प्रीत पुरानी-बाबू लाल शर्मा
प्रीत पुरानी १६ मात्रिक मुक्तक थके नैन रजनी भर जगते,रात दिवस तुमको है तकतेचैन बिगाड़ा, विवश शरीरी,विकल नयन खोजे से भगते। नेह हमारी जीवन धारा।तुम्हे मेघ मय नेह निहारा।वर्षा भू सम प्रीत अनोखी,मन इन्द्रेशी मोर पुकारा। पंथ जोहते बीते हर दिन,तड़पें तेरी यादें गिन गिन।साँझ ढले मैं याद करूँ,तो,वही पुरानी आदत तुम बिन। यूँ ही … Read more