लकड़ियों पर कविता
लकड़ियों पर कविता चिता की लकड़ियाँ,ठहाके लगा रही थीं,शक्तिशाली मानव को,निःशब्द जला रही थीं!मैं सिसकती रही,जब तू सताता था,कुल्हाड़ी लिए हाथ में,ताकत पर इतराता था!भूल जाता बचपन में,खिलौना बन रिझाती रही,थक जाता जब खेलकर,पालने में झुलाती रही!देख समय का चक्र,कैसे बदलता है,जो जलाता है वो,कभी खुद जलता है!मेरी चेतावनी है,अब मुझे पलने दे,पुष्पित,पल्लवित,होकर फलने … Read more