बसन्त और पलाश
बसन्त और पलाश दहके झूम पलाश सब, रतनारे हों आज।मानो खेलन फाग को, आया है ऋतुराज।आया है ऋतुराज, चाव में मोद मनाता।संग खेलने फाग, वधू सी प्रकृति सजाता।लता वृक्ष सब आज, नये पल्लव पा महके।लख बसन्त का साज, हृदय रसिकों के दहके।।शाखा सब कचनार की, लगती कंटक जाल।फागुन की मनुहार में, हुई फूल के लाल।हुई … Read more