Author: कविता बहार

  • विश्वकर्मा भगवान पर कविता -विनोद कुमार चौहान जोगी

    विश्वकर्मा भगवान पर कविता (अमृत ध्वनि छंद)

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    सुन्दर सर्जनकार हैं, भौमन है शुभ नाम।
    गढ़ना नित ही नव्य कृति, प्रभुवर पावन काम।।
    प्रभुवर पावन, काम सुहावन, गढ़ें अटारी।
    अस्त्र बनाते, शस्त्र सजाते, महिमा न्यारी।।
    हैं अभियंता, गढ़ते जंता, गढ़ें ककुंदर।
    पूज्य प्रजापति, तुम्हीं रूपपति, श्री वर सुन्दर।।

    गढ़ते इस संसार को, लेकर कर औजार।
    ईश विश्वकर्मा हमें, देना भव से तार।।
    देना भव से, तार हमें हे, तारणहारी।
    देख सृजन शुभ, मिले नयन सुख, हे त्रिपुरारी।।
    तुमसे वाहन, सब सुख साधन, जिनसे बढ़ते।
    कृपा तुम्हारी, हम आभारी, नित यश गढ़ते।।

    विनोद कुमार चौहान “जोगी”

  • अभिलाषा पर दोहे – बाबूराम सिंह

    अभिलाषा पर दोहे

    मेरा मुझमें कुछ नहीं ,सब कुछ तेरा प्यार।
    तू तेरा ही जान कर ,सब होते भव पार।।

    क्षमादया तेरी कृपा,कण-कण में चहुँ ओर।
    अर्पण है तेरा तुझे ,क्या लागत है मोर।।

    सांस-सांस में रम रहा ,तू है जीवन डोर।
    माया मय पामर पतित ,मै हूँ पापी घोर।।

    तार करूणा कर मुझे ,हे दीनों के नाथ।
    शरण तुम्हारे आ पड़ा ,सब कुछ तेरे हाथ।।

    सेवा शुचि सबका करूँ,धरूँ धर्मपर पांव।
    नेकी में नित मन बसे, तुझसे रहे लगाव।।

    दान पुण्य में सुख मिले,खिले सुमंगल ज्ञान।
    जन-जन को देता रहूँ,शान्ति सुख मुस्कान।।

    भक्ति भाव लवलीन हो,भजूँ सदा भगवान।
    नाम नाथ मुख में रहे ,जब छुटे मम प्रान।।

    वरद हस्त शर पर रखो,दो प्रभु जी वरदान।
    आप सबल सुजान सदा ,मै मतिमन्द महान।।

    शुचि आश विश्वास लिये,धरूँ चरण पर शीश।
    कृपा कोर अजोर करो ,मन मेरे जगदीश।।

    जहाँ रहूँ भूले नहीं , नाथ आपका नाम।
    आरत मम पुकार सुनी ,दुख हर मेरे राम।।

    आशा अभिलाषा यहीं ,धरूँ चरण पै माथ।
    नाथ पतित पै कृपाकरो,शिरपर रखदो हाथ।।

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    बाबूराम सिंह कवि
    बडका खुटहाँ,विजयीपुर
    गोपालगंज (बिहार)841508
    मो॰ नं॰ – 9572105032

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  • नारी के अधिकार पर कविता – बाबूराम सिंह

    नारी के अधिकार पर कविता – बाबूराम सिंह

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    नारी है नारायणी जननी जगत जीव की ,
    सबहीं की गुरु सारी सृष्टि की श्रृंगार है ।
    जननीकी जननीभी नारीकी विशेषता है ,
    महिमा नारी की सदा अगम अपार है ।
    जननी बहिन बहु -बेटी धर्मपत्नी बन ,
    सुखद बनाती सदा घर परिवार है।
    आदर सत्कार मान”कवि बाबूराम “कर ,
    औरत के बिना सही नहीं विस्तार है ।

    करुणा की सागर व ममता की मूरत है ,
    प्यार व दुलार स्नेह श्रध्दा की सार है ।
    सेवा सिरमौर सुख -दुख संगिनी है नार ,
    निज सुख वार बच्चों की पालनहार है ।
    औरत अनुप अर्धांगिनी है जन -जन की ,
    सब कुछ में उसका आधा अधिकार है ।
    बच्चा बूढा़ जवान सब पै”कवि बाबूराम “
    नारी का सच अनगिनत उपकार है।

    चरणों में महावर चूड़ी कर माथे बिन्दी,
    मांग में सोहाग रूप सिन्दूर सवार है ।
    जिस घर देश में अपमान होत नारी का ,
    निश्चित नरक नाश वहां तैयार है ।
    सोचिए विचारिए सुधारिए स्वयं कोसभी ,
    नारी को भी जीनेका समान अधिकार है ।
    करता जो नर नारी निन्दा अनादर नित ,
    “कवि बाबूराम “वह वसुधा का भार है ।

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    बाबूराम सिंह कवि
    ग्राम -बड़का खुटहाँ ,पोस्ट -विजयीपुर
    जिला-गोपालगंज(बिहार)841508
    मो० नं० – 9572105032

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  • हिंदी की है अद्भुत महिमा – उपमेंद्र सक्सेना

    हिंदी की है अद्भुत महिमा

    हिंदी की है अद्भुत महिमा

    गीत-उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट

    जिसको जीवन में अपनाया, उसपर हम होते बलिहारी
    हिंदी की है अद्भुत महिमा, यह हमको प्राणों से प्यारी।

    हिंदी का गुणगान करें हम, हिंदी के गीतों को गाएँ
    हिंदी की मीठी बोली से, सबके मन को अब हम भाएँ

    सदा फले- फूले यह भाषा, लगती है यह हमको न्यारी
    हिंदी की है अद्भुत महिमा, यह हमको प्राणों से प्यारी।

    हिंदी को जो लोग यहाँ पर, कभी न देखें निम्न दृष्टि से
    स्वयं देव करते हैं स्वागत, मानो उनका पुष्प- वृष्टि से

    बनी आज जन-जन की भाषा, सदा जन्म से रही हमारी
    हिंदी की है अद्भुत महिमा, यह हमको प्राणों से प्यारी।

    हिंदी में सब काम करें हम, बच्चों को हिंदी पढ़वाएँ
    सोने में तब लगे सुहागा, जब वे खुद आगे बढ़ जाएँ

    हीन भावना कभी न आए, इतनी आज करें तैयारी
    हिंदी की है अद्भुत महिमा, यह हमको प्राणों से प्यारी।

    बाबा-दादी, नाना- नानी, से हम सुनते रहे कहानी
    हिंदी ने ऐसा रस घोला, याद हुईं वे हमें जुबानी

    करते बातें बहुत प्रेम से, हिंदी में इतने नर- नारी
    हिंदी की है अद्भुत महिमा, यह हमको प्राणों से प्यारी।

    रचनाकार- उपमेंद्र सक्सेना एड.
    ‘कुमुद- निवास’
    बरेली( उ०प्र०)
    मोबा.- 98379 44187

    ( आकाशवाणी, बरेली से प्रसारित रचना- सर्वाधिकार सुरक्षित)

  • अनमोल मानव जीवन पर कविता

    अनमोल मानव जीवन पर कविता

    पकड़ प्यार सत्य धर्म की डोर ,
    बढ़ सर्वदा प्रकाश की ओर।
    मधुर वचन सबहिं से बोल,
    मानव जीवन है अनमोल।

    औरों से सद्गुण सम्भाल,
    निजका अवगुण दोष निकाल।
    सत्य वचन से कभी ना डोल,
    मानव जीवन है अनमोल।

    वैर- विरोध का नाम मिटाओ,
    आपस में सद्भाव बढा़ओ।
    मन कि गाँठें ज्ञान से खोल,
    मानव जीवन है अनमोल।

    पर – पीडा़ में हाथ बढा़ओ,
    जग में सुख सरस उपजाओ।
    मानवता महक का लेकर रोल,
    मानव जीवन है अनमोल।

    दीन – दुखिया ,अबला -अनाथ,
    सबको गले लगा लो साथ।
    पर पीड़ा में दया रस घोल,
    मानव जीवन है अनमोल।

    कर प्रभु में श्रध्दा – विश्वास,
    मत हो जीवन में निराश।
    हो न भक्ति से डांवा डोल,
    मानव जीवन है अनमोल।

    हर में हरि की कर पहचान,
    सब हैं प्रभुवर की संतान।
    यहीं है नर जीवन का मोल,
    मानव जीवन है अनमोल।

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    बाबूराम सिंह कवि
    बड़का खुटहाँ , विजयीपुर
    गोपालगंज(बिहार)841508
    मो०नं० – 9572105032

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