Category: अन्य काव्य शैली

  • मनीभाई के हाइकु अर्द्धशतक भाग 3

    मनीभाई के हाइकु अर्द्धशतक भाग 3

    हाइकु

    हाइकु अर्द्धशतक

    १०१/ विकासशील
    जगत का नियम
    हरेक पल

    १०२/अनुकूलन
    अस्तित्व का बचाव
    कर पहल


    १०३/वातावरण
    करता प्रभावित
    चल संभल

    १०४/ बच्चों के संग
    मिल जाती खुशियाँ
    अपरम्पार।  

    १०५/ जीवन कम
    समय फिसलता
    ख्वाब हजार।

    १०६/ सूक्ष्म शरीर
    मन की चंचलता
    चांद के पार।

    १०७/ सर्वसमता
    नेकी बदी की छाया
    हरेक द्वार।

    १०८/ शहर शोर
    हो जुदा तू कर ले
    मौन विहार।

    १०९/ स्वर्ण बिछौना 
    बिछाये धरा पर
    रवि की रश्मि।

    ११०/ आ चढ़ा जाये
    अस्तित्व की हाजिरी
    अल्प जीवन ।

    १११/ जन विस्फोट
    अस्तित्व को खतरा
    होगी तबाही ।

    १०२/ शेष रहेंगे
    प्लास्टिक की थैलियाँ
    सृष्टि अंत में ।  

    १०३/ गुरू की दिशा
    अमृत समतुल्य
    पानी दे सदा।

    १०४/ किस दौड़ में ?
    घिसते कलपुर्जे
    मानव यंत्र।

    १०५/ जीवन चक्र
    बिस्तर से बिस्तर
    क्यूँ तुझे डर

    १०६/ हो जा बेफिक्र
    जलती दुनिया में
    हो तेरा जिक्र ?


    १०७/ नीचा दिखाये
    तरस खा उनपे
    तू ऊपर है।

    १०८/ मृत्यु भोज है
    दावत का पर्याय
    क्या यह न्याय?

    १०९/ दिल जज्बाती
    पिघलता मोम सा
    ना दीया बाती


    ११०/ दूर क्षितिज
    रंगीन नभ बीच
    बुझता रवि।  

    १११/ नभ सागर
    गोता लगाये रवि
    पूर्व पश्चिम।

    ११२/ तन घोंसला
    उड़ जाये रे पंछी
    कौन सा देश?

    ११३/ निभाता फर्ज~
    बुनता है मुखिया
    प्यारा घोंसला।

    ११४/ वजूद खोती
    कदमों के निशान
    सागर तट।

    ११५/ उठा सुनामी~
    सागर हुआ भूखा
    खाये किनारा।

    ११६/ उथला टापू~
    बेबस दिख रहा
    सागर बीच।


    ११७/ घुमड़े घन
    गरजता सागर
    दोनों में पानी

    ११८/ दूर सागर~
    दिखता दिनकर
    सिंदूरी लाल।  

    ११९/ मेघ गरजे~
    अटल महीधर
    शांत व स्थिर

    १२०/ झोपड़ी तांके
    भवन की ऊंचाई
    देख ना पाये।

    १२१/ पुष्प शर्माते
    मधुकर हर्षाते
    फल को पाते

    १२२/ सजा प्रकृति
    रस रंग स्वाद से
    साक्षात स्वर्ग।

    १२३/
    ग्रंथ महान
    भारत संविधान
    करें सम्मान

    १२४/ विश्वास पूंजी
    पति पत्नी के बीच
    रिश्तों की डोरी

    १२५/ चिन्तन में है
    हर प्रश्न का हल
    कर मनन।

    १२६/ भावी दम्पति
    मंडप पे सजता
    पवित्र रिश्ता

    १२७/ पीले व धानी
    वस्त्र ओढ़ है सजी
    बसंती रानी ।

    १२८/ लो तन गई
    चादर की झोपड़ी
    बाल संसार।

    १२९/ शेर  बंदर
    मुखौटे सर पर
    बाल संसार

    १३०/ आ करीब आ
    प्यार से तन भिगा
    मुझे तू खिला

    १३१/ दुनिया छोटी
    थोड़ी सी है जिन्दगी
    प्यार के आगे।

    १३२/ दुनिया गोल
    प्यार है अनमोल
    मीठा तू बोल ।

    १३३/ घन के सेज
    नीले आसमां तले
    कौन बिछाये?

    १३४/ मुड़ा भास्कर
    उत्तरायण गति 
    हुई संक्रांति।

      १३५/ उत्तरायणी
    हो चला दिनकर
    राशि मकर।

    १३६/ किया तर्पण
    भगीरथ गंगा से
    संक्रांति दिन।

    १३७/ संक्रांति तिथि
    शरीर परित्याग
    महान  भीष्म।


    १३८/ संक्रांति पर्व
    तिल लड्डू, पतंग
    नदी संगम।

    १३९/ संक्रांति रंग
    कटती हैं पतंग
    जीवन ढंग।

    १४०/ तिल के लड्डू
    सर्दियों का अमृत
    बचाये शीत।

    १४१/ गुफा मंदिर~
    रहस्यों का खजाना
    दबाये हुये।

    १४२/ अमर छाप~
    गुफा में रेखांकित
    विकास यात्रा।  

    १४३/ खुशी व गम~
    प्रतीक्षा है करता
    खेल मैदान।

    १४४/ खेल मैदान~
    सबक है सिखाता
    जीवन अंग।

    १४५/ छुपा के रखे~
    चट्टान सा पुरूष
    नरम दिल।

    १४६/ छुपा के रखे~
    चट्टान सा पुरूष
    नरम दिल।

    १४७/ तपती धरा~
    दिन में रेगिस्तान
    धुप है खरा।

    १४८/ शीतल भरा~
    रात में रेगिस्तान
    ठंड गहरा।

    १४९/ सूरज चढ़ा
    दूर पनिहारिन
    घड़े पे घड़ा

    १५०/ मुर्गे की बांग
    कानों में रस घोली
    अंखियां खुली।  

  • मनीभाई के हाइकु अर्द्धशतक भाग 2

    मनीभाई के हाइकु अर्द्धशतक भाग 2

    हाइकु

    हाइकु अर्द्धशतक

    ५१/ बिखरे पुष्प
    बंसत सुगंधित
    भ्रमर गीत।

    ५२/ कबूल
    फूल हो चाहे धुल
    प्यार है मूल।

    ५३/ प्यार जीवन
    मिट्टी की दुनिया में
    बाकी कफन।

    ५४/ पत्थर दिल
    पिघलता प्यार से
    नहीं मुश्किल। 

    ५५/ मुड़ा भास्कर
    उत्तरायण गति 
    हुई संक्रांति।

    ५६/ उत्तरायणी
    हो चला दिनकर
    राशि मकर।  

    ५७/ किया तर्पण
    भगीरथ गंगा से
    संक्रांति दिन।

    ५८/ संक्रांति तिथि
    शरीर परित्याग
    महान  भीष्म।


    ५९/ बाल संवारे~
    कांधे लटका थैला
    स्कूल को चलें।


    ६०/ वो बेसहारे

    करते है जो कर्म

    बिना विचारे

    ६१/ चार दिनों में ~
    दो दिन हँसना है

    दो दिन रोना

    ६२/ अति तनाव
    विनाश का कारण
    विकास बाधा।

    ६३/ ना मकान है
    आसमान बसेरा
    क्या खोना मेरा?

    ६४/ मनाने चला ~

    खट्टी मीठी यादो को

    भुलाने चला  

    ६५/ शब्द लकीर~
    ये बताने चला है
    दिल का पीर।

    ६६/ हर निवाला
    ईश्वर का प्रसाद
    आनंद भोग।

    ६७/ सहनशील
    होता महान गुण
    देवत्व प्राप्ति।


    ६८/ मताधिकार
    लोकतंत्र की जान
    दे पहचान।

    ६९/ है शर्मनाक
    कन्या भ्रूण की हत्या~
    विचारणीय।

    ७०/ हैलो नमस्ते
    मधुर सम्बन्ध के
    भाव जताते

    ७१/ ऊर्जा संचय
    प्रकृति का संरक्षण
    भावी सुरक्षा।

    ७२/ स्वतंत्र होना
    मानव अधिकार
    प्राथमिकता।  

    ७३/ सीखता चल
    संकट हर पल
    भाग्य बदल


    ७४/ बेशर्म नेता
    राष्ट्र के हिटलर
    लुटी अस्मिता

    ७५/ बिन योग्यता
    बन जाते हैं नेता
    देश दुर्दशा ।

    ७६/ जिंदगी मौत
    किया जो बेसहारा
    कौन हमारा?


    ७७./ अति अवज्ञा
    अति परिचय से
    गर हो त्रुटि


    ७८/ की बांग
    कानों में रस घोली
    अंखियां खुली।

    ७९/ शांत तालाब
    पाहन की चोट से
    बिखर चला।

    ८०/ मुस्कुरा गई
    नव वधु के लब
    मैका आते ही।  

    ८१/ बच्चे मायुस
    बिजली आते उठी
    खुशी लहर।


    ८२/ भूले बिसरे
    यादों में झिलमिल
    असल पूंजी।


    ८३/ बिछड़ा वर्ष
    यादों की झरोखा दे
    शुभ विदाई ।

    ८४/ विदा ले साल
    किये कई कमाल
    वक्त की चाल

    ८५/ चीक से देखे
    वो पड़ोसन मेरी
    हाय ! शर्माये।

    ८६/ सौ चोट सहे
    हिले डुले डबरा
    फिर संभलें।

    ८७/ खोज ली चींटी
    छान पत्थर मिट्टी
    अजब दीठि।

    ८८/ पौष पूर्णिमा
    कृषक अन्न दाता
    विश्व विधाता।  

    ८९/ माया गठरी
    बांध चला मनुवा
    ढूंढे ठिकाना।

    ९०/ दादी कहानी
    जो किताबी हो चली
    होती रूहानी।

    ९१/ अभ्यास गुरू
    करो मार्ग आसान
    बनो सुजान।

    ९२/ आकाश गंगा
    तारों की टिमटिम
    तम की आस।

    ९३/ छटा निखरी
    ताल में स्वर्ण थाल
    आभा बिखरी

    ९४/ अंधे की लाठी
    निज सपूत कांधा
    विश्वास बांधा।

    ९५/ भीषण शीत
    लब गुंजित करे
    शास्त्रीय गीत।

    ९६/ खेल जिन्दगी
    जरा जोर लगाके
    हारे या जीते।  

    ९७/ खेल भावना
    चरित्र का आधार
    जीत या हार।

    ९८/ बाल संवारे
    दीदी आज भाई का
    सहज प्रेम


    ९९/ दिन बदले
    कैलेण्डर बदले
    तू भी बदल!

    १००/ परिवर्तन
    जीवन परिभाषा
    निकाल हल

  • मनीभाई के हाइकु अर्द्धशतक भाग १

    मनीभाई के हाइकु अर्द्धशतक भाग १

    हाइकु

    हाइकु अर्द्धशतक

    १/
    बसंत नाचे
    गाये गीत फाग के
    प्रेम राग के।

    २/
    बासंती चिट्ठी
    संवदिया बन के
    आया बयार।

    ३/  बासंती  हवा  

    रंग  बिखर गया।

    निखर गया।

    ४/
    फलक तले

    खिले सरसों फुल
    बसंत पले।

    ५/
    पी का दीदार
    नशा ज्यों हो शराब
    दिल गुलाब ।

    ६/ नदिया तीर
    खड़ा है जो गंभीर
    शिव मंदिर।

    ७/ मस्जिद पर
    अल्लाहु अकबर
    रब का घर ।

    ८/ हर जगह
    वाहेगुरू फतह
    जै गुरूद्वारा।  

    ९/ गली चौबारा
    मंदिर है मस्जिद
    है गुरूद्वारा।

    १०/ पिय दर्शन
    हिय घंटी वादन
    जिय प्रसन्न।

    ११/
    कहाँ है रब?
    सुनता क्या अजान?
    मैं अनजान।

    १२/
    वात्सल्य मूर्ति
    बनी जग विद्रोही
    बेटा हेतु माँ।।

    १३/
    पिता की डाँट
    कड़ुवी गोली सम
    प्रेम का ढंग।

    १४/ भाई बहन
    चाहे मां पिता पर
    एकाधिकार।

    १५/
    नारी की हठ
    जैसे लक्ष्मण रेखा
    दृढ़ अकाट्य।

    १६/ कठिन श्रम
    पुरूष का श्रृंगार
    काहे को शर्म।  

    १७/ छोड़ती घर
    बेटी बाबुल घर
    बसाने घर।

    १८/ पति है सखा
    जीवन करे साझा
    हर मोड़ पे।

    १९/ भेजा ना पत्र
    जो नैन भाखा जाना
    वो मेरा मित्र।

    २०/ जीने की कला
    मैंने गले में डाला
    प्यार की माला।
     

     २१/ सच्चा सहारा
    ज्यों नाव मझदार
    वो परिवार।

    २२/
    पंछी है मन
    चाहे खुली गगन
    शांत निर्जन।

    २३/ पंछी आशियाँ
    झुलसने लगे हैं
    ये बर्बादियाँ।

    २४/ स्वप्न गठरी
    बांध खड़ा कतार
    देश बेकार।  

    २५/ गगन खोज
    उड़ाने को सपने
    तू हर रोज।

    २६/ रूप आकृति
    विविध रंग प्रकृति
    फैली विस्तृत।

    २७/ मन हर्षाये
    सौरभ बिखराये।
    शाख में फूल।

    २८/ तरू नाचता,
    हावभाव कमाल
    हवा दे ताल।

    २९/ दर्पण पानी
    सजती मनमानी
    कमल रानी।

    ३०/ सरिता धार ।
    पर्वत शिला मार
    चली हुंकार।   

    ३१/ दीन के द्वार
    खुशी आये बनके
    ईद की चांद।

    ३२/
    आग का गोला
    सृष्टि का है इंजन
    देता जीवन ।

    ३३/
    चांदनी रात
    नदी खिलखिलाके
    दिखाये दांत।

    ३४/ सृष्टि के स्तम्भ
    निहारिका बनाते
    तारे पालते।

    ३५/ कल का युग
    घिरा विज्ञान साया
    ईश्वर माया ।

    ३६/
    अहं का भाव
    दौड़ाता दिन रात
    बुझे ना तृषा ।


    ३७/                    

    ऐसा हो कर्म
    लोभ तृषा से दूर
    मोक्ष हो धर्म।

    ३८/ अंत अध्याय
    जीव बंधनमुक्त
    मोक्ष पर्याय ।।

    ३९/                     
    करते युद्ध
    लपेट ध्वज कफन
    वीर जवान।

    ४०/
    होकर जुदा
    मिटा लो सब भ्रांति
    सहज शांति।

    ४१/ महिमा
    वही गाये जो जाने
    भूख की पीड़ा।


    ४२/ रक्त रंजित
    हिमालय की भूमि
    वीर लाल से।

    ४३/ देखे विनाश,
    विकास आस लिए
    मौन है धरा।

    ४४/ चमक उठी~
    नैनों में बन मोती
    प्रेम की ज्योति।

    ४५/ मृत्युशय्या में~
    चलचित्र उभरे
    स्मृति  रेखाएं।

    ४६/ क्षितिज पर~
    भू अंबर मिलन।
    हो आलिंगन।

    ४७/ सब अकेला~
    सिखाती अनायास
    वियोग बेला।

    ४८/ छाये बसंत
    खिलता पुष्पकली
    झूमे भ्रमर।  

    ४९/ बंधी है पुष्प
    काटें सलाखों बीच
    विकल चुप।

    ५०/ मधुबन में~
    पुष्प है गोपबाला
    कृष्ण भ्रमर।

  • मैं हूँ एक छोटी सी मछली- विनोद सिल्ला

    मैं हूँ एक छोटी सी मछली

    मैं हूँ एक छोटी सी मछली।
    सपनों के सागर में मचली।।

    सोचा था सारा सागर मेरा,
    ले आजादी का सपना निकली।।

    बड़े – बड़े मगरमच्छ वहां थे,
    था आजादी का सपना नकली।।

    बड़ी मछली छोटी को खाए,
    इनका राग इन्हीं की ढफली।।

    छोटी का न होता गुजारा,
    बड़ी खाती है काजु कतली।।

    सिल्ला’ इस सोच में है डूबा,
    भेद नहीं क्या असली नकली।।

    -विनोद सिल्ला©
  • तांका विधा के बारे में जानकारी

    तांका विधा के बारे में जानकारी

    तांका विधा के बारे में जानकारी

    हाइकु

    तांका जापानी काव्य की कई सौ साल पुरानी काव्य विधा है। इस विधा को नौवीं शताब्दी से बारहवीं शताब्दी के दौरान काफी प्रसिद्धि मिली। उस समय इसके विषय धार्मिक या दरबारी हुआ करते थे। हाइकु का उद्भव इसी से हुआ।

    तांका की वर्ण योजना

    इसकी संरचना ५+७+५+७+७=३१ वर्णों की होती है।

    तांका से रेंगा विधा का निर्माण

    एक कवि प्रथम ५+७+५=१७ भाग की रचना करता था तो दूसरा कवि दूसरे भाग ७+७ की पूर्त्ति के साथ शृंखला को पूरी करता था। फिर पूर्ववर्ती ७+७ को आधार बनाकर अगली शृंखला में ५+७+५ यह क्रम चलता; फिर इसके आधार पर अगली शृंखला ७+७ की रचना होती थी। इस काव्य शृंखला को रेंगा कहा जाता था.

    तांका विधा का सामान्य अर्थ

    ताँका का शाब्दिक अर्थ है लघुगीत अथवा छोटी कविता। लयविहीन काव्यगुण से शून्य रचना छन्द का शरीर धारण करने मात्र से ताँका नहीं बन सकती। साहित्य का दायित्व बहुत व्यापक है। अत: ताँका को किसी विषय विशेष तक सीमित नहीं किया जा सकता।

    तांका विधा को उदाहरण सहित सीखिये