मेरा मन लगा रामराज पाने को /मनीभाई नवरत्न

राम/श्रीराम/श्रीरामचन्द्ररामायण के अनुसार,रानी कौशल्या के सबसे बड़े पुत्र, सीता के पति व लक्ष्मणभरत तथा शत्रुघ्न के भ्राता थे। हनुमान उनके परम भक्त है। लंका के राजा रावण का वध उन्होंने ही किया था। उनकी प्रतिष्ठा मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में है क्योंकि उन्होंने मर्यादा के पालन के लिए राज्य, मित्र, माता-पिता तक का त्याग किया।

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मेरा मन लगा रामराज पाने को / मनीभाई नवरत्न

मेरा मन लागा रामराज पाने को ।

मेरा मन लागा रामराज पाने को ।
तड़प रहा जन जन दाने-दाने को ।
पलते रहे सब उद्योग धंधे ,
ना हो सड़कें, चौराहे गंदे ।
अवसर मिले ऐसा कि
ऋणी हो ऋण चुकाने को ।

मेरा मन लागा रामराज पाने को ।

अन्याय को मिले सजा
विचरित हो सके स्वतंत्र प्रजा ।
नौबत आए ना वो दिन
कि शहीद हो जाए भुलाने को ।

मेरा मन लागा रामराज पाने को ।

राम तेरी गंगा हो गई मैली ।
चहुं दिक् पर भ्रष्टाचार है फैली ।
कैसे गर्वित शीश हो जग में
जब कर्म हो, शीश झुकाने को ।

मेरा मन लगा रामराज पाने को।।

-मनीभाई नवरत्न

मनीभाई नवरत्न

यह काव्य रचना छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले के बसना ब्लाक क्षेत्र के मनीभाई नवरत्न द्वारा रचित है। अभी आप कई ब्लॉग पर लेखन कर रहे हैं। आप कविता बहार के संस्थापक और संचालक भी है । अभी आप कविता बहार पब्लिकेशन में संपादन और पृष्ठीय साजसज्जा का दायित्व भी निभा रहे हैं । हाइकु मञ्जूषा, हाइकु की सुगंध ,छत्तीसगढ़ सम्पूर्ण दर्शन , चारू चिन्मय चोका आदि पुस्तकों में रचना प्रकाशित हो चुकी हैं।

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