Category: हिंदी कविता

  • कागजी तितली / डी कुमार –अजस्र

    कागजी तितली / डी कुमार –अजस्र

    कागजी तितली / डी कुमार –अजस्र

    ठिठुरन सी लगे ,
    सुबह के हल्के रंग रंग में ।
    जकड़न भी जैसे लगे ,
    देह के हर इक अंग में ।।

    कागजी तितली / डी कुमार –अजस्र

    उड़ती सी लगे,
    धड़कन आज आकाश में।
    डोर भी है हाथ में,
    हवा भी है आज साथ में।

    पर कागजी तितली…..
    लगी सहमी सी
    उड़ने की शुरुआत में ।
    फैलाये नाजुक पंख ,
    थामा डोर का छोर…
    हाथ का हुआ इशारा,
    लिया डोर का सहारा …
    डोली इधर से उधर,
    गयी नीचे से ऊपर
    भरी उमंग से ,
    उड़ने लगी
    जब हुई उड़ती तितलियों के ,
    साथ में ,
    बतियाती जा रही है ,
    पंछियों के पँखों से ….
    होड़ सी ले रही है,
    ज्यों आसमानी रंगो से
    हुई थोड़ी अहंकारी,
    जब देखी अपनी होशियारी ।
    था दृश्य भी तो मनोहारी,
    ऊँची उड़ान थी भारी ।

    डोर का भी रहा सहारा ,
    हाथ करता रहा इशारा ,
    तभी लगी जाने किसकी नजर ,
    एक पल में जैसे थम गया प्रहर ,
    लग रहे थे तब हिचकोले ,
    यों लगा जैसे संसार डोले ।

    डोर से डोर थी ,
    अब कट गयी ।
    इशारे की बिजली भी ,
    झट से गयी ।
    अब तो हवा भी न दे पायी सहारा
    घड़ी दो घड़ी का था ,
    अब खेल सारा ।
    ऊँची ही ऊँची उड़ने वाली ,
    अब नीचे ही नीचे आयी ।
    जो आँखे मदमा रही थी ,
    अब तक…..
    उनमें अंधियारी थी छायी ।

    तभी उसे लगा ,
    अचानक एक तेज झटका
    डोर लगी तनी सी,
    लगे ऐसा जैसे मिल गया ,
    जो सहारा था सटका।
    डोर का पुनः मिल रहा था ,
    ‘ अजस्र ‘ सहारा ।
    हाथ और थे पर ,
    मिल रहा था बेहतर इशारा ।
    फिर उडी आकाश में ,
    तब बात समझ ये आई
    बिना सहारे ,बिना इशारे ,
    न होगी आसमानी चड़ाई ।
    जीवन सार समझ आया तो,
    वो हवा में और अच्छे से लहराई।

     ✍️✍️ *डी कुमार –अजस्र (दुर्गेश मेघवाल, बून्दी/राज.)
  • अनुराग राम का पाने को/ हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’ हरीश

    अनुराग राम का पाने को/ हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’ हरीश

    अनुराग राम का पाने को/ हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’ हरीश;



    अनुराग राम का पाने को,
    उर पावन सहज प्रफुल्लित है।
    कण-कण में उल्लास भरा,
    जन -जीवन अति आनन्दित है।टेक।

    shri ram hindi poem.j



    बर्बरता की धुली कालिमा,
    सपनों के अंकुर फूटे,
    स्वच्छ विचारों के प्रहार से,
    दुर्दिन के मानक टूटे।
    नाच रहीं खुशियॉ अम्बर में,
    पुण्य धरा उत्सर्गित है।
    अनुराग राम का पाने को,
    उर पावन सहज प्रफुल्लित है।1।

    बलिदान दिया निज का जिसने,
    तोड़ दिया जग-बन्धन को,
    कट गये शीश प्रभु चरण हेतु,
    नमन अवध के चन्दन को।
    मोक्षदायिनी सरयू की,
    कल-कल धार तरंगित है।
    अनुराग राम का पाने को,
    उर पावन सहज प्रफुल्लित है।2।

    धर्म-ध्वजा फिर से लहराये,
    जन-जन स्नेह असीमित हो,
    सुख-समृद्धि के ताने-बाने,
    मंजुल सृजन सुशोभित हो।
    जब जाग गया सोया पौरुष,
    देखो विश्व अचम्भित है।
    अनुराग राम का पाने को,
    उर पावन सहज प्रफुल्लित है।3।

    हरिश्चन्द्र त्रिपाठी’ हरीश;

  • श्री राम को प्रणाम है/ डाॅ विजय कुमार कन्नौजे

    श्री राम को प्रणाम है/ डाॅ विजय कुमार कन्नौजे

    श्री राम को प्रणाम है/ डाॅ विजय कुमार कन्नौजे



    धीर वीर श्री राम को
    कोटि-कोटि प्रणाम है।
    कौशल्या के लाल
    दशरथ कुमार है।
    संत हितकारी पर
    दुष्टों का काल है।।

    वही प्रभु श्री राम को
    कोटि-कोटि प्रणाम है ।।

    shri ram hindi poem.j


    निर्गुण निराकार पर
    धरती में अवतार है।
    दशरथ कुमार है पर
    कण कण में राम है।।
    धीर वीर संयम शील
    श्री राम को प्रणाम है।

    देखने पर मनुज मगर
    श्रीबिष्णु का अवतार है।
    आदि अनादि अनंत
    सर्वव्यापी प्रभु राम है।
    शिव के अराध्य और
    भक्तों के भगवान है।
    मर्यादा पुरुषोत्तम राम को
    कोटि-कोटि प्रणाम है।

    डाॅ विजय कुमार कन्नौजे

  • खिचड़ी भाषा त्याग कर / डाॅ विजय कुमार कन्नौजे

    खिचड़ी भाषा त्याग कर / डाॅ विजय कुमार कन्नौजे

    खिचड़ी भाषा त्याग कर


    खिचड़ी भाषा त्याग कर
    साहित्य कीजिए लेख।
    निज जननी को नमन करो
    कहे कवि विजय लेख।।

    हिन्दी साहित्य इतिहास में
    खिचड़ी भाषा कर परहेज।
    इंग्लिश शब्द को न डालिए
    हिन्दी वाणी का है संदेश।।

    हिन्दी स्वयं में सामर्थ्य है
    हर शब्दों का उल्लेख।
    हर वस्तु का हिन्दी नाम है
    हिन्दी शब्दकोश में लेख।।

    हिन्दी इतना कमजोर नहीं
    जो मिलायें खिचड़ी भाषा।
    सभी भाषा का अपमान है
    क्यों करते मिलावटी आशा।

    टांग टुटकर द्वी भाषा की
    लंगड़ाईयां ही आती है।
    साहित्य सृजन कार हिंदी का
    मुस्काईयां भी आती है।

    क्षमा क्षमा चाहूंगा क्षमा
    इन साहित्य कारों से।
    साहित्य सृजन कीजिए
    हिन्दी विशेषांक विचारों से।।

  • रसायन चुर्ण हिन्दी/ डाॅ विजय कुमार कन्नौजे

    रसायन चुर्ण हिन्दी


    हिन्दी शब्दकोश खंगालकर
    शब्द चयन कर साथ।
    शब्दकोश का भंडार पड़ा है
    ज्ञानार्जन दीजिए बाट।।

    हिन्दी कोष महासागर है
    पाते हैं गोता खोर।
    तैर सको तो तैर सागर को
    गहरा है अति घोर।।

    डुबकी लगाये अंदर जावें
    गोता लगावें, गोता खोर।
    आसमान सा ऊपर हिन्दी
    पताल पुरी सा गहरा छोर।।

    सृजन साहित्य,नवरस धारा
    रस छंद दोहा अलंकृत है।
    संधि समास परिपुर्ण हिंन्दी
    वर्ण माला भी सुसज्जित है।

    सात स्वर संगीत की धारा
    ब्याकरण से परिपूर्ण है।
    आंनद भर उल्लास करती
    महौषधि रसायन चूर्ण है।।