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  • लोकनायक जयप्रकाश नारायण पर कविता

    लोकनायक जयप्रकाश नारायण पर कविता

    लोकनायक जयप्रकाश नारायण पर कविता

    जयप्रकाश नारायण सिन्हा जी को हम तो,
    अपने जीवन के सपनों में सचमुच लाएँ
    बने लोकनायक वे ऐसा ज्ञान दे गए,
    जिससे हम मानवता को फिर से पनपाएँ।

    छपरा जो बिहार में गाँव सिताब दियारा,
    अब उत्तर प्रदेश के बलिया में है न्यारा
    ग्यारह अक्टूबर को सन् उन्नीस सौ दो में,
    वहीं जन्म ले जो सबका बन गया दुलारा

    माता हुईं फूल रानी देवी आनंदित,
    और पिता हरसू दयाल जी भी मुस्काएँ
    बने लोकनायक वे ऐसा ज्ञान दे गए,
    जिससे हम मानवता को फिर से पनपाएँ।

    सन् उन्नीस बीस में मई सोलह आई,
    प्रभावती जी बनीं संगिनी जीवन में जब
    अमेरिका में रहकर जारी रखी पढ़ाई,
    और कमाई भी थी चलती रही वहाँ तब

    लौटे भारत आजादी की खातिर जब वे,
    गए जेल तो पत्नी क्यों पीछे रह जाएँ
    बने लोकनायक वे ऐसा ज्ञान दे गए,
    जिससे हम मानवता को फिर से पनपाएँ।

    चंबल के सारे डाकू जब हुए प्रभावित,
    किया आपके आगे सबने आत्म समर्पण
    जनता को भी नहीं भटकने दिया कभी भी,
    सचमुच ही समाज के आप बन गए दर्पण

    माता और पिता ने जिन्हें ‘बउल’ जी माना,
    वह संपूर्ण क्रांति के नायक बनकर छाएँ
    बने लोकनायक वे ऐसा ज्ञान दे गए,
    जिससे हम मानवता को फिर से पनपाएँ।

    सत्ता की मनमानी से थी जनता व्याकुल,
    तब विपक्ष को जोड़ यहाँ पर बिगुल बजाया
    जिसने उनका भाषण सुना हुआ उत्साहित,
    सत्ता बदली फिर सबने आनंद मनाया

    ‘भारत- रत्न’ उपाधि मिली जब नहीं रहे वे,
    उनकी गौरव- गाथा युगों- युगों तक गाएँ
    बने लोकनायक वे ऐसा ज्ञान दे गए,
    जिससे हम मानवता को फिर से पनपाएँ।

    रचनाकार –उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट
    ‘कुमुद- निवास’
    बरेली (उ. प्र.)
    मोबा.- 98379 44187

  • दोहा मुक्तक-बापू पर कविता

    दोहा मुक्तक-बापू पर कविता

    दोहा मुक्तक-बापू पर कविता

    mahatma gandhi

    सदी वही उन्नीसवीं, उनहत्तर वीं साल।
    जन्मे मोहन दास जी, कर्म चंद के लाल।
    बढ़े पले गुजरात में, पढ़ लिख हुए जवान।
    अरु पत्नी कस्तूरबा, जीवन संगी ढाल।

    भारत ने जब ली पहन, गुलामियत जंजीर।
    थी अंग्रेज़ी क्रूरता, मरे वतन के वीर।
    हाल हुए बेहाल जब, कुचले जन आक्रोश।
    देख दशा व्याकुल हुए, गाँधी जी मति धीर।

    काले पानी की सजा, फाँसी हाँसी खेल।
    गोली गाली साथ ही , भर देते थे जेल।
    देशी राजा थे बहुत, मौज करे मदमस्त।
    गाँधी ने आवाज दी, कर खादी से मेल।

    याद करे जब देश वह, जलियाँवाला बाग।
    कायर डायर क्रूर ने, खेला खूनी फाग।
    अंग्रेजों की दासता, जीना पशुता तुल्य।
    छेड़ा मोहन दास ने, सत्याग्रह का राग।


    मोहन, मोहन दास बन, मानो जन्मे देश।
    पढ़लिख बने वकील वे, गुजराती परिवेश।
    भूले आप भविष्य निज, देख देश की पीर।
    गाँधी के दिल मे लगी, गरल गुलामी ठेस।


    देखे मोहन दास ने, साहस ऊधम वीर।
    भगत सिंह से पूत भी, गुरू गोखले धीर।
    शेखर बिस्मिल से मिले, बने विचार कठोर।
    गाँधी संकल्पित हुए, मिटे गुलामी पीर।


    बापू के आदर्श थे, लाल बाल अरु पाल।
    आजादी हित अग्रणी, भारत माँ के लाल।
    फाँसी जिनको भी मिली, काले पानी मौत।
    गाँधी सबको याद कर, करते मनो मलाल।


    अफ्रीका मे वे बने, आजादी के दूत।
    लौटे अपने देश फिर, मात भारती पूत।
    किया स्वदेशी जागरण, परदेशी दुत्कार।
    गाँधी ने चरखा चला, काते तकली सूत।


    अंग्रेजों की क्रूरता, पीड़ित लख निज देश।
    बैरिस्टर हित देश के, पहने खादी वेश।
    सामाजिक सद्भाव के, दिए सत्य पैगाम।
    ईश्वर सम अल्लाह है, सम रहमान गणेश।


    कूद पड़े मैदान में, चाह स्वराज स्वदेश।
    कटे दासता बेड़ियाँ, हो स्वतंत्र परिवेश।
    भारत छोड़ो नाद को, करते रहे बुलंद।
    गाँधी गाँधी कह रहा, खादी बन संदेश।


    सत्य अहिंसा शस्त्र से, करते नित्य विरोध।
    जनता को ले साथ में,किए विविध अवरोध।
    नाकों में दम कर उन्हे, करते नित मजबूर।
    गाँधी बिन हथियार के, लड़े करे कब क्रोध।


    सत्याग्रह के साथ ही, असहयोग हथियार।
    सविनय वे करते सदा, नाकों दम सरकार।
    व्रत उपवासी आमरण, सत्य अहिंसा ठान।
    गाँधी नित सरकार पर, करते नूतन वार।


    गोल मेज मे भारती, रखे पक्ष निज देश।
    भारत का वो लाडला, गाँधी साधू वेश।
    हुआ चकित इंग्लैण्ड भी, बापू कर्म प्रधान।
    गाँधी भारत के लिए, सहते भारी क्लेश।


    गोरे काले भेद का, करते सदा विरोध।
    खादी चरखे कात कर, किए स्वदेशी शोध।
    रोजगार सब को मिले, बढ़े वतन उद्योग।
    गाँधी थे अंग्रेज हित, पग पग पर अवरोध।


    मान महात्मा का दिया, आजादी अरमान।
    बापू अपने देश का, लौटाएँ सम्मान।
    देश भक्त करते सदा, बापू की जयकार।
    गाँधी की आवाज पर, धरते सब जन कान।


    गाँधी की आँधी चली, हुए फिरंगी ध्वस्त।
    दी आजादी देश को, पन्द्रह माह अगस्त।
    खुशी मनी सब देश में, भाया नव त्यौहार।
    गाँधी ने हथियार बिन, किये विदेशी पस्त।


    बँटवारे के खेल में, भारत पाकिस्तान।
    बापू जी के हाथ था, खंडित हिन्दुस्तान।
    हुए पलायन लड़ पड़े, हिन्दू मुस्लिम भ्रात।
    गाँधी ने कर शांत तब, दाव लगाई ज़ान।


    आजादी खुशियाँ मनी, बापू का सम्मान।
    राष्ट्रपिता जनता कहे, बापू हुए महान।
    खुशियाँ देखी देश में, बदला सब परिवेश।
    गाँधी भारत देश में, जन्मे बन वरदान।


    तीस जनवरी को हुआ, उनका तन निर्वाण।
    सभा प्रार्थना में तजे, गाँधी जी ने प्राण।
    शोक समाया देश में, झुके करोड़ों शीश।
    गाँधी तुम बिन देश के, कौन करेगा त्राण।


    दिवस शहीदी मानकर,रखते हम सब मौन।
    बापू तेरे देश का , अब रखवाला कौन।
    कीमत जानेंगे नही, आजादी का भाव।
    गाँधी तुम बिन हो गये, सूने भारत भौन।


    महा पुरुष माने सभी, देश विदेशी गान।
    मानव मन होगा सदा, बापू का अरमान।
    याद रखें नव पीढ़ियाँ, मान तेज तप पुंज।
    गाँधी सा जन्मे पुन: , भारत भाग्य महान।


    बापू को करते नमन,अब तो सकल ज़हान।
    धन्य भाग्य माँ भारती, गाँधी धीर महान।
    राजघाट में सो रहे, हुए देव सम तुल्य।
    गाँधी भारत देश की, है तुमसे पहचान।


    शर्मा बाबू लाल ने, लिखे छन्द तेबीस।
    बापू को अर्पित किये, नित्य नवाऊँ शीश।
    रघुपति राघव गान से, गुंजित सब परिवेश।
    गाँधी जी सूने लगें, अब वे तीनों कीस।


    बाबू लाल शर्मा,”बौहरा”, विज्ञ
    सिकंदरा, दौसा, राजस्थान

  • पाती एक लिखी है बापू के नाम

    पाती एक लिखी है बापू के नाम

    mahatma gandhi
    कविता संग्रह

    पाती एक लिखी है बापू के नाम

    पाती एक लिखी है, हमने प्यारे बापू के नाम।
    सभांल के रखना इस देश को अब हमारा काम।

    सत्य अहिंसा की ज्वाला जो दिल में जलाई है।
    बुझने न दी हमने लौ को, आंधी तो खूब आई है।
    भेदभाव कभी न रखेंगे, कभी न करेंगे क्रोध।
    तेरे आदर्शों पर चलेंगे, न करेंगे कोई बुरा काम।

    संघर्ष किया तुमने, तब जाके हुए हम आजाद।
    तेरे त्याग को हरगिज, हम न होने देंगे बर्बाद।
    देश ये सारा हरदम, करता रहेगा तुझको याद।
    साबरमती के संत, तुम्हें मेरा है शत शत प्रणाम।

    गांधी जी के तीन बंदर, देते हमको ये संदेश।
    बुरा न बोलो, बुरा न सुनो, भाई बुरा मत देख।
    सुंदर और स्वच्छ भारत, बापू का था सपना।
    तैयार हैं हम करने को बापू का सपना साकार।

    दुबली पतली काया थी, फिर भी चलते सीना तान।
    मिट गए गांधी जी, पर न मिटने दी तिरंगे की शान।
    सादा जीवन था उनका, थे आप देश का अभिमान।
    तेरे जैसे हम भी बनेंगे, भारत माता की वीर संतान।

    आशीर्वाद तेरा रहा तो मुश्किलें हो जाएंगी नाकाम।
    संभाल कर रखना इस देश को अब हमारा काम।

    सुशी सक्सेना

  • भारत राष्ट्रपिता कहलाये धन्य

    भारत राष्ट्रपिता कहलाये धन्य

    भारत राष्ट्रपिता कहलाये धन्य

    mahatma gandhi

    सादा जीवन उच्च विचार अपनाये मानवतावादी।
    भारत राष्ट्रपिता कहलाये धन्य महात्मा गाँधी।

    २ अक्टुबर सन् १८६९ समय रहा सुखदाई।
    गुजरात के पोरबन्दर में जन्म आपने पाई।
    पिता कर्मचन्द्र गाँधी थे माता पुतली बाई।
    मोहनदास कर्मचन्द्रगाँधी पुरा नाम कहलाई।

    जीवन साथी डोर कस्तुरबा गाँधी के संग बांधी।
    भारत राष्ट्रपिता कहलाये धन्य महात्मा गाँधी।

    सत्यअहिंसा पाठ पढा़कर जन मन सुखी बनाये।
    मानवता का व्रत धारण कर महात्मा कहलाये।
    सत्याग्रह कर आजादी हेतु सबसे आगे आये।
    क्षमा दया त्याग प्रेम से आप चहुँ दिशि छाये।

    चरखा चलाये सुत काते अपनाये खुद खादी।
    भारत रह राष्ट्रपिता कहलाये धन्य महात्मा गाँधी।

    सत्य अहिंसा सर्वोपरि है सबको दिखला दी।
    नरम दल बनकर दहशत अंग्रेजों में फैला दी।
    बिना शस्त्र उठाये ले ली ब्रिटीश से आजादी।
    शान्ति क्षमा सदभाव से रोके भारत की बर्बादी।

    स्वावलम्बि बनकर महात्मा दिव्य साधना साधी।
    भारत राष्ट्रपिता कहलाये धन्य महात्मा गाँधी।

    ३०जनवरी सन्१९४८को यमराज फांस ले आया।
    नाथूराम गोडसे सीना पर तीन गोली चलाया।
    राम कह उडे़ प्राण पखेरु बंची जमीन पर काया।
    चले गये स्वर्गवास जग मेंआपका यश गुण छाया।

    भारतवर्ष में”बाबूराम कवि”आई दुख की आंधी।
    भारत राष्ट्रपिता कहलाये धन्य महात्मा गाँधी।

    बाबूराम सिंह कवि
    बड़का खुटहाँ , विजयीपुर
    गोपालगंज (बिहार )८४१५०८

  • देख रहे हो बापूजी

    देख रहे हो बापूजी

    देख रहे हो बापूजी

    mahatma gandhi

    देख रहे हो बापूजी,
    कैसा है आपके सपनों का भारत।
    निज स्वार्थ सिद्ध करने हेतु,
    जन-जन ने प्राप्त कर ली है महारत।

    देख रहे हो बापूजी,
    गांवों की हालत आपसे क्या कहें।
    इतना विकास हुआ ग्राम्य अंचल का,
    कि अब गांव, गांव ना रहे।

    देख रहे हो बापूजी,
    आपकी खादी कितना बदनाम हो गई।
    गांधीगिरी का दामन छोड़कर,
    अब नेतागिरी के नाम हो गई।

    देख रहे हो बापूजी,
    धीरे-धीरे शिक्षा व्यवस्था का भी विकास हो रहा है।
    विद्यालयीन पाठ्यक्रम से अब तो,
    नैतिक मूल्यों का ह्रास हो रहा है।

    देख रहे हो बापूजी,
    मानवीय ऊर्जा सुषुप्त हो रहे है।
    अब आम जन के मन से,
    स्वावलंबन के भाव विलुप्त हो रहे हैं।

    देख रहे हो बापूजी,
    आजकल अपनों में ही ऐसा द्वंद है।
    अहिंसा डरी-सहमी बैठी है,
    हिंसा घूमती स्वच्छंद है।


    विनोद कुमार चौहान “जोगी”