जाति धर्म पर कविता

जाति धर्म पर कविता इंसान-इंसान के बीचकितनी हैं दूरियांइंसान-इंसान कोनहीं मानता इंसानमानता हैकिसी न किसीजाति काधर्म काप्रतिनिधिइंसान की पहचानइंसानियत न होकरबन गई पहचानजाति व धर्म हो गई परिस्थितियांबड़ी विकटविवाह-शादीकार-व्यवहारक्रय-विक्रयसब कुछ मेंदी जाती है वरीयताअपनी जाति कोअपने धर्म कोजाति-धर्म हीसबसे बड़ी…

चित्र मित्र इत्र विचित्र पर कविता

चित्र मित्र इत्र विचित्र पर कविता चित्र रचित कपि देखकर,डरती सिय सुकुमारि।अगम पंथ वनवास में, रहती जनक दुलारि।। मित्र मिले यदि कर्ण सा, सखा कृष्ण सा साथ।विजित सकल संसार भव, बने त्रलोकी नाथ।। गन्धी चतुर सुजान नर, बेच रहे नित…

शिखण्डी पर कविता

शिखण्डी पर कविता पार्थ जैसा हो कठिन,व्रत अखण्डी चाहिए।*आज जीने के लिए,**इक शिखण्डी चाहिए।।* देश अपना हो विजित,धारणा ऐसी रखें।शत्रु नानी याद कर,स्वाद फिर ऐसा चखे। सैन्य हो अक्षुण्य बस,व्यूह् त्रिखण्डी चाहिए।।आज जीने के……. घर के भेदी को अब,निश्चित सबक…

सूरज पर कविता

सूरज पर कविता मीत यामिनी ढलना तय है,कब लग पाया ताला है।*चीर तिमिर की छाती को अब,**सूरज उगने वाला है।।* आशाओं के दीप जले नित,विश्वासों की छाँया मे।हिम्मत पौरुष भरे हुए है,सुप्त जगे हर काया में। जन मन में संगीत…

शिक्षा पर कविता

शिक्षा पर कविता शिक्षा का अधिकार सभी कोसभी शिक्षित कीजिये।कहते है महादान इसकोदान सबको दीजिए।।1।। शिक्षा का ये क्षेत्र असीमितअनुसंधान कीजिये।अधुनातन नवतकनीकों सेजनकल्याण कीजिये।।2।। शिक्षा से कोई भी वंचितरहे ना संसार मे।शिक्षा की सब अलख जगाएंहर एक परिवार में।।3।।???शिक्षा जीवन…

सार छंद विधान – बाबूलालशर्मा

सार छंद विधान ऋतु बसंत लाई पछुआई, बीत रही शीतलता।पतझड़ आए कुहुके,कोयल,विरहा मानस जलता। नव कोंपल नवकली खिली है,भृंगों का आकर्षण।तितली मधु मक्खी रस चूषक,करते पुष्प समर्पण। बिना देह के कामदेव जग, रति को ढूँढ रहा है।रति खोजे निर्मलमनपति को,मन…

हिमालय पर कविता

हिमालय पर कविता नेपाल, चीन सीमा पर स्थित,हिमालय पर्वत की चोटी।गंगा यही से निकलती है,पत्थरों के साथ बहती है।हिमालय को पर्वत राज,नाम से जाना जाता है।पर्वतों का राजा माउंट एवरेस्ट,सबसे ज्यादा ऊंची चोटी है।हिमालय पर्वत की ऊंची चोटी,मीटर मे है…

पर्यावरण संरक्षण पर कविता

ओजोन परत

पर्यावरण संरक्षण पर कविता दूषित हुई हवावतन कीकट गए पेड़सद्भाव केबह गई नैतिकतामृदा अपर्दन मेंहो गईं खोखली जड़ेंइंसानियत कीघट रही समानताओजोन परत की तरहदिलों की सरिताहो गई दूषितमिल गया इसमेंस्वार्थपरता का दूषित जलसांप्रदायिक दुर्गंध नेविषैली कर दी हवाआज पर्यावरणसंरक्षण कीसख्त…

बिखराव पर कविता

बिखराव पर कविता नफरतों नेबढ़ा दी दूरियांइंसान-इंसान के बीच बांट दिया इंसानकितने टुकड़ों मेंस्त्री-पुरुषअगड़ा-पिझड़ाअमीर-गरीबनौकर-मालिकछूत-अछूतश्वेत-अश्वेतस्वर्ण-अवर्णधर्म-मजहब मेंखंड-खंड हो गया इंसाननित बढ़ता हीजा रहा है बिखराव -विनोद सिल्ला© Post Views: 124

किसान की दशा पर कविता

किसान खेत जोतते हुए

किसान की दशा पर कविता देख तोर किसान के हालका होगे भगवान !कि मुड़ धर रोवए किसान,ये का दुख दे भगवान !! पर के जिनगी बड़ सवारें,अपन नई थोरको फिकर जी !बजर दुख उठाये तन म,लोहा बरोबर जिगर जी !!पंगपंगावत…

हनुमत वंदना

हनुमत वंदना राम नाम जाप कर, चित्त निज साफ कर,पवनसुत ध्यान धर,प्रभु को पुकारिये।भेद भाव भूल कर, क्रोध अहं नाश कर,बजरंगी शरण जा, जीवन सुधारिये।।राम भक्त हनुमान, करें नित्य गुणगानमंगल को पूज कर, जीवन सँवारिये।लाल देह सर्व प्रिय,सियाराम बसें हियलडुअन…

संस्कारों पर कविता

संस्कारों पर कविता बीज रोप दे बंजर में कुछ,यूँ कोई होंश नहीं खोता।जन्म जात बातें जन सीखे,वस्त्र कुल्हाड़ी से कब धोता। संस्कृति अपनी गौरवशाली,संस्कारों की करते खेती।क्यों हम उनकी नकल उतारें,जिनकी संस्कृति अभी पिछेती।जब जब अपने फसल पकी थी,पश्चिम रहा…