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माँ पर शानदार कविता

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 माँ पर शानदार कविता : पूरी जिंदगी भी समर्पित कर दी जाए तो माँ के ऋण से उऋण नहीं हुआ जा सकता है। संतान के लालन-पालन के लिए हर दुख का सामना बिना किसी शिकायत के करने वाली माँ के साथ बिताये दिन सभी के मन में आजीवन सुखद व मधुर स्मृति के रूप में सुरक्षित रहते हैं। 

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माँ पर कविता

माँ के बिना कोई भी दिन नहीं होता


कौन कहता है कि साल में एक दिन
माँ का दिन होता है …
सच पूछो तो यारो
माँ के बिना कोई भी
दिन नहीं होता माँ के बिना कोई भी दिन नहीं होता।


न दिन होता है न रात होती है
न सुबह होती है न शाम होती है ,
या हम ये कहें कि माँ के बगैर
तो ये जीवन ही नहीं होता है !
उस इंसान से पूछिए जिसके सर से
माँ का साया बचपन से छीन गया हो ,
वो बताएगा कि माँ की क्या अहमियत है ,
किसी के जीवन में माँ की क्या कीमत है !
जीवन में माँ का नहीं है कोई मोल ,
माँ है तो जीवन हो जाता है अनमोल !
ममता और वात्सल्य की मूर्ति होती है माँ,
दया,करुणा और क्षमा की प्रतिमूर्ति है माँ !


रात रात को जागकर ,कभी भूखे पेट रहकर ,
हमें जीवन देती है खुद दुःख कष्ट सहकर !
जिसने जीवन में पायी हो माँ की दुआ ,
क्या बिगाड़ेगी उसको किसी की बद्दुआ !
जिसको मिला हो जीवन में माँ का आशीर्वाद ,
उसका जीवन हो जाता है खुशियों से आबाद !
जिसने कर लिया जीवन में माँ बाप की पूजा ,
उसे जाने की जरुरत नहीं मंदिर न और दूजा !


माँ की दुवाओं का वैसे तो कोई रंग नहीं होता पर,
जब ये रंग लाती हैं तो जीवन खुशियों से भर जाता !
दुनिया का सबसे खूबसूरत अगर कोई रिश्ता है,
माँ का बच्चे के प्रति निस्वार्थ स्नेह भरा रिश्ता है!
बच्चा चाहे कर ले जितने भी सितम उस पर ,
माँ कहेगी बेटा आज कुछ खाया कि नहीं दिन भर !
पता नहीं कितने सख्त और पत्थर दिल वो होंगे ,
जो जीते जी माँ बाप को वृद्धाश्रम में भेजते होंगे !
क्या दुनिया में इससे बड़ा कोई पाप होगा ,
जिसे जीवन में लगा माँ बाप का श्राप होगा !


दुनिया में इससे बढ़कर नहीं कोई है सेवा ,
माँ यदि खुश तो जीवन भर मिलेगी मेवा!
इसलिए आज से रोज रखें माँ का ख्याल ,
तभी सबका जीवन होगा सुंदर और खुशहाल !


एस के नीरज

माँ को समर्पित रचना

ज़ख्म भर जाता नया हो, या पुराना गोद में,
हाँ खुशी से पालती है, माँ ज़माना गोद में।

वो दुलारे वो सँवारे, वो निहारे प्यार से,
लोरियाँ भी हैं ऋचाएँ, गुनगुनाना गोद में।

चाँद तारे खेलते हैं, सूर्य अठखेली करे,
आसमां भी ढूँढता है, आशियाना गोद में।

मैं सुखी था मैं सुखी हूँ, और होगा कल सुखद,
मिल गया आनंद का है, अब खज़ाना गोद में।

क्यों कहूँ मैं स्वर्ग जैसा, मात का आँचल लगे,
देवता भी चाहते हैं, जब ठिकाना गोद में।

ढाल बनती है सदा तू, संकटों से जब घिरूँ,
आसरा है एक तेरा, माँ सुलाना गोद में।

गीता द्विवेदी

माँ का मन शुचि गंगाजल है

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सकल जगत की धोती मल है।
माँ का मन सुचि  गंगाजल  है।।

हित – मित   संसार  में   स्वार्थ,
भ्राता,पत्नि  के प्यार में स्वार्थ।
बेटा – बेटी  आदि   जितने  भी-
सबके सरस व्यवहार में स्वार्थ।

पावन  माँ  का  प्यार  अचल है।
माँ  का  मन  सुचि  गंगाजल है।।

कूछ भी हो कभी नहीं घबडा़ती,
गजब  अनूठी   माँ   की   छाती।
पति , पुत्र   हेतु   आगे   बढ़कर-
माँ  यमराज से  भी  लड़  जाती।

माता  सभी  प्रश्नों   का  हल  है।
माँ का  मन  सुचि गंगा  जल  है।।

सभ्यता,संस्कार कुबेटा में  बोती,
माता कदापि कुमाता नहीं होती।
दीनता,दुख ,विपत्ति को  सहकर-
देती  जग   को  सत्य  की  मोती।

सभय अभय करती  हर  पल है।
माँ  का मन  सुचि  गंगा जल  है।।

सुख – शान्ति   सरस   उपजाती,
सबका   मान   सम्मान   बढा़ती।
जग  सेवा  में   सर्वस्य   लुटाकर-
मन  ही   मन   हरदम  मुस्काती।

जग सर्वोपरि  सेवा  का  फल  है।
माँ  का  मन सुचि  गंगा  जल  है।।

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बाबूराम सिंह कवि
बड़का खुटहाँ , विजयीपुर
गोपलगंज(बिहार)841508
मो०नं० – 9572105032

माँ की ममता

माँ की ममता, चमक चाँदनी,
अमृत कलश लगे,
माँ की ममता सात समंदर,
गहराई से बढ़ कर लगे!

माँ ममता का रूप,
मस्तक पे चाँद सोहे,
माँ पूजा का थाल,
रोशन सृष्टि समस्त करें!

चाहे प्यासा हो कितना सावन
ममता हर प्यास बुझावे,
शूलाे के दामन से कितने,
फूल चुन चुन बिखेरे!

अक्छर, अक्छर साझा करती,
दुःख हरणी, दुःख है हरती,
खुशियाँ पालने है झूलाती,
अनुपम स्वप्नों का संसार सजाती!

त्याग, समर्पण की बल्लेयाँ लेती,
स्व जनों को मोतियन सा चमकाती,
सर पर हाथ है हमेशा, चाहे बबंडर हो आंधी का!

चारों तीर्थंधाम कदमों में तेरे,
वंदन शीश करूँ मैं तेरे,
जगत जननी भी तू,
जन्नत भी तू है मेरे!

रचयिता –ज्ञान भंडारी!

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