हाइकु

निमाई प्रधान’क्षितिज’ के हाइकु

निमाई प्रधान’क्षितिज’ के हाइकु *[1]* *हे रघुवीर!**मन में रावण है* *करो संहार ।* *[2]**सदियाँ बीतीं* *वहीं की वहीं टिकीं* *विद्रूपताएँ ।* *[3]**जाति-जंजाल**पैठा अंदर तक**करो विमर्श ।* *[4]**दुःखी किसान* *सूखे खेत हैं सारे* *चिंता-वितान* *[5]**कृषक रुष्ट* *बचा आख़िरी रास्ता* *क्रांति का…

मन की लालसा किसे कहे

मन की लालसा किसे कहे सच कहुं तो कोई लालसा रखी नहींमन की ललक किसी से कही नहीं क्यों कि     जीवन है मुट्ठी में रेत    धीरे धीरे फिसल रहा   खुशियां, हर्ष, गम प्रेम   इसी से मन बहल रहा। बचपन…

कुछ चिन्ह छोड़ दें -गीता द्विवेदी

कुछ चिन्ह छोड़ दें -गीता द्विवेदी मृत्यु आती है ,सदियों से अकेले ही ,बार – बार , हजार बारलाखों , करोड़ों , अरबों बार ।पर अकेले जाती नहीं ,ले जाती है अपने साथ ,उन्हें , जिन्हें ले जाना चाहती है…

ये उन्मुक्त विचार -पुष्पा शर्मा”कुसुम”

ये उन्मुक्त विचार -पुष्पा शर्मा”कुसुम” नील गगन  के विस्तार सेपंछी के फड़फड़ाते पंख से,उड़ रहे, पवन के संग ये उन्मुक्त विचार । पूर्ण चन्द्र के आकर्षण सेबढते उदधि में ज्वार से,उछलते, तरंगों के संगये उन्मुक्त विचार। बढती , सरिता के…

तृष्णा पर कविता

तृष्णा पर कविता तृष्णा कुछ पाने कीप्रबल ईच्छा हैशब्द बहुत छोटा  हैपर विस्तार  गगन सा है।अनन्त नहीं मिलता छोर जिसकाशरीर निर्वाह की होतीआवश्यकतापूरी होती है। किसी की सरलकिसी  की कठिनईच्छा  भी पूरी होती है।कभी कुछ कभी कुछपर तृष्णा  बढती जातीपूरी…