आर आर साहू के दोहे
आर आर साहू के दोहे कहाँ ढूँढता बावरे,तू ईश्वर को रोज।करनी पहले चाहिए,तुमको अपनी खोज।। शब्द मात्र संकेत हैं,समझ,सत्य की ओर।सूर्य- चित्र से कब कहाँ,देखा होता भोर।। बस प्रतीक को मानकर,हुई साधना बंद।माया से मिलता रहा,सपने का आनंद।। किसका दर्शन,किसलिए,चला भीड़ के संग।चाह-राह बेमेल है,ये कैसा है ढंग।। मंदिर में घंटी बजे,मन के छिड़े न … Read more