उठा गगन में फाग री।

    हो होकर हो-ली होली में
    प्रिय प्यार लुटाते टोली में
    मैं प्रेम रंग में रंग उठी
    चल पड़ी प्रिय के साथ री।

    ये लाल गुलाबी रंग हरे
    कर दे जीवन को हरे-भरे
    जीवन खुशियों से भर जाए
    लेके हाथों में हाथ री।

    आओ कुछ मीठा हो जाए
    अपनेपन में हम खो जाए
    बजे तान,तन- मन में तक- धिन
    गा गाकर झूमे गात री।

    हर दिन हो होली का उमंग
    चढ़ जाए सारे प्रेम रंग
    जल जाए जीवन की चिंता
    हो जाए तन मन साफ री।

    जीवन के रंग पर रंग चढ़े

    सबके मन में सौहार्द बढ़े
    प्रेम रंग चढ़ जाए इते कि
    मिट जाए मन की घात री।

    रचनाकार -रामबृक्ष बहादुरपुरी अम्बेडकरनगर यू पी

    अपनी जिंदगी की शानदार  होली

    होली तो बहाना है – मनीभाई

    पिया से मिलने जाना है।
    ओ….हो..हो….
    पिया से मिलने जाना है।
    होली तो…बहाना है।
    सबसे हसीन… सबसे जुदा
    उससे  रिश्ता …बनाना है।
    पिया से मिलने जाना है…

    हाथों में तेरे….चुड़िया छन छन बजे।
    पैरों में तेरे …पायलिया छम छम बजे।
    रंग लगाके उसके गालों में…
    और भी सजाना है।
    होली तो…. बहाना है।
    पिया से मिलने जाना है।

    हरा गुलाबी…. लाल लगाऊंगा।
    अपने हाथों से…. गुलाल लगाऊँगा
    आंचल में उसके.. प्यार भीगाके
    गले से उसे लगाना है।
    होली तो … बहाना है।
    पिया से मिलने जाना है।

    मेरे प्यार में आज  …. वो रंग जायेगी
    मुझे गले लगाके …नहीं भूल पायेगी।
    फागुन का महीना …प्रेम का महीना
    प्रेम जताने में क्या शरमाना है?
    होली तो….बहाना है।
    पिया से मिलने जाना है।

    होली के रंग है हजार,खिल जाये होठों में बहार।
    यारा मेरे दिलदार,तुझ संग मिला मुझे प्यार॥

    ये हमारी मस्तानी टोली,मीठी बोली,सूरतिया भोली।
    लोगों को मिलाये ऐसी होली,पानी ने रंग को जैसे घोली।

    होली के रंग में डुबा संसार,होली के रंग है हजार।
    होली के रंग है हजार,खिल जाये होठों में बहार॥1॥

    क्या जमीं के रंग?क्या आसमाँ के रंग?
    मिल गया दोनों के रंग, आज होली के संग।

    कोई ना बचा आज लाचार, होली के रंग है हजार।
    होली के रंग है हजार,खिल जाये होठों में बहार॥2॥

    हम पिया के दीवाने,कौन -सा रंग दें ना जानें।
    सारा तन रंग से गीला, फिर भी दिल ना मानें।

    होली है रंग की बौछार, होली के रंग है हजार।
    होली के रंग है हजार,खिल जाये होठों में बहार॥3॥

    मनीभाई पटेल नवरत्न

    होली पर्व पर कविता

    दिया संस्कृति ने हमें,अति उत्तम उपहार,
    इन्द्रधनुष सपने सजे,रंगों का त्यौहार।1।

    नव पलाश के फूल ज्यों,सुन्दर गोरे अंग,
    ढ़ोल-मंजीरा थाप पर,थिरके बाल-अनंग।2।

    मलयज को ले अंक में,उड़े अबीर-गुलाल,
    पन्थ नवोढ़ा देखती,हिय में शूल मलाल।3।

    कसक पिया के मिलन की,सजनी अति बेहाल,
    सराबोर रंग से करे,मसले गोरे गाल।4।

    लुक-छिप बॉहों में भरे,धरे होंठ पर होंठ,
    ऑखों की मस्ती लगे,जैसे सूखी सोंठ।5।

    बरजोरी करने लगे,गॉव गली के लोग,
    कली चूम कहता भ्रमर,सुखदाई यह रोग।6।

    झर-झर पत्ते झर रहे,पवन बहे इठलाय,
    सुधि में बंशी नेह की,अंग-अंग इतराय।7।

    तरुणाई जलने लगी,देखि काम के बाण,
    बिरहन को नागिन डसे,प्रियतम देंगे त्राण।8।

    पत्तों के झुरमुट छिपी,कोयल आग लगाय,
    है निदान क्या प्रेम का,कोई मुझे बताय।9।

    ऋद्धि-सिद्धि कारक बने,ऊॅच-नीच का नाश,
    अंग-अंग फड़कन लगें,पल-पल नव उल्लास।10।

    हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’,

    falgun mahina
    फागुन महिना पर हिंदी कविता

    होली के रंग कविता- आरती सिंह

    लाल रंग हो अधीर,सज्जित होकर अबीर,
    निकले हैं आज कंचन काया को सजाने |

    हरे-नील रंग चले, लेकर उमंग चले
    आज मधुर बेला में सबको रिझाने |

    चाहे कोई अमीर होवे या फिर फ़क़ीर
    रंग सभी को लगे हैं एक सा रंगाने |

    प्रेमी हो, मित्र चाहे, बैरी हो या हो बंधु
    रंग सभी को लगे हैं एक कर मिलाने |

    आज कोई मूढ़ नहीं, ना कोई सयाना है
    एक जैसे चेहरे लगा आईना बताने |

    प्रेम रंग डूबे सब, भूल गए ज़ात-पाँत
    ईश्वर के पुत्र लगे ईश को मानाने |

    कान्हा ने राधा संग, खेले होली के रंग
    त्रिभुवन को भक्ति प्रेम रस में डुबाने |

    आरती सिंह

    रंगों की बहार होली कविता

    रंगों की बहार होली, खुशियों की बहार होली
    अल्हड़ों का खुमार होली, बचपन का श्रृंगार होली

    होली के रंगों में भीगें , आपस का प्यार होली
    रिश्तों की जान होली, दिलों का अरमान होली

    प्रेयसी का श्रृंगार होली, प्रियतम का प्यार होली
    अंग – अंग खुशबू से महकें , प्रेम का इजहार होली

    सैयां की बैंयां का हार होली, अरमानों का आगाज़ होली
    आशिकों का प्यार होली, मुहब्बत का इजहार होली

    गुलाल से रोशन हो आशियाँ, दिलों में पलता प्यार होली
    कभी पिया का इन्तजार होली, कहीं खिलती बहार होली

    कहीं इश्क़ का इजहार होली, कहीं नफरत पर वार होली
    खुदा की इबादत होली, खुदा पर एतबार होली

    पालते जो दिलों में मुहब्बत , उन पर निसार होली
    उम्मीदों का ताज होली, रिश्तों का रिवाज होली

    कुदरत का करिश्मा होली, प्रकृति का प्यार होली
    प्यार की जागीर होली, ख्वाहिशों का संसार होली

    रंगों की बहार होली, खुशियों की बहार होली
    अल्हड़ों का खुमार होली, बचपन का श्रृंगार होली

    होली के रंगों में भीगें , आपस का प्यार होली
    रिश्तों की जान होली, दिलों का अरमान होली

    मौलिक रचना –

    अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    होली पर कविता – रचना चेतन

    रंग, गुलाल, अबीर लिए, हर बार है होली आती
    लेकिन सुनो इस बार की होली, होगी बड़ी निराली ।।

    पिचकारी, गुब्बारे, रंग, उमंग और उत्साह
    एक नई तरंग लिए, ये होली होगी कुछ खास ।।

    रंग उड़े, गुलाल उड़े, पर रहना होगा सावधान
    अपने संग अपनों की सेहत का, रखना होगा ध्यान ।।

    कोरोना का खतरा टला नहीं है, अतः बनी रहे दो गज दूरी
    गुजिया, नमकीन का स्वाद बढ़े, पर मास्क बहुत जरूरी ।।

    सड़कों, चौबारों, मैदानों में हर साल, रंग बहुत उड़ाये
    सबकी सुरक्षा के लिए इस बार, चलो होली घर में मनाएँ ।।

    सेहत और खुशियों से भरी रहे, सब लोगों कि झोली
    एक नया संदेश लिए, देखो आई है ये होली ।।

    रचना चेतन

    हमारी होली – आशीष बर्डे

    रंगो में तु रंग मिलाकर
    रंगीन हो जा स्वयं को रंगकर

    आग लगाओं क्रोध को
    भस्म कर दो मोह को
    छोड़ के बेरंग दुनिया को
    आनंद में रंग दो तन मन को

    रंगो में तु रंग मिलाकर
    रंगीन हो जा स्वयं को रंगकर

    खुशीयो का रंग चडाकर
    दुखो का चोला छोड़कर
    उल्लास में स्वयं भिगकर
    हर्षित कर दो जन जन को

    रंगो में तु रंग मिलाकर
    रंगीन हो जा स्वयं को रंगकर

    स्वभाव कर लो अमृतमयी
    बैराग चोड़कर दूर कही
    हर जीव्हा को मिष्ठान से भरकर

    आशीष बर्डे (khumen)

    होली – एक प्रेमी की नज़र से (आझाद अशरफ माद्रे)

    शीर्षक : होली-एक प्रेमी की नज़र से
    रंगों में रंग जब कभी मिलते है,
    चेहरे फुलों की तरह खिलते है।

    जान पहचान की ज़रूरत नही,
    होली में दिल दिल से मिलते है।

    होली में काश दोनों मिल जाए,
    कितने अरमान दिल में पलते है।

    रूठकर प्रेमी नही खेलते होली,
    बाद में हाथों को अपने मलते है।

    जाने अनजाने में वो मुझे रंग दे,
    आज़ाद उनकी गली में चलते है।

    आझाद अशरफ माद्रे

    भटके हुए रंगों की होली – राकेश सक्सेना

    आज होली जल रही है मानवता के ढेर में।
    जनमानस भी भड़क रहा नासमझी के फेर में,
    हरे लाल पीले की अनजानी सी दौड़ है।
    देश के प्यारे रंगों में न जाने कैसी होड़ है।।

    रंगों में ही भंग मिली है नशा सभी को हो रहा।
    हंसी खुशी की होली में अपना अपनों को खो रहा,
    नशे नशे के नशे में रंगों का खून हो रहा।
    इसी नशे के नशे में भाईपना भी खो रहा।।

    रंग, रंग का ही दुश्मन ना जाने कब हो गया।
    सबका मालिक ऊपरवाला देख नादानी रो गया,
    कैसे बेरंग महफिल में रंगीन होली मनाएंगे।
    कैसे सब मिलबांट कर बुराई की होली जलाऐंगे।।

    देश के प्यारे रंगों से अपील विनम्र मैं करता हूँ।
    धरती के प्यारे रंगों को प्रणाम झुक झुक करता हूँ
    अफवाहों, बहकावों से रंगों को ना बदनाम करो,
    जिसने बनाई दुनियां रंगों की उसका तुम सम्मान करो।।

    हरा, लाल, पीला, केसरिया रंगों की अपनी पहचान है।
    इन्द्रधनुषी रंगों सा भारत देश महान है,
    मुबारक होली, हैप्पी होली, रंगों का त्यौहार है।
    अपनी होली सबकी होली, अपनों का प्यार है।।

    (राकेश सक्सेना)

    मैं आया खेलन फाग तिहार

    मेरे दिलबरजानी मेरे यार
    सांवरिया ….
    मैं  आया खेलन फाग तिहार ।
    सांवरिया ….
    आज रंग लगा ले ….ना कर इनकार।

    आज रंगों से करले …तू श्रृंगार।
    अपनाले…. मेरा प्यार…..सांवरिया।।
    चम चम चमके रे  ..तेरी लाली बिन्दिया।
    मेरा चैन लेके रे …लुटे निन्दिया।

    तुम्हीं मेरे  …सरकार ।
    सांवरिया ….
    मैं  आया खेलन फाग तिहार ।
    सांवरिया….

    आज रंग लगा ले ….ना कर इनकार।
    आज रंगों से करले …तू श्रृंगार।
    अपनाले…. मेरा प्यार…..सांवरिया।।
    धक धक धड़के रे… दिल मेरा आज।

    नैनन फड़के रे…. ना छुपे कोई राज़।
    तू बन गई ….प्राणाधार।
    सांवरिया …

    मैं  आया खेलन फाग तिहार ।
    सांवरिया ….
    आज रंग लगा ले ….ना कर इनकार।
    आज रंगों से करले …तू श्रृंगार।
    अपनाले…. मेरा प्यार…..सांवरिया।।

    तन मन अंग में….बस गई रे तेरी सूरत।
    तू ही जिन्दगी है और जरूरत।
    चल निकल पड़े ….चांद पार।।

    सांवरिया …।
    मैं  आया खेलन फाग तिहार ।
    सांवरिया ….
    आज रंग लगा ले ….ना कर इनकार।

    आज रंगों से करले …तू श्रृंगार।
    अपनाले…. मेरा प्यार…..सांवरिया।।

    मनीभाई नवरत्न

    होली होनी थी हुई – बाबू लाल शर्मा

    कड़वी सच्चाई कहूँ, कर लेना स्वीकार।
    फाग राग ढप चंग बिन, होली है बेकार।।

    होली होनी थी हुई, कहँ पहले सी बात।
    त्यौहारों की रीत को,लगा बहुत आघात।।

    एक पूत होने लगे, बेटी मुश्किल एक।
    देवर भौजी है नहीं, कित साली की टेक।।

    साली भौजाई बिना, फीके लगते रंग।
    देवर ढूँढे कब मिले, बदले सारे ढंग।।

    बच्चों के चाचा नहीं, किससे माँगे रंग।
    चाचा भी खाए नहीं, अब पहले सी भंग।।

    बुरा मानते है सभी, रंगत हँसी मजाक।
    बूढ़ों की भी अब गई, पहले वाली धाक।।

    पानी बिन सूनी हुई, पिचकारी की धार।
    तुनक मिजाजी लोग हैं,कहाँ डोलची मार।।

    मोबाइल ने कर दिया, सारा बंटाढार।
    कर एकल इंसान को,भुला दिया सब प्यार।।

    आभासी रिश्ते बने, शीशपटल संसार।
    असली रिश्ते भूल कर, भूल रहे घरबार।।

    हम तो पैर पसार कर, सोते चादर तान।
    होली के अवसर लगे, घर मेरा सुनसान।।
    आप बताओ आपके, कैसे होली हाल।
    सच में ही खुशियाँ मिली,कैसा रहा मलाल।।

    बाबू लाल शर्मा,”बौहरा”

    फागुन के रंग

    हर इंसान अपने रंग में रंगा है,
    तो समझ लो फागुन की होली है।
    हर रंग कुछ कहता ही है,
    हर रंग मे हंसी ठिठोली है।

    जीवन रंग को महकाती आनंद उल्लास से,
    जीवन महक उठता है एक-दूसरे के विश्वास से।
    प्रकृति की हरियाली मधुमास की राग है,
    नव कोपलों से लगता कोई लिया वैराग है।

    हर गले शिकवे को भूला दो,
    फैलाओं प्रेम रूपी झोली है।
    हर इंसान अपने रंग में रंगा है,
    तो समझ लो फागुन की होली है।

    आग से राग तक राग से वैराग्य तक,
    चलता रहे यूँ ही परम्परा ये फ़ाग तक।
    होलिका दहन की आस्था,
    युगों-युगों से चली आ रही है।

    आग मे चलना राग मे गाना,
    प्रेम की गंगा जो बही है।
    परम्परा ये अनूठी होती है,
    कितनी हंसी ठिठोली है।

    हर इंसान अपने रंग में रंगा है,
    तो समझ लो फागुन की होली है।
    सपनों के रंग मे रंगा ये संसार सारा,
    सतरंगी लगता इंद्रधनुष सबको है प्यारा।

    बैगनी रंग शान महत्व और
    राजसी प्रभाव का प्रतीक।
    जामुनी रंग दृढ़ता नीला विस्तार
    और गहराई का स्वरूप।

    हरा रंग प्रकृति शीतलता,
    स्फूर्ति और शुध्दता लाये।
    पीला रंग प्रसन्नता आनंद से घर द्वार महकाये।
    रंग नारंगी आध्यात्मिक सहन शक्ति सिखाये।

    लाल रंग उत्साह साहस,
    जीवन के खतरे से बचाये।
    रंग सात ये जीवन मे रंग ही रंग घोली है।
    हर इंसान अपने रंग में रंगा है,
    तो समझ लो फागुन की होली है।

    आया होली का त्यौहार – रविबाला ठाकुर

    आया होली का त्यौहार, 
            लेके रंग अबीर-गुलाल।
    आओ मिलके खुशी मनाएँ,   
            चलो तिलक लगाएँ भाल।
    जाति-पाँति और वर्ग-भेद का,  
             तोड़ो क्लेश भरा जंजाल।
    मानव ने ही रचा-बसा है,
              ये सभी घिनौना जाल।
    ऊपर वाले ने तो ढाला,
              देखो सबको एक समान।
    इसी लिए तो हम सबका है, 
               खून एक सा गहरा लाल।
    आओ मिलकर रंगों से हम,
               रंग दें एक-दूजे का गाल।
    एक-सूत्र में बँध जाएँ,  
                मानव-मानव एक समान।
    तभी मिटेगा देश-राज से, 
                 चीनी-पाकी सा शैतान।
    और बनेगा जग में मेंरा,
                  प्यारा भारत देश महान।
    आओ मिलकर सभी मनाएँ,
                   रंग भरा होली त्यौहार।

    रविबाला ठाकुर”सुधा”

    होली के रंग – बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’

    (1)

    होली की मची है धूम, रहे होलियार झूम,
    मस्त है मलंग जैसे, डफली बजात है।

    हाथ उठा आँख मींच, जोगिया की तान खींच,
    मुख से अजीब कोई, स्वाँग को बनात है।

    रंगों में हैं सराबोर, हुड़दंग पुरजोर,
    शिव के गणों की जैसे, निकली बरात है।

    ऊँच-नीच सारे त्याग, एक होय खेले फाग,
    ‘बासु’ कैसे एकता का, रस बरसात है।।

    (2)

    फाग की उमंग लिए, पिया की तरंग लिए,
    गोरी जब झूम चली, पायलिया बाजती।

    बाँके नैन सकुचाय, कमरिया बल खाय,
    ठुमक के पाँव धरे, करधनी नाचती।

    बिजुरिया चमकत, घटा घोर कड़कत,
    कोयली भी ऐसे में ही, कुहुक सुनावती।

    पायल की छम छम, बादलों की रिमझिम,
    कोयली की कुहु कुहु, पञ्च बाण मारती।।

    (3)

    बजती है चंग उड़े रंग घुटे भंग यहाँ,
    उमगे उमंग व तरंग यहाँ फाग में।

    उड़ता गुलाल भाल लाल हैं रसाल सब,
    करते धमाल दे दे ताल रंगी पाग में।

    मार पिचकारी भीगा डारी गोरी साड़ी सारी,
    भरे किलकारी खेले होरी सारे बाग में।

    ‘बासु’ कहे हाथ जोड़ खेलो फाग ऐंठ छोड़,
    किसी का न दिल तोड़ मन बसी लाग में।।

    बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
    तिनसुकिया कविता बहार से जुड़ने के लिये ध
    न्यवाद

    आया रंगो का त्यौहार – भुवन बिष्ट

      होली के रंग अबीर से।
    आओ बाँटें मन का प्यार।।
    खुशहाली आये जग में।
    है आया रंगों का त्यौहार।।
                रंग भरी पिचकारी से अब।
                धोयें राग द्वेष का मैल।।
                ऊँच नीच की हो न भावना।
                उड़े अबीर लाल गुलाल।।
    होली के हुड़दंग में भी।
    बाँटें मानवता का प्यार।।
    खुशहाली आये जग में।
    आया रंगों का त्यौहार।।
                 होली के रंग अबीर से।
                 आओ बाँटें मन का प्यार।।
                 गुजिया मिठाई की मिठास से।
                 फैले अब खुशियों की बहार ।।
    आओ रंगों की पिचकारी से।
    धोयें जग का अत्याचार।।
    होली के रंग अबीर से।
    आओ बाँटें मन का प्यार।।
               खुशहाली आये जग में।
               है आये रंगों का त्यौहार।।
               बसंत बहार के रंगों से।
               ओढ़े धरती है पितांबरी।।
    ईष्या राग द्वेष को त्यागें।
    सिचें मानवता की क्यारी।।
    रूठे श्याम को भी मनायें।
    रंगों से खुशियाँ फैलायें।।
                रंगों और पानी से सिखें।
                झलक एकता की दिखलायें।।
                मानवता का हो संचार।
                 बहे सुख समृद्धि की धार।।
    होली के रंग अबीर से।
    आओ बाँटें मन का प्यार।।
    खुशहाली आये जग में।
    है आये रंगों का त्यौहार।।

    भुवन बिष्ट
    रानीखेत (उत्तराखंड)

    होली के रँग हजार – सुशीला जोशी

    होली के रँग हजार
    होली किस रंग खेलूँ मैं ।।

    लाल रंग की मेरी अंगिया
    मोय पुलक पुलक पुलकावे
    ढाक पलाश  फूल फूल कर
    मो को अति उकसावे
         लाई मस्ती भरी खुमार
         होली किस रंग खेलूँ मैं ।। पीत रंग चुनरिया मेरी
    फहर खेतों में फहरावे
    गेंहु सरसों के खेतों में
    लहर लहर बन लहरावे
            सँग लाये बसन्ती बयार
            होली किस रंग खेलूँ मैं । नील रंग गगन सा विस्तृत
    निरन्तर हो कर  विस्तारे
    चैत वासन्ती विषकन्या सी
    अंग  छू छू कर मस्तावे
          किलके सूरज चन्द हजार
          होली किस रंग खेलूँ मैं ।। श्याम रंग नैन का काजल
    घना हो हो कर गहरावे
    सुरमई बदली ला ला करके
    गर्जना   करके  धमकावे
             मेरी फीकी पड़ी गुहार
             होली किस रंग खेलूँ मैं ।। धानी रंग धरा अंगडाइ
    इठला इठला सरसावे
    बाग बगीचे कोयल कुके
    मनवा में अगन लगावे
           बौराई सतरँगी बहार ।
          होली किस रंग खेलूँ मैं ।। न हिन्दू न मुसलमा कोई
    नही कोई सिख ईसाई
    होली के रंगों में रंग कर
    सब दिखते है भाई भाई
           अब न पनपे कोई दरार
          होली किस रंग खेलूँ मैं ।।

    सुशीला जोशी

    मिल-जुल कर सब खेले होली – पंकज

    फाल्गुन का मौसम है आया,
                    फ़ाग गीत सबको है भाया।
    अम्बर पर रंगों का साया ,
                     सबके मन में प्रेम समाया।
    तुम भी आ जाओ हमजोली,
               मिल-जुल कर सब खेले होली।
    झांझ,नगाड़े,ताशे,ढोल,
                          कानो में रस देते घोल।
    बात सुनो ये बड़ी अनमोल,
                    द्वेष छोड़ और प्रेम से बोल।
    सबके संग हो हंसी ठिठोली,
               मिल-जुल कर सब खेले होली।
    टेशू, पलाश के फूल खिलेंगे,
                            होली वाले रंग बनेंगे।
    मुख पर मुखौटे खूब सजेंगे,
                    पी के भंग सब खूब नचेंगे ।
    पिचकारी से भिगो दे चोली,
                मिल-जुल कर सब खेले होली।
    किस्म-किस्म पकवान बनाओ,
                   और सभी मित्रो को बुलाओ।
    बैरी को भी गले लगाओ,
                       अपने मन से बैर मिटाओ।
    सब जन बोले प्रीत की बोली,       
                 मिल-जुल कर सब खेले होली।
       पंकज

    होली पर कविता – राज मसखरे

    जला दी हमने
    राग-द्वेष,लालच
    लो अब की बार..
    पून:अंकुर न ले
    न हो कोई बहाना
    ओ मेरे सरकार..
    हो न कोई नफरत
    अब हमारे बीच
    न कोई बने दिवार..
    रंगिनियाँ बिखरता रहे
    लब में हो मुस्कान
    ओ मेरे मीत,मेरे यार.
    चढ़ता जाये मस्ती
    उतर न पाये होली मे
    ये रंगीन खुमार …
    दिल से दिल मिले
    ‘मसखरे’सुन लो जरा
    रहे खुशियाँ बेशुमार .

    राज मसखरे

    होली है बेरंग-डॉ.पुष्पा सिंह ‘प्रेरणा’

    सभी रंग मिलावट के,
    होली है बेरंग!
    नहीं नेह की पिचकारी
    नहींभीगता  अंग!
    भय,शोक,चिंता तनाव,
    प्रीत,प्रेम नहीं सद्भाव,
    रिश्तों की डोरी टूटी
    जैसे कटी पतंग!
    होली है…………
    टेसू और पलाश सिसकते,
    खुशबू को अब फूल तरसते,
    पेड़ों पर डाली के पत्ते
    गुम है पतझड़ संग
    होली है बेरंग…
    कागा करता काँव-काँव,
    आम्रकुंज की उजड़ी छाँव,
    फिर कोयल की हूक से,
    क्यों होते हम दंग!
    होली है बेरंग……
    पकवानों के थाल नहीं,
    ढोल,मांदर, झाल नहीं,
    चरस,गाँजे और शराब में,
    फीकी पड़ गयी भंग!
    होली है बेरंग…
    डॉ.पुष्पा सिंह ‘प्रेरणा’

    होली के रंग – केवरा यदु “मीरा “

    अबके  बरस मैं होरी खेलूँ कान्हा जी के संग ।
    साँवरे  रंग मोहे  भाये   भाये  न कोई  रंग ।।


    अब  बरस– आ गई ग्वालन  की  छोरी।
    अनगिन मटकी में रंग  घोरी।।


    रंग में केसर भी घोरे  अब कर देंगे बदरंग।।
    अबके बरस मैं होरी खेलूँ कान्हा जी के संग ।

    बंशी बजा कर श्याम बुलाते ।
    छुप कर फिर वो रंग  लगाते।।


    छुप कर मैं भी रंग डालूंगी रह जाये कान्हा दंग ।
    अब के बरस मैं होरी खेलूँ कान्हा जी के संग ।।

    फगुवा  गीत  गाते फगुवारे।
    छम छम नाचत नंद दुलारे।।


    बजे नगाड़े ढ़ोल देखो और बजे मृदंग ।
    अबके बरस मैं होरी खेलूँ कान्हा जी के संग ।।

    रंग में उनके कबसे रंगी हूँ।
    साँवर प्रीत में मैं  पगी हूँ।।


    जन्म जन्म तक छूटे न बस चढ़े श्याम का रंग ।
    अबके बरस मैं होरी खेलूँ कान्हा जी के संग ।।

    केवरा यदु “मीरा “
    राजिम

    रंगो का त्योहार होली – रिखब चन्द राँका

    होली पर्व रंगों का त्योहार,
    पिचकारी पानी की फुहार।
    अबीर गुलाल गली बाजार,
    मस्तानो की टोली घर द्वार।


    हिरण्यकश्यप का अभिमान,
    होलिका अग्नि दहन कुर्बान।
    प्रहलाद की प्रभु भक्ति महान,
    श्रद्धा व विश्वास का सम्मान।


    अग्नि देव का आदर सत्कार,
    वायु देव का असीम उपकार।
    लाल चुनरिया भी  चमकदार,
    प्रह्लाद को भक्ति का पुरस्कार।


    मस्तानों की टोली रंगो के साथ,
    वर्धमान के पिचकारी रंग हाथ ।
    लाल,हरा, नीला,पीला रंग माथ,
    राधा रंगी प्रेम रंग में कृष्ण नाथ।


    स्वादिष्ट व्यंजन गुंजियाँ तैयार,
    पकौड़ी खाजा,पापड़ी भरमार।
    गेहूँ चने की बालियाें की बहार
    अाग पके धान प्रसाद,स्वीकार।


    जग में प्रेम सुधा रस बरसाना,
    दीन दु:खियों को गले लगाना।
    सद्भाव के प्रेम दीपक जलाना ,
    होली पर्व ‘रिखब’ संग तराना।

    रिखब चन्द राँका ‘कल्पेश’ जयपुर राजस्थान

    ब्रज में उड़े ला गुलाल – बाँके बिहारी

    ब्रज में उड़े ला गुलाल ब्रज पिया खेले होली
    खेले होली हो खेले होली
    नयना लड़ावे नंदलाल,ब्रज पिया खेले होली
    ब्रज में उड़े ला गुलाल ब्रज पिया खेले होली ।।


    सखी सब नाचे ढोल बजावे
    एक दूजे पर रंग बरसावे
    साथ रंग लगाये गोपाल ब्रज पिया खेले होली हो
    ब्रज में उड़े ला गुलाल ब्रज पिया खेले होली ।।


    धुरखेल करत हैं वृषभानु दुलारी
    जोरा जोरी करे मोरे रास बिहारी
    पकड़े बईया मोहन रंगे राधे की गाल
    ब्रज पिया खेले होली
    ब्रज में उड़े ला गुलाल ब्रज पिया खेले होली ।।


    पिसी- पिसी भाँग श्यामा प्यारी को पिलावे
    मारी-मारी मटकी रसिया सखी को बुलावे
    पिचकारी से मचाए धमाल ब्रज पिया खेले होली
    ब्रज में उड़े ला गुलाल ब्रज पिया खेले होली ।।


    कभी यमुना तट कभी बगीया में
    होली में रंग डाले रसिया मोरे अंगिया में
    पंचमेवा खिलावे नंदलाल ब्रज पिया खेले होली
    ब्रज में उड़े ला गुलाल ब्रज पिया खेले होली ।।


    मोहे मन भावे ब्रज की होली
    बाल-सखा सब सखीयन की टोली
    देखो प्यारे सबको करते निहाल
    ब्रज पिया खेले होली
    ब्रज में उड़े ला गुलाल ब्रज पिया खेले होली ।।

    बाँके बिहारी बरबीगहीया

    अंग – अंग में रंग चढ़ाया – सन्तोष कुमार प्रजापति

    विधा – गीत (सरसी छन्द)      

      प्यारा यह मधुमास सुहावन ,
           काम तनय सब जान I
    अंग – अंग  में  रंग  चढ़ाया ,
            मदन  तीर  ले  तान Il तुम्हें  बताऊँ  कैसे  सजना ,
             मन  की अपने पीर I
    होली का मनभावन उत्सव , 

            तुम बिन धरे न धीर ll
    आ जाओ फिर होली खेलें ,
             भाँग  पिलाओ छान I
    अंग – अंग में …   ….   … मुझे   पड़ोसी   ऐसे   ताकें ,
             जैसे    सोना   चोर l
    मला गुलाल बहुत गालों में ,
              बदन  रंग  में  बोर Il
    तन  मेरा  ये  दहक  रहा  है ,
              मन भी बहका मान l
    अंग – अंग में …  ….   ….. मुझे चैन मत  पड़ता साजन ,
               होली  करे   कमाल I
    बुरा न मानो कह – कह सबने ,
               चोली  करदी  लाल ll
    आँखें    मेरी     हुईं    शराबी ,
                बदल गई  मम तान l
    अंग – अंग में …  ….   …. हरा , लाल , नीला औ  पीला ,
                धानी   उड़े  गुलाल I
    तन  मेरे   मकरन्द   टपकता ,
                 भ्रमर देख तो हाल Il
    यौवन  की   मदहोशी   छायी ,
                  चढ़ा  प्रेम  परवान l
    अंग – अंग में …    ….    …. तुम  मुझको  मैं  तुम्हें  रंग  दूँ ,
                  फिर  गायेंगे  फाग l
    राधा     तेरी     राह     निहारे ,
                  माधव आओ भाग Il
    तुम बिन  मटकी  मेरी अटकी ,
                  करो  फोड़  सम्मान I
    अंग – अंग में …    ….    … स्वरचित

    सन्तोष कुमार प्रजापति “माधव”

    खुशियों का त्योहार होली – मनी भाई

    धूल उड़ रहे आसमान में
    उड़ रहा अबीर गुलाल है
    भेदभाव कटुता को मिटाकर
    फैलाता चहुँओर प्यार है
    ऐसा पावन पर्व है होली
    खुशियों का त्योहार है
    ऐसा पावन पर्व हमारा
    रंगो का त्योहार है ।।   

    धुरखेल हो गया सुबह में देखो
    शाम को उड़ेगे रंग
    सज- धज कर निकलेगी सजनीया
    डालेंगी पिया पे रंग
    पिचकारी में रंग भरे हैं
    और रंगो का फूहार है
    ऐसा पावन पर्व है होली
    खुशियों का त्योहार है ।।

    क्या बच्चे क्या बूढ़े को भी देखो
    मचा रहे हुड़दंग
    उम्र की सीमा तोड़ प्यार से
    झुमे सभी के संग
    ढोलक, झांझ ,मंजीरो की धुन का
    देखो अद्भुत झंकार है
    ऐसा पावन पर्व है होली
    खुशियों का त्योहार है ।।

    पेड़,पौधे पशु -पक्षी पर छाया
    होली का खुमार है
    बेसनबरी,फुलौरी,भभरा का
    विशेष आहार है
    कांजी,भाँग ,ठंढाई पीने को
    भीड़ जुटा भरमार है
    ऐसा पावन पर्व है होली
    खुशियों का त्योहार है ।।

    अंधकार भगा प्रकाश को लाता
    होली का त्योहार है
    कच्चे अन्न को पका-पकाकर
    बनता होला भरमार है
    ब्रज रसिया और अवध पिया भी
    लूटाते सभी पर प्यार हैं
    ऐसा पावन पर्व है होली
    खुशियों का त्योहार है
    ऐसा पावन पर्व हमारा
    रंगो का त्योहार है

    मनी भाई

    मधुमासी रंग – सुशीला जोशी

    नव रंगों से भर गए ,वन उपवन अरु बाग
    केसरिया टेसू हुआ , ढाक लगावे आग ।।

    मधुमासी मद से भरे सारे तरु कचनार
    मस्ती हास् विलास ले ,आयी मधुप बाहर ।।

    ऋतुराज की सुगन्धसे  ,मदमाया परिवेश
    शुक पिक  कोकिल कुजते , अपने बैन विशेष ।।

    नटखट वासन्ती चले ,छेड़ करे बरजोर
    देख न पाई आज तक , अन्तस् मन का चोर ।।

    निर्मल नभ से झांकता , करता   विधु विनोद
    ढोल ढप और गीत से , करता मोद प्रमोद ।।

    ललछौंहीं कोपल हँसी , हसि लताएँ उदास
    हृदय झरोखे झांकती ,नेह कोपली  आस ।।

    तरुवर बौराये हुए , देख  फागुनी रंग
    पीले लाल गुलाल का ,मचा हुआ हुड़दंग ।।

    अम्बर सिंदूरी हुआ ,हुआ समंदर लाल
    होली मस्ती रँग भरी , इठला देवे ताल ।।

    दिशा बावरी हो गयी ,लख मधुमासी रूप।
    पहले जैसी न रही ,वी कच्ची से धूप ।।

    फूलों कीफूटी हंसी , बजे सुनहले पात
    सम्मोहन सा बुन रही , अब मधुमासी रात ।।

    ठिठुरायी सर्दी गयी , अब आया मधुमास ,
    ,खिल खिल वासन्ती भरे , कण कण बास सुबास ।।

    फूल फूल को चूमते , भवँर करे गुंजार
    रंग बिरंगी तितलियाँ , नाचे बारम्बार ।।

    सुशीला जोशी

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  • विश्व पर्यावरण दिवस पर कविता

    विश्व पर्यावरण दिवस पर कविता

    आज पर्यावरण पर संकट आ खड़ा हुआ है . इसकी सुरक्षा के प्रति जन जागरण के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र ने 5 मई को विश्व पर्यावरण दिवस मनाने का फैसला किया है . कविता बहार भी इसकी गंभीरता को बखूबी समझता है . हमने कवियों के इस पर लिखी कविता को संग्रह किया है .

    विश्व पर्यावरण दिवस पर कविता

    Save environment
    poem on trees

    सुकमोती चौहान रुचि की कविता

    आओ ले संकल्प ये,सभी लगाये पेड़।
    पर्यावरणी हरितिमा,छाँव रहे हर मेड़।।

    अंधाधुन पेड़ कट रहे,जंगल हुआ वीरान।
    पर्यावरणी कोप से, हो तुम क्यों अंजान।।

    आक्सीजन कम हो चला, संकट में है जीव।
    दिन दिन निर्बल हो रही,पर्यावरणी नींव।।

    जल जीवन की मूल है,इसे करे मिल साफ।
    करे नहीं पर्यावरण,कभी मनुज को माफ।।

    बचाइए पर्यावरण,यही हमारी जान।
    हरी भरी जब हो धरा,यही हमारी शान।।


    सुकमोती चौहान रुचि
    बिछिया,महासमुन्द,छ.ग.

    विनोद सिल्ला की कविता

    दूषित हुई हवा
    वतन की 
    कट गए पेड़
    सद्भाव के 
    बह गई नैतिकता 
    मृदा अपर्दन में 
    हो गईं खोखली जड़ें
    इंसानियत की 
    घट रही समानता 
    ओजोन परत की तरह
    दिलों की सरिता
    हो गई दूषित 
    मिल गया इसमें
    स्वार्थपरता का दूषित जल
    सांप्रदायिक दुर्गंध ने 
    विषैली कर दी हवा
    आज पर्यावरण 
    संरक्षण की 
    सख्त जरूरत है। 

    -विनोद सिल्ला

    रेखराम साहू पर कविता

    सभ्यता का हाय कैसा ये चरण है ।
    रुग्ण जर्जर हो गया पर्यावरण है ।
    लुब्ध होकर वासना में लिप्त हमने,
    विश्व में विश्वास का देखा मरण है।
    लक्ष्य जीवन का हुआ ओझल हमारा,
    तर्क का,विज्ञान का,धूर्तावरण है ।
    द्रव्य संग्रह में सुखों की कामना तो,
    ज्ञान का ही आत्मघाती आचरण है ।
    हो न अनुशासन न संयम तो समझ लो,
    मात्र,जीवन मृत्यु का ही उपकरण है ।
    भाग्य है परिणाम कृत्यों का सदा ही,
    कर्म की भाषा नियति का व्याकरण है ।
    नीर,नीरद,वायु मिट्टी हैं विकल तो,
    सृष्टि के वरदान का ये अपहरण है ।
    पेड़-पौधे संग करुणा की लताएँ,
    कट रहीं, संवेदनाओं का क्षरण है ।
    है तिमिर पर ज्योति की संभावना भी,
    सत्य-शिव-सौंदर्य, ही केवल शरण है ।
    कर प्रकृति-उपहार का उपयोग हितकर,
    प्रेम का प्रतिबिम्ब ही पर्यावरण है ।

    रेखराम साहू

    शशिकला कठोलिया की कविता

    वृक्ष लगाने की है जरूरत,                          
    पर्यावरण बचाने को ,
    एक भी लकड़ी नहीं मिलेगी,                               
    मानव तुझे जलाने को ।

    जो लोग कर रहे हैं ,
    वनों का विनाश ,
    क्या उन्हें पता नहीं ,
    इसी में है उनकी सांस ,
    गांव शहर सब लगे हुए हैं ,
    अपना घर सजाने को ,
    एक भी लकड़ी नहीं मिलेगी,                              
    मानव तुझे जलाने को ।

    हर कोई कर रहे हैं ,
    प्रदूषण का राग अलाप ,
    पर कोई नहीं बदलता ,
    अपना सब क्रियाकलाप ,
    मिलकर समझाना होगा ,
    अब तो सारे जमाने को ,
    एक भी लकड़ी नहीं मिलेगी,                              
    मानव तुझे जलाने को ।

    पर्यावरण बचाने की ,
    हम सब की है जिम्मेदारी ,
    संभल जाओ लोगों ,
    नहीं तो पछताओगे भारी ,
    एक अभियान चलाना होगा,
    जन-जन को समझाने को ,
    एक भी लकड़ी नहीं मिलेगी,                              
    मानव तुझे जलाने को ।

    वृक्ष ना काटो वृक्ष लगाओ ,
    विश्व में हरियाली लाओ ,
    सालों साल लग जाते हैं ,
    एक पेड़ उगाने को ,
    एक भी लकड़ी नहीं मिलेगी,                             

    मानव तुझे जलाने को ।

    श्रीमती शशि कला कठोलिया, उच्च वर्ग शिक्षिका, 
    अमलीडीह, पोस्ट-रूदगांव ,डोंगरगांव,
    जिला- राजनांदगांव (छत्तीसगढ़)

    महेन्द्र कुमार गुदवारे की कविता


    पेड़ न काटो, पेड़ लगाओ,
    सब मिल भैया,अलख जगाओ।
    पेड़ मित्र है, पेड़ है भाई,
    पेड़ से होता, जीवन सुखदाई।
    एक , एक सबको बतलाओ,
    पेड़ न काटो, पेड़ लगाओ।
    पेड़ न काटो, पेड़ लगाओ,
    सब मिल भैया,अलख जगाओ।
    पर्यावरण करे शुद्ध हमारा,
    प्रदुषण का है, हटे पसारा।
    आगे आओ सब, आगे आओ,
    पेड़ न काटो, पेड़ लगाओ।
    पेड़ न काटो, पेड़ लगाओ,
    सब मिल भैया,अलख जगाओ।
    पेड़ से सुन्दरता है आए,
    जो है सबके मन को भाए।
    नेक विचार यह मन मेंं लाओ,
    पेड़ न काटो, पेड़ लगाओ,
    पेड़ न काटो, पेड़ लगाओ,
    सब मिल भैया,अलख जगाओ।
    फल , फूल ,पत्तियाँ ,छाल के,
    एक , एक सब कमाल के।
    दवा ,औषधि अनमोल बनाओ,
    पेड़ न काटो, पेड़ लगाओ।
    पेड़ न काटो, पेड़ लगाओ,
    सब मिल भैया,अलख जगाओ।
    सच्चा साथी है यह जीव का,
    सुखमय जीवन के नीव सा।
    इससे कतई तुम दूर न जाओ,
    पेड़ न काटो, पेड़ लगाओ।
    पेड़ न काटो, पेड़ लगाओ,
    सब मिल भैया,अलख जगाओ।
    ~~~~~
    महेन्द्र कुमार गुदवारे ,बैतूल