शबा राव की कवितायेँ

शबा राव की कवितायेँ

कविता संग्रह
कविता संग्रह

आज की बात

मैं घर से निकली पढ़ाई के लिए,
बस अड्डे पर बस का इंतजार करते रहे,
कुछ देर बाद बस आ गई,
मैं और बाकी के लोग बस में बैठ गए।

बस में बैठी महिला मेरे से बात करने लगी,
मैंने उनसे पूछा तुम क्या करती हो?
महिला ने जवाब दिया बड़े बड़े घरों में,
झाड़ू- पोछा और बर्तन साफ करते हैं।

फिर वह बोली “बेटी देने वाला खुदा है”,
हम तो यह काम करके अपना पेट पाल रहे हैं,
यह काम करके हमें खुशी भी मिलती है,
सबसे बढ़कर तो यह है, कि हम मेहनत और ईमानदारी का खा रहे हैं।

उनकी बातें सुनकर मेरी अंतरात्मा जाग गई,
उनकी बातें मेरे दिल को छू गई,
10 मिनट के सफर की यह कहानी,
ईमानदारी, नैतिकता और मेहनत का पाठ पढ़ा गई।

आज भी समाज में ऐसी मिसाले देखने को मिलती है,
जो मेहनत और ईमानदारी के दम पर परिवार को पाल रहे हैं,
ऐसे लोगों को समाज में सम्मानित किया जाना चाहिए,
फरेब और धोखे को नकार कर ईमानदारी के रास्ते पर चलना चाहिए।।
.
. शबा राव
रुड़की / उत्तराखंड

एक खत उसके नाम

तेरे इंतजार में एक-एक पल गिनती हूँ,
तेरे नाम का हर रोज एक खत लिखती हूं।

अपनी सारी जिंदगी तेरे नाम करती हूं,
तेरी सलामती की हर रोज दुआ मांगती हूं।

तेरी यादों का एक महल बना रखा है दिल में,
हर रोज तुझे ढूंढने के लिए उसमें जाती हूं।

इन खतो को तुम तक पहुंचाना चाहती हूं,
पर पता नहीं तुम्हारे ठिकाने से अनजान रहती हूँ।

उन खुशियों को तुम्हारे साथ बांटना चाहती हूं,
जिन खुशियों से तुम बेखबर लगते हो।

तेरे लबों पे वो मुस्कान बन कर रहना चाहती हूं,
जिससे तेरी जिंदगी में खुशियों का सैलाब आ जाए।

हर रोज तेरा जिक्र करके खुश हो जाती हूं,
पर सच तो यह है हर वक्त मिलने की दुआ करती हूं।

हर उन खतों का जवाब पाना चाहती हूं,
जो हर वक्त तेरी याद में लिखती रहती हूं।

||शबा राव ||

शाम का नजारा

शाम का वक्त,
खूबसूरत नजारा।

बाइक पर उसका आना,
छत पर से मेरा देखना।

मेरा दिल तो बाग-बाग हो गया,
पर उसकी नजरें मुझे ढूंढते रह गई।

यह मंजर देख कर,
मेरी सहेली का हंसना आम हो गया।

कहने लगी वह मुझसे,
आंधी का तूफान आया, और चला गया।

तूने तो उसका दीदार कर लिया,
पर उस बेचारे को मालूम ना हुआ।

थोड़ी देर उसका इंतजार करते हैं,
शायद वह तुझे देखने वापस आ जाए।

और हमारा इंतजार रंग लाया,
वो मेरी झलक देखने के लिए वापस आया।

मैंने इसको इश्क- ए- दासता का नाम दे दिया,
सच्ची मोहब्बत का हकदार उसे बना दिया।

. शबा राव

मेहनत की इबादत

पक्षी की तरह उड़ान तो भर,
गगन में नाम तेरा ही होगा।

मेहनत की इबादत तो कर,
विश्व में नाम तेरा ही प्रसिद्ध होगा।

कांटो की परवाह मत कर,
फूलों की पहचान कांटों में ही होती है।

क्यों घबराता है मुश्किलों के भवनडर से?
इनको अपनी ताकत बना कर देख ले एक बार।

इस जमाने से गिले-शिकवे मत करना,
पाबंदी से मेहनत करना जारी रखना।

समाज में जब तेरी पहचान होगी,
तो आने वाली पीढ़ी के लिए तू मिसाल होगा।

सम्मान से तेरा नाम पुकारा जाएगा,
तेरा जीवन जीने का बेहतरीन तरीका होगा।

जब मेहनत के पीछे का संघर्ष सुनाएगा,
तो कोटि-कोटि अपने संघर्ष का धन्यवाद करेगा।

. शबा राव

हिम्मत हरदम बना

मंजिल पाना चाहते हो,
खुद की पहचान बनाना चाहते हो,
हिम्मत हरदम बनाए रखनी है,
इस दुनिया को यह खूबी दिखानी हैं।

तुम पहाड़ को देखो,
इस अंधेरी रात को देखो,
अपने सपनों को जिंदगानी बना लो,
हिम्मत हरदम बनाकर,
एक प्यारी पहचान बना लो।।

सूरज को मित्र बना लो,
हर कठिनाई से सच्ची दोस्ती कर लो,
जमी आसमा की जुदाई देखो,
अपने को साबित करना है तो
हिम्मत बनाकर
नया अध्याय लिख डालो।।

|| शबा राव ||

एक खत लिखती हूं

तेरे इंतजार में एक-एक पल गिनती हूँ,
तेरे नाम का हर रोज एक खत लिखती हूं।

अपनी सारी जिंदगी तेरे नाम करती हूं,
तेरी सलामती की हर रोज दुआ मांगती हूं।

तेरी यादों का एक महल बना रखा है दिल में,
हर रोज तुझे ढूंढने के लिए उसमें जाती हूं।

इन खतो को तुम तक पहुंचाना चाहती हूं,
पर पता नहीं तुम्हारे ठिकाने से अनजान रहती हूँ।

उन खुशियों को तुम्हारे साथ बांटना चाहती हूं,
जिन खुशियों से तुम बेखबर लगते हो।

तेरे लबों पे वो मुस्कान बन कर रहना चाहती हूं,
जिससे तेरी जिंदगी में खुशियों का सैलाब आ जाए।

हर रोज तेरा जिक्र करके खुश हो जाती हूं,
पर सच तो यह है हर वक्त मिलने की दुआ करती हूं।

हर उन खतों का जवाब पाना चाहती हूं,
जो हर वक्त तेरी याद में लिखती रहती हूं।

||शबा राव ||

झाड़ियों में फूल

poem on trees
poem on trees

झाड़ियों से आप डरते क्यों है?
यह झाड़ियां तो खूबसूरत फूलों की पहचान है।

मेरे सामने गुलाब का पेड़ है,
उस पर खूबसूरत फूल खिल रहा है।

उसकी तारीफ में मेरे लफ्ज़ कम पड़ रहे हैं,
पर मेरी नजर उस पर से हटने का नाम नहीं ले रही है।

क्यों इन झाड़ियों में उसका रिश्ता है?
कांटो से सब डरते हैं लेकिन फूलों को जिंदगी मानते हैं।

अरे! इन झाड़ियों से दोस्ती कर लो,
तुम्हारी जिंदगी खुद ब खुद फूल बन जाएगी।

फूलों को तो हमेशा याद रखते हो,
इन साड़ियों का भी जिक्र कर लिया करो।

कांटों में तो फूलों की पहचान है,
इस दुनिया में तो अपनी पहचान बना लो।

||शबा राव ||

सन्नाटा

अंधेरी रात में सन्नाटा पसरा,
दिल एकदम से खौफजदा हो गया,
डरावनी आवाजों का बोलबाला हो गया,
तरह तरह के सवालों का आगाज हो गया।

प्रकृति एकदम से सुनसान हो गई,
फिजाओ की आवाजें खौफनाक हो गई,
आसमान में तो चांद सितारों की रोशनी थी,
पर अंधियारे की चादर चारों ओर फैली थी।

खुशियों की ऐसी कमी छाई थी,
दिल में दर्द ए कहानी छुपाई थी,
अंधेरी रात तो काली हो गई थी,
क्योंकि गमगीन जमाने की यह सताई थी।।

||शबा राव ||

चिड़िया

सुबह शाम चिड़िया बोले
सब मस्ती में झूम के खेले
पेड़- पौधे हवा में नाचे
कोयल सुरीली आवाज में गाए
सुबह -शाम चिड़िया बोले।

आसमान पर काली घटा छाए,
धरती पर अंधेरा हो जाए,
ठंडी-ठंडी हवा चल जाए,
सुबह- शाम चिड़िया बोल जाए।

है यह कितनी प्यारी चिड़िया,
जो एहसास दिलाती मुझको,
प्रकृति भी सुहानी कितनी,
जिसमें समाया है जग सारा।

जब ये चिड़िया फुर -फुर
करके उड़ती जाती
पूरे जग की सैर लगाकर
धरती से लेकर अंबर तक
सभी को संदेशा देती।

तुम पर एतबार है

तुम पर एतबार है,
इस ऐतबार से ही तुमसे प्यार है।

तभी तो इस दुनिया को भुलाए बैठे हैं,
आजाद पंछी की तरह आसमान में उड़ते हैं।

कौन अपना है कौन पराया है?
बस हरदम तुमको महसूस किया है।।

यह जुदाई तो लंबी है,
पर मोहब्बत बहुत गहरी है।।

तेरी रोज की बातें अंजानी हैं,
पर तेरा जिक्र तो अपना है।।

एक बार कायम रहा तो,
जिंदगी महफूज होगी।।

इस एतबार बार पर ही,
हर रोज तेरा इंतजार जो करते हैं।।

जिंदगी एक पहेली सी

जिंदगी एक पहेली सी लगती है,
जिसमें वह उलझी रहती है,
नदी की तो लहर भी अपनी सी लगती हैं,
जो कभी -कभी दिखाई पड़ती है
फिर भी जिंदगी को समझ नहीं पाती।

मंदिर मस्जिद तो इबादत के लिए है,
सूरज की अपनी किरणें है,
खामोशी में तो ढेरों सवाल उगते है,
पर जवाब देने से कतराते हैं,
फिर भी जिंदगी को समझ नहीं पाती।

दरारों को तो भर्ती रहती है,
दिल को छलनी होने नहीं देती है,
गजल तो उसके लबों पर होती है,
फिर भी जिंदगी को समझ नहीं पाती।

राह तो ऐसी चुनती है,
जिसमें मुश्किलों का पहरा होता है,
ख्वाब तो ऐसी देखती हैं,
जो आईने की तरह साफ होते हैं,
फिर भी जिंदगी को समझ नहीं पाती।।

छोटा सा कमरा

यह छोटा सा कमरा मुझे खुशी देता है,
इसके कोने में रखा टीवी कोई संदेशा देता है।

दीवार पर लगी प्यारी सी घड़ी,
निरंतर चलने में सहायता देती हैं।

दूसरी दीवार पर लगा गुलाब का फूल,
मन में रोमांच और उल्लास भरता है।

थोड़ी दूरी पर लगी अल्लाह हू की तस्वीर
नेक रास्ते पर चलने की सलाह देती है।

टीवी पर रखी मिट्टी की चिड़िया,
खुले आसमान में उड़ने का आभास कराती है।

सामने लगे अम्मी पापा और बैलों की तस्वीर,
अपने काम की ओर ध्यान आकर्षित कराती है।

मेज पर रखी पुस्तकें,
पढ़ने के लिए आमंत्रित करती है।

खिड़की की हवा हमेशा,
अच्छे पलों की याद दिलाती है।

यह छोटा सा कमरा,
मुझे हर वक्त खुशियां देता है।

अकेलापन

जिंदगी का यह कौन- सा मोड़ है,
जो उसे अकेलापन महसूस कराता है,
दिमाग में परेशानियों का भंडार है,
और आंखों में सिर्फ आंसू है।।

वह राह तकती रहती है,
हर वक्त निगाह जमा रहती है,
फिर भी धोखा ही मिलता है,
आखिर उसके साथ ऐसा क्यों होता है?

काश वह किसी की परवाह ना करती,
सिर्फ और सिर्फ अपने बारे में ही सोचती,
सपनों को पूरा कर पाती,
चिड़ियों की तरह आजाद हो पाती।

खुशियों का अफसाना

बीत गया समय रुकावट का,
हो गई सुबह खुशियों की,
खुशियों का नजारा ऐसा था,
जिसमें पूरी कायनात शामिल थी।।

सब खुशी के नशे में मदहोश थे,
सबके सिर पर जादू चढ़ा हुआ था,
जिंदगी का राग खुशनुमा था,
जिसमें सबकी खुशियों का अफसाना था।।

आंखों में तो आंसू थे,
पर खुशियों की उसमें लहर थी,
लफ्जों में तो गुस्सा था,
पर मायनों में सच्ची मोहब्बत थी।।

गर्म हवा भी ठंडी थी,
क्योंकि खुशियों की रौनक छाई थी,
सपनों में तो लड़कपन था,
क्योंकि हौसले और जज्बे की अपनी मिसाल थी।।

जिंदगी

ऊपर सीढ़ियों पर बैठी थी,
घुटनों पर हाथ रखे सोचती थी।

चेहरे पर कुछ चिंताएं थी,
झुकी हुई आंखों में परेशानियां थी।

मानो गौर से देखा उसे,
मन में कुछ परेशानी है उसके।

किसी से कुछ कहने की हिम्मत नहीं की,
किसी से कोई गुजारिश नहीं की।

मन ही मन सोचती थी,
मन ही मन रोती थी।

शायद अपने को बेचारी मानती थी,
शायद अपने को बेसहारा मानती थी।

जिंदगी को बेनूर मानती थी,
जिंदगी को बेवफा मानती थी।।

ए खुदा

ए खुदा
यह हंसी खुशी जिंदगी तूने बख्शी है,
एक कोमल सी एक मासूम सी
जन्मे बच्चे की किलकारी -सी।

ए खुदा
इसे जीने का रास्ता तू ही बता,
कभी यह काटो की भांति लगती है,
तो कभी यह फूलों की तरह महकती है,
फिर है क्या इसका नजारा?
और है क्या इसका किनारा?

कुछ इंसान जिंदगी को क्यों नहीं समझ पाते?
यह जिंदगी कभी उन्हें मदहोश बना देती है,
तो कभी अकेले रहकर जीना सिखा देती है।
कभी अपने आप से मिलाती हैं,
तो कभी अपने से बेगाना बना देती हैं।

ए खुदा
मैं तो इस जिंदगी पर वारी
क्योंकि यह हमें एक पल में कुछ ऐसा दे जाती है
कि हमें अपनी मंजिल पर पहुंचा देती हैं।

काश वो

जिंदगी का यह कौन- सा मोड़ है,
जो उसे अकेलापन महसूस कराता है,
दिमाग में परेशानियों का भंडार है,
और आंखों में सिर्फ आंसू है।।

वह राह तकती रहती है,
हर वक्त निगाह जमा रहती है,
फिर भी धोखा ही मिलता है,
आखिर उसके साथ ऐसा क्यों होता है?

काश वह किसी की परवाह ना करती,
सिर्फ और सिर्फ अपने बारे में ही सोचती,
सपनों को पूरा कर पाती,
चिड़ियों की तरह आजाद हो पाती।

||शबा राव ||
|| उत्तराखंड|| रुड़की ||

कोई रुकावट नहीं


बीत गया समय रुकावट का,
हो गई सुबह खुशियों की,
खुशियों का नजारा ऐसा था,
जिसमें पूरी कायनात शामिल थी।।

सब खुशी के नशे में मदहोश थे,
सबके सिर पर जादू चढ़ा हुआ था,
जिंदगी का राग खुशनुमा था,
जिसमें सबकी खुशियों का अफसाना था।।

आंखों में तो आंसू थे,
पर खुशियों की उसमें लहर थी,
लफ्जों में तो गुस्सा था,
पर मायनों में सच्ची मोहब्बत थी।।

गर्म हवा भी ठंडी थी,
क्योंकि खुशियों की रौनक छाई थी,
सपनों में तो लड़कपन था,
क्योंकि हौसले और जज्बे की अपनी मिसाल थी।।

|| उत्तराखंड|| रुड़की ||

दुःख में डूबी


ऊपर सीढ़ियों पर बैठी थी,
घुटनों पर हाथ रखे सोचती थी।

चेहरे पर कुछ चिंताएं थी,
झुकी हुई आंखों में परेशानियां थी।

मानो गौर से देखा उसे,
मन में कुछ परेशानी है उसके।

किसी से कुछ कहने की हिम्मत नहीं की,
किसी से कोई गुजारिश नहीं की।

मन ही मन सोचती थी,
मन ही मन रोती थी।

शायद अपने को बेचारी मानती थी,
शायद अपने को बेसहारा मानती थी।

जिंदगी को बेनूर मानती थी,
जिंदगी को बेवफा मानती थी।।


|| उत्तराखंड|| रुड़की ||

जिंदगी सी


ए खुदा
यह हंसी खुशी जिंदगी तूने बख्शी है,
एक कोमल सी एक मासूम सी
जन्मे बच्चे की किलकारी -सी।

ए खुदा
इसे जीने का रास्ता तू ही बता,
कभी यह काटो की भांति लगती है,
तो कभी यह फूलों की तरह महकती है,
फिर है क्या इसका नजारा?
और है क्या इसका किनारा?

कुछ इंसान जिंदगी को क्यों नहीं समझ पाते?
यह जिंदगी कभी उन्हें मदहोश बना देती है,
तो कभी अकेले रहकर जीना सिखा देती है।
कभी अपने आप से मिलाती हैं,
तो कभी अपने से बेगाना बना देती हैं।

ए खुदा
मैं तो इस जिंदगी पर वारी
क्योंकि यह हमें एक पल में कुछ ऐसा दे जाती है
कि हमें अपनी मंजिल पर पहुंचा देती हैं।
शबा राव
|| उत्तराखंड|| रुड़की ||

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