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  • बेटी (चौपाईयाँ) – डॉ एन के सेठी

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    बेटी (चौपाईयाँ) – डॉ एन के सेठी

    बेटी करती घर उजियारा।
    दूर करे जग काअँधियारा।।
    बेटी होती सबकी प्यारी।
    लगती है सबसे ही न्यारी।।

    सृष्टा की सुंदर सृष्टी है।
    करती खुशियों की वृष्टी है।।
    बेटी घर को पावन करती।
    घर पूरा खुशियों से भरती।।

    बेटी आन बान घर घर की।
    बेटी रौनक है इस जग की।।
    बेटी आँगन की फुलवारी।
    पापा की है राजदुलारी।।

    बेटी से घर आँगन महके।
    बेटी चिड़िया की सी चहके।।
    बेटी को भी खूब पढ़ाओ।
    उसको सब दिल सेअपनाओ।।

    बेटी कुल की बेल बढ़ाती।
    सबको आपस में मिलवाती।।
    दो दो कुल का मान बढाएं।
    बेटी जन्मे खुशी मनाएं।।

    डॉ एन के सेठी

  • अमल करें- रामनाथ साहू ” ननकी “

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    अमल करें- रामनाथ साहू ” ननकी “

    सरल करें ।
    आओ बुनियादी बातों पर ,
    अमल करें ।।

    जीवन वृत प्रमेय अनसुलझा ,
    सफल करें ।
    अभी अभिक्षमता सुदृढ बने ,
    अचल करें ।।

    चित चंचलता संयम निष्ठा ,
    महल करें ।
    आदर्शों के लिए कठिन व्रत ,
    कँवल करें ।।

    भ्रम विद्वेषण , स्वार्थपरकता ,
    विफल करें ।
    नायक बनकर श्रेष्ठ जनों का ,
    नकल करें ।।

    वैधानिक वैदिक वैभव से ,
    पहल करें ।
    बंजर मन को उर्वरता दें
    सजल करें ।।

    रामनाथ साहू ” ननकी “
    मुरलीडीह ( छ. ग. )

  • सुभाष चंद्र बोस – उपेन्द्र सक्सेना

    आजादी के महानायक नेता जी सुभाष चंद्र बोस जी की जयंती (23 जनवरी) पर

    सुभाष चंद्र बोस - उपेन्द्र सक्सेना

    उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट

    थे सुभाष जी मन के सच्चे, सबने उनको इतना माना।
    नेताजी के रूप में उन्हें, सारी दुनिया ने पहचाना।।

    सन् अट्ठारह सौ सतानवे, में तेईस जनवरी आयी
    तब चौबीस परगने के कौदिलिया ने पहचान बनायी
    था सुभाष ने जन्म लिया, माताजी प्रभावती कहलायीं
    पिता जानकी नाथ बोस ने, थीं ढेरों बधाइयाँ पायीं

    निडर जन्म से थे सुभाष जी, सबने उनका लोहा माना।
    कितने भी संकट हों सम्मुख, सीखा नहीं कभी घबराना।।

    पिता कटक में चमक रहे थे, बनकर सरकारी अधिवक्ता
    वेतन के अतिरिक्त उन्हें तब मिलता था सरकारी भत्ता
    उन्हें मानती थी सचमुच उस समय यहाँ अंग्रेजी सत्ता
    पुत्र सुभाष कटक से मैट्रिक करके आये थे कलकत्ता

    कलकत्ता से एफ.ए., बी. ए., करके हुए ब्रिटेन रवाना।
    और वहाँ आई.सी.एस.कर, सपना पूरा किया सुहाना।।

    भारत को आजाद कराने का जब भाव हृदय में जागा
    सदी बीसवीं सन् इक्किस में, आई.सी.एस.का पद त्यागा
    गए जेल दस बार लगा तब,सोने में मिल रहा सुहागा
    कूटनीति से जेल छोड़कर जेलर को कर दिया अभागा

    उत्तमचन्द नाम के व्यापारी ने उनको दिया ठिकाना।
    और जियाउद्दीन नाम से, सफल हो गया इटली जाना।।

    और वहाँ से जर्मन पहुँचे, हिटलर ने भी दिया सहारा
    फौज बनी आजाद हिन्द जब,अंग्रेजों को था ललकारा
    फिर जापान पहुँचकर उनको, सबका मिला साथ जब न्यारा
    आजादी का स्वर मुखरित कर, प्रकट हुए बनकर अंगारा

    मैं तुमको आजादी दूँगा, खून भले ही पड़े बहाना।
    भाषण सुना जिस किसी ने भी, हो बैठा उनका दीवाना।।

    बर्मा की महिलाओं ने आभूषण उन्हें कर दिए अर्पित
    मंगलसूत्र उतारा ज्यों ही, आँसू भी हो गए समर्पित
    दिल्ली चलो कहा जैसे ही, फौज चल पड़ी होकर गर्वित
    अभिवादन ‘जय हिंद’ हो गया कितने भाव हुए थे तर्पित

    नेताजी बुन गये यहाँ पर,आजादी का ताना-बाना।
    सरल हो गया अंग्रेजों के, हाथों से सत्ता हथियाना।।

    रचनाकार -उपमेन्द्र सक्सेना एड.
    ‘कुमुद- निवास’ बरेली (उ. प्र.)

  • सुभाष चंद्र बोस – डॉ एन के सेठी

    subhashchandra bos

    सुभाष चंद्र बोस – डॉ एन के सेठी

    आजादी के नायक थे
    मातृभू उन्नायक थे
    जीवन अर्पण किया
    ऐसे त्यागी वीर थे।।

    भारत माँ हुई धन्य
    देशभक्ति थी अनन्य
    जयहिन्द किया घोष
    कर्मयोगी वीर थे।।

    त्याग दिया घर बार
    किया वतन को प्यार
    शत्रु के लिए सदा वो
    तेज शमशीर थे।।

    भारत माँ के सपूत
    साहस भरा अकूत
    झुके नहीं रुके नहीं
    देश तकदीर थे।।

    नाम सुभाष बोस था
    दिल मेंभरा जोश था
    देशभक्ति का जुनून
    ज्ञानवान धीर थे।।

    त्याग दिए सुख चैन
    देखे नहीं दिन रैन
    देश हित लगे रहे
    मातृभूमि वीर थे।।

    हिन्द हित सेना जोड़
    शत्रुमुख दिया तोड़
    पीठ न दिखाई कभी
    ऐसे रणधीर थे।।

    कभी नहीं मानी हार
    शत्रु झुका हर बार
    आजादी के लिए लड़े
    सुधीर गम्भीर थे।।


    डॉ एन के सेठी

  • शादी की सालगिरह – सुधीर श्रीवास्तव

    शादी की सालगिरह  – सुधीर श्रीवास्तव

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह


    आइए!
    मुझे मुबारकबाद दीजिये
    मगर मुझे छोड़िये
    मेरी श्रीमती को ही यह उपहार दीजिये
    जिसनें मुझे झेला है,
    मेरी बात न कीजिये
    उसका जीवन जैसे नीम करेला है।


    शादी का लड्डू मुझे बहुत भाया
    पर श्रीमती जी का शुगर लेवल
    अचानक बहुत बढ़ गया,
    अब वो बेलन संग सिर पर सवार हैं,
    अपना शुगर लेवल घटाने के लिए
    मुझ पर तैनात कर दिया पहरेदार है।


    आज सुबह सुबह वो चहकती हुई
    मेरे पास आई आई,
    बड़ी अदा से मुस्कराई,
    मुझे तो साक्षात काली नजर आई
    मेरे मुँह से आवाज तक नहीं आई
    मेरी हिम्मत भी पाला बदल
    जैसे उसके साथ नजर आई।


    उसने बड़े प्यार से गले लगाया
    मेरी पीठ थपथपाया,
    शादी की सालगिरह की बधाइयां दी।
    मैं भौचक्का सा हो गया
    जैसे सूर्य गलती से
    पश्चिम में उदय हो गया,
    फिर भी मैं खुश था
    सूर्य कहीं भी उदित हुआ हो
    मेरा रोम रोम खिल गया।
    पर ये क्या उनके सुर बदल गये
    मिठाई का डिब्बा उठाया
    मुझे दिखाया ,फिर बंद कर समझाया
    प्राणेश्वर !आज हमारी शादी की
    औपचारिक सालगिरह है,
    आज हम दोनों एक दूसरे के हुए थे
    पर ये मुआ शुगर जैसे ताक में थे।


    अब तो सूखे सूखे सालगिरह मनाना है
    मिठाई खाकर मुझे शुगर घटाना है,
    तुम्हें मिठाई से दूर रख
    अपना शुगर लेवल नार्मल करना है
    यही हमारा उपहार, तुम्हारा कर्तव्य है।
    शादी की सालगिरह मुबारक हो
    हम अच्छे या बुरे जैसे भी है
    एक दूजे की सबसे बड़ी जरूरत हैं,
    ये जरूरत युगों युगों तक बनी रहे
    लड़ाई झगड़े तो चलते ही रहेंगे
    शादी की सालगिरह यूं ही साल दर साल
    हम दोनों को मुबारक रहे।
    मेरी आँखें नम हो गयीं
    पत्नी क्या होती है ?
    बात समझ में आ गयी।
    सालगिरह की मुबारकबाद के बीच
    शादी के सात फेरों की याद आ गई।
    उम्र की बात क्या करें यारों
    ऐसा लगता है वो कल जिंदगी में आई
    और आज जिंदगी पर छा गई
    शादी की सालगिरह की
    एक बार फिर मुबारकबाद दे गई।

    सुधीर श्रीवास्तव
    गोण्डा, उ.प्र.