हाइकु अर्द्धशतक
१०१/ विकासशील
जगत का नियम
हरेक पल
१०२/अनुकूलन
अस्तित्व का बचाव
कर पहल
१०३/वातावरण
करता प्रभावित
चल संभल
१०४/ बच्चों के संग
मिल जाती खुशियाँ
अपरम्पार।
१०५/ जीवन कम
समय फिसलता
ख्वाब हजार।
१०६/ सूक्ष्म शरीर
मन की चंचलता
चांद के पार।
१०७/ सर्वसमता
नेकी बदी की छाया
हरेक द्वार।
१०८/ शहर शोर
हो जुदा तू कर ले
मौन विहार।
१०९/ स्वर्ण बिछौना
बिछाये धरा पर
रवि की रश्मि।
११०/ आ चढ़ा जाये
अस्तित्व की हाजिरी
अल्प जीवन ।
१११/ जन विस्फोट
अस्तित्व को खतरा
होगी तबाही ।
१०२/ शेष रहेंगे
प्लास्टिक की थैलियाँ
सृष्टि अंत में ।
१०३/ गुरू की दिशा
अमृत समतुल्य
पानी दे सदा।
१०४/ किस दौड़ में ?
घिसते कलपुर्जे
मानव यंत्र।
१०५/ जीवन चक्र
बिस्तर से बिस्तर
क्यूँ तुझे डर
१०६/ हो जा बेफिक्र
जलती दुनिया में
हो तेरा जिक्र ?
१०७/ नीचा दिखाये
तरस खा उनपे
तू ऊपर है।
१०८/ मृत्यु भोज है
दावत का पर्याय
क्या यह न्याय?
१०९/ दिल जज्बाती
पिघलता मोम सा
ना दीया बाती
११०/ दूर क्षितिज
रंगीन नभ बीच
बुझता रवि।
१११/ नभ सागर
गोता लगाये रवि
पूर्व पश्चिम।
११२/ तन घोंसला
उड़ जाये रे पंछी
कौन सा देश?
११३/ निभाता फर्ज~
बुनता है मुखिया
प्यारा घोंसला।
११४/ वजूद खोती
कदमों के निशान
सागर तट।
११५/ उठा सुनामी~
सागर हुआ भूखा
खाये किनारा।
११६/ उथला टापू~
बेबस दिख रहा
सागर बीच।
११७/ घुमड़े घन
गरजता सागर
दोनों में पानी
११८/ दूर सागर~
दिखता दिनकर
सिंदूरी लाल।
११९/ मेघ गरजे~
अटल महीधर
शांत व स्थिर
१२०/ झोपड़ी तांके
भवन की ऊंचाई
देख ना पाये।
१२१/ पुष्प शर्माते
मधुकर हर्षाते
फल को पाते
१२२/ सजा प्रकृति
रस रंग स्वाद से
साक्षात स्वर्ग।
१२३/
ग्रंथ महान
भारत संविधान
करें सम्मान
१२४/ विश्वास पूंजी
पति पत्नी के बीच
रिश्तों की डोरी
१२५/ चिन्तन में है
हर प्रश्न का हल
कर मनन।
१२६/ भावी दम्पति
मंडप पे सजता
पवित्र रिश्ता
१२७/ पीले व धानी
वस्त्र ओढ़ है सजी
बसंती रानी ।
१२८/ लो तन गई
चादर की झोपड़ी
बाल संसार।
१२९/ शेर बंदर
मुखौटे सर पर
बाल संसार
१३०/ आ करीब आ
प्यार से तन भिगा
मुझे तू खिला
१३१/ दुनिया छोटी
थोड़ी सी है जिन्दगी
प्यार के आगे।
१३२/ दुनिया गोल
प्यार है अनमोल
मीठा तू बोल ।
१३३/ घन के सेज
नीले आसमां तले
कौन बिछाये?
१३४/ मुड़ा भास्कर
उत्तरायण गति
हुई संक्रांति।
१३५/ उत्तरायणी
हो चला दिनकर
राशि मकर।
१३६/ किया तर्पण
भगीरथ गंगा से
संक्रांति दिन।
१३७/ संक्रांति तिथि
शरीर परित्याग
महान भीष्म।
१३८/ संक्रांति पर्व
तिल लड्डू, पतंग
नदी संगम।
१३९/ संक्रांति रंग
कटती हैं पतंग
जीवन ढंग।
१४०/ तिल के लड्डू
सर्दियों का अमृत
बचाये शीत।
१४१/ गुफा मंदिर~
रहस्यों का खजाना
दबाये हुये।
१४२/ अमर छाप~
गुफा में रेखांकित
विकास यात्रा।
१४३/ खुशी व गम~
प्रतीक्षा है करता
खेल मैदान।
१४४/ खेल मैदान~
सबक है सिखाता
जीवन अंग।
१४५/ छुपा के रखे~
चट्टान सा पुरूष
नरम दिल।
१४६/ छुपा के रखे~
चट्टान सा पुरूष
नरम दिल।
१४७/ तपती धरा~
दिन में रेगिस्तान
धुप है खरा।
१४८/ शीतल भरा~
रात में रेगिस्तान
ठंड गहरा।
१४९/ सूरज चढ़ा
दूर पनिहारिन
घड़े पे घड़ा
१५०/ मुर्गे की बांग
कानों में रस घोली
अंखियां खुली।