Author: कविता बहार

  • शीत ऋतु (ठण्ड) पर कविता

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    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    शीत ऋतु का आगमन

    घिरा कोहरा घनघोर
    गिरी शबनमी ओस की बूंदे
    बदन में होने लगी
    अविरत ठिठुरन

    ओझल हुई आंखों से
    लालिमा सूर्य की
    दुपहरी तक भी दुर्लभ
    हो रही प्रथम किरण

    इठलाती बलखाती
    बर्फ के फाहे बरसाती
    शीत ऋतु का हुआ
    शनैः शनैः आगमन

    रजाई का होने लगा इंतजाम
    गर्म कपड़ों से लिपटे बदन
    धधकने लगी लकड़ियां
    अलाव तक खींचे जाते जन-जन

    होने लगी रातें लंबी
    कहर बरपाने लगा पवन
    दो घड़ी में होने लगा है
    ढलती शाम से मिलन

    इठलाती बलखाती
    बर्फ के फाहे बरसाती
    शीत ऋतु का हुआ
    शनैः शनैः आगमन

    – आशीष कुमार , मोहनिया बिहार

    सर्दी देखो आयी है

    चुभन शूल सी पवन सुहानी, अपने सँग में लायी है।
    तन में कम्पन अरु सिकुड़न ले, सर्दी देखो आयी है।।

    दिवस हुए अब छोटे-छोटे, लम्बी-लम्बी रातें हैं,
    मक्खी मच्छर रहित सकल घर, सर्दी की सौगातें हैं,
    प्यारी-प्यारी धूप सुहानी, हर मन को अति भायी है।
    तन में कम्पन अरु सिकुड़न ले, सर्दी देखो आयी है।।

    मूली गाजर सजे खेत में, धनिये की है महक बड़ी,
    फलियों के सँग मन हरषाती, सजती प्यारी मटर खड़ी,
    पालक- मेथी- राई -सरसों, भी सँग में लहरायी है।
    तन में कम्पन अरु सिकुड़न ले, सर्दी देखो आयी है।।

    वृक्षों के तन से देखो तो, झर-झर पत्ते झड़ते हैं,
    अरु मानव के अंग-अंग में, ढ़ेरों कपड़े सजते हैं,
    नदिया चुप-चुप ऐसे बहती, जैसे अति शरमायी है।
    तन में कम्पन अरु सिकुड़न ले, सर्दी देखो आयी है।।

    अद्भुत पुष्पों से धरती की, शोभा लगती प्यारी है,
    ऊँचे-ऊँचे गिरि शिखरों पर, बर्फ़ छटा अति न्यारी है,
    चहुँ दिशि देखो साँझ-सवेरे, धुन्ध अनोखी छायी है।
    तन में कम्पन अरु सिकुड़न ले, सर्दी देखो आई है।।

    बन्द हो गये पंखे -कूलर, हीटर- गीजर शुरू हुए,
    दाँत बजें सबके ही किट-किट, ठण्डा पानी कौन छुए,
    सर्दी के डर से सबने ही, ली अब ओढ़ रजायी है।
    तन में कम्पन अरु सिकुड़न ले, सर्दी देखो आयी है।।

    कम्बल ओढ़े आग सेकते, मजे चाय के लेते हैं,
    गाजर- हलुआ गरम पकौड़े, मन को खुश कर देते हैं,
    गजक -रेवड़ी- मूँगफली भी, सबके मन को भायी है।
    तन में कम्पन अरु सिकुड़न ले, सर्दी देखो आयी है।।

    धनवान ले रहे मजे शीत के, निर्धन है लाचार हुआ,
    थर-थर काँपे गात हर घड़ी, क्यों यह अत्याचार हुआ?
    बेदर्दी मौसम तूने यह, कैसी ली अँगड़ायी है?
    तन में कम्पन अरु सिकुड़न ले, सर्दी देखो आयी है।।

    अंशी कमल
    श्रीनगर गढ़वाल, उत्तराखण्ड

    मौसमी धूप

    तन को है कितना भाती
    जाड़े की धूप गुनगुनी सी,
    मन मयूर को थिरकाती
    सर्दी की धूप कुनकुनी सी।

    चीर चदरिया कोहरे की
    धरती को छूती मखमल सी,
    ऐसे खिल जाती वसुंधरा
    जैसे कलिका कोमल सी।

    सूरज धीरे धीरे तपता
    धरा की ठंड चुरा ले जाता,
    यूं चुपके से बिना कहे ही
    सदियों की वो प्रीत निभाता।

    यही धूप कितना झुलसाती
    तन को निर्मम गर्मी में,
    मन को बहुत सताती है
    तपिश धूप की गर्मी में।

    सुबह सवेरे से छा जाती
    पांव पसारे वसुधा पर,
    सांझ ढले तक बहुत तपाती
    धरणी के अंतस्तल पर।

    मनभावन पावस में धरती
    खिलती नवल यौवना सी,
    जैसे लगे क्षितिज में गगन से
    मिलती किसी प्रियतमा सी।।

    स्वरचित शची श्रीवास्तव
    लखनऊ।

    शीत ऋतु

    ग्रीष्म ऋतु के ताप से तप कर आए हम,
    बरसातों की बौछारो से निकल कर आए हम।।

    शीत ऋतु की ठंडी हवाओ से खिल उठा है बदन,
    हरियाली है चारों ओर मौसम करे हमें मौन ।।

    खाने में आती है मिठास परिवार हो जाए संग,
    मिलकर बनाते मंगोड़ी, बड़ी,खजले, पापड़ का मौसम।।

    नया साल का होता आगमन फूलों में रहते हैं रंग,
    तरह तरह के रंग होते, स्वेटर चद्दर के संग।।

    ठंडी हवा के झोंको से, खिल उठता है मन,
    सिगड़ी में शेके आग सब मिल, परिवार रहता है संग।।

    सुबह-सुबह ओश की प्यारी बूंदे बिछ जाती चहू चोर,
    सुबह सुबह की प्यारी धूप शरीर में भरे उमंग।।

    संस्कार अग्रवाल

    जाड़ हा जनावथे

    सादा-सादा देख कुहरा आगे।
    खेत-खार मा धुंधरा छागे।

    रुख,राई कुहरा मा तोपागे हे।
    जईसे लागथे अंधरऊटी छागे हे।

    जुड़जुहा के दिन आगे।
    हाथ, गोड़ हा ठुनठुनागे।

    दांत हा किनकिनावथे।
    शरीर जन्मों घुरघुरावथे।

    अऊ जाड़ में चटके मोर गाल हे।
    बताना जी तुहर कईसे हाल हे।

    जीभ हा घेरी-बेरी होंठ ला चाटथे।
    मोर होंठ हा चटके-चटके लागथे।

    गोड़ हाथ में किश्म-किश्म के भेसलिन चुपरथे डोकरा।
    तभोच ले बाबा के हाथ गोड़ हा दिखथे खरभुसरा।

    पईरा, पेरवसी, छेना झिठी
    आनी-बानी के सकेल के लाथन।

    सुत उठ के बड़े बिहनिया ले,
    हमन जी भुर्री बारथन।

    शिताय पईरा ला काकी हा धुकना में धुकथे।
    मुड़ी ला नवा के कका हा आगी ला फुकथे।।

    नोनी हा लकर-लकर पईरा ला ओईरथे।
    सिताय पईरा हा गुगवा-गुगवा के बरथे।

    जल्दी बारव न रे तुहर से कईसे नई बरथे।
    काहथे बाबु हा जाड़ में हाथ गोड़ मोर ठुठरथे।

    बबा उठ गेहे खटिया ले।
    वो हा बड़े बिहनिया ले।

    आगी के अंगरा।
    मागथे डोकरा।।

    डोकरी हा काहथे में आगी बारे नईहव।
    जाड़ में जोड़ी गोरसी में छेना सुलगाये नईहव।

    मुंदहरा ले बिहनिया होंगे।
    बेरा टगागे, रोनिया होंगे।

    मुड़ी ले कंचपी अऊ शरीर ले न काकरो सेटर निकले हे।
    शहरिया बबा हा ठण्ठा ला देख के मार्निंग वाक में नई निकले हे।

    मोठ्ठा-मोठ्ठा बेलांकीट ओढ़े,तभोच ले जाड़ हा जनावथे।

    रात भर ये हाड़ा ला रहि-रहि के पुस के महिना हा कंपकपावथे।

    डोकरी-डोकरा बुढ्हा जवान माईपिल्ला सर्दियाये हे।

    अऊ नान-नान लईका मन
    के नाक ले रेमट बहाये हे।

    हाथ गोड़ सब ठन्ठा पड़गे।
    नाक,कान, ढढ्ढी सब ठुठरगे।

    हमर जईसे गरीब मनखे के जी ला लेवथे।
    एसो के जाड़ हा अबड़ लाहो लेवथे।

    कवि-बिसेन कुमार यादव’बिसु’

    शीत लहर

    भीतर तो सिहरन है तन में,
    बाहर बारिश बरस रही है।
    वृष्टि-सृष्टि दोनों ही मिलकर,
    महि अम्बर को सता रही है।।


    धरती अम्बर सिमट गए हैं,
    इक-दूजे से लिपट गए हैं ।
    बदली बनी हुई है चादर,
    मानों दोनों ओढ़ लिए हैं।।


    जीव-जंतु सब काँप रहे हैं,
    कठिन समय को भाँप रहे हैं।
    शीत लहर सी हवा चली है,
    अग्नि सुहानी ताप रहे हैं ।।


        केतन साहू “खेतिहर”
    बागबाहरा, महासमुंद(छग.)

    जाड़ पर कविता

    अबड़ लागत हे जाड़ संगी
    हाड़ा कपकपात हे।
    आँखि नाक दुनो कोती ले
    पानी ह बोहात हे।।
    अंगेठा सिरा गे भुर्री बुझागे
    रजाई के भीतरी खुसर के
    नींद ह भगागे।।


    संम्पन्नता के स्वेटर ह
    गोदरी ल् बिजरात हे
    गरीब मर के सड़क म
    इंसानियत शरमात हे
    कोनो के थाली म सीथा नई हे
    कोनो महफ़िल म वो फेकात हे
    कोनो जगह पानी नई हे
    कोनो जगह मदिरा बोहात हे
    तिल तिल के मरत इंसानियत ह
    त कोनो रास रंग मनात हे

    अविनाश तिवारी

    शीत में निर्धन का वस्त्र -अखबार

    काया काँपे शीत से, ओढ़े तन अखबार।
    शीत लहर है चल रही, पड़े ठंड की मार।
    पड़े ठंड की मार, नन्हा सा निर्धन बच्चा।
    शीत कहाँ दे चैन, नींद से लगता कच्चा।
    कहे पर्वणी दीन, दीन पर आफत आया।
    देख बाल है निरीह, ठंड से कांपे काया।।

    मानवता है गर्त में, सिमट गया संसार।
    कौन सुने निर्धन व्यथा, कौन बने आधार।
    कौन बने आधार, राह पर बच्चा सोया।
    सोया खाली पेट, भूख को अपना खोया।
    कहे पर्वणी दीन, बाल की देख विवशता।
    कैसा है संसार, शर्म में है मानवता।।

    खोया बचपन राह में, मिला नहीं सुख चैन।
    देख दृश्य करुणा भरा, बहे अश्रु है नैन।
    बहे अश्रु है नैन, देख कर कागज तन में।।
    ऐसा मिला आघात, नहीं है उष्ण बदन में।।
    कहे पर्वणी दीन, रूठ कर किस्मत सोया।
    हृदय बना पाषाण, सड़क पर बचपन खोया।।

    पद्मा साहू “पर्वणी” शिक्षिका
    जिला राजनांदगांव
    खैरागढ़ छत्तीसगढ़

    शीत ऋतु का अंदाज

    शीत ऋतु की ठंडी हवाएं,
    लगता मानो शरीर को चीर के निकल जाए।
    ठिठुरते-कांपते शरीर में भी दर्द हो जाता,
    जब सर्दी का पारा ऊपर चढ़ जाता।

    कंबल रजाई ओढ़ कर काम कोई कैसे करें?
    हीटर के आगे से हटने का मन ना करें ।
    हाथ सुन्न और पैर भी सुन्न हुआ जाता,
    बाहर जाने के नाम से ही दिल घबरा जाता ।

    पैरों में जुराब,कानों पर स्कार्फ सुहाता,
    कपड़ों की तहो में शरीर गोल मटोल बन जाता।
    गरम-गरम खाने से उठता धुआं अच्छा लगता,
    जरा भी ठंडा खाना बेस्वाद लगता।

    ठंडे पानी में हाथ डालने से भी भय लगता,
    रजाई में बैठ मूंगफली,रेवड़ी खाने का मजा आ जाता।
    दिन कब शुरू, कब खत्म हो जाता?
    घड़ी की घूमती सुईयों की तेजी का पता नहीं चलता।

    एक फायदा इस मौसम का बस यही नजर आता,
    बिना बिजली के भी आराम से सोया जाता।
    लगता है जल्द ही यह ऋतु निकल जाए,
    अब तो कड़कड़ाती सर्दी सहनशक्ति के पार हुई जाए।


    -पारुल जैन

    सर्दियों का है मिजाज

    मौसम की रंगत सर्दियों का है मिजाज।
    घनघोर है कोहरा प्रकति का है लिबास।
    देख तेरा बदलता ,आसमान का नजारा।
    लग गई जोरो से ठिठुरन,मानुष बेचारा।


    उड़ने लगी परिंदे आसमान में,
    मछली तैरने लगी समुद्र तल में।
    नभ की पक्षी ,जल की रानी,
    नहीं लगती ठंड इनको सारी।

    चलने लगी है हवाएं,सागर भी लहराए।
    बागों में खिली फूल,देखकर मन भाए।
    बढ़ती रातों की ठंड तनबदन कसमसाए।
    सुबह की जलती अंगेठिया दिल गुदगुदाए।

    कवि डीजेंद्र कुर्रे (भंवरपुर बसना)

    जाड़ा कर मारे ( सरगुजिहा गीत ) 

         
    जाड़ा कर मारे, कांपत हवे चोला
    बदरी आऊ पानी हर बइरी लागे मोला।
    गरु कोठारे बैला नरियात है,
    दूरा में बईठ के कुकुर भुंकात हवे,
    आगी तपात हवे गली गली टोला,
    जाड़ा कर मारे………


    पानी धीपाए के आज मै नहाएन
    चूल्हा में जोराए के बियारी बनाएन
    आज सकूल नई जाओ कहत हवे भोला
    जाड़ा कर मारे……


    बाबू हर कहत हवे भजिया खाहूं
    नोनी कहत है छेरी नई चराहूं
    संगवारी कहां जात हवे धरीस हवे झोला,
    जाड़ा कर मारे………….


    मधु गुप्ता “महक”

  • मशहूर अभिनेता इरफान खान पर दोहे- राजकिशोर धिरही

    मशहूर अभिनेता इरफान खान पर दोहे- राजकिशोर धिरही

    राजकिशोर धिरही द्वारा रचित मशहूर अभिनेता इरफान खान पर दोहे

    दोहा-इरफान

    फिल्मी नायक एक थे,बॉलीवुड की शान।
    काम किए मकबूल में,अभिनेता इरफान।।

    फिल्मी मेकर भी रहे,ऐसे थे फनकार।
    याद करें इरफान को,प्रेमी हैं भरमार।।

    पान सिंह तोमर सभी,करते रहते याद।
    अभिनय था इरफान का,देते जिस पर दाद।।

    कैंसर आया मौत बन,कैसे कब चुपचाप।
    छीन लिया इरफान को,आँसू में हम आप।।

    लेट गए सब छोड़ कर,प्रिय सबके इरफान।
    मिला जिसे था पद्यश्री,अभिनय में सम्मान।।

    अभिनेता जो श्रेष्ठ थे,कहते हम इरफान।
    छोड़ गए तन देश को,फ़िल्म जगत सुनसान।

    राजकिशोर धिरही
    तिलई,जाँजगीर छत्तीसगढ़

  • सावित्रीबाई फुले जयंती पर विशेष कविता – नारी शिक्षा की ज्योति

    सावित्रीबाई फुले जयंती पर विशेष कविता – नारी शिक्षा की ज्योति

    प्रतिवर्ष 3 जनवरी को सावित्रीबाई फुले का जयंती मनाया जाता हैं . यहाँ सावित्रीबाई फुले पर कविता दी जा रही हैं, आपको कैसी लगी सन्देश लिखकर भेजें .

    3 जनवरी को सावित्रीबाई फुले की जयंती पर उन्हें समर्पित कविता। नारी शिक्षा की पथप्रदर्शक और समाज सुधारक सावित्रीबाई फुले के प्रेरणादायक जीवन पर आधारित विशेष काव्य। पढ़ें और जानें उनकी महानता के बारे में।

    सावित्रीबाई फुले जयंती पर विशेष कविता
    सावित्रीबाई फुले पर कविता

    नमन सावित्रीबाई फुले /अंशी कमल

    परहित जनसेवा में जिसने, था तन-मन अपना वारा।
    नमन करे उस सावित्री के, चरणों में यह जग सारा।।

    पितु खण्डोजी धन्य हुए थे, माँ लक्ष्मी भी धन्य हुई।
    सावित्री को जन देखो भू, महाराष्ट्र की धन्य हुई।।
    जिसके कारण तीन जनवरी, तिथि युग-युग तक अमर हुई।
    जिसके श्रम से रूढ़िवाद की, टेढ़ी सारी कमर हुई।।
    जिसके दृढ़ संकल्पों से था, रूढ़िवाद का तम हारा।
    नमन करे उस सावित्री के, चरणों में यह जग सारा।।

    बाल उमर में ही जिसका था, ब्याह ज्योतिबा संग हुआ।
    ज्ञान वीरता संग सौम्यता, लख जन मन सब दंग हुआ।।
    नारी शिक्षा की खातिर थे, जिसने अनगिन कष्ट सहे।
    बाधाएँ लख लाख राह में, अश्रु न जिसके कभी बहे।।
    हर मुश्किल में बढ़ती थी जो, बनकर सुरसरि की धारा।
    नमन करे उस सावित्री के, चरणों में यह जग सारा।।

    कुशल शिक्षिका- कवयित्री के, गुण थे जिसमें भरे हुए।
    जिसके पद चिह्नों पर चलने, आज मनुज दल खड़े हुए।
    रूढ़िग्रस्त समाज को जिसने, शिक्षा का शुचि दान दिया।
    नारी के उत्थान हेतु था, हर निज सुख कुर्बान किया।।
    स्वार्थ पूर्ण जीवन इक पल भी, जिसको तनिक न था प्यारा।
    नमन करे उस सावित्री के, चरणों में यह जग सारा।।

    अंशी कमल
    श्रीनगर गढ़वाल, उत्तराखण्ड

    सावित्री बाई- चमचमाता नगीना/ माला पहल

    सिर पर पल्लू, ललाट पर रेखा लाल,
    मुख पर ओज,चमकता भाल,
    जिनका जन्मदिन है आज,
    ऐसी गौरवमूर्ति सावित्रीबाई को वंदन करता समाज,


    ‘स्त्री शिक्षा की प्रणेता’, ‘प्रथम स्त्री शिक्षिका’ का जिनको मिलता है मान,
    उनको वंदन, शत शत बार प्रणाम ,
    अगर पार न की होती देहरी,
    स्त्री के जीवन में रहती हमेशा दुपहरी,


    प्रथम कदम रखा जो आँगन के बाहर,
    आ गयी स्त्री जीवन में बहार ही बहार,
    वसुंधरा से अंबर तक छाई है स्त्री,
    यह सम्मान दिलाई है सावित्री।


    खाई जिसने गालियाँ, शाप और थपेडे,
    झेले गोबर और मिट्टी के ढेले,
    न डगमगाई,न घबराई,
    अकेले ही लड ली लडाई,


    कोटि कोटि धन्यवाद ज्योतिराव फुले को,
    तभी तो पाया हमने सावित्रीबाई फुले को।
    प्लेग बीमारी ने छीना सावित्रीबाई को,
    पर ‘बालिका दिन’ याद दिलायेगा सावित्रीबाई को ।

    माला पहल मुंबई

    वीरांगना सावित्री फूले/ रामकुमार बंजारे

    पढ़ लो इतिहास के पन्नों को पलट कर
    किसने शिक्षा का जोत जलाया था,
    स्त्रियों ,वंचितों को सबसे पहले
    शिक्षा का अधिकार दिलाया था।

    लोहा लिया था उसने मनुवादियों से ,
    पाखंडवाद और अंधविश्वास का
    नामोनिशान मिटाया था।
    शिक्षा की वह देवी थी जिसने
    अकेले ही क्रांति लाया था।

    कीचड़ फेंके लोगों ने उनके ऊपर
    पग – पग में कांटे बिछाया था।
    वह थी ऐसी वीरांगना जिसने
    डटकर मुकाबला कर विरोध जताया था।

    समता ,स्वतंत्रता ,बंधुत्व का लेकर
    झंडा जिसने उठाया था ।
    ज्योतिबा फूले की थी अर्धांगिनी
    सावित्री फुले नाम को पाया था।

    हम भूल गए उनके उपकारों को,जिसने
    जीवन से हमारे अंधेरा दूर हटाया था।
    ऐसी थी वह स्त्री जिसने
    *भारत माता का नाम बढ़ाया था।

    *रचयिता – रामकुमार बंजारे*

    सावित्रीबाई तुझे सदा नमन/ मनीभाई पटेल

    नारी के सम्मान की ज्योति जलायी,
    शिक्षा का दीपक हर घर में लगाई।
    तूने समाज को राह दिखलाई,
    अधिकारों की लड़ाई की धुन जगाई।

    अज्ञान का अंधकार मिटाने वाली,
    सावित्रीबाई, तू थी प्रेरणादायी।
    शिक्षा का हथियार पकड़ा जो हाथों,
    समाज को बचाया तूने झूठे पाठों।

    तूने नारी को उसका हक दिलवाया,
    हर बच्ची को पढ़ने का अधिकार दिलाया।
    तूने पग-पग पर संघर्ष किया,
    समाज के बंधनों को तोड़ दिया।

    तेरे कदमों से बदलाव की रेखा चली,
    तूने हर दिल में क्रांति की अलख जली।
    तेरे विचारों से आज हम बढ़े,
    तेरी विरासत से नवयुग में चढ़े।

    तेरे बलिदानों को हम न भूलेंगे,
    तेरी राहों पर चलना न छोड़ेंगे।
    सावित्रीबाई, तुझे सदा नमन,
    तेरी जयंती पर तुझे अर्पण।

    तेरे संघर्ष को, हम आगे बढ़ाएंगे,
    तेरे सपनों को, हम साकार कर दिखाएंगे।

    मनीभाई नवरत्न

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    मन चल उस गाँव में – प्रियदर्शनी आचार्य

    रवि रश्मियों का बाजिरथ, जहाँ उतरता गाँव में
    दूर क्षितिज के पार, प्रकृति की छाँव में ।
    मन चल उस गाँव मेंं …..

    शशि की चंद्रकिरणें करती, श्रृंगार देहाती साँझ का
    धरती की तरुणाई में ,लावण्य बरसता वसुधा का ।
    लद जाती आम्र तरु की डाली , आती गेहूँ में जब बाली
    उड़ती भीनी गंध सरसों की, पहनकर पीली चुनरी।
    मन चल उस गाँव में …..

    खेतों में दूर तक फैली रहती ,मखमली हरियाली ,
    जहाँ देखो सज रही, सैम अरु मटर की फली ।
    पोखर में उगती घास भूरी, झूमती रहती मछली
    देख रमणीक छटा को, कोकिल होती मतवाली।
    मन चल उस गाँव मे…..

    जहाँ सजती चौपालों में, गुड़ -गुड़ हुक्के की
    गिल्ली डंडों में होती, भरमार चौके छक्कों की।
    इंटरनेट पब्जी नही ,होते साइकिल के पहिए
    कटी पतंग की डोर के पीछे ,भागते गॉंव के बच्चे ।
    मन चल उस गाँव मे…….

    जहाँ कुर्ता धोती स्वापी का, पहने जो लिबास
    सीधी- साधी वेशभूषा वाला, गाँव का किसान ।
    कुओं और बावडियों से, जल लाती गोपिकायें
    रुपयौवन संपन्ना , प्रसन्नवदना वो बनिताएँ।
    मन चल उस गाँव में…….

    जहां लाज का घूँघट कर, ऑंचल को होंठ से दबाती
    स्वर्ग की अप्सरा भी, देख उन्हें खूब लजाती।
    टर्र -टर्र की ध्वनि गूँजती ,तलैया और ताल में ,
    जीवन का संगीत बजता, पक्षियों के कलरव में।
    मन चल उस गांव में …….

    जहाँ कुल्लड दोना पत्तल की, फैलती खुशबू सौंधी ,
    इसी बहाने चूमने को, मिलती देश की मिट्टी।
    बहा पसीना खेतों में, जो सबका पेट पालता ,
    कर्ज में डूबा वह किसान, सबका अन्नदाता कहलाता ,
    मन चल उस गॉंव में…….

    जहाँ मिट्टी में ही खिलता बचपन, धरती पर जीवन पलता
    देख ऐसे गॉंव को, प्रकृति का अनुराग – अँचल हिलता।
    मन चल उस गॉंव में…..

    प्रियदर्शनी आचार्य (मथुरा)

    चले गाँव की ओर- सुरंजना पाण्डेय

    गाँव के पोखर तालाब,
    बाग बगीचों की वो
    सुंदर शीतल मधुर बयार।
    पेड़ों पे जहाँ लटके है
    रहते झूले बच्चे अपनी,
    धुन में जहाँ वो झूमते हैं।
    पगडंडी बनाते हुए किसान जहाँ,
    सभी व्यस्त खेती के कामों में जहाँ।
    हरी भरी खेतों की क्यारी है,
    फसलों से लहलहाते हर खेत है।
    शुद्ध हवा शुद्ध है पानी जहाँ,
    मौज मनाते है हर दिन लोग जहाँ।
    हर गाँववासी हर रोज ही जहाँ,
    ना कोई चिंता ना ही कोई फिकर,
    शान्त सदा ही जीवन रहता जहाँ।
    ना कोई जीवन की आपाधापी या होड़ वहाँ,
    बेशक कम है सुख सुविधाए तो वहाँ।
    पर नहीं उन्हें कोई गम किसी बात का तो,
    सूखी रोटी और प्याज नून में मजा जहाँ है।
    उन्हें पकवानों का सारा स्वाद मिलता है,
    घड़े के ठंडे पानी में ही तो अमृत मिलता है।
    वो सुख कहाँ मिलता शहरों की भरी भीड़ में ,
    और चकाचौंध कंकरीट के विशाल गुम्बजों में।
    शीतल सौम्य सुचि पवन जहाँ बहती है,
    बहती रहती स्वच्छ धारा जहाँ तो है।
    ऐसा प्यारा गॉंव तो हमारा है,
    भोले सीधे सच्चे जहाँ के लोग हैं।
    रौनक बसती जहाँ के चौपालो में रोज है,
    हरियाली छायी रहती हर गाँवों के कोनो में है।
    बरबस खींचते मेरा मन हर रोज तो है,
    चले एक बार क्यों ना गाँव की ओर है।
    छोड़ ये चकाचौंध भरी जिन्दगी को,
    गुजारे कुछ सुकून के भरे पल तो है।
    जीवन की हलचल को छोड़ हम,
    बिताए चंद खुबसुरत पल गॉंव में हम।

    सुरंजना पाण्डेय

    मेरा गाँव- प्यारेलाल साहू

    छोटा सा प्यारा सा ,
    बड़ा न्यारा मेरा गाँव।
    नीम पीपल बरगद की,
    जहाँ है शीतल छाँव।।

    छोटे छोटे कच्चे घर मगर,
    बड़े हैं लोगों के दिल यहाँ।
    तीन तीन पीढ़ियों के लोग,
    रहते हैं मिलजुल यहाँ।।

    घर के बीचोबीच है,
    बड़ा सा एक आँगन।
    बिछी हुई है चारपाई।
    लगा है दादा का आसन।।

    गाय भैंस बकरी आदि,
    होता है पशुपालन।
    चूल्हा चौका रसोई आदि,
    सब कुछ है यह आँगन।।

    घर की दीवारों पर ही,
    कंडे थोपे जाते हैं।
    बनती है जिससे रसोई,
    सब बड़े प्यार से खाते हैं।।

    सुनहरी लगती सुबह,
    और सुहानी है शाम।
    खेतों में मिलजुलकर,
    करते हैं सब काम।।

    गाँव के मजदूर किसान।
    श्रम की करते हैं पूजा।
    मेहनत ही ईमान धरम,
    और धरम न दूजा।।

    बैलों के गले की घंटी से
    गूंजता है मधुर संगीत।
    आता है निभाना लोगों को,
    यहाँ प्रीत की रीत।।

    शहर में पैसा है।
    पर गाँव में प्यार है।
    प्रकृति ने लुटाया यहाँ,
    सौंदर्य बेशुमार है।।

    अभावों के बीच भी है,
    अपार खुशियाँ यहाँ।
    प्रेम प्यार की ‘प्यारे’
    आबाद है दुनिया यहाँ।।

    प्यारेलाल साहू मरौद छ.ग.

    बहुत याद आये गाँव- ऊषा जैन उर्वशी

    चलो चलें अब गाँव की ओर,
    सुखद सुहानी वहां की भोर।
    हवा जहाँ बहती है संदली,
    खींचे मन को वहाँ की डोर।

    मेरे घर का छोटा सा आँगन,
    अपनेपन से भरा वो उपवन।
    पीपल के तरुवर की छय्या,
    रिश्ते नातों से वोभरा चमन।

    उषा की लाली जब छाए,
    रतनारी नदिया कर जाए।
    बाजे जब पायल छम छम,
    पनिया भरने गोरीजो जाए।

    खटिया बिछी है हर आँगन ,
    सीधा-साधा हर एक जन मन।
    सुख-दुख साँझा अपना करते,
    दूर करें अपनी हर उलझन।।

    गौ माता की जहाँ सेवा होती,
    हर आँगन में गाय विचरती।
    गोबर से शुद्ध उपले बनाते,
    दूध दही की नदिया बहती।

    खेत खलियानो की शोभा न्यारी,
    प्यार की यहाँ लगती फुलवारी।
    पेड़ों के झुरमुट में जुगनू चमके,
    चँदा लाए भर चाँदनी की गगरी।

    कोमल फूल से यहाँ के बच्चे ,
    मन के होते जो बिल्कुल सच्चे ।
    सम्मान सदा देते वो बड़ों को,
    बड़ों से सुनते शूरवीरों के चर्चे।

    शुद्ध यहाँ का भोजन होता,
    रहन-सहन सीधा सा होता।
    सारा गाँव लगे परिवार सा,
    सुख दुख में साथ खड़ा होता।

    याद आ रहा मुझको गाँव,
    मिल जाती फिर से वह ठाँव।
    मेरे गाँव की वो पगडंडियाँ,
    रखती थी जहाँ झूम के पाँव।

    उन्मुक्त पवन सा मेरा गाँव,
    धूप में मिलती पेड़ों की छाँव।
    गिल्ली डँडा वहाँ का मैदान,
    प्यार के ऊपर लगे ना भाव।

    ऊषा जैन उर्वशी

    याद आता है मुझें मेरा गाँव- रिम्मी बेदी

    कच्ची गलियाँ,
    पीपल की छाँव,
    याद आता है मुझें मेरा गाँव।

    वो गाँव की भोर,
    बैलों के गले में बँधी,
    घंटियों का शोर।

    खुले आँगन,
    आँगन में खटिया,
    सर सर बहती निर्मल नदियाँ।

    साझे आँगन,
    साझे चुल्हे,
    दादु के पाँव पे चढ़ कर बच्चे झूला झूले।

    दिवारों पे लगी छेनों की कतारें,
    खुली छत पे सोते-सोते गिनना तारे।

    धूप सेकता, रिश्तों का डेरा,
    तब होता ना था,तेरा मेरा।

    ना आज की चिंता,ना कल की फिक्र,
    चाचु,ताऊ की बातों में जवानी के किस्सों का ज़िक्र।

    कच्चे घरों में पक्के रिश्ते,
    तब घरों में लोग नहीं,
    रहते थे फ़रिश्ते।

    कबूतरों की गुटर गूँ,
    कौवों का काँव-कॉंव,
    सच में बहुत याद है,
    मुझें मेरा गाँव।

    रिम्मी बेदी,नज़र
    रायपुर छत्तीसगढ़

    याद आया गाँव मुझको – अंशी कमल

    याद आया गाँव मुझको, आँख फिर ये नम हुई।
    मन-अजिर बरसात देखो, आज बेमौसम हुई।।

    थे न होटल भी कहीं पर, अरु न कोई मॉल थे।
    अरु नहीं आनन्द खातिर, भी सिनेमा हॉल थे।।

    दूर अपनों से करें जो, यों न इंटरनेट थे।
    स्वस्थ थे सब मस्त थे सब, पर न मोटे पेट थे।।

    वत्स हों या नर व नारी, हों युवा या वृद्ध जन।
    साथ खाते बात करते, थे सभी के शुद्ध मन।।

    थे मनुज के सँग मवेशी, नित्य रहते शान से।
    झूम उठता गाँव सारा, प्रेम से लद गान से।।

    थे सभी नित साथ रहते, रौनकें हर द्वार थी।
    हर अजिर में नित्य खुशियों, की अतुल भरमार थी।।

    दुख सुखों को बाँटने सब, एक आँगन बैठते।
    दर्प में निज चूर होकर, थे न कोई ऐंठते।।

    थे न टाइल भित्तियों पर, ऊपले सजते सदा।
    खाट सजती हर अजिर में, तरु हरित सजते सदा।।

    उम्र लम्बी थी न चाहे, हर सदन दीवार की।
    थे मगर रिश्ते जुड़े दृढ़, डोर सच्चे प्यार की।

    अंशी कमल
    श्रीनगर गढ़वाल, उत्तराखण्ड

    गाँव और परिवार- हुमा अंसारी

    संयुक्त परिवार का खूबसूरत चित्रण है यह !
    जो अब मुख्तसर ही देखने को मिलता ।
    गाँव से लोगों का पलायन हुआ , सभी ने शहर की ओर रुख किया ।
    एक कुलबा बना कर रहते थे सभी,
    एक जमाना हुआ करता था ऐसा ।
    पशुओं के बिना अधूरा सा लगता था जहाँ ,
    थे वे भी जीवन का अमूल्य हिस्सा ।
    परिवार के सदस्य जैसे हुआ करते थे सभी,
    रिश्तों और खाद्य पदार्थों में शुद्धता का मिश्रण था ।
    मेहनत कश लोग हुआ करते थे,
    बड़ा ही सुखद जीवन था ।
    ऐसा नज़ारा तो अब सिर्फ ख्वाब बन गया ।
    एकल परिवार का अब रिवाज बन गया ।

    हुमा अंसारी

    बागों की अमराई मुझसे छीन न लेना- शफात अली खान

    भटक रहा मन अब भी उन खेतों मेड़ों पर
    जामुन महुआ आम और इमली पेड़ों पर।।

    गाँव का बूढ़ा पीपल मौन निहारे सब कुछ
    महक भरी पुरवाई मुझसे छीन न लेना।।

    चिर प्यासे पनघट अब कहाँ बचे गाँवों में
    खनक चूड़ियों की ना पड़ती अब कानों में।।

    भूल गयी रस्ता पगडंडी ख़ुद गाँवों की
    अलस भरी अँगड़ाई मुझसे छीन न लेना।।

    रंग से भरी बाल्टी जो तन पर ढरका दे
    नेह से अपने जो अन्तर्मन को महका दे।।

    चंचल नयनों से सुधबुध हर लेने वाली
    राधा की वो स्मृति मुझसे छीन न लेना।।

    नहीं रहा वह गाँव बात यह मान रहा हूँ
    दुनिया बदल चुकी है मैं भी जान रहा हूँ।।

    बरसों से बसकर यादों में नित्य बुलाती
    झूठ ही सही मिताई मुझसे छीन न लेना।।

    कहाँ खो गये चटक रंग टेसू फूलों के
    कजरी ,चैता ,गीत मिेटे सावन झूलों के ।।

    चरखी रहट ढेकली पुरवट कहाँ जा छुपे
    सपनों की शहनाई मुझसे छीन न लेना ।।

    शफात अली खान

    एक आशियाना ऐसा था- संस्कार अग्रवाल

    गाँव के गलियारों से निकल कर, बाहर आ गया हूं मैं।
    वापस जाना है अब तो, वापस कैसे जाऊं मैं?

    वो पीपल की शीतल छांव, दोस्तों का फसाना।
    याद आता है अब मुझको, वापस कैसे लाऊं मैं?

    वो खेलकूद और चोरी, टोली बना के होली।
    उनकी खुशी में ख़ुश थे, दुख में सबका रोना।।

    वो हरियाली और बरसाते, गर्मी सर्दी की बातें।
    सबके साथ रहते थे जो, अब वो बात कहां है।।

    मिलते थे सबसे हम तो, दोस्तों की टोली सुहानी।
    गांव में रहते थे जब, अलग ही थी जिंदगानी।।

    वो फसलों की एक रौनक, मिट्टी की खुशबू थी जो।
    चूल्हे की रोटी चावल, याद आते हैं मुझको।।

    वो अपनापन अब नहीं है, जीवन में रंग नहीं है।
    गांव में रहते थे जब, तभी रहते थे खुश बहुत हम।।

    संस्कार अग्रवाल

    ऐसा मेरा गाँव था- शोभा सोनी

    शहरों की चमक में आके हम धोखा खा गए ।
    सबके बहकावे में आके हम शहर आ गए ।

    पैसा कमाने की लालच में भरमा गए ।
    सुकून की छाँव छोड़कर बेहद पछता गए ।

    पीपल की अब वो बैठक याद आती है।
    कच्चे मकानों की वो प्रित याद आती है ।

    याद आता है वो माँ का चूल्हें वाला रोटा ।
    वो शुद्ध गाय का दूध वो असली घी रोटा ।

    शहर के खाने में वो प्यार की मिठास कहाँ ।
    धातुओं के बर्तनों में माटी वाली बात कहाँ।

    कहाँ वो नन्हें बच्चों की किलकारियाँ ।
    रात दिन वो शौर शराबा खेल कूद मस्तियाँ ।

    शहरों में कहाँ वो फसलें लहराती है ।
    सुन सान बस्तियाँ बस गाड़ियों की आवाज है ।

    ऊँचे ऊँचे मकानों में रहते बन्द दरवाजे हैं ।
    पड़ोसी – पड़ोसी कभी होती नहीं बात है ।

    मन तन्हा रोता है कहाँ अपने पन का संवाद है ।
    प्यार ही बरसता था वहाँ अपनत्व का भाव था ।

    मैं जिन गलियों को छोड़ आया वहाँ जीवन आबाद था ।

    सच कहूँ स्वर्ग से सुंदर प्यारा मेरा गाँव था ।

    बहारों सा महकता खुशबू भरा मेरा गाँव था ।

    हर मौसम निराला था जहाँ ऐसा मेरा गाँव था ।

    शोभा सोनी बड़वानी म,प्र,

    संयुक्त परिवार- पं.शिवम् शर्मा

    टुकड़ों – टुकड़ों में बँट कर
    रह गया वो संसार,
    जिसे हम बुलाते थे परिवार…

    वो दादा दादियों की कहानी
    वो चाचा के कंधों पर
    झूलती जवानी…

    वो सब कुछ खत्म हो गया
    बदल गए सबके व्यवहार,
    ना जाने कौन खा गया ?
    वो बातें सारी,
    जिन्हें हम कहते थे संस्कार…

    दुनिया की इस भीड़ में,
    ना जाने कहाँ छूट गया
    वो संयुक्त परिवार…

    एक ही चूल्हे में पकती थी
    पूरे घर भर की रोटियाँ,
    एक ही आँगन में खनकती थी,
    दादी माँ चाची भाभी सभी की
    एक साथ चूड़ियाँ…

    साँझ ढले बच्चे आ घेरते
    दादा जी की खटिया,
    और फिर शुरू हो जाती थी
    वो लंबी लंबी कहानियाँ…

    कोई दबाता पैर तो कोई हाथ,
    कोई सिरहाने लगाता तकियाँ,
    बातों ही बातों में दे दी जाती थी
    सबको संस्कारों की मीठी मीठी
    गोलियाँ…

    रीतियाँ कुरीतियाँ गीतों में ही
    समझ आ जाती थी,
    क्या होंगी भविष्य की नीतियाँ,
    बड़ो के साथ खाना खाते खाते
    बच्चो को बचपन मे ही पता चल
    जाती थी…

    आज उलझनों में
    खाना नही खाया जाता,
    तब बड़ी बड़ी उलझन खाना
    खाते खाते ही मिट जाती थी…

    घर की नींव सदैव
    छत को जकड़े रहती थी,
    अब तो बिना नींव के ही छत
    खम्बों पर टिकी रहती हैं…

    जैसे घर की उलझन हर कमरे
    में बिखरी दिखती हैं,
    परिवार और परवरिश झूठी
    मुस्कान लिए आज सिर्फ तस्वीरों में ,
    दीवारों पे लटकी दिखती हैं….

    पं.शिवम् शर्मा…

    गाँव का दृश्य- मीनाक्षी वर्मा

    हरियाली से भरा हुआ है गाँव।
    जहां मिलती है वृक्षों की छाँव।।

    कैसे भूलूँ उन गाँव की,
    सुंदर गलियों को।।
    जहाँ उपलों से सजाते ,
    थे लोग दीवालों को।।

    पशुओं की आवाज से ,
    भोर होता है सबका।
    जहाँ बैलों की घंटी ,
    मन मोह लेती थी सबका।।

    जहाँ मीलों दूर ,
    साइकिल के पहिए चलते थे।।
    जहाँ सरपंच पेड़ों के नीचे ,
    मन की बातें करते थे।।

    गिल्ली और डंडे के।
    हम भी तेंदुलकर कहलाते थे।।
    जीते जाने पर यारों के ,
    कंधों पर टाँगे जाते थे।।

    जहाँ देसी घी , चूल्हे का खाना।
    मन को बड़ा लुभाता था ।।
    जहां बच्चों का बचपन।।
    खेल मिट्टी में बड़ा होता था।।

    जहाँ मेले के मधुर दृश्य दिखाई देते थे।
    बाप के कंधों पर अक्सर बच्चे होते थे।।

    मीनाक्षी वर्मा
    इटावा उत्तर प्रदेश

    मेरा गाँव- अविनाश यादव

    मेरा गाँव है सबसे प्यारा

    एक परिवार के जैसे है सारा।

    एक दूसरे के दुख सुख में हम
    मिलजुल कर सभी बनते सहारा।
    हमारे गाँव में जानवर भी
    हमारे परिवार का हिस्सा है।
    हम में कोई भेदभाव नहीं
    हम सबका एक ही किस्सा है।
    हमारे कच्चे मकानों में
    मिलता हमको इतना सुकून।
    चेन कि नींद हम सोते जिनमें
    हमारे कानों में चले मधुर हवाओं की धुन।
    हमारे कच्चे मकान है चारों ओर
    दिन भर गूँजें जिनमें मस्ती का शोर।
    जो चाहे घर में हम घुस जाए
    यहाँ कोई नहीं आ सकता है चोर।
    रात दिन चले यहाँ शीत लहर
    जहाँ चाहे घूमो आठों पहर।
    हमको किसी का डर नहीं
    यहां कोई नहीं आ सकता कहर।
    जन्म से आखरी दम तक चैन से जीते हैं
    दिन भर मेहनत मस्ती करके खूब खाते पीते हैं।
    हमें कोई बीमारी का डर नहीं
    बस रहना चाहे जीवन भर यही।
    क्योंकि हमारे सर है बड़े बूढों के आशीर्वाद की छाँव।
    ऐसा है यह मेरा गाँव
    मेरा गाँव ये मेरा गाँव

    अविनाश यादव

    ग्रामीण जीवन- डॉ सुषमा तिवारी

    ग्रामीण जीवन..
    होता देखो पावन,
    रहता है भाईचारा
    चारों ओर हरदम।

    नहीं कोई पराया
    सभी लगते अपने,
    भेदभाव से दूर ही
    सजाते हैं ये सपने।

    गाँव में रहते हैं सभी
    मानव और पशु भी,
    होते हैं सभी सहयोगी
    एक दूसरे के उपयोगी।

    नही कोई है दिखावा
    नहीं है सोफा – अटारी,
    चारपाई पर सोकर भी
    आसमान का आनंद लेते।

    सभी बातें खुलकर हैं करते
    न मनमें दुराव छिपाव रखते,
    सुख-दुख के बनते हैं साथी
    सभी को अपना हैं मानते।

    भारतीय सभ्यता व संस्कृति
    को बचाकर रखते ग्रामवासी,
    छोटे बड़ों का करते लिहाज़
    नहीं करते ये सभी मनमानी।

    कविता -©®डॉ सुषमा तिवारी
    नोएडा, गौतम बुद्ध नगर, उत्तर प्रदेश
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    सुहाना गाँव हमारा- उदय झा

    वो गाँव की सुहानी हवाएँ,
    वो खेत के फसले लहराए,
    वहाँ चिड़ीये भी चहचहाए,
    वो गाँव हमें बहुत याद आऐ।

    शाम को जुगनु चमचमाए,
    हर तरफ है फल महकाए,
    नानी-दादी कहानी सुनाए,
    भाई-बहन संग मौज मनाए।

    मिलजुल कर सब गप्पे लड़ाऐ,
    हर कोई सबका साथ निभाए,
    शहरो में सब पराए बन जाए,
    गाँव में हर कोई प्रेम लुटाए।

    उदय झा मुम्बई

    मेरा गाँव- मीता लुनिवाल

    शहरों से प्यारा मेरा गाँव,
    सबसे प्यारा मेरा गाँव।
    वो खेत खलियान लहराते,
    ठंडी हवा के झोंके ,
    बारिश में मिट्टी की सौंधी खुशबू
    मन को भाति है ।
    ताजा ताजा साग सब्जियाँ।
    वो आम ,अमरूद के पेड़ों ,
    पर चढ़कर फल तोड़ना,
    वो गलियों में दौड़ लगाना,
    चौपाल पर बड़े बूड़ो की बैठक।
    वो सर्दी में अलाप जलाकर तपना,
    नदी तालाब में तैरना नहाना,
    वो गाँव के मेले झूले बायस्कोप,
    मिट्टी के खेल खिलौने ,
    गाँव की तो बात निराली,
    हर घर अपना सा लगता।
    गाँव का खाना चूले पर बना खाना,
    सबसे प्यारा मेरा गाँव।

    मीता लुनिवाल
    जयपुर, राजस्थान

    हमारा गाँव – इशिका गुप्ता

    हमारा गाँव सबसे न्यारा ,जग में सबसे प्यारा, खेत- खलिहान ,बाग-बगीचे,
    सबसे सुहाने मन को भावे।

    गाँव की गलियाँ,धूल-मिट्टी, खेलते हम, सब लुका-छिपी।

    खेतों में ज़ाते लाते हरी- हरी घासिया,
    चराते गाय भैंसिया।।

    देती गईया हमको दूध- मिठाईया,
    बनता गईया के गोबर से ,ईंधन, जलता है हमरी चूल्हिया ।।

    हमारा गाँव खेतों से हरा -भरा,
    हैं यहाँ तरह तरह के फूल, पेड़- पौधे ,चारों तरफ़ हरियाली।।

    हमरा गाँव सबसे न्यारा जग में सबसे प्यारा, हम बच्चे मिलकर खेलते हैं , कबड्डी-कबड्डी। ।

    हमारा गाँव मे होती सुबह में शांति,
    पक्षी-पक्षियों को होती सुबह चहचहाहट गली -गली ।।

    हमारे गाँव में सब मिलजुल के रहते हैं,
    एक चबूतरे पे बैठकर सब आपसे में बातें करते हैं।

    हमारा गाँव सबसे न्यारा जग में सबसे प्यारा, बाँगो में झूले, झूलते हैं,
    कच्ची, खट्टी-मीठी ,खूब आमियाँ खाते हैं। ।

    नहीं होता यहाँ सर छुपाने का कोई डर, खेत- खलिहान में भी, पूआल के झोपड़ियाँ बना लेते हैं। ।

    गाँव की मिट्टी में बसती है, अपनापन,
    मिट्टी की खुशबू खिंच लाती है, अपने गाँव, की ओर। ।

    गाँव की पगडण्डी छू कर पैरों को चलते,गाते गीत झूम- झूम,बच्चे।।

    हमारा गाँव सबसे न्यारा जग में सबसे प्यारा। ।

    मेरे अल्फाज- इशिका गुप्ता

    गाँव का आँगन- डॉ शीतल श्रीमाली

    नव वर्ष की पहली सुबह नव वर्ष की पहली सुबह गाँव के आँगन में ,खिली खिली पहली सुबह ।
    अंगड़ाई लेती, सर्दी में , गुनगुनाती ,गाँव के आँगन में इठलाती पहली सुबह ।
    नव वर्ष की पहली सुबह बड़े बूढ़े अनुभव से गुणे बाँध पगड़ी साफा
    करें इजाफा ,
    खाट बैठ बतियाते हैं ।
    जवान चल पड़े खेत पर जो किसान कहलाते हैं ।
    गाँव के आंगन में चूल्हा ,
    सूलगाती पहली सुबह नव वर्ष की, पहली सुबह लगे काम पर सब अपने-अपने ।
    खुली आँखों से देख रहे नए भारत के आत्मनिर्भर सपने उम्मीद लिए गाय खुँटे से बँधी
    गाय खुशी से रंभाती है दीवार चढ़े आशा के उपले ,
    कई सूरज से दिख जाते हैं ।
    देखकर तस्वीर गाँव की शहर में तबीयत सुधर जाती है ।
    मुझे मेरे गाँव की याद बहुत आती है ।
    नव वर्ष की पहली सुबह गाँव के आंगन में आंखें मलती आई सुबह ,
    ना ज्यादा की चाहा है ना थोड़े का दुख।
    यही तो है ,
    इस जीवन में जीवन जीने का सुख ,
    खुद को मेहनत में डाले हैं ।
    जब पसीना बहाया किसानों ने ,तब धरती ने धंन धान निकाले हैं |मेहनत में ही समाई धरती की धाती है ।
    नव वर्ष की पहली सुबह गाँव के आंगन में आंखें मलती आई सुबह,
    नव वर्ष की पहली सुबह बच्चों , को नहीं चाहिए महंगे खिलौने ।
    नींद अच्छी आती है चाहे हो फटे ,भी बिछोने माँ का आँचल पकड़े निकल पड़े।
    माँ आशा से बंधा देहाती कोई ,गीत गाती है कभी-कभी गीत की धुन गुनगुनाती है ।
    नहीं रोकती काम करते हाथों को
    काम करती जाती है ।
    गाँव के आँगन में खिलखिलाती आई सुबह ,
    चिड़ियों सी चहकती आई सुबह।
    बहती नदिया सी लहराती सुबह।
    गाँव के आँगन में खिलखिलाती सुबह।

    डॉ शीतल श्रीमाली
    उदयपुर राजस्थान

    गाँव का नजारा- रेखा शर्मा

    मेल मिलाप बाकी हैं।
    गाँव के गलियारों में ।
    इकट्ठे बैठ धूप सेंकना।
    दुख सुख साझे करना।
    एक आँगन में ही ।
    इंसान पशुओं का बैठना।
    वो सुबह शाम को ।
    गाय का रंभाना सुनना ।
    घर के दरवाजे पर ।
    एक बुजुर्ग का बैठना ।
    आते जाते को बुलाना।
    हाल-चाल बताते जाना ।
    ऐसा अदभुत खूबसूरत नजारा।
    गाँव गलियारे में हैं।
    दीवारों पर उपलों का सजना। चारपाई पर सब का बैठना।
    ऐसा रोमांचक नज़ारों का ।
    मिलना असंभव होता जा रहा हैं।
    गाँव से शहरों का पलायन।
    इंसान से इंसानियत का पलायन हैं।
    गाँव क्या छूटा।
    बहुत कुछ छूट गया।
    इकट्ठे बैठ बातें करना ।
    एक दूसरे को समझना।
    गाँव जान हैं हमारी।
    जो गंवा रहे हैं हम।
    जो गाँव में मिला ।
    वह कहीं और ना मिला ।
    गाँव में सादगी, प्यार, भोलापन मिला।
    छलपान सें दूर अद्भुत नजारा मिला।।।

    रेखा शर्मा
    चंडीगढ़

    चलो चले आज गाँव – साबिया रब्बानी

    चलो चले आज गाँव हम अपने,
    घुमेंगे हम आज गाव में अपने,
    नए उमंग नए चाह के संग,
    करेंगे अपना काम आज हम सब,
    (नाना, नानी, खाला, मामा
    सब से आज मिलेंगे हम सब) *2
    चलो चले आज गाँव हम अपने,
    घुमेंगे हम आज गाँव में अपने,
    खिचेंगे पानी कुए से,
    नदिया में डुबकी लेंगे,
    जा कर हम सब बगिया में,
    फिर आखँ मिचौली खेलेंगे,
    छूट गया जो बचपन अपना,
    उसको आज फिर जीएंगे।
    चलो चले आज गाँव हम अपने,
    घुमेंगे आज गाँव में अपने,
    मवेशी को चरा देकर,
    तितली के संग फिर उड़ेंगे,
    थक जाएंगे अगर हम सब,
    वही खेतो में फिर बैठेंगे,
    छोड़ शहर के प्रदूषण को ,
    आज शुध हवा हम सब लेंगे ।
    चलो चले आज गाँव हम अपने,
    घुमेंगे आज गाँव में अपने,
    माटी के चुल्हा में खाना आज बना कर खाऐंगे,
    अपनो के संग कुछ पल बीती बाते कर लेंगे,
    खेलेंगे गिली डंडा,
    फिर कच्ची सड़को पर हम दौड़ेगे,
    जीएंगे आज उन जीवन को,
    जहाँ से जीवन बस्ती है,
    कच्ची घर में रहते है,
    पर दिल के पक्के होते है,
    गाँव मे जो मानव रहते है,
    वह सच्ची जीवन जीते है,
    दिखावे के दुनिया से वह कोसों दूर रहते है,
    चलो चले आज गाँव में अपने,
    घुमेंगे आज गाँव में अपने।।

    साबिया रब्बानी
    वाराणसी, उत्तर प्रदेश

    वो पुराने दिन- संजय कुमार

    पुराने दिन बीते
    सुहाने दिन बीते।
    वो बरगद का पेड़ पुराना,
    बीता जहाँ अपना याराना।
    याद है पल-पल की सब बातें
    भूलूँ कैसे वो गुजरा जमाना।

    जब घर होते थे मिट्टी के
    आँगन भी होती थी कच्ची।
    धूल भरी गलियाँ थी बेशक,
    आज के सड़कों से भी अच्छी।
    परिवार में अपनत्व का अहसास
    सुख,दुख में सब थे आसपास।
    संयुक्त परिवार की बातें खास
    बच्चे दादा,दादी के पास।

    अब तो पलंग मिलेगी घर- घर,
    पहले चारपाई पर होती थी बसर।
    अब तो गाँव में भी बदलाव आया
    हो गए अब गाँव भी शहर।
    वो संझा चूल्हा लकड़ी,गोइठा का
    फूँक- फूँक के बनाते व्यंजन,
    हँसी ठिठोली भी होती थी
    ननद,भौजाई के बीच खूब मनोरंजन।
    गौमाता के लिए भोजन
    पहले निकाला जाता था,
    पशु,पक्षियों को पानी भी
    खूब पिलाया जाता था।
    अब तो शहर में
    ये सारी बातें हैं रीते,
    पुराने दिन बीते
    सुहाने दिन बीते।।

    स्वरचित मौलिक रचना

    संजय कुमार © (अध्यापक )
    भागलपुर ( बिहार )

    छोटा सा घर गाँव का – नागेन्द्र नाथ गुप्ता,

    छोटा सा घर गाँव का
    है विहंगम दृश्य
    धूप सेंकते ठंड में
    घरवाले हैं बैठ कर
    मिल जुल सबके संग।
    ढोर जानवर हैं बंधे
    घर के बाहर आज
    खाएं चारा भूसा खली
    देते दूध घी और छाछ।
    हरियाली चहुंओर है
    रौनक है भरपूर
    पास पड़ोसी इनके सभी
    होते कभी न दूर।
    चिपके हैं दीवार पर
    कन्ड़े उपले गोबर के
    बिना गैस का ईंधन हैं
    कार्य करें ये ऊपर के।
    यहां अमीरी है नहीं
    पर दिल से सभी अमीर
    प्रेम और आनंद बिन
    होते सभी गरीब।
    ऐसी सुहानी सुबह तो
    कहां सुलभ है आज
    गाँव देहात में आज भी
    मनमर्जी का राज।

    नागेन्द्र नाथ गुप्ता, ठाणे (मुंबई)

  • नववर्ष पर हिंदी कविता

    नववर्ष पर हिंदी कविता

    इस वर्ष नववर्ष पर कविता बहार द्वारा निम्न हिंदी कविता संकलित की गयी हैं आपको कौन सा अच्छा लगा कमेंट कर जरुर बताएं

    नववर्ष पर हिंदी कविता

    नववर्ष पर हिंदी कविता : महदीप जँघेल

    निशिदिन सुख शांति की उषा हो,
    न शत्रुता, न ही हो लड़ाई।
    प्रेम दया करुणा का सदभाव रहे,
    सबको नववर्ष की हार्दिक बधाई।

    विश्व बंधुत्व की भावना हो विकसित,
    भाईचारा और प्रेम की हो पढाई।
    प्रेम से जियो और जीने दो सभी को,
    सबको नववर्ष की हार्दिक बधाई।

    सदियों से विश्व गुरु रहा है भारत,
    शांति व शिक्षा की जोत है जगाई।
    संस्कृति सभ्यता की नित रक्षा करें,
    सबको नववर्ष की हार्दिक बधाई।

    निर्धनों व असहायों की मदद कर,
    जीवन में करें पुण्य की कमाई।
    मानव जीवन को सार्थक बनाएँ,
    सबको नववर्ष की हार्दिक बधाई।

    नशा,ईर्ष्या,मद, लोभ, त्याग दे,
    अहंकार प्रतिकार त्यागें हर बुराई।
    नेक कर्म कर कुछ नाम कमाएं,
    सबको नववर्ष की हार्दिक बधाई।

    नारियों का सम्मान करें हम,
    ये सब कसम खा ले हर भाई।
    दया धर्म और मान रखे हम,
    सबको नववर्ष की हार्दिक बधाई।

    महदीप जँघेल
    ग्राम- खमतराई
    वि.खँ- खैरागढ़,राजनांदगांव
    छत्तीसगढ़

    नई साल पर कविता

    (दोहा छंद)
    नई ईसवी साल में, बड़े दिनों की आस।
    .
    स्वागत नूतन वर्ष का, करते भाव विभोर।
    गुरु दिन भी होने लगे, मौसम भी चित चोर।।
    .
    माह दिसंबर में रहे, क्रिसमस का त्यौहार।
    संत शांता क्लाज करे, वितरित वे उपहार।।
    .
    सकल जगत में मानते, ईसा ईश महान।
    चला ईसवीं साल भी, इसका ठोस प्रमान।।
    .
    साज सज्ज सर्वत्र हो, खूब मने यह रीत।
    रहना मेल मिलाप से, भली निभाएँ प्रीत।।
    .
    ईसा के उपदेश का, सब हित है उपयोग।
    जैसे सब के हित रहे, प्राणायाम सुयोग।।
    .
    देख सुहाना दृश्य कवि, गँवई, मंद,गरीब।
    भाव उठे मन में कई, करते नमन सलीब।।
    .
    नूतन वर्ष विकास की, संगत क्रिसमस रात।
    गृह लक्ष्मी दीपावली , सजे उजाले पाँत।।
    .
    उच्च मार्ग देखें निशा , मन में उठे विचार।
    सुन्दर पथ ऐसा लगे, इन्द्र लोक पथ पार।।
    .
    ऊँचे चढ़ते मार्ग से, लगता हुआ विकास।
    लगातार ऊँचे चढ़े, छू लें चन्द्र प्रकाश।।
    .
    नीचे सागर पर्व सा, ऊपर लगे अकाश।
    तारक गण सी रोशनी, फैले निशा प्रकाश।।
    .
    नभ को जाते पंथ को, खंभ रखें ज्यों शीश।
    नव विकास सदमार्ग की, राह बने वागीश।।
    .
    आए शांता क्लाज जो, शायद यही सुमार्ग।
    उपहारों से पाट दें, गुरबत और कुमार्ग।।
    .
    शहर सिंधु सरिता खड़े, ऐसे पुलिया पंथ।
    लगते पंख विकास के, त्यागें सभी कुपंथ।।
    .
    नई ईसवीं साल का , नया बने संकल्प।
    तमस गरीबी क्यों रहे, नवपथ नया विकल्प।।
    .
    अभिनंदन नव साल का, करिए उभय प्रकार।
    युवकों संग किसान के, श्रमी सपन साकार।।
    .
    बिटिया प्राकृत शक्ति है, बढ़े प्रकाशी पंथ।
    पथ बाधाओं रहित हो, उज्ज्वल भावि सुपंथ।
    .
    सत पथ भावी पीढियाँ, चलें विकासी चाल।
    सबको संगत लें बढ़ें, रखलें वतन खयाल।।
    .
    नये ईसवीं साल में, बड़े दिनों की आस।
    रोजगार अवसर मिले, नूतन पंथ विकास।।
    .
    जीवन में किस मोड़ पर, हों खुशियाँ भरपूर।
    साध चाल चलते चलो, दिल्ली क्यों हो दूर।।
    .
    विकट मोड़ घाटी मिले, अवरोधक भी साथ।
    पार पंथ खुशियाँ मिले, धीरज कदमों हाथ।।
    .
    सड़क पंथ जड़ है भले, करते हैं गतिमान।
    सही चाल चलते चलो, नवविकास प्रतिमान।
    .
    पथ में अवरोधक भले, पथ दर्शक भी होय।
    पथिक,पंथ मंजिल मिले, सागर सरिता तोय।
    .
    उच्च मार्ग अवधारणा, सोच विचारों उच्च।
    जातिवर्ग मजहब नहीं,उन्नति लक्ष्य समुच्च।।
    .
    पाँव धरातल पर रहें, दृष्टि भले आकाश।
    चलिए सतत सुपंथ ही, होंगे नवल विकास।।
    .
    रोशन करो सुपंथ को, सुदृढ स्वच्छ विचार।
    रीत प्रीत विश्वास का, करिए सदा प्रचार।।
    .
    नई साल नव पंथ से , मिले नए सद्भाव।
    दीन गरीब किसान के, अब तो मिटे अभाव।।
    .
    नव पथ नूतन वर्ष के, संकल्पी संदेश।
    नूतन सृजन सँवारिए, नूतन हो परिवेश।।
    .
    क्रिसमस का त्यौहार है, सर्व देश परदेश।
    सबको ये खुशियाँ रहें, मिले न दुखिया वेश।!
    .
    शांता क्रिसमस में बने, जैसे दानी कर्ण।
    दीन हीन दिव्यांग को, लगता अन्न सुवर्ण।।
    .
    बनो शांता क्लाज करो, उपहारी शृंगार।
    मानव बम आतंक सब, करदें शीत अंगार।।
    .
    नव पथ नूतन साल के, लिख दोहे इकतीस।
    शर्मा क्रिसमस पे करे, नमन मसीहा ईस।।


    © बाबू लाल शर्मा “बौहरा”, विज्ञ

    नव वर्ष का अभिनंदन

    १)
    बीते लम्हों की तरह
    अब के पल यूँ  ना बीत जाए
    तो आओ कुछ इरादों को ,कुछ वादों को
    संकल्पों से पूरा करें
    मस्त होकर जन-जन।
    नव वर्ष का अभिनंदन।।


    २)
    दुख के घड़ी  बहुत बितायें
    अब कुछ अच्छा हो जीवन में
    हमें नित प्रगति  करना है
    गांधी मत की संगति करना है
    तोड़ परवश का बंधन।
    नव वर्ष का अभिनंदन।।

    ३)
    गुजरे जमाने को दबाए हुए
    इतिहास के पन्नों पर।
    खुली किताब रहे नया जमाना
    ताकि भीनी खुशबू से उड़े,
    प्रेम ,अहिंसा ,अमन।
    नव वर्ष का अभिनंदन।।


    ४)
    चेहरों पर मुस्कान खिले
    मन के सारे ग़म घुले
    सजाये ऐसी काव्य रंगोली
    बने रात दीवाली और दिवस होली
    हंसे निश्छल,जैसे कोई बचपन।
    नव वर्ष का अभिनंदन।।


    ✒️ मनीभाई’नवरत्न’

    आज लगने लगा मौसम नया

    आज लगने लगा मौसम नया ,
    नई कुछ बात है ।
    सूरज की रज को छेड़ती
    शबनम की बरसात है।
    खिल उठे सबके मन की कली
    हुई कैसी करामात है।
    थिरक रहा गगन पवन
    गा रहा डाल पात है ।
    जुड़ रहे सब के दिल यहां
    बंध रहा एक एक नात है।
    उत्सव मनाता जन-जन
    मानो इस साल की बारात है।
    और सही तो है नव वर्ष आया
    दूल्हे की तरह ।
    और शायद इसी वजह ।
    टूट रहे हैं सबके मन के बंधन।
    मेरी तरफ से आप लोगों को
    “नव वर्ष का अभिनंदन”।

     मनीभाई ‘नवरत्न’, 

    नव वर्ष का अभिनंदन

    सांसे चलना भूल जाये
    दिल धड़कना भूल जाये
    सूरज चमकना भूल जाये
    पानी बहना भूल जाये
    कोई परवाह नही,कोई शिकवा नही
    मगर तू भूल जाये
    एक पल,एक लम्हा के लिए
    मुझे यह गवारा नही
    ना भूलो तुम,ना भूले हम
    ना भूले ये रिश्ता अपनी बंधन
    नव वर्ष की अभिनंदन ।

    मनीभाई नवरत्न

    हैप्पी न्यू ईयर

    लम्हा-लम्हा फिसल चला है ,समय की डोर।
    छोड़ो भी जाने दो ,आ गई उजली भोर ।
    दिल तो खुशियां चाहे ,ज्यादा ज्यादा मोर ।
    आज अभी जो मिला है ,मिलेगा क्या और?
    तो चले आओ मेरे निअर,
    नाचो गाओ मेरे डियर ।
    सेलिब्रेट करेंगे ….बोलके चीअर।
    हैप्पी न्यू ईयर, हैप्पी न्यू ईयर।
    ओ माय डिअर , सेलिब्रेट विथ चीयर ।
    हैप्पी न्यू ईयर, हैप्पी न्यू ईयर।

    मनीभाई नवरत्न

    नव वर्ष आया सखी

    शीतल बयार लिये,
           नूतन श्रृंगार किये,
                  नव वर्ष आया सखी,
                           कलश  सजाइए !
    नव उपहार लिये,
         नवल निखार लिये,
                 खुशियाँ अपार लिये,
                              आनंद मनाइए!
    बागन बहार लिये
            फूलन के हार लिये,
                  भ्रमर गुंजार लिये
                               तोरण बंधाइए!
    सुमन सुगंध लिये,
         नव मकरंद लिये,
                 हृदय उमंग लिये,
                          उत्सव मनाइए!
    विगत बिसार दीजे
         अनुभव सार लीजे
                श्रम अंगीकार कीजे
                            आगे बढ़ जाइए।
    छल छिद्र त्याग कर,
           राग द्वेष राख कर,
                    निर्मल हृदय धर,
                               प्रेम अपनाइए!
    काम ऐसे नेक करें,
         उन्नति की सीढ़ी चढ़ें,
                  देश व समाज बढ़े,
                          सोचिए विचारिए!
    स्वार्थ भाव फेंक कर,
           विनय विवेक  भर ,
                    राष्ट्र के विकास का जी
                                 संकल्प बनाइये!

                 ——— सुश्री गीता उपाध्याय

    स्वागत नव वर्ष

    स्वागत नव वर्ष , नूतन रहे हर्ष
    स्वागत तुम्हारा , सहर्ष नव वर्ष
    नूतन वर्ष का फैला रहे उजास ,
    नव वर्ष में हो अब , नया उत्कर्ष ।
    दे दो तुम ऐसा अब , सुधा अमृत
    पुराना सभी हो जाए , विस्मृत
    नसीब बदल जाए , सबका अब तो ,
    काम होने लगें सभी के , उत्तम ।
    नयी सोच विचार , नया हो अंदाज़
    कर दें पुराने को , नजरअंदाज
    ईर्ष्या , छल – कपट , निकालें मन से ,
    रह न पाये अब , कोई धोखेबाज़ ।
    भर लो नव चेतना , हर्षोल्लास
    नज़दीकियाँ सभी को , आएँ रास
    मुस्काते चेहरे खिलें , फूल सम ,
    खुशियाँ लाएँ , पूरी हो हर आस ।
    सुख – समृद्धि हो , कायम शांति हो
    सुख सपनों में , नयी क्रांति हो
    मानवता का दीप , जले हर ओर ,
    नव वर्ष में , कोई भी न भ्रांति हो ।
    हरित हरियाली लिए , हो संसार
    छाये जीवन में , चहुँ ओर बहार
    नूतन वर्ष का करने , अभिनंदन ,
    शुभकामना देते , हम बार – बार ।

    रवि रश्मि ‘ अनुभूति ‘

    नये साल की शुभकामना

    विधान :—    सुगीतिका छंद ( 25 मात्रा )
           आदि लघु (1)पदांत दीर्घ लघु (21)
                         यति (15,10 )

    गुजरते पुराने साल का,
                            हृदय से आभार।
    नये साल की शुभकामना,
                            कीजिए स्वीकार।

    अबतक जो अनुभव मिले हैं
                              रखेंगे वह याद।
          कुछ नया फिरसे करने का,
                              करके शंखनाद।
          शुभ भावों से हृदय भरकर,
                                 करें मंगलचार।
    नये साल की शुभकामना,
                              कीजिये स्वीकार!

    हम विगत पलों से सीख ले,
                            कर नवल अनुमान।
    नव पथ पर चल पड़े हैं अब,
                             नव सृजन की ठान।
    नयी सोच लेकर बढ़ चले,
                                   भर प्रेम उद्गार।
    नये साल की शुभकामना,
                                कीजिये स्वीकार।

    शुभमय हो आपका हर पल,
                             मिले सुख उपहार।
    खुशियों से हो दामन भरा,
                             मिले न कभी हार।
    सदाचार जीवन में भरे,
                              करें सब उपकार।
    नये साल की शुभकामना,
                              कीजिये स्वीकार!

    ^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
                     ✍सुश्री गीता उपाध्याय

    स्वागत! जीवन के नवल वर्ष

    स्वागत! जीवन के नवल वर्ष
    आओ, नूतन-निर्माण लिये
    इस महा जागरण के युग में,
    जागृत जीवन अभिमान लिये।

    दीनों-दुखियों का मान लिये,
    मानवता का कल्याण लिये।
    स्वागत! नवयुग के नवल वर्ष
    तुम आओ स्वर्ण-विहान लिये।

    संसार क्षितिज पर महाक्रान्ति
    की चालाओं के गान लिये,
    मेरे भारत के लिए नई
    प्रेरणा, नया उत्साह लिये;

    मुर्दा शरीर में नये प्राण
    प्राणों में नव अरमान लिये,
    स्वागत! स्वागत! मेरे आगत!
    तुम आओ स्वर्ण-विहान लिये।

    युग-युग तक नित पिसते आये,
    कृषकों को जीवन-दान लिये,
    कंकाल मान रह गये शेष,
    मज़दूरों का नव माण लिये।

    श्रमिकों का नव संगठन लिये,
    पददलितों का उत्थान लिये,
    स्वागत ! स्वागत! मेरे आगत
    आओ तुम स्वर्ण विहान लिये।


    जीवन की नूतन क्रान्ति लिये
    क्रान्ति में नये-नये बलिदान लिये
    स्वागत ! जीवन के नवल वर्ष
    आओ, तुम स्वर्ण-विहाल लिये।

    नव वर्ष का सवेरा

    नये साल का आया पावन सवेरा
    पावन पवित्र कर दे मन तेरा मेरा |

    फूलों सा कलियों सा मन मुस्करायें
    भौंरों के गीतों सा हम गुनगुनायें
    धरती गगन गूंजें चिड़ियों का कलरव
    आओ मन की माला में हम गूथ जायें

    मोहक मनोहर लगे दुनिया प्यारा |
    नये साल का आया पावन सवेरा ||

    अम्बर के रंगों से धरती सजायें
    पतंगों के तारों से नभ जगमगाये
    नदियों के निर्मल धारा सा जीवन
    झरनों के जल सा प्रेम झरझरायें,

    नूतन हवा नव बहे जीवन धारा |
    नये साल का आया पावन सवेरा ||

    अरुण लालिमा का तिलक हम लगायें
    सफलता के पथ पर कदम हम बढ़ायें
    सुखमय सुनहरा नवल प्रवाह पल में
    कठिन जिंदगी को सरल हम बनायें,

    सुख समृद्धि का हो दिल में बसेरा |
    नये साल का आया पावन सवेरा ||

    हरियाली फसलों सा तन झूम जाए
    धन धान्य से पूर्ण आंगन मन भाये
    सफलता कदम चूमती जाये हर पल
    नव वर्ष की ढेरों शुभकामनाएं |

    मिटेगा गमों का कुहासा अंधेरा |
    नये साल का आया पावन सवेरा ||

    रचनाकार-रामबृक्ष बहादुरपुरी,अम्बेडकरनगर

    नए साल की सबको शुभ मंगल बधाई

    सुबह सवेरे कूकी कोयल चिड़िया चहचहाई
    आँखें खुलते ही नई नवेली पहली किरण मुस्काई
    मेरे दिल की गहराइयों से सबसे पहले
    नए साल की सबको शुभ मंगल बधाई

    धरती पर ओस की चादर लिपट लिपट आई
    बाग में खिली कली खुलकर खिलखिलाई
    देखो नाच-नाच कर तितलियाँ भी दे रही
    नए साल की सबको शुभ मंगल बधाई

    ठंडी हवा ने चारों तरफ अपनी हुकूमत जमाई
    पर बच्चे-बूढ़े सबने छोड़ी अपनी-अपनी रजाई
    दीवानों सा जोश लेकर देने निकले हैं सभी
    नए साल की सबको शुभ मंगल बधाई

    नए साल के स्वागत में सबने पलकें हैं बिछाई
    सभी बालाओं ने द्वार पर रंगोली है बनाई
    झूम झूम कर मस्ती में दे रहे हैं सारे
    नए साल की सबको शुभ मंगल बधाई

    फोड़े पटाखे बच्चों ने फुलझड़ियाँ जलाई
    ठूँस-ठूँस कर खिला रहे एक दूजे को मिठाई
    सबकी जुबान पर चढ़ा है बस एक ही राग
    नए साल की सबको शुभ मंगल बधाई

    मंदिर में मूरत के आगे सब ने कतार लगाई
    श्रद्धा सुमन अर्पित कर ईश्वर की वंदना गाई
    शुभ मंगल प्रीतिमय आशीष की कामना संग
    नए साल की सबको शुभ मंगल बधाई

    आशीष कुमार
    मोहनिया, कैमूर, बिहार

    नव वर्ष पर कुण्डलिया छन्द

    आया  नूतन  वर्ष यह ,चहुँ दिश भरा उमंग l
    हुआ  प्रफुल्लित  देख  मन ,सदा रहे ये रंग ll
    सदा  रहे  ये  रंग , मिलें  खुशियाँ  मनचाहीं I
    रहे समय अनुकूल , मिटें घड़ियाँ अनचाहीं ll
    कह ‘माधव’कविराय ,पड़े न दुःख की छाया I
    उन्नति  करो  हज़ार , साल सुन्दर जो आया Il

    प्यारा लगता है बहुत , देख  गज़ब उल्लास I
    दिन – दूना निशि चौगुना , होता रहे विकास ll
    होता   रहे  विकास , मिले  सम्मान  प्रतिष्ठा l
    धन  वैभव  भरपूर , सदा  उत्तम  हो  निष्ठा Il
    कह ‘माधव’कविराय ,तुम्हें फल दे यह न्यारा l
    नशा व्यसन  कर त्याग , वर्ष नूतन ये प्यारा ll

    #स्वरचित
    #सन्तोष कुमार प्रजापति “माधव”
    #कस्बा,पो. – कबरई जिला – महोबा(उ. प्र.) 
         

    खुशहाल हो नववर्ष – महदीप जंघेल

    भूले बिसरे ,बीते कल को,
    भूले दुःख संताप के गम।
    पुलकित होगा रोम-रोम,
    मन हर्षित होगा अनुपम ।।

    रवि स्वरूप उज्ज्वलित हो जीवन,
    चाँद -सा दमकता रहे ।
    धन संपदा की हो बरसात,
    भाग्य का हीरा चमकता रहे।।

    नव वर्ष लाए जीवन में उजाले,
    खुले आपके भाग्य के ताले।
    सदैव आशीर्वाद मिले उस ईश्वर का,
    जो सम्पूर्ण जगत को पाले।।

    जिंदगी में, न कोई गम हो,
    आँखे,न कभी नम हो।
    मनोकामनाएँ हो पूर्ण सभी,
    कि खुशियाँ, न कभी कम हो।।

    सब जीवों से प्रेम करो और,
    खुशियाँ बाँटो अपार।
    बुराइयाँ दूर करो,नववर्ष में
    अपनाओ सदैव सदाचार।।

    माँ वसुधा का सम्मान करें,
    वृक्ष लगाकर करें श्रृंगार।
    जल का हम सदुपयोग करें,
    करें सदैव परोपकार।।

    सेवा और सत्कार करे हम,
    मानवता का कार्य करे हम।
    औरों को सुख पहुंचाने को,
    परमार्थ का ध्यान धरे हम।।

    नूतन वर्ष में ऐसा कुछ कर जाएँ,
    कि,जिंदगी खुशियों से भर जाये।
    सत्कर्मो की करें कमाई,
    नववर्ष की आप सबको,
    बहुत बहुत बधाई।।


    महदीप जंघेल
    निवास-खमतराई
    तहसील-खैरागढ़
    जिला -राजनांदगांव(छ.ग)

    नव वर्ष का स्वागत करें

    भुलाकर शिकवा गिले
    नव वर्ष का स्वागत करें

    आया नववर्ष हमारे द्वार
    दस्तक दे रहा बारम्बार
    बीते बरस की बातों को
    हम दें अब तो बिसार
    नये विचारों का नवागत करें ।।1
    नववर्ष का स्वागत करें •••

    बाँटे खुशियाँ आपस में
    हो बस प्यार ही प्यार
    नव संकल्प लेकर हम
    भेदभाव मिटा दें यार
    विचारों में अपने आगत करें ।।2
    नववर्ष का स्वागत करें •••

    सबसे भाव प्रेम नेह का
    दोस्ती का दें उपहार
    अभिनंदन के साथ है
    सपना का नमस्कार
    गलत बातों को अनागत करें ।। 3
    नववर्ष का स्वागत करें •••

    अनिता मंदिलवार सपना
    अंबिकापुर सरगुजा छतीसगढ़

    नववर्ष की शुभकामनाएँ

    नववर्ष की शुभकामनाएँ ,
    आओ हम खुशी मनाएँ ।

    विनाश का रास्ता छोड़कर,
    प्रगति पथ पर बढ़ते जाएँ ।

    संदेश यही है नववर्ष पर,
    दीप सा हम जलते जाएँ ।

    साहस रखना कभी न डरना,
    यही लक्ष्य हम धरते जाएँ ।

    जैसे दीप बाती संगी साथी,
    हम भी साथ निभाते जाएँ ।

    निराश कभी न होना सपना,
    उजास दिलों में भरते जाएँ ।

    अनिता मंदिलवार सपना
    अंबिकापुर सरगुजा छतीसगढ़

    नव वर्ष में हो नवसृजन

    नव वर्ष में हो नवसृजन
    सदभावना से करे अभिनंदन
    उज्जवल मय जीवन में हो हषॆ
    ऐसा हो सबका नववर्ष

    आपकी आँखों में सजे है जो भी सपने,
    और दिल में छुपी है जो भी आशायें!
    यह नया साल उन्हें सच कर जाए;
    आप के लिए यही है हमारी शुभकामनायें

    अनिता मंदिलवार “सपना”
    अंबिकापुर सरगुजा छतीसगढ़

    शुभ आगमन हे नव वर्ष

    शुभ आगमन हे नव वर्ष
    शुभ आगमन हे नव वर्ष
    वंदन अर्चन हे नूतन वर्ष
    अभिनंदन हे नवागत वर्ष
    नतमस्तक नमन हे नव्य वर्ष।

    खुशियों की सौगात लाना,
    रोशनी की बरसात लाना,
    चंद्रिका की शीतलता बरसाना
    नव सृजन मधुमास लाना।


    क्लेष, विषाद,कष्ट मिटाना
    जो बीत चुका अतीत बुरा
    उसको न तुम पुन: दोहराना
    कातर मन का क्रंदन धो जाना।


    नफ़रत मिटाना उल्फत जगाना
    दर्द का तुम मर्ज़ लाना
    सावन प्यासा है मेरे मन का
    मधुरिम झड़ी फुहार लाना।


    मधुर हास परिहास बनकर
    पीड़ा का संसार हरकर,
    आहट अपनी मुझको दे जाना
    तप्त निदाघ में भी कुसुम खिलाना।


    दहलीज़ पर रंगोली बनकर
    मेरे मन का बुझा दीप जलाना
    बचपन की वो हंसी ठिठोली लाना
    कैद है जिसमें खुशियों का खज़ाना।

    नव प्रीत लिए नव भाव लिए
    आशाओं का अंबार लिए
    धीरे से हँसकर आना
    नव प्राण जीवन में जगाना।


    कितने ही नववर्ष आए
    मर्म मन का मेरा समझ न पाए
    आतप में भी स्निग्धता लाना
    शूलों में व्यथित कुसुम खिलाना।


    हे नूतन वर्ष आशा है तुझसे
    राग द्वेष रहें दूर मुझसे
    रूठे हुए को सद्भाव देना
    माँ वीणापाणि का आशीष देना।


    हर हाल में हर रूप में
    शुभ मंगलमय विहान लाना
    सुबरन कलम का धनी बनाना
    सर्वे भवन्तु सुखिन:का भाव लाना।

    कुसुम लता पुंडोरा

    साल जो बदला है

    साल जो बदला है तो थाली को बदल दो,
    कानों में लटकती हुई बाली को बदल दो।
    नए साल में कुछ ऐसा कमाल तो कर लो
    साले को बदल दो औ साली को बदल दो।।1


    काम बदलना है तो सीवी को बदल दो,
    गाड़ी को बदल दो औ टीवी को बदल दो।
    नए साल में कुछ ऐसा धमाल तो कर लो,
    हो गयी पुरानी तो……बीवी को बदल दो।।2


    खाना जो पकाना है तो चूल्हे को बदल दो,
    दर्द अगर होता है तो कूल्हे को बदल दो।
    नए साल में कुछ ऐसा निहाल तो कर लो
    हो गया पुराना तो…..दूल्हे को बदल दो।।3


    हाल जो बेहाल है तो फिर हाल बदल दो,
    धीमी पड़ी रफ्तार तो फिर चाल बदल दो।
    नए साल में कुछ ऐसा बवाल तो कर दो,
    मिल गया ठिकाना तो ससुराल बदल दो।।4

    पैकेट वही रक्खो मगर सामान बदल दो,
    पड़ोसन जो तड़पाये तो मकान बदल दो।
    राहुल का मरियम से तो निकाह करा दो,
    दहेज में फिर पूरा पाकिस्तान बदल दो।।5


    शाह को मिलता है जो सत्कार बदल दो।
    काम कराने का वो…संस्कार बदल दो
    सरकार का जो काम है वो काम तो करे,
    सो गयी सरकार तो… सरकार बदल दो।6

    दुश्मनी की सारी वो.. तकरार बदल दो,
    अपनों के लहू से सने तलवार बदल दो।
    पत्थर जो चलाये उसे उसपार तो भेजो,
    जो डूब रही नौका तो पतवार बदल दो।।7


    अब पाक परस्ती के समाचार बदल दो,
    नापाक इरादों का वो व्यवहार बदल दो।
    कश्मीर जो मांगे तो तुम लाहौर को घेरो,
    भारत का पुराना वही आकार बदल दो।।8


    ©पंकज प्रियम

    ऐ नववर्ष !

    आज सारा विश्व उल्लसित है
    नव वर्ष में नव-उमंगों के साथ,
    विगत की खट्टी-मीठी यादों को,
    इतिहास के पन्नों में बाँट,
    स्वागत है तेरा.. नया साल !
    प्रतिक्षित नयन तुम्हें निहार रहे हैं
    लेकर कई सवाल।

    शायद!तुम कुछ नया छोड़ सको
    और भारत के इतिहास में
    स्वर्णिम-पन्ने जोड़ सको

    क्या सत्य ही तुम
    कुछ कर पाओगे?
    देश के गहरे जख़्म भर पाओगे ?

    अरे!!
    देश का एक वर्ग तो
    तुम्हें जानता ही नहीं ।
    क्या है नववर्ष?क्या उमंगें?क्या हर्ष?

    जिनकी सुबह भूख से होती हो ,
    तब रात खाने को सूखी रोटी हो।
    और किसी-किसी को वो भी नसीब नहीं,
    बदन पर कपड़े
    और सिर पर छत भी नहीं,
    वो क्या जाने क्या है नया साल ?
    जो जीवन जीते हैं खस्ता हाल।

    इन झूठे स्वप्न और आडंबरों से,
    दिन और महीनों के व्यर्थ कैलेंडरों से
    उनका क्या वास्ता?
    जिनका जीवन है काँटों भरा रास्ता ।

    जिस दिन उनके घर चुल्हा जलता है
    आँखों में नववर्ष का सपना पलता है।

    झाँककर देखो उनके दिलों में,
    उनको साल का कुछ पता नहीं
    जो जीते हैं फूटपाथ पर
    और मरते भी वहीं हैं।
    न हो नसीब जिनके लाशों को क़फन
    उनके जीवन में कभी नववर्ष होता नहीं है ।

    ऐ नववर्ष!
    क्या सच में तुम.. कुछ कर पाओगे ?
    भूखों को रोटी, गरीबों को घर दे पाओगे?
    हिंसाग्रस्त देश को, कोई राह दोगे?
    नफरत भरे दिलों में, चाह दोगे?

    गर ऐसा है तुम्हारे दामन में कुछ
    तो स्वागत है तुम्हारा हर्षित मन से
    वरना तुम भी यूँ ही बीत जाओगे
    बीते वर्ष की तरह रीत जाओगे।।

    सुधा शर्मा
    राजिम छत्तीसगढ़

    ऐ नववर्ष !

    आज सारा विश्व उल्लसित है
    नव वर्ष में नव-उमंगों के साथ,
    विगत की खट्टी-मीठी यादों को,
    इतिहास के पन्नों में बाँट,
    स्वागत है तेरा.. नया साल !
    प्रतिक्षित नयन तुम्हें निहार रहे हैं
    लेकर कई सवाल।

    शायद!तुम कुछ नया छोड़ सको
    और भारत के इतिहास में
    स्वर्णिम-पन्ने जोड़ सको

    क्या सत्य ही तुम
    कुछ कर पाओगे?
    देश के गहरे जख़्म भर पाओगे ?

    अरे!!
    देश का एक वर्ग तो
    तुम्हें जानता ही नहीं ।
    क्या है नववर्ष?क्या उमंगें?क्या हर्ष?

    जिनकी सुबह भूख से होती हो ,
    तब रात खाने को सूखी रोटी हो।
    और किसी-किसी को वो भी नसीब नहीं,
    बदन पर कपड़े
    और सिर पर छत भी नहीं,
    वो क्या जाने क्या है नया साल ?
    जो जीवन जीते हैं खस्ता हाल।

    इन झूठे स्वप्न और आडंबरों से,
    दिन और महीनों के व्यर्थ कैलेंडरों से
    उनका क्या वास्ता?
    जिनका जीवन है काँटों भरा रास्ता ।

    जिस दिन उनके घर चुल्हा जलता है
    आँखों में नववर्ष का सपना पलता है।

    झाँककर देखो उनके दिलों में,
    उनको साल का कुछ पता नहीं
    जो जीते हैं फूटपाथ पर
    और मरते भी वहीं हैं।
    न हो नसीब जिनके लाशों को क़फन
    उनके जीवन में कभी नववर्ष होता नहीं है ।

    ऐ नववर्ष!
    क्या सच में तुम.. कुछ कर पाओगे ?
    भूखों को रोटी, गरीबों को घर दे पाओगे?
    हिंसाग्रस्त देश को, कोई राह दोगे?
    नफरत भरे दिलों में, चाह दोगे?

    गर ऐसा है तुम्हारे दामन में कुछ
    तो स्वागत है तुम्हारा हर्षित मन से
    वरना तुम भी यूँ ही बीत जाओगे
    बीते वर्ष की तरह रीत जाओगे।।

    नव वर्षारंभ

    नव वर्षारंभ पर
    मिट जाए सारे कलंक,
    हो जायें जुदाई-जुदाई
    नव वर्ष की बधाई-बधाई
    बज उठी उमंग बिगुल,
    अंतरपट की है वफाई।
    जिन्दगी जन्नत सी हो,
    न हों कोई हरजाई…
    नव वर्ष की बधाई-बधाई
    दसों दिशाओं से मिले,
    सफल प्रखर मधुराई।
    मधुर-मधुर जीवन पथ,
    बनी रहे सुखदाई…
    नव वर्ष की बधाई-बधाई
    अनुपम आप जगत के,
    न हो कभी तन्हाई ।
    सुखद के पीहूर और
    विजयी के बजे शहनाई…
    नव वर्ष की बधाई-बधाई
    नव वर्षारंभ पर
    मिट जाए सारे कलंक,
    हो जायें जुदाई-जुदाई
    नव वर्ष की बधाई-बधाई

    जगत नरेश

    नए -वर्ष का नया सवेरा आने वाला है :-

    कुछ बीत गया है और कुछ आने वाला है ।
    एक वर्ष जीवन से और घट-जाने वाला है ।

    खट्टे – मीठे कुछ यादें मन मे छुपे हुए है ।
    जो कभी हँसाने तो कभी रुलाने वाला है ।

    लड़खड़ाना मत नए मोड़ देख कर सफऱ में ,
    क्योंकि गिरे तो यहां नही कोई उठाने वाला है ।

    अपने मन की बस सुनना आगे इस सफर में ।
    क्योंकिं हरेक व्यक्ति राह से भटकाने वाला है।

    वक्त के साथ चलोगे ग़र वक्त के हिसाब से ।
    तो वो तुम्हें मंजिल के क़रीब लेजाने वाला है ।

    सारे गीले-शिकवे मिटा दो हर गम मन से हटा दो ।
    आने वाला पल अनन्त खुशियां लाने वाला है ।

    जो बीत गई सो बात गई भूला दो बीतें लम्हों को ।
    क्योंकिं नए -वर्ष का नया सवेरा आने वाला है ।

    -आरव शुक्ला रायपुर , (छ .ग)

    है भास्कर तेरी प्रथम किरण

    है भास्कर तेरी प्रथम किरण,
    जब वर्ष नया प्रारम्भ करे।
    जन जन की पीड़ा तिरोहित कर,
    नव खुशियो को प्रारम्भ करे।
    इस धरती,धरा, भू,धरणी पर,
    मानवता का श्रृंगार झरे।
    अब विनयशील हो प्राणी यहाँ,
    बस भस्म तू सबका दम्भ करे।
    है भास्कर तेरी……..

    तेरा-मेरा,मेरा-तेरा सब,
    त्याग के नव निर्माण करे।
    आपस में ऐसा समन्वय हो,
    मिल सृष्टि का कल्याण करे।
    उत्पात,उपद्रव,झगड़ो का,
    क्या मोल है ये आभास रहे।
    भाईचारे का कर विकास,
    हर धर्म का हम परित्राण करे।
    है भास्कर तेरी…..

    अब देख मनुज की पीड़ा को,
    आँखों में नीर निरन्तर हो।
    दुःख दर्द सभी का साझा रहे,
    मानवता अंत अनन्तर हो।
    उत्तुंग शिखर पर संस्कृतियां,
    गाएं केवल भारत माँ को।
    निज देश हित बलि प्राणों की,
    प्रणनम्य, जन्म जन्मान्तर हो।

    जब जब भी धर्म ध्वजा फहरे,
    तिरंगा वहाँ अनिवार्य रहे।
    उद्घोषित कोम का नारा जहाँ,
    जय हिन्द सदा स्वीकार्य रहें।
    गीता,कुरान,गुरु ग्रंथ साहब,
    बाइबिल के रस की धार बहे।
    सब माने अपने धर्म यहाँ,
    पर भारत माँ शिरोधार्य रहें।

    हर पल हर क्षण जननी का हो,
    हर भोंर रम्य,अभिराम रहे।
    सुरलोक स्वर्ग धरा पर हो,
    मनभावन नित्य जहाँन रहे।
    माँ भारती जग में हो विख्यात,
    ब्रम्हांड ही हिंदुस्तान बने।
    मन में सबके वन्दे मातरम् ,
    और मुख से जन गण गान रहे।

       विपिन वत्सल शर्मा
           सागवाडा(राज.)

    स्वागत नूतन वर्ष

    नूतन वर्ष लेकर आये,
               नव आशाओं का संचार।
    नई सोच व नई उमंग से,
                मानवता की हो जयकार।।
    कठिन राहों का साहस से,
                डटकर करें सदा सामना।
    खुशियाँ लेकर आये उन्नीस।
                 नव वर्ष की शुभकामना।।
    प्रेम भाव का दीप जले,
                 हो हर मन में उजियारा।
    सारे जग में अब बन जाये,
                 अपना ही यह भारत प्यारा।।
    जले ज्ञान का दीपक सदा,
                  मिटे जगत से अंधकार।….
    नूतन वर्ष लेकर आये,
               नव आशाओं का संचार।
    नई सोच व नई उमंग से,
                मानवता की हो जयकार।। …..
    बँधे एकता सूत्र में हम सब,
                नव वर्ष में मिले यही वरदान।
    भारत भू की एकता जग में,
                 बन जाये सबकी पहचान।।
    मिट जाये हर मन से अब,
                 राग द्वेष का मैल सारा।
    किरणें फैले पावनता की,
                 हर आँगन खुशियों की धारा।।
    अन्तः मन की जगे चेतना,
                बहे मानवता की अब धार।।….
    नूतन वर्ष लेकर आये,
               नव आशाओं का संचार।
    नई सोच व नई उमंग से,
                मानवता की हो जयकार।। ……
                       ……….भुवन बिष्ट
                       रानीखेत (उत्तराखंड )

    नावां बछर आगे

    हित पिरित जोरियाइ के एदे आगे रे संगी।
    नावां नावां सीखे के करव ,
    नावां बछर आगे रे संगी।

    जून्ना पीरा बिसरा के , निकता बुता करव ग।
    चारी चुगली भूला के , मया के सुरता करव ग।
    सत ईमान ल हिरदे म भर ले,
    जिन्गी म तोर कदर आगे रे संगी।
    नावां बछर आगे रे संगी
    नशा ल बैरी बना के, तन ल बने सिरजावव।
    नोनी बाबू ल पढ़ा लिखा के, परिवार ल अंजोर करावव।
    जम्मो के हांसी मुख म लाके, जिन्गी म तोर सुधार आही रे संगी।
    नावां बछर आगे रे संगी। पान झरे ड़ोंगरी अप

    न के, हरियाय के परन करले।
    सुग्घर होही फूल फुलवारी, जियरा म गुनन करले।
    मेहनत कर ले चेत लगाके,
    जिन्गी के नावां पीका उलहा जाही रे संगी।
    नावां बतर आगे रे संगी।

    नावां बछर आगे रे संगी, नावां बछर आगे जी।
    नाम बगर जाही रे संगी, नावां बछर आगे जी।

    तेरस कैवर्त्य (आँसू)
    सोनाडुला, (बिलाईगढ़)
    जि. – बलौदाबाजार (छ. ग.)

    लेकर आया नूतन वर्ष

    नव आशाओं की किरणें,
    लेकर आया नूतन वर्ष।
           अब धरा में फैले हरियाली,
           शीश में हो खुशहाल कलश।
    हिंसा बैर भाव अज्ञानता,
    मिटे जग से यह कटुता।
            ज्ञान के चक्षु खुल जायें,
            मानव मानवता दिखलायें।
    बिते वर्ष दशक युगान्तर,
    मिटा न पाये कालान्तर।
            व्याप्त जग में है भयंकर,
            राजा रंक का ही अंतर।
    एक बगिया के हैं फूल,
    रंग भिन्न एक हैं धूल।
            एक है सबका बनवारी,
            सिंचे मानवता की क्यारी।
    राग द्वेष की बहे न धारा,
    हिंसा मुक्त हो जगत हमारा।
             सद्गगुणों को हम अपनाकर,
             झलक एकता की दिखलाकर।
    नमन करें सदा भारत माता को,
    चहुँ दिशा में खुशहाली फैलाकर ।
               सोच नई व नई उमंग से,
               भर दें ज्ञान का अब तरकश।
    नव आशाओं की किरणें,
    लेकर आया नूतन वर्ष।।
             

          …….भुवन बिष्ट
                रानीखेत (उत्तराखंड )

    नव वर्ष ये लाया है बहार

    नव वर्ष ये लाया है बहार,
      फैले खुशियाँ जीवन अपार।
        मंगल छाये घर घर बसंत,
           दुख दर्द मिटे पीड़ा तुरन्त।।
             
    पावन फूलों की बेला हो,
        जीवन बस प्रीति मेला हो।
          हर आँगन गूंजे किलकारी,
             मनभावन फूलों की क्यारी।।
                         
    झनके वीणा के सुगम तार,
      सुर की सरिता की सरल धार।
         उन्नति पाओ उतंग शिखर,
           आखर नवल बन हो प्रखर।।

    कर दो प्रकृति सुंदर श्रृंगार,
      हर युवा के कांधे पे हो भार।
        जीवन मधुमास सा प्यारा हो,
           ये देश हमारा न्यारा हो।।

    सुख जंगल मंगल छा जाये,
       धन की वर्षा मिलकर पाये।
           चहूँ दिश में फैले प्रेम प्यार,
              नव वर्ष का लो मीठा उपहार।।

    सरिता सिंघई कोहिनूर

    नववर्ष पर कविता

    पलकें बिछाए खड़े हम सभी
    दिलों में है हमारे अपार हर्ष
    शुभ मंगल की कामना संग
    स्वागत है तुम्हारा हे नववर्ष!

    रसधार बहे सर्वदा प्रेम की
    सुख समृद्धि में हो उत्कर्ष
    सर्वत्र शांति की कामना संग
    स्वागत है तुम्हारा हे नववर्ष!

    सत्य अहिंसा परम धर्म बने
    नैतिक मूल्य हो हमारे आदर्श
    सर्व कल्याण की कामना संग
    स्वागत है तुम्हारा हे नववर्ष!

    चढ़ें सीढ़ियाँ सफलता की
    ज्ञान विज्ञान से छू लें अर्श
    जग प्रसिद्धि की कामना संग
    स्वागत है तुम्हारा हे नववर्ष!

    प्रगति रथ की तीव्र गति से
    आनंदित हो हमारा भारतवर्ष
    आशीष वर्षा की कामना संग
    स्वागत है तुम्हारा हे नववर्ष!

    आशीष कुमार
    मोहनिया, कैमूर, बिहार

    पद्मा के दोहे – मंगल हो नववर्ष

    दास चरण नित राखिए, हे सतगुरु भगवान ।
    विघ्न हरो मंगल करो, शुभता दो वरदान।।1

    मंगल हो नव वर्ष में , ऐसा दो वरदान।
    त्रास हरो संसार का, हे कृपालु भगवान।।2

    कोरोना के त्रास में, सत्र बिताएँ बीस।
    स्वास्थ्य खुशी सौभाग्य दें, मंगल हो इक्कीस।।3

    लेकर नूतन वर्ष को, मन में भरे उमंग।
    मंगल सबका काज हो, बाजे खुशी मृदंग।।4

    बुरे कर्म करना नहीं, करना है सत्कर्म ।
    मंगलकारी काज हो, करो परमार्थ धर्म।।5

    नए वर्ष में प्रण करें , वसुधा करें श्रृंगार ।
    जंगल में मंगल सदा, वृक्ष बने उपहार।।6

    नया वर्ष खुशियों भरा , गाओ मंगल गीत ।
    छोड़ो कटुता बढ़ चलो, मन में रखकर प्रीत।।7

    करें सभी जन प्रार्थना, नया वर्ष हो खास।
    हर्षित वसुधा हो सदा, करें पाप का नाश।।8

    है कराह रही वसुधा, देख विश्व का ताप ।
    शुद्ध वातावरण नहीं, करें घृणित सब पाप।।9

    करें ईश से प्रार्थना, नवल सृजन नववर्ष।
    सिर पर प्रभु का हाथ हो, करने को उत्कर्ष।।10

    नव प्रसंग नव वर्ष में, लेकर चलना साथ ।
    धर्म कर्म धारण करो, नवल भोर के हाथ।।11

    पद्मा करती कामना, रहें सभी खुशहाल।
    मान खुशी ऐश्वर्य से, जीवन सदा निहाल।।12

    पद्मा साहू “पर्वणी”
    खैरागढ़ राजनांदगांव छत्तीसगढ़

    नववर्ष की कामनाएं – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    हर दिन को नए वर्ष की
    मंगल कामना से पुष्पित करो
    कुछ संकल्प लो तुम
    कुछ आदर्श स्थापित करो

    हर दिन यूं ही कल में
    परिवर्तित हो जाएगा
    तूने जो कुछ न पाया तो
    सब व्यर्थ हो जाएगा

    उद्योग हम नित नए करें
    हम नित नए पुष्प विकसित करें
    कर्म धरा को अपना लो तुम
    हर- क्षण हर -पल को पा लो तुम

    समय व्यर्थ जो हो जायेगा
    हाथ न तेरे कुछ आएगा
    मात – पिता आशीष तले
    जीवन को अनुशासित कर
    पुण्य संस्कार अपनाकर
    अपना कुछ उद्धार करो तुम

    इस पुण्य धरा के पावन पुतले
    राष्ट्र प्रेम संस्कार धरो तुम
    मानवता की सीढ़ी चढ़कर
    संस्कृति का चोला लेकर

    पुण्य लेखनी बन धरती पर
    मानव बन उपकार करो तुम
    संकल्पों का बाना बुनकर
    नित- नए आदर्श गढो तुम

    अपनाकर जीवन में उजाला
    नित – नए आयाम बनो तुम
    दया पात्र बनकर ना जीना
    अन्धकार को दूर करो तुम

    हर दिन को नए वर्ष की
    मंगल कामना से पुष्पित करो
    कुछ संकल्प लो तुम
    कुछ आदर्श स्थापित करो

    परमेश्वर साहू अंचल: मनहरण घनाक्षरी – नव वर्ष,नव हर्ष

    शुरू कर शुभ काज,
    मिलेंगे सर पे ताज,
    मान भी मिलेंगे ढेरों,
    सबको यकीन है।

    नव साल मालामाल,
    नव काज कर लाल,
    नव साल बेमिसाल,
    मौसम रंगीन है।।

    त्याग आदत बुराई,
    कर चल चतुराई,
    दूसरों की निंदा करे,
    कारज मलिन है।।

    वही जन आगे बढ़े,
    नित पथ नव गढ़े,
    कंटक मेटते चले,,
    मनुज शालीन है।।

    नव दिन नव वर्ष,
    जन-जन नव हर्ष,
    स्वागत करने सभी,
    मानव तल्लीन है।

    पुलकित पोर-पोर,
    उमंग है चहुँओर,
    इसको मनाने सब,
    बिछाए कालीन हैं।

    😃🙏🙏🙏😃

    ✒️पीपी अंचल “गुणखान”

    उपमेंद्र सक्सेना: नये वर्ष में मिटे अमंगल

    गीत-उपमेंद्र सक्सेना एड.

    बीता वर्ष, जुड़ गयीं यादें, वे हमको इतना
    दहलाएँ
    नये वर्ष में मिटे अमंगल, परम पिता ऐसा कुछ लाएँ।

    संघर्षों से जूझ रहे जो, सब दिन उनके लिए बराबर
    कोई माथा थामे बैठा, कोई बन जाता यायावर
    समय बदल लेता जब करवट, सुख होते उस पर न्योछावर
    कोई अब गुमनाम हो गया, कोई दिखता है कद्दावर

    दर्द मिला जीवन में इतना, उसको हम कब तक सहलाएँ
    नये वर्ष में मिटे अमंगल, परम पिता ऐसा कुछ लाएँ।

    आगत का स्वागत हम करते, उस पर हम कितना भी मरते
    लेकिन उसको भी जाना है, इस सच्चाई से क्यों डरते
    नया नवेला जो भी होता, दु:ख उसको भी यहाँ भिगोता
    बीच भँवर में फँसा यहाँ जो, फसल प्रेम की कैसे बोता

    वातावरण घिनौना इतना, अब दबंग सबको बहलाएँ
    नये वर्ष में मिटे अमंगल, परम पिता ऐसा कुछ लाएँ।

    भेदभाव अब फैला इतना, सीधा- सच्चा रोते देखा
    कूटनीति पर आधारित क्यों, हुआ योजनाओं का लेखा
    कोई धन-दौलत से खेले, कोई भूखा ही सो जाता
    कोई चमक रहा तिकड़म से, कोई सपनों में खो जाता

    लोग हुए जो अवसरवादी, कैसे वे अपने कहलाएँ
    नये वर्ष में मिटे अमंगल, परम पिता ऐसा कुछ लाएँ।

    रचनाकार -उपमेंद्र सक्सेना एड०
    ‘कुमुद- निवास’
    बरेली (उ० प्र०)
    मोबा० नं०- 98379 44187

    फिर वर्ष बदल रहा है : शिवाजी

    कहीं पे पानी तो कहीं ओस गिर रही है
    कि लगता है यह दिसंबर जाने वाला है
    अब इस नव वर्ष की करो तैयारी सभी
    अब एक नव वर्ष फिर से आने वाला है

    कुछ लोगों की यादें अब, धूमिल होती जा रही हैं
    लगता है नए रिश्तों का दामन कोई पकड़ा रहा है
    आओ यहां हम सभी मिलजुल कर यूं खुशियां बांटें
    हम भुला दें सभी गमों को,नव उत्कर्ष आने वाला है

    पुराने साल का गम छोड़ कर हर्षोल्लास भरें हम
    अब खुशियां मनाएं हम,नया प्रहर्ष आने वाला है
    कि जानें क्या-क्या नया सिखाएगा अब यह साल,
    नए तरीके से निखरें,कि पुराना कर्ष जाने वाला है

    अब भगाएं हम इस वर्ष यह कोरोना बीमारी को
    एक बार फिर से एक और नया वर्ष आने वाला है

    शिवाजी के अल्फाज़

    राजकुमार मसखरे: नव वर्ष

    नववर्ष,नव उत्कर्ष हो
    चहुँदिशि हर्ष हो ,
    प्रगति के नये सोपान
    यथार्थ व आदर्श हो !

    कट जाये जीवन में
    टीस की झंझावात
    बनें सभी क़ाबिल,
    अपना ये प्रादर्श हो !

    हो माता का आशीष
    प्रकृति की हो रक्षा
    खुशी से छलके जीवन
    हर दिन,हर पल अर्श हो !

    राजकुमार मसखरे

    इंदुरानी: नव वर्ष दोहे

    धीरे धीरे उंगलियाँ, छुड़ा रहा यह वर्ष।
    अंग्रेजी नव वर्ष का, मना रहे हम हर्ष।।

    उखड़ रही है सांस अब ,बृद्ध दिसम्बर रोय।
    जवां जनवरी क्या पता, साथ किस तरह होय।।

    पनप रहीं बीमारियां,कैसे मिले निजात।
    नव वर्ष,वैक्सीन नई,तभी बनेगी बात।।

    बीते वर्ष को अलविदा, ले कर यह विश्वास।
    साल नया यह शुभ रहे, हो पूरी हर आस।।

    इन्दु,अमरोहा, उत्तर प्रदेश

    अकिल खान: नया साल

    जीवन में सभी मुश्किल हो जाएं दूर,
    चारों दिशाओं में हो हर्ष-उमंग का सूर।
    निराश-मन पुनः उठ जाओ,
    आलस्य-अहं को दूर भगाओ।
    जीवन में हो सफलता का भूचाल,
    मुबारक हो सभी को, नया साल।

    दूर करो जीवन में अपनी गलती और कमी,
    फिर से हमको पुकारा है ये वीरों का ज़मीं।
    अपनी कुंठा-द्वेष को है नित हराना,
    मुश्किल समय में कभी न घबराना।
    मेहनत से करो जीवन में कमाल,
    मुबारक हो सभी को, नया साल।

    गिरकर उठना जीवन में जिसने सीखा है,
    इस जमाने में उसी ने इतिहास लिखा है।
    मुड़ कर देखने वालों को कुछ नहीं मिलेगा,
    आगे बढ़ने से ही सफलता का चमन खिलेगा।
    मेहनत के ताल से मिलाओ ताल,
    मुबारक हो सभी को, नया साल।

    2021में कोरोना से जीवन हो गया था मुश्किल,
    2022में जिन्दगी में खुशियाँ हो जाए शामिल।
    जो हो गया भूल जाओ यह जीवन की रीत है,
    जो किया मेहनत नित उसी को मिला जीत है।
    नव वर्ष में जीवन हो खुशहाल,
    मुबारक हो सभी को,नया साल।

    घर-परिवार है रिश्तों की क्यारी,
    दोस्तों की यारी है सबसे प्यारी।
    जिसने खाया है मेहनत का धूल,
    उसे मिला है कामयाबी का फूल।
    कर्म से पहचानो समय का चाल,
    मुबारक हो सभी को,नया साल।

    –अकिल खान रायगढ़ जिला- रायगढ़ (छ.ग). पिन – 496440.

    स्वागत है नववर्ष तुम्हारा


    भूले बिसरे खुशी और ग़म की यादें,
    बनती है अतित की इतिहास पुराना।

    आने वाले पल में खुशहाली भरा हो,
    हार्दिक स्वागत है नववर्ष हो सुहाना।

    उगते सूरज की स्वर्णीम मधुर किरणें,
    नववर्ष में नव सृजन की सहभागी बनें।

    दुःख ग़म से भी दूर रहे दो हजार बाईस,
    कोई अनहोनी घटना की दीवार न तने ।

    स्वागत है नववर्ष तुम्हारा २०२२ में,
    विदा २०२१ के अनेक कष्ट अपार ।

    घोर संकट में परिवार की तबाही और,
    अनेकों परिवार ने महामारी को झेला है।

    अचानक आये अनहोनी की भूचाल को,
    प्रकृति ने भी हमारे साथ खूब खेला है।।

    बदलते वर्ष की अविस्मरणीय यादें,
    कई रहस्यों से भरा दुख भी हजार।

    आने वाले वर्ष की शुभ मंगलकामनाएं,
    आप सभी के लिए अति लाभदायक हो।

    हार्दिक बधाई एवं अनन्त शुभकामनाएं,
    तहेदिल से शुक्रिया विदाई में कहने लायक हो।

    ✍️ सन्त राम सलाम,,,,,✒️
    बालोद, छत्तीसगढ़

    अर्जुन श्रीवास्तव: (नए वर्ष की हार्दिक बधाई)

    आया है नया वर्ष!
    मिलकर मनाओ हर्ष!
    करो संघर्ष सब प्रेम तरुणाई हो

    बिछड़े हुए मीत से!
    मिलो जाकर प्रीत से!
    दोनों मिल गाओ गीत प्रेम शहनाई हो

    ओढ़ करके दुशाला!
    आई जब भोर बाला!
    पुष्पों की ले माला खुशियां छाई हो

    सुनहरे यह पल!
    मिलेंगे ना कल!
    खुश रहो प्रतिपल नए साल की बधाई हो

    स्वरचित अर्जुन श्रीवास्तव सीतापुर (उत्तर प्रदेश)

    महदीप जंघेल सर: दोस्ती

    दोस्त तुम नववर्ष में,
    जीवन में बदलाव जरूर लाओगे।
    एक संदेश तेरे नाम,
    भरोसा है जरूर निभाओगे।
    हर बुराई छोड़ देना,
    मेरा साथ मत छोड़ना।
    हर वादे तोड़ देना,
    मेरा विश्वास मत तोड़ना।
    हर धारा मोड़ देना,
    मुझसे मुंह मत मोड़ना।
    सबसे रिश्ता रखना,
    बुराई से मत जोड़ना।
    हर वस्तु तोल देना,
    मेरी दोस्ती मत तोलना।
    वादा कर जीवन भर,
    मुझसे संबंध मत तोड़ना।

    ✍️महदीप जंघेल खमतराई, खैरागढ़ जिला – राजनादगांव(छ.ग)

    नववर्ष का अभिनंदन

    हर्षोल्लास से सराबोर हुआ
    भारतवर्ष का कण कण
    शुभ मंगलमय नव वर्ष का
    अभिनंदन ! अभिनंदन !

    गीत संगीत से गूंज उठा
    सुरम्य मधुर वातावरण
    रंग बिरंगी फुलझड़ियां जलाकर
    अभिनंदन ! अभिनंदन !

    नगरी नगरी द्वारे द्वारे
    खिल उठा घर आंगन
    रंग रंगीली रंगोली बना कर
    अभिनंदन ! अभिनंदन !

    सुख समृद्धि हो भारतवर्ष में
    यश कीर्ति में हो वर्धन
    पलक पांवड़े बिछा नूतन वर्ष का
    अभिनंदन ! अभिनंदन !

    विकास देश का हो अनवरत
    खुशहाल हो जनता जनार्दन
    मंगल कामना संग नूतन वर्ष का
    अभिनंदन ! अभिनंदन !

    विनती स्वीकार करो प्रभु
    प्रीति पूर्वक है वंदन
    सदा बरसे आशीष आपका
    अभिनंदन ! अभिनंदन !

    – आशीष कुमार, मोहनिया बिहार

    राजेश पान्डेय वत्स: सौम्य सवेरा! ( मनहरण घनाक्षरी)

    आज रश्मि रसभरी,पौष संग जनवरी,
    मकर संक्रान्ति आदि,
    पड़े इसी माह में!

    नूतन अंग्रेजी वर्ष, सारा जग छाया हर्ष,
    सनातन चैत्र मास
    दुगुने उत्साह में!

    दूसरा जो रविवार,जयन्ती है जयकार,
    गुरु श्री गोविंद सिंह,
    दिन भी गवाह में!

    बारह सवेरा जब, विवेकानंद जन्में तब,
    झूमे मास और झूमी
    गंगा भी प्रवाह में!
    (2)
    तेइस दिवस आगे,सुभाष जयन्ती ताके,
    जय हिन्द गूँजे नारा,
    देश प्रेम चाह में!

    गणतंत्र पर्व गिन,शेष है छब्बीस दिन,
    तिरंगा भी लहराये,
    गली गली राह में!

    अट्ठाइस षटतिला,एकादशी पर्व मिला
    देव हरि पूजे जायें,
    रहना सलाह में!

    सवेरा है झिलमिल,नाचे गायें खिल खिल,
    वत्स सुख-शांति पाये,
    राम की पनाह में!

    –राजेश पान्डेय वत्स!

    रामनाथ साहू”ननकी”: प्रीत पदावली (वर्तमान)

    नववर्ष नवल विधान हो ।
    संस्कृति का मधुर गान हो ।।
    नवप्रभात नया भान हो
    स्थापित अधर मुस्कान हो ।।

    चारु चिरंतन चित चंचल ।
    मदिर मरुत घुलता संदल ।।
    घट घट पर घटे सुमंगल ।
    पुलकित प्रस्तर का अंचल ।।

    बंधु भावना हो स्थापित ।
    प्रेमालय में हों वासित ।।
    प्रीत प्रांत प्रिय सुखकर हों ।
    हर हिय जगा हृदेश्वर हो ।।

    वर्तमान निःश्रृत धारा ।
    समय सुदिन हो अति प्यारा ।।
    आज श्रेष्ठ कर प्रण जीवन ।
    आनंदित गुण उद्दीपन ।।

    संभव हो महत जितेन्द्रिय ।
    जिजीविषा आनंद सुप्रिय ।।
    भाल तिलक सज्जित हर्षित ।
    जग में हों गर्वित चर्चित ।।

    रामनाथ साहू ” ननकी “मुरलीडीह ( छ. ग. )

    ज्ञान भंडारी: नूतन वर्षाभिनंदन

    नव वर्ष, नवचेतना, नव उमंगे
    नव हर्षित तरंगे लेकर आये,
    हर दिन स्वर्णिम दिन हो,
    राते हो चांदी जैसी चमकती सितारों भरी ,
    भावना सबकी पावन हो ,नदियों के धारा सी,खरी।

    भूले हम वेदनामय पीड़ा को , करे हम सबको आत्मसात
    सुखी रहे हर मानव जात ,सुख शांति का हो आवास,
    खिले हर कली कली, गूंजे हर गली गली झूलो से जैसे झूलते ,
    हर शाख शाख ओ अलि अलि।

    फले फूले, हर मौसम, तिरंगे की शान बढ़े,
    धरा दुल्हन सी लगे,ओढ़नी टेसुओ की ओढ़े,
    अमलतास , पलाश श्रृंगार करे,हर फूल झूमे,
    हर डाल डाल नूतन परिधान पहनें,
    हर टूटे दिल जुड़े, गाए सब मंगल गीत,
    सबका स्वास्थ स्वस्थ रहे, सर पे यश का ताज हो ,
    आशीर्वाद बना रहे जगत जननी का ,
    आशीर्वाद बना रहे, सब स्व जनो का,
    ऐसा मंगल नूतन वर्ष होवे।

    रचयिता _ज्ञान भण्डारी।

    एस के नीरज : नववर्ष का धमाल

    नए साल की सुबह सुबह
    पड़ोसी ने जोर से शोर मचाया
    और मुहल्ले में भोंपू बजाया
    सबको नया साल मुबारक हो!

    मैंने कहा भाई सुबह सुबह ये
    तुम गला क्यों फाड़ रहे हो
    खुद तो रात भर सोते नहीं
    दूसरों को भी सोने नहीं देते !

    रात भर क्यों इसी चिंता में
    घुले जा रहे थे क्या आप …
    कि सुबह होते ही सबको
    मुबारक पर मुबारक दूंगा
    भले ही बदले में लोगों से
    सत्रह सौ साठ गाली खाऊंगा!

    पड़ोसी ने कहा – भाई आप
    समझते नहीं मेरी बात बुझते नहीं
    आज तो बस नया साल है
    चारों तरफ धमाल ही धमाल है
    फिर भी कमाल ही कमाल है
    आपको नए साल का पता नहीं है

    आज मजे करोगे तो भाया
    पूरा साल मजे में बीतेगा
    आज रोओगे तो पूरे साल
    रोते ही रह जाओगे…..!

    मैंने कहा – ना तो मुझे रोना है
    ना किसी के लिए कांटे बोना है
    मेरा बस चले तो साल भर मुझे
    घोड़ा बेचकर सोना है …..!

    मगर पड़ोसी हों अगर मेहरबान
    तो गधे भी बन जाएं पहलवान
    पूरी रात भर डी जे बजाया
    फिर भी आपको रास ना आया
    सुबह सुबह ये भोंपू बजा रहे हो
    और सारी दुनिया को दिखा रहे हो
    कि नया साल सिर्फ तुम्हे ही
    मनाना और एंजॉय करना आता है
    हमें कुछ भी नहीं आता जाता है !

    लेकिन यदि हम मनाना शुरू कर दें
    तो तुम मुहल्ले मुहल्ला क्या
    शहर छोड़कर भाग जाओगे…
    इसलिए मि.नया साल मनाना है
    पड़ोसियों को अपना बनाना है
    तो ये राग अलापना बंद कर दो
    और नववर्ष का स्वागत करना है
    तो कोई एक बुराई दफन कर दो ।

    *@ एस के नीरज*

    अनिल कुमार वर्मा: मंगला मंगलम 2022

    जीवन पथ के सारे सपने,
    सच हो सच्ची राह मिले.
    उम्मीदों से अधिक स्नेह हो,
    जितनी भी हो चाह मिले.
    मन हो निर्मल धार सरीखा,
    गहराई में थाह मिले.
    कृत्य करें आओ ऐसे कि,
    दसो दिशाएँ वाह मिले.
    नूतन मन में नूतन चिंतन,
    नये सृजन साकार करें.
    सुखद सुनहरी सुंदर छाया,
    जनहित में तैयार करें.
    कर्मरती हों सबसे आगे,
    श्रम का ही सम्मान हो.
    नये वर्ष क्या जीवन भर,
    आपका श्री मान हो.

    शुभेच्छु
    अनिल कुमार वर्मा
    सेमरताल

    परमेश्वर साहू अंचल: नूतन वर्ष पर दोहा (नए साल,बेमिसाल)

    हृदय सुमन सम जानिए,प्रेम मिले खिल जाय।
    घृणा नीर मत सिंचिए, फौरन ही मुरझाय।।

    जीवन में पतझड़ नहीं , हो जी सदा बहार।
    खुशियों की बारिश रहे,हो न कभी तकरार।।

    करे खुशी नित चाकरी, चँवर डुलाए हर्ष।
    हरपल उन्नति की कली, सुरभित हो नव वर्ष।।

    शीतलता बन धूप में, रहे साथ नित छाँव।
    घर आँगन हो स्वर्ग से, मधुबन जैसे गांव।

    मानवता हो मनुज में, और दिलों में प्यार।
    रहें मनुज नित एकता,अखिलविश्व गुलजार।।

    सकल जीव सम प्रेम हो, जन-जन में संस्कार।
    हिलमिल जीवन मन्त्र से,पुलकित हो संसार।।

    शिक्षा की दीपक जले, घर-घर हो उजियार।
    गांव-गली उपवन लगे, रिश्तों में मनुहार।।

    प्रेम सुमन आँगन खिले, और शुभ्र नव भोर।
    खुशियों की बरसात हो, उन्नति हो चहुँओर।।

    ✒️पीपी अंचल “गुणखान”

    हरिश्चंद्र त्रिपाठी”हरिश” : मन उसको नव वर्ष कहेगा

    फिर-फिर याद करेगा कोई,
    फिर-फिर याद सतायेगी।
    मंगलमय हो जीवन अनुपल,
    सुखद घड़ी फिर आयेगी।1।

    सुख-समृद्धि का ताना-बाना,
    तार-तार उर -बीन बजे।
    खुशहाली की मलय सुरभि से,
    कलम और कोपीन सजे ।2।

    समरसता की प्रखर धार में,
    भेदभाव बह जायें सब।
    सबसे पहले राष्ट्र हमारा,
    नव विकास अपनायें सब।3।

    नहीं किसी का मन दुख जाये,
    सबको स्नेह लुटायें हम ।
    अमर संस्कृति के रक्षक बन,
    मॉ का कर्ज चुकायें हम।4।

    साथ प्रकृति का यदि हम देंगे,
    धन-धान्य पूर्ण नव हर्ष रहेगा।
    दिशा बहॅकती फसल मचलती,
    मन उसको नव वर्ष कहेगा।5।

    चलो एक क्षण मान रहा मैं,
    नव वर्ष तुम्हारा आया है।
    आप मुदित हैं यही सोच कर,
    मन मेरा भी हरषाया है।6।

    नश्वर जीवन,कर्म हमारे,
    सुख-दुःख के निर्णायक हैं।
    सबके हित की सुखद कामना,
    मातृभूमि गुण गायक हैं।7।

    सबका साथ विकास सभी का,
    ना शोषण की गुंजाइश हो।
    मिले प्रकृति का संरक्षण यदि,
    सुखकर दो हजार बाइस हो।8।

    हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’,
    रायबरेली -229010 (उ प्र)

    आर आर साहू :नव वर्ष पर कविता

    वर्ष की माला बनी है, पुष्प क्षण से,
    नव्यता शिव,सत्य के सुंदर वरण से।
    चित्रपट की भाँति ही,समझो समय को,
    दृश्य बनते या बिगड़ते आचरण से।
    नव सृजन के गीत गूँथे जा सकेंगें,
    लोकहित सद्भावना के व्याकरण से।
    हर्ष देशी या विदेशी से परे है,
    मुक्त है यह क्षुद्रता के संस्करण से।
    विश्व है परिवार,का उद्घोष जिसका,
    है अटल वह वह देश इस पर प्राण-प्रण से।
    एक नन्हा दीप, तम का नभ उठाकर,
    ज्योति का अध्याय लिखता है किरण से।
    व्यर्थ कोई भी कभी खाली न लौटा,
    हाथ हो या माथ लग प्रभु के चरण से।

    रेखराम साहू(बिटकुला/बिलासपुर)

    शची श्रीवास्तव : इन सालों में हमने देखा

    नया साल फिर से आया
    साल पुराना जाते देखा,
    आते जाते इन सालों में
    उम्र को हमने ढलते देखा,
    ऐसे कितने साल बदलते
    इन सालों में हमने देखा।

    माँ पापा का वरदहस्त
    दादीमाँ का स्नेहिल स्पर्श,
    भाई बहन का प्यार अनूठा
    नहीं बदलते हमने देखा,
    सालों साल बदलते रिश्ते
    इन सालों में हमने देखा।

    मन उपवन के संगी साथी
    नववर्ष पे बेहद याद आएं,
    मन की परतों में दबी छुपी
    यादें कभी न मिटते देखा,
    स्मृतिपट से हर बात बिसरते
    इन सालों में हमने देखा।

    ढलती सांझ की बेला में
    ढल रहा पुराना वर्ष सतत्,
    लम्हा लम्हा ढल रही उम्र
    उत्साह उमंग न घटते देखा,
    काश कसक कुछ रह जाते
    इन सालों में हमने देखा।

    नववर्ष का वंदन अभिनंदन
    जाते हुए साल, प्रनाम तुम्हें,
    ये काल चक्र चलता यूं ही
    कभी न इसको रुकते देखा,
    सुख दुख नित आते जाते
    इन सालों में हमने देखा।।

    शची श्रीवास्तव , लखनऊ

    नववर्ष विद्या-मनहरण घनाक्षरी

    नव वर्ष की बेला में,मिल जुल यार सँग,
    खुशियां मनाओ सब,मस्ती करो भोर से।
    कोई चाहे कुछ कहे,जीवन के चार रंग,सुनो नहीं किसी की,जाने सब शोर से।।
    बधाई नये साल की,बोले जब अंग अंग,गूँजे बस यही बात,मीत चारो ओर से।
    अनमोल पल मिला,होना नहीं आज दंग,प्रेम को बढाओ तुम,नाचो वन मोर से।।

    राजकिशोर धिरही
    तिलई,जाँजगीर छत्तीसगढ़

    नव वर्ष में सपने सूरज के: माला पहल

    शुभ प्रभात,शुभ सबेरा कहकर शुभचिंतन करते,
    नई सुबह ,नया सवेरा कह सबका तुम अभिनन्दन करते,
    पर कभी क्या तुमने मुझको परखा?
    नित सुबह चलाता हूँ अविरत चरखा।

    मुस्कराकर कर दो मेरा भी स्वागत,
    मुझको भी कह दो
    तुम सुप्रभात,
    हर दिन भूमंडल मे स्वर्ण बिखेरता,
    सृष्टि की हर रचना मे आभा भर देता,

    हर वर्ष देखता मैं कई सपने,
    पर इस वर्ष देखे स्वप्न सुनहरे,
    नित बहे शान्ति समानता का स्रोत,
    जिससे हो जाए जग ओतप्रोत,
    भूमंडल मे बिखरे छटा सुनहरी,

    न हो प्रदूषण, न हो कोई महामारी ,
    नव वर्ष में हर बाला,
    दुर्गा का रूप धरे विशाला,
    हर बालक छू ले ऊचाईयां,
    जिसकी कीर्ति से महकेगी ये दुनिया,
    हर मानव के मन का महके कोना कोना,
    जिसमें उत्साह, आशा नवचेतना का सजा हो पलना,
    धूमिल होगा तम,तिमिर ,अवसाद सारा,
    जगपटल हो जायेगा उज्जवल सारा।
    (माला पहल मुंबई से)

    नव वर्ष एक उत्सव की तरह पूरे विश्व में अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग तिथियों तथा विधियों से मनाया जाता है। विभिन्न सम्प्रदायों के नव वर्ष समारोह भिन्न-भिन्न होते हैं और इसके महत्त्व की भी विभिन्न संस्कृतियों में परस्पर भिन्नता है।नववर्ष पर कविता बहार की कुछ हाइकु –

    नववर्ष पर हाइकु – क्रान्ति

    01)
    रात गुजरी
    नववर्ष आते ही
    महका फूल ।

    02)
    महक उठी
    फूलों की फुलवारी
    झूमते भौंरे।।

    03)
    नया तराना
    आया है नया साल
    झूमे जमाना ।

    04)
    नदी किनारे
    उमड़ती लहरें
    मुझे पुकारे ।

    05)
    रखो उम्मीद
    ईश की कृपा से ही
    खुले नसीब ।

    06)
    नया सबेरा
    नूतन वर्ष आते
    छंटे अंधेरा ।

    07)
    सुलगे तन
    पिया मिलन को
    तरसे मन।।

    08)
    उषा किरण
    संग अपने लाया
    वर्ष नूतन।

    09)
    पुराने ख्याल
    नव वर्ष के जैसे
    बदल डाल ।

    10)
    मिलते नहीं
    नदियों के किनारे
    अटल सत्य।।

    11)
    बहती नदी
    चट्टानों को चीरती
    पानी की धार ।

    क्रान्ति, सीतापुर सरगुजा छग