गुलबहार
होश में हमीं नहीं सनम कभी पुकार अब
हो तुम्हीं निगाह में हमें ज़रा निहार अब ।
वक़्त की फुहार है ये रोज़ की ही बात है
दिल मचल के कह रहा मुझे तुम्हीं से प्यार अब।
खिल उठा गुलाब है चमन में रौनकें सजी
हर गली महक रहा कि चढ़ रहा खुमार अब।
अजीब खलबली यहाँ न पूछ हाल क्या हुआ
चाँद से दुआ करो मिले कहीं क़रार अब ।
जंग जिंदगी लगे गुमान इश्क का हमें
उम्र का हरेक पल करूँ तुम्हें निसार अब ।
खेल खेल में नज़र झुका के बात कह दिए
हम नवाब थे कभी हुए तेरा शिकार अब ।
ये जहां नया हुआ मिठास भी ग़ज़ब लगे
पाक साफ दिल जिगर इबादतें हजार अब ।
क्या लिखूँ किताब में पढो कभी निकाल के
माधुरी महक रही बनी है गुलबहार अब ।
*माधुरी डड़सेना ” मुदिता “*