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  • बाबूराम सिंह की कुण्डलियां

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    बाबूराम सिंह की कुण्डलियां

    मानुष तनअनमोल अति,मधुरवचन नितबोल।
    रहो परस्पर प्यार से ,जन -मन मधुरस घोल।।
    जन-मन मधुरस घोल,जीवन सुज्योति जलेगा।
    होगा कर्म अकर्म , हृदय में पुण्य फलेगा।।
    कह बाबू कविराय ,कुचलो पाप अधर्म फन।
    पुनः मिले ना मिले,सोच लो यह मानुष तन।।
    *

    देना सुख से प्यार को ,यही परम सौभाग्य।
    क्षणभंगुर जीवन अहा ,जाग सके तो जाग।।
    जाग सके तो जाग, अन्त पछतावा होगा।
    तन निरोग का राज ,कर व्यायाम नित योगा।
    कह बाबू कविराय, सृष्टि की यह है सेना।
    भव से होगा पार ,प्यार सबको ही देना।।
    *

    सुधरेगा अग-जग तभी,मन जब निर्मल होय।
    भला -बुरा के फेर में, जात अकारथ दोय।।
    जात अकारथ दोय, जग जंजाल हो जाता।
    करता जैसा कर्म, जीव फल उसका पाता।।
    कह बाबू कविराय , दुराव से ही डरेगा।
    जग में निश्चित मान ,वही मानव सुधरेगा।
    *

    सर्वोपरि परमार्थ है, सरस सुखद जग जान।
    यही स्वर्ग सोपान सुचि ,अग-जग में पहचान।
    अग -जग में पहचान, मनुष्य परमार्थ करना।
    जीवन लक्ष्य महान,ध्यान प्रभु जी का धरना।।
    कह बाबू कविराय, करो कुछ भी तज स्वार्थ।
    हर पल जप हरि नाम, तभी होगा परमार्थ।।

    बाबूराम सिंह कवि
    बडका खुटहाँ, विजयीपुर
    गोपालगंज(बिहार)841508
    मो॰ नं॰ – 9572105032

  • तीजा पोरा के दिन आगे

    छत्तीसगाढ़ी रचना
    छत्तीसगाढ़ी रचना

    तीजा पोरा के दिन आगे

    तीजा पोरा के दिन आगे चलो मइके दुआरी मा
    उहाँ दाई डहर देखे अपन चढ़के अटारी मा ।

    गुड़ी मा बैठ के रद्दा निहारत हे बिहनिया ले
    लगे होही मया मारे सियनहा संग चारी मा ।

    मया सुतरी ह लामे हे बिताए जम्मो घर डेरा
    खुशी के दिन जहुँरिया के लेहे आही सवारी मा ।

    भतीजा मन खेलत होही कहूँ डेहरी मा घरघुँधिया
    बबा बर धोती ले जाहूँ लगे छिटही किनारी मा

    डहर तरिया के अमरैया सुहावन होही कोयली ले
    अगर नी जाहूँ तो संगी मता देही वो गारी मा ।

    बड़े दीदी हा आगू ले पहुँचगे होही गुडिया घर
    फूले होही तरोई हा अबड़ लटलट ले बारी मा ।

    लिवाबो कई जिनिस हम तो पिया श्रृंगार के खातिर
    पहिर के पूजा करे जाहूँ सबो सामान थारी मा ।

    परब बेटी दुलौरिन के यही मइके के सपना हे
    करे जोरा हे महतारी सुहागिन अउ कुँवारी मा ।

    मनाबो शिव सुवारी ला अमर चूरी रहे सबके
    जनम भर माँग में सेंदुर भरे सजना पियारी मा ।

    माधुरी डड़सेना ” मुदिता “

    तीजा पोरा के दिन आगे

    पोरा तिहार


    छत्तीसगढ़ के परब आगे,
    हिरदे मा ख़ुशी छा गे गा।
    माटी के बइला ला भरले,
    पोरा तिहार मना ले गा।
    काठा भर पिसान सान ले,
    ठेठरी खुरमी बना ले गा।
    पोरा तिहार के परम्परा ला,
    संगे- संग निभाले गा।
    मोटरा बांध के ठेठरी खुरमी,
    बहिनी घर अमराबे गा,
    किसिम किसिम लम्हरी बोदकु,
    ठेठरी सबला खवाबे गा।
    सगा सोदर गांव समाज मा,
    सुनता ल् बगराबे गा,
    छत्तीसगढ़िया के तिहार म,
    नाचबे अउ नचाबे गा।

    महादीप जंघेल

  • पोरा तिहार

    पोरा तिहार

    छत्तीसगढ़ के परब आगे,
    हिरदे मा ख़ुशी छा गे गा।
    माटी के बइला ला भरले,
    पोरा तिहार मना ले गा।
    काठा भर पिसान सान ले,
    ठेठरी खुरमी बना ले गा।
    पोरा तिहार के परम्परा ला,
    संगे- संग निभाले गा।
    मोटरा बांध के ठेठरी खुरमी,
    बहिनी घर अमराबे गा,
    किसिम किसिम लम्हरी बोदकु,
    ठेठरी सबला खवाबे गा।
    सगा सोदर गांव समाज मा,
    सुनता ल् बगराबे गा,
    छत्तीसगढ़िया के तिहार म,
    नाचबे अउ नचाबे गा।

    ✍️ महदीप जँघेल
    खमतराई ,जिला-खैरागढ

  • विनोद सिल्ला की कविता

    भाईचारा पर कविता

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    मैंने मना कर दिया

    मैंने भाईचारा
    निभाने से
    मना कर दिया

    थी उनकी मनसा
    मैं उनको
    भाई बनाऊं
    वे मुझको चारा ।

    -विनोद सिल्ला

    मेरा कुसूर

    मैं था कठघरे में
    दागे सवाल
    उठाई उंगली
    लगाए आक्षेप
    निकाली गलतियाँ
    निकम्मों ने

    मेरा कुसूर था कि
    मैंने काम किया ।

    -विनोद सिल्ला

  • भ्रमर दोहे – बाबूराम सिंह

    भ्रमर दोहे

    आगे-आगे जा करे,जो सुधैर्य से काम।
    बाढे़ चारो ओर से , ढे़रों नेकी नाम।।

    प्यासेको पानी पिला,भूखेको दोभीख।
    वेदों शास्त्रोंका यहीं,लाखों में है सीख।।

    जाने माने लोग भी ,हो जाते हैं फेल।
    पूर्ण यहाँ कोई नहीं,माया का है खेल।।

    गाये धाये नेक पै ,पाये प्यारा नाम।
    छाये भोले भाव पै,भाये साँचा काम।।

    जाना है जागो मना,अंतः आँखे खोल।
    प्यारे ही तो हैं सभी,मीठी वाणी बोल।।

    माँ की सेवा है सदा,मानो चारों धाम।
    खेले माँ की गोद में,भी आके श्रीराम।।

    माता के जैसा नहीं, दूजा कोई प्यार।
    खाया खेला प्यार में,पाया है संसार।।

    जूठे बैरों के लिए ,माँ भावों को भाँप।
    भोरे-भोरे राम जी,आये आपो आप।।

    आधे साधे क्या हुआ,होवे पूरा काम।
    जागोभागो दोष से,त्यागो भी आराम।।

    ज्यादा बाधा भी पडे़,ना हो डा़वाडोल।
    धारो यारों सत्य को,झूठे की ना मोल।।

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    बाबूराम सिंह कवि
    बड़का खुटहाँ , विजयीपुर
    गोपालगंज(बिहार)841508
    मो०नं० – 9572105032
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