विश्वकर्मा भगवान पर कविता (अमृत ध्वनि छंद)
सुन्दर सर्जनकार हैं, भौमन है शुभ नाम।
गढ़ना नित ही नव्य कृति, प्रभुवर पावन काम।।
प्रभुवर पावन, काम सुहावन, गढ़ें अटारी।
अस्त्र बनाते, शस्त्र सजाते, महिमा न्यारी।।
हैं अभियंता, गढ़ते जंता, गढ़ें ककुंदर।
पूज्य प्रजापति, तुम्हीं रूपपति, श्री वर सुन्दर।।
गढ़ते इस संसार को, लेकर कर औजार।
ईश विश्वकर्मा हमें, देना भव से तार।।
देना भव से, तार हमें हे, तारणहारी।
देख सृजन शुभ, मिले नयन सुख, हे त्रिपुरारी।।
तुमसे वाहन, सब सुख साधन, जिनसे बढ़ते।
कृपा तुम्हारी, हम आभारी, नित यश गढ़ते।।
विनोद कुमार चौहान “जोगी”