स्वयंसिद्धा
स्वयंसिद्धा देहरी को लाँघने ,साहस सदा तुममें रहा,अधिकार के सत्कार मेंकर्तव्य की कारा बना,क्यूँ प्रश्न वाचक तुम बनी,अवधारणा को तोड़खोल पाँखे खोलहै तू सदा से ही ,जगतनियन्ता ने बनायासृष्टि के आदि से,पुराण, वेद, उपनिषद्कालातीत से कालांतरगढ़ा है ,सुझाया,जन्म जन्मातर से होदेवी तुम,स्वयंसिद्धा। ✍✍✍✍✍✍✍✍डॉ मीता अग्रवाल रायपुर छत्तीसगढ़कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद