Category: दिन विशेष कविता

  • 13 मई पर कविता

    13 मई पर कविता

    जीवन के शुभ दिवसों का सबेरा है।
    मिलती रहे खुशियों का पल बसेरा है।
    खास जीवन का अहसास कर लें आज।
    तारीखों में विशेष मैं तेरा(मई 13) है।1।
    करूँ निवेदन सबको,विद्या का वरदान मिले।
    हर वक्त काम आए,शिक्षा व सम्मान मिले।
    जग को देखो समरूप,तुमको समरूपता का ज्ञान मिले।
    मिले न धन दौलत,जग में ऊँचा तुम्हारा नाम मिले।2।
    कर्मों के फल कब किसको कहाँ अब मिलते हैं।
    चिरागों सा आश का दीपक कैसे बुझते हैं।
    सालों साल आप हमेशा खुशी से मुस्कुराते रहें।
    आपके जन्मदिवस पर हम दुआएँ रब से करते हैं।3।
    दया,त्याग,प्रेम की त्रिवेणी शून्य से अनंत मिले।
    करुणा की धार बहे,स्वभाव से हर कोई संत मिले।
    चरित्र बन जाये मिशाल,जग में नाम जीवंत मिले।
    सालों साल रहे आपका साथ मुझे अनंत मिले।4।
    *सुन्दर लाल डडसेना”मधुर”*
    ग्राम-बाराडोली(बालसमुंद),पो.-पाटसेन्द्री
    तह.-सरायपाली,जिला-महासमुंद(छ. ग.)
    मोब.- 8103535652
    9644035652
    ईमेल- [email protected]

  • छात्र राजनीति और राजनीतिक संस्कार पर लेख

    छात्र राजनीति और राजनीतिक संस्कार (सामयिक प्रतिक्रिया )

     

    हमारे महाविद्यालय में कल यानी 28.02.2020 को वार्षिकोत्सव एवं पुरस्कार वितरण समारोह का आयोजन किया गया।इस कार्यक्रम के दौरान कुछ निराशाजनक घटनाएं और दृश्य देखने को मिला।मंच संचालन जैसी छोटी सी बात को लेकर दो छात्र यूनियन के बीच जिस तरह से आरोप -प्रत्यारोप लगाते हुए शोर-शराबा, हंगामा, शिक्षकों से बदतमीजी, अपमानजनक शब्दों का प्रयोग,मंच एवं बैठक व्यवस्था में तोड़फोड़, अर्थहीन नारेबाजी करके पूरे कार्यक्रम में व्यवधान डाला गया यह बेहद ही निंदनीय है। भर्त्सना के कोई भी शब्द उन हरक़तों के लिए पर्याप्त नहीं हो सकते हैं।

    मुझे पूरी घटना में सबसे अफसोसनाक लगा छात्रों की दिशाहीनता।हम मानते हैं राजनैतिक जीवन की शुरूआत छात्र जीवन से होना चाहिए मगर ऐसे दिशाहीन छात्र जिन्हें साधारण समझ भी न हों आख़िर राजनीति को कहाँ ले जाएंगे, पता नहीं।जो शैक्षणिक विषयों को पढ़ना,क्लास अटेंड करना, नियमों का पालन करना,शिक्षकों की बात मानना अपने छात्र राजनीति के ख़िलाफ़ समझ बैठे है।क्या पढ़ना-लिखना,समझदारी की बात करना राजनीति के ख़िलाफ़ है ?कोई भी छात्र संगठन से जुड़े ऐसे छात्र जिनमें साधारण समझ भी नहीं है वे आगे चलकर किसी राजनीतिक दलों के महज़ पिछलग्गू बनकर रह जाते हैं।वे राजनेता बनने के सपने तो संजोते हैं मगर उनकी नींव इतनी कमज़ोर होती है कि भविष्य में राजनीतिक चमचों में शुमार हो जाते हैं।

    सच्ची राजनीतिक चेतना के अभाव में ऐसे दिग्भर्मित छात्र न तो राजनीति में सफल होते न ही अन्य क्षेत्रों में बल्कि उनका भविष्य अंधकारमय हो जाता है।छात्रों में यह धारणा बन चुकी है कि बिना वज़ह विरोध करने,शोर-शराबा एवं नारेबाजी करने से ही राजनीतिक कैरियर बनाई जा सकती है।अपने आपको छात्र नेता कहने वाले तथाकथित छात्रहित-चिंतक छात्र नेता महाविद्यालय में सालभर दिखाई नहीं देते बल्कि मौसमी कुकुरमुत्ते की तरह यदा-कदा अपनी राजनीति चमकाने के लिए दिख जाते हैं।आखिरकार ऐसे सस्ते राजनीतिक संस्कार से गढ़े हुए छात्र नेताओं से देश की भलाई को जोड़कर देखना बेमानी है।

    छात्र जीवन में ही राजनीतिक चेतना का बीज बोने के जिस उद्देश्य से छात्र -राजनीति की संकल्पना की गई थी उससे ये छात्र नेता कोसो दूर दिखाई देते हैं।न तो इनमें उत्कृष्ट नेतृत्व क्षमता दिखाई देती,न लोकतांत्रिक कार्यप्रणाली में निष्ठा, न महाविद्यालयीन वास्तविक समस्याओं के प्रति सजगता,न ही छात्र हितों के प्रति चिंतन।यह उचित है कि महाविद्यालय स्तर से छात्र राजनीति की शुरुआत हो मगर यह कतई उचित नहीं की महाविद्यालय बस क्षुद्र राजनीति का अड्डा बन जाए,जहाँ राजनीतिक रोटी सेंकी जा सके।महाविद्यालय का मुख्य धर्म और कर्म अध्ययन और अध्यापन ही होना चाहिए।

    -नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
    छात्रसंघ प्रभारी
    शास.स्नातकोत्तर महाविद्यालय,
    कवर्धा, कबीरधाम(छ. ग.
    9755852479

  • विश्व मलेरिया दिवस पर कविता /राजकिशोर धिरही

    विश्व मलेरिया दिवस पर कविता /राजकिशोर धिरही

    विश्व मलेरिया दिवस पर कविता /राजकिशोर धिरही

    mosquito

    बचना मच्छर काट से,मानो मेरी बात
    मच्छरदानी को लगा,नींद पड़े दिन रात।।
    नींद पड़े दिन रात,हटे बाधा तब सोना।
    स्वच्छ रहे घर द्वार,साफ हो कोना कोना।।
    मलेरिया से दूर,सुरक्षा घेरा रचना।
    उड़ते मक्खी कीट,सदा इनसे तुम बचना।।

    पानी आँगन में भरे,बाहर उसको फेंक।
    मच्छर का लार्वा बढ़े,बीमारी की टेक।।
    बीमारी की टेक,गंदगी बढ़ता जाता।
    मलेरिया ज्वर खूब,रोग धीरे से आता।
    आस पास हो स्वच्छ,रहे घर मच्छरदानी।
    नाली करना साफ,दूर हो गंदा पानी।।

    राजकिशोर धिरही

  • शिक्षक पर कविता

    भारत के गुरुकुल, परम्परा के प्रति समर्पित रहे हैं। वशिष्ठ, संदीपनि, धौम्य आदि के गुरुकुलों से राम, कृष्ण, सुदामा जैसे शिष्य देश को मिले।

    डॉ. राधाकृष्णन जैसे दार्शनिक शिक्षक ने गुरु की गरिमा को तब शीर्षस्थ स्थान सौंपा जब वे भारत जैसे महान् राष्ट्र के राष्ट्रपति बने। उनका जन्म दिवस ही शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।

    शिक्षक पर कविता

    शिक्षक पर कविता

    अंधकार को दूर कराकर,
    उजियाला फैलाता हूँ।
    बच्चों में विश्वास जगाकर,
    शिक्षक मैं कहलाता हूँ।

    नामुमकिन को मुमकिन कर,
    शिक्षा का अलख जगाता हूँ।
    बच्चों को राह दिखाकर ,
    शिक्षक मैं कहलाता हूँ।

    अज्ञानी को ज्ञानी बनाकर,
    शिक्षा का हक दिलाता हूँ।
    समाज को शिक्षित कराकर,
    शिक्षक मैं कहलाता हूँ।

    असभ्य को सभ्य बनाकर,
    जीने का ढंग बताता हूँ।
    शिक्षा का महत्व बताकर,
    शिक्षक मैं कहलाता हूँ।

    अंधविश्वास दूर भगाकर,
    शिक्षा की चिंगारी जलाता हूँ।
    राष्ट्र निर्माण कराकर,
    शिक्षक मैं कहलाता हूँ।
    ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
    डिजेन्द्र कुर्रे “कोहिनूर”
    पीपरभावना (छत्तीसगढ़)
    मो. 8120587822

  • श्रमिक-विकास की बुनियाद पर कविता

    श्रमिक-विकास की बुनियाद पर कविता

    मजदूर दिवस
    मजदूर दिवस

    सूरज की पहली किरण से काम पर लग जाता हूँ।
    ढलते सूरज की किरणों संग वापस घर को आता हूँ।
    अपने घर परिवार के लिए,शरीर की चिंता छोड़ मैं।
    हवा,पानी,धूप,छांह को हँसकर सह जाता हूँ।।1।।


    नव निर्माण,नव विहान की शुरुआत हूँ मैं।
    देश के विकास की पहली ईंट बुनियाद हूँ मैं।
    सोचता हूँ गढ़ रहा हूँ खुद के विकास की इमारत।
    पर मुझे क्या पता,अमीरों के लिए बिछा बिसात हूँ मैं।।2।।


    खुद के उगाए अन्न को भी न खाने को मजबूर हूँ मैं।
    कंधों पर टिका जहां सारा,मेहनतकश मजदूर हूँ मैं।
    सड़ रहे हैं गोदामों में पड़े पड़े मेरे उगाए हुए अनाज।
    मुझे बताओ मधुर,कैसे आज भी निवाले से दूर हूँ मैं।।3।।


    सुलगती सांसें,मचलता मन,गिरते पसीने भीगा तन।
    दर्द से अकड़ा बदन,अश्रु की धारा से बहते नयन।
    कड़कड़ाती हो सर्द रातें या बरसात में भीगा तन बदन।
    रुकता नहीं,झुकता नहीं चाहे बढ़े मई जून की तपन।।4।।


    धरा को धन्य बनाता,मैं अन्न उपजाता हूँ।
    वैभव,सुख,सौंदयता देने,खनिज रत्न निकालता हूँ।
    कड़ी धूप में देह तपाता,दर्द छुपाता;न अश्रु बहाता हूँ।
    श्रम से सींचता धरा को,मैं मजदूर उर्वरा बनाता हूँ।।5।।


    *सुन्दर लाल डडसेना”मधुर”*
    ग्राम-बाराडोली(बालसमुंद),पो.-पाटसेन्द्री
    तह.-सरायपाली,जिला-महासमुंद(छ.
    ग.)
    मोब.- 8103535652
    9644035652
    ईमेल- [email protected]