Category: हिंदी कविता

  • भारत माता पर कविता / भारत पर कविता

    भारत माँ पर कविता : भारत को मातृदेवी के रूप में चित्रित करके भारत माता या ‘भारतम्बा’ कहा जाता है। भारतमाता को प्राय नारंगी रंग की साड़ी पहने, हाथ में तिरंगा ध्वज लिये हुए चित्रित किया जाता है तथा साथ में सिंह होता है।

    bharatmata
    भारत माता

    भारत माता पर कविता

    भारत माता ओढ़ तिरंगा
    आज स्वप्न में आई थी
    नीर भरा आँखों में मुख पर
    गहन उदासी छाई थी
    मैंने पूछा हम हुए स्वतन्त्र
    क्यों मैला वेश बनाया है
    आँखों की दृष्टि हुई क्षीण
    क्यों दुर्बल हो गयी काया है

    माँ फूट पड़ी फिर बिलख उठी
    तब अपने जख्म दिखाए हैं
    मैं रही युवा परपीड़ सह
    बन दासी न धैर्य कभी टूटा
    पर आज जख्म गम्भीर बने
    निज सन्तानों ने है लूटा
    ये कैसा शासन बना आज
    मेरे बच्चों को बाँट रहा
    जाति धर्म के नाम पर देखो

    मेरी शाखायें काट रहा
    सुरसा सा मुँह फैला करके
    सब कुछ ही हजम कर जाएगा
    कर दिया विषैला जन मन को
    बन सहस फणी डस जाएगा
    अब नहीं शेष क्षमता इतनी
    पीड़ा और सहूँ कैसे?
    अब सांस उखड़ती है मेरी
    बोलो खुशहाल रहूँ कैसे?
    मैंने निःस्वास भरी बोली
    माँ शपथ तुम्हें दिलवाती हूँ।

    गरज ओज हुँकार भरी
    निज कलम असि को चलाती हूँ।
    बन मलंग खँजड़ी हाथ पकड़
    जनओज की अलख जगाती हूँ।
    ये कलम करेगी वार बड़े
    हर बला की नींव हिला देगी।
    मरहम बनकर माता तेरे
    सारे सन्ताप मिटा देगी।

    वन्दना शर्मा
    अजमेर।

    भारत पर कविता

    भारत में पूर्ण सत्य
    कोई नहीं लिखता
    अगर कभी किसी ने लिख दिया
    तो कहीं भी उसका
    प्रकाशन नहीं दिखता

    यदि पूर्ण सत्य को प्रकाशित करने की
    हो गई किसी की हिम्मत
    तो लोगों से बर्दाश्त नहीं होता
    और फिर चुकानी पड़ती है लेखक को
    सच लिखने की कीमत

    भारतीयों को मिथ्या प्रशंसा
    अत्यंत है भाता
    आख़िर करें क्या लेखक भी
    यहां पुत्र कुपुत्र होते सर्वथा
    माता नहीं कुमाता

    :- आलोक कौशिक

    माँ ने हमें पुकारा है


    वीर सपूतो! देशवासियो ! माँ ने हमें पुकारा है।
    माता ने हमें पुकारा है, यह हिंन्दुस्तान हमारा है।

    जागो अपनी संस्कृति, अपने पूज्य राष्ट्र से प्रेम करो,
    इसके गत वैभव से अपने, युग का थोड़ा मेल करो।
    सोचो क्या यह वही प्रेम से, पूरित राष्ट्र हमारा है। वीर…

    राम यहीं पर कृष्ण यहीं पर और यहीं पर बुद्ध हुए।
    सीता-सावित्री-चेनम्मा, और यहीं पर पुरु हुए।
    गीता मानस और वेद की, बहती पावन धारा है। वीर…

    ध्यान करो उनका जो हर पल, सीमा पर हैं डटे हुए।
    मातृभूमि की रक्षा में हैं, सीना ताने खड़े हुए।
    सोचो किनके वंशज हैं हम, क्या इतिहास हमारा है।

    वीर सपूतो देशवासियो माँ ने हमें पुकारा है। माता ने….

    भारत का जग पर कविता

    इस खेल खेल में
    धुलता है मन का मैल
    जीने का तरीका है ये,
    तू खेलभावना से खेल।
    खेल महज मनोरंजन नहीं
    एक जरिया है ,सद्भावना की।
    जग में मित्रता की ,
    आपसी सहयोग नाता की ।।

    खेल से स्वस्थ तन मन रहे ,
    भावनाओं में रहे संतुलन।
    जब तक मानव जीवन रहे ,
    खेलने का बना रहे प्रचलन ।
    जब जब देश खेलता है ,
    देश की बढ़ती एकता है ।
    जो भी डटकर खेलता है ,
    इतिहास में नाम करता है ।

    आज जरूरत बन पड़ी है,
    हमको फिर से खेल की,
    बच्चों को गैजेट से पहले,
    बात करें हम खेल की।
    देश की आबादी बढ़ रही
    पर नहीं बढ़ती हैं तमगे।
    चलो मिशन बनाएं खेल में
    नाम हो भारत का जग में।

    भारत का सोना

    ओलंपिक में फिर चमका एक सितारा,
    लोगों के जुबां पे था जय हिंद का नारा।
    मनाओ खुशी किस बात का है रोना,
    नीरज चोपड़ा है, भारत का सोना।

    हिन्द के पानीपत का ऐसा था तस्वीर,
    जन्म लिया नीरज चोपड़ा जैसे वीर।
    आनंदित है देश का कोना – कोना,
    नीरज चोपड़ा है, भारत का सोना।

    अंतर्राष्ट्रीय खेलों में कर विजय,
    भाला फेंक में बन गया अजय।
    बल – खेल भावना है उसमें अपार,
    भारत ने दिया है अर्जुन पुरस्कार।
    ऐसे खिलाड़ी को अब नहीं है खोना,
    नीरज चोपड़ा है, भारत का सोना।

    देशप्रेम से भरपूर और वफादार,
    सेना में देश के लिए हैं सूबेदार।
    टोक्यो ओलंपिक में जीता स्वर्ण,
    खुश हुए भारत के नागरिक गण।
    भाला फेंक है नीरज का खिलौना,
    नीरज चोपड़ा है, भारत का सोना।

    एक स्वर्ण दो रजत और जीते चार कांस्य,
    भारत के शेरों ने प्रतिद्वंदी को दिया फांस।
    एथलेटिक्स में खत्म हुई पराजय की कहानी,
    फेंका भला ऐसा की प्रतिद्वंदी भी मांगा पानी।
    जीत का बीज भारतीयों को है बोना,
    नीरज चोपड़ा है, भारत का सोना।

    भाला से जिसने कर दिया कमाल,
    नीरज जी हैं सच्चे भारत के लाल।
    कांटो में खिलते हैं खुशबूदार फूल,
    नीरज जी को कभी न जाना भूल।
    अब भारतीयों से कोई नहीं लेगा पंगा,
    ओलंपिक में लहराया शान से तिरंगा।
    भारत का खिलाड़ी है सुंदर सलोना,
    नीरज चोपड़ा है, भारत का सोना।

    अकिल खान रायगढ़ जिला-रायगढ़

  • भगवान पर कविता

    भगवान पर कविता: किसी भी धर्म में खास कर के हिन्दू धर्म में भगवानो पर बढ़ी आस्था रखी जाती है और इन भगवानो पर वे बहुत ज्यदा विस्वास रखते है और इस आस्था को बनाये रखे कविता बहार आप के लिए कुछ कविताएँ बताती है जो इस प्रकार है.

    भगवान पर कविता

    शब्दों से परे है वह

    भावों के सर्गों में स्पंदित
    परमाणुओं का लय है !
    शब्दों से परे है वह…
    किंतु अर्थों का अवयव है !!

    पंचभूतों के परम-मिलन से
    पल्लवित होते नव कोंपल
    पालन करती प्रकृति उन्हें
    निज आँचल में प्रतिपल
    पुष्पित होते फिर फल देते
    तना तानकर गर्वित होते
    फिर धीरे-धीरे उनके सारे
    पीत-पर्ण झरते जाते हैं
    पंचभूतों में मिलने का वे
    रहस्य यही बतलाते हैं..
    कि सृष्टि-चक्र की शाश्वतता में
    यहीं सृजन है,यहीं विलय है !!

    शब्दों से परे है वह…
    किंतु अर्थों का अवयव है !!

    रंग-रंग के रंगों से रंगी,
    रंगरेज़ों की दुनिया में…
    मन को हरते सतरंग हैं यहाँ
    कुछ फीके और कुछ गहरे ,
    पनघट-पनघट रूनझुन-रूनझुन
    हैं लालिमा लिये क्षितिज पर ठहरे
    वहीं कमलिनी-कमल जल में…
    खिलने को हैं आतुर मानो
    परंतु प्रतीक्षा में पनिहारन-से
    ताकें अधडूबा-अधनिकला सूरज
    जो क्षितिज-पट से झांकता कहता
    मुझे भी प्रातः ओ’सांझ का संशय है !!

    शब्दों से परे है वह…
    किंतु अर्थों का अवयव है !!

    निमाई प्रधान ‘क्षितिज’

    जो भी चाहा ख़ुदा से मिला ही नहीं

    _ज़िंदगी से कोई अब गिला ही नहीं,_
    _जो भी चाहा ख़ुदा से मिला ही नहीं_

    _इक दफा बेवफा ने जो लूटा चमन,_
    _प्यार का फूल फिर से खिला ही नहीं_

    _चल सके जो कई मील सबके लिये,_
    _अब ज़माने में वो काफ़िला ही नहीं_

    _लोग अपना कहें और धोखा न दे,_
    _दोस्ती का वो अब सिलसिला ही नहीं_

    _फिर से मिलने का वादा किया था जहाँ,_
    _आज तक मैं वहाँ से हिला ही नहीं_

    *चन्द्रभान पटेल*

  • भूख पर कविता

    भूख पर कविताएं

    भूख पर कविता

    कविता 1.

    भूख केवल रोटी और भात नहीं खाती
    वह नदियों पहाड़ों खदानों और आदमियों को भी खा जाती है
    भौतिक संसाधनों से परे
    सारे रिश्तों
    और सारी नैतिकताओं को भी बड़ी आसानी से पचा लेती है भूख।

    भूख की कोई जाति कोई धर्म नहीं होता
    वह सभी जाति सभी धर्म वालों को समान भाव से मारती है।

    जाति धर्म मान सम्मान महत्वपूर्ण होता है
    जब तक भूख नहीं होती।

    दुनिया भर के आयोजनों में
    सबसे बड़ा होता है
    रोटी का आयोजन

    सच्चा कवि वही होता है
    जो रोटी और भूख के विरह को समझ ले।

    सबसे आनंददायक होता है
    भूख का रोटी से मिलन।

    नरेंद्र कुमार कुलमित्र

    कविता 2.

    भूख !
    असीम को समेटे दामन में,
    हो गई है उच्चश्रृंखल।
    खोती जा रही अपना
    प्राकृतिक रूप।
    वास्तविक स्वरूप ।

    भूख बढ़ती चारों ओर,
    रूप बदल- बदल कर
    यहाँ -वहाँ जानें, कहाँ -कहाँ
    करने लगी है,आवारागर्दी।

    भूख होती जा रही बलशाली,
    दिन ब दिन,
    तन, मन, मस्तिष्क पर ,
    जमा रही अधिकार,
    और दे रही इंसान को पटखनी ।

    पेट की आग से भी बढ़कर,
    धधकती ज्वाला मुखी,
    लालच और वासना की भूख
    जो कभी भी ,कहीं भी ,
    फट सकती है।

    अब नहीं लगती किसी को,
    इंनसानियत ,धर्म, कर्तब्य और भाईचारे ,
    संस्कारों की भूख
    बौने होते जा रहे सब।

    दावानल लगी है, मनोमस्तिष्क में,
    विकारों में जलता मानव,
    अपनी क्षुधा तृप्ति के लिए,
    होते जा रहे हैवान ।
    और रोटी की जगह निगल रहे समूची मानवता को ।

    सुधा शर्मा
    राजिम छत्तीसगढ़

    कविता 3.

    भीख माँगने में मुझे लाज तो आती है
    पर ये जालिम भूख बड़ी सताती है।
    सुबह से शाम दर दर खाती हूँ ठोकर
    दो वक्त की रोटी मुश्किल से मिलती है।
    मैलै कुचैले वसन में बीतता है बचपन
    दिल की ख्वाहिश अधूरी ही रहती है।
    ताकि भाई खा सके पेट भर खाना
    बहाना बना पानी पी भूख सहती है।
    कहाँ आती है भूख पेट नींद भी ‘रुचि’
    आँखों से आँसू बरबस ही बहती है।

    सुकमोती चौहान रुचि
    बिछियां, महासमुन्द, छ.ग.


  • देश पर कविता

     दक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। भारत भौगोलिक दृष्टि से विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा देश है, जबकि जनसंख्या के दृष्टिकोण से चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा देश है।

    भारत

    हमारा देश

    किसानों का देश,
    अरमानों का देश,
    गरीबी से त्रस्त
    जवानों का देश,
    बेरोजगारी सुरसा
    है मुह बाये,
    हुक्मरानों को
    कौन बताये,
    सेना की भर्तियों में

    जाते हैं ग़रीब,
    कब कहां सेना में
    जाते हैं अमीर,
    किसी ने कभी देखा है,
    या किसी ने सुना है,
    क्या कभी किसी नेता
    की औलादें गयी
    सेना में,

    फिर क्यों जाये ?
    या क्या कभी कोई
    नेता मरा है दंगों में,
    ऐसा कभी नही होता,
    अकाल मौत को हम
    गरीब बनें हैं,
    ये सब तो सुख
    सुविधाओं में
    सनें हैं,

    दंगों की,
    आतंकी हमलों की
    ख़ुराक सिर्फ हम
    ग़रीब बने हैं,
    ये बेशर्म हमारी
    लाशों पर भी
    राजनीतिक रोटियां
    सेंकते हैं,

    हमें जाति धर्म भाषा
    क्षेत्रवाद में बांटते हैं,
    अपनी सत्ता के लिए
    हमें जलती आग में
    झोंकते हैं,
    ये सदियों से चला
    आरहा है,

    अभी और कब तक
    चलेगा,
    हमारा देश आखिर
    कब तक पुलवामा
    जैसी घटनाओं में
    जलेगा,

    आओ अपने बीच
    छिपे गद्दारों दलालों
    का पर्दाफाश करें,
    मानवता का
    साथ दें,

    देश हित का
    शिलान्यास
    करें।।।।
    भावुक
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • भाई दूज पर कविताएँ

    भाई दूज पर कविताएँ : रक्षा बन्धन एक महत्वपूर्ण पर्व है। श्रावण पूर्णिमा के दिन बहनें अपने भाइयों को रक्षा सूत्र बांधती हैं। यह ‘रक्षासूत्र’ मात्र धागे का एक टुकड़ा नहीं होता है, बल्कि इसकी महिमा अपरम्पार होती है।

    कहा जाता है कि एक बार युधिष्ठिर ने सांसारिक संकटों से मुक्ति के लिये भगवान कृष्ण से उपाय पूछा तो कृष्ण ने उन्हें इंद्र और इंद्राणी की कथा सुनायी। कथा यह है कि लगातार राक्षसों से हारने के बाद इंद्र को अपना अस्तित्व बचाना मुश्किल हो गया। तब इंद्राणी ने श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन विधिपूर्वक तैयार रक्षाकवच को इंद्र के दाहिने हाथ में बांध दिया। इस रक्षाकवच में इतना अधिक प्रताप था कि इंद्र युद्ध में विजयी हुए। तब से इस पर्व को मनाने की प्रथा चल पड़ी।

    भाई-बहन का रिश्ता न्यारा- दीप्ता नीमा

    भाई दूज पर कविताएँ

    भाई-बहन का रिश्ता न्यारा
    लगता है हम सबको प्यारा
    भाई बहन सदा रहे पास
    रहती है हम सभी की ये आस
    इस प्यार के बंधन पर सभी को नाज़।।1।।

    भाई बहन को बहुत तंग करता है
    पर प्यार भी बहुत उसी से करता है
    बहन से प्यारा कोई दोस्त हो नहीं सकता
    इतना प्यारा कोई बंधन हो नहीं सकता
    इस प्यार के बंधन पर सभी को नाज़।।2।।

    बहन की दुआ में भाई शामिल होता है
    तभी तो ये पाक रिश्ता मुकम्मिल होता है
    अक्सर याद आता है वो जमाना
    रिश्ता बचपन का वो हमारा पुराना
    इस प्यार के बंधन पर सभी को नाज़।।3।।

    वो हमारा लड़ना और झगड़ना
    वो रूठना और फिर मनाना
    एक साथ अचानक खिलखिलाना
    फिर मिलकर गाना नया कोई तराना
    इस प्यार के बंधन पर सभी को नाज़।।4।।

    अपनी मस्ती के किस्से एक दूजे को सुनाना
    माँ-पापा की डांट से एक दूजे को बचाना
    सबसे छुपा कर एक दूजे को खाना खिलाना
    बहुत खास होता है भाई-बहन का ये याराना
    इस प्यार के बंधन पर सभी को नाज़।।5।।

    दीप्ता नीमा

    भाई दूज पर कविता

    मैं डटा हूँ सीमा पर
    बनकर पहरेदार।
    कैसे आऊँ प्यारी बहना
    मनाने त्यौहार।
    याद आ रहा है बचपन
    परिवार का अपनापन।
    दीपों का वो उत्सव
    मनाते थे शानदार।
    भाई दूज पर मस्तक टीका
    रोली चंदन वंदन।हम
    इंतजार तुम्हें रहता था
    मैं लाऊँ क्या उपहार?
    प्यारी बहना मायूस न होना
    देश को मेरी है जरूरत।
    हम साथ जरूर होंगे
    भाई दूज पर अगली बार।
    कविता पढ़कर भर आयी
    बहना तेरी अखियाँ।
    रोना नहीं तुम पर
    करता हूँ खबरदार।
    चलो अब सो जाओ
    करो नहीं खुद से तकरार।
    सपना देखो, ख्वाब बुनो
    सबेरा लेकर आयेगा शुभ समाचार ।

    अनिता मंदिलवार सपना
    अंबिकापुर सरगुजा छतीसगढ़