Tag: शिव भगवान पर हिंदी कविताएं

  • शिव में ध्यान लगा -मनीभाई नवरत्न

    शिव में ध्यान लगा

    akelapan
    शिव पर कविता

    शिव में ध्यान लगा, रे मनुवा.
    शिव में ध्यान लगा.
    शिव में ध्यान लगा, रे मनुवा.
    शिव में ध्यान लगा.

    मौका मिला तुझे , शिव से मिलने को .
    जाने ना दे ये पल, दिन है ढलने को ।
    वरना होगा गुनाह, मिले ना फिर पनाह.
    मन से अपने आलस भगा .
    शिव में ध्यान लगा, रे मनुवा.
    शिव में ध्यान लगा.

    मंजिल है कठिन, और काँटों भरा .
    शिवतेरा सहारा है, मिटे दुःख गहरा .
    सब संभव है , तू जो मेरे पास है।
    हटा दे मालिक बस, माया का पहरा ।
    मेरे राम के प्यारे , बनो जी सहारे .
    मेरे राम के प्यारे , बनो जी सहारे .
    सिवा तेरे यहाँ , कोई ना सखा.
    शिव में ध्यान लगा, रे मनुवा.
    शिव में ध्यान लगा.

    तुमसे भोला, ना कोई दूजा,
    जग में है तेरा, नाम गूंजा.
    देवों में महादेव,  सबसे बड़े
    पाते हो विधाता , सबकी पूजा।
    दुखहर्ता प्रभु, सुखदाता प्रभु,
    दुखहर्ता प्रभु, सुखदाता प्रभु,
    नींद से अपने को आज जगा,
    शिव में ध्यान लगा, रे मनुवा.
    शिव में ध्यान लगा.

    -मनीभाई नवरत्न

  • शिवरात्रि पर कविता

    bhagwan Shiv
    शिव पर कविता

    शिवरात्रि पर कविता

    शिव को ध्याने के लिए लो आ गई रात्रि।
    मौका मिला है शिव की करने को चाकरी।

    शिव को मनाने के लिए बस श्रद्धा चाहिए।
    शिव को पाना जो चाहो तो नजरिया चाहिए।
    हो मुक्कमल सफ़र अपना और जाए यात्री।

    हम जन्म मरण से मुक्त हों और पाएं मोक्ष को।
    मंजिल कठिन हो चाहे पर अर्जुन सा लक्ष्य हो।
    शिव जी को पा लेना जैसे लग जाए लाटरी।

    हर कंकर है शंकर और हर पत्थर श्री राम है।
    गोपों के संग वृंदावन में रास रचाए राधेश्याम है।
    शिव को डमरू प्यारा है कान्हा को बांसुरी।

    अपनी जटाओं में गंगा को शिव ने धरा है।
    फिर विष को अपने कंठ में धारण किया है।
    हमको भी चरणों में धर लो हे भोले गंगाधरी।

    शिव को है प्यारा चिलम धतूरा और रुद्राक्ष,
    तप एकांत शंख बिल्व और प्यारा है कैलाश।
    भर दो भक्ति से हमारी खाली भिक्षा पात्री।

    रखें भरोसा भोले पर जो यहां तक ले आया है।
    आगे भी लेकर जाएगा जहां भी लेकर जाना है।
    सूर्य सा दो निखार हे भोले दिवाकरी।

    कर्ता करे न कर सके शिव करे सो होय,
    तीन लोक नौ खंड में तुझसे से बड़ा न कोय।
    आज हवा में सुर्खी लाई महाशिवरात्रि।

    *सुधीर कुमार*

  • शिव महिमा कविता

    bhagwan Shiv
    शिव पर कविता

    शिव महिमा कविता

    शिव शिवा शिव शिवा शिव शिवा ।
    शिव शव हैं……शिवा के सिवा।

    शिव अपूर्ण हैं शक्ति के बिना
    शक्ति कब पूर्ण हैं शिव के बिना
    अनुराग का सत इनका है वफ़ा।

    लोचन मोचन वि..मोचन सबल तुम हो
    कांति चमक दामिनी सकल तुम हो
    कायनात का कण तूने है रचा।

    वो अर्धनारी वो अर्धपुरुष हैं
    ऋषि मुनि के हर तो लक्ष्य हैं
    वो अर्चक का भाव सुनते हैं सदा।

    वो धरातल रसातल और फलक हैं।
    लालन पालन रक्षक सब के जनक हैं।
    लट जट जटा,जटी जूट वो हैं कुशा।

    जल नीर नाग हलाहल में तुम हो।
    गुल तरु फल प्राणी सुर
    तम में तुम हो।
    मन में संचित स्वाति बूंद है सुधा।

    एकाकी हैं…दो की दिव्य काया।
    ब्रह्म और भ्रम की है अलौकिक माया।
    सरल कपाल स्वयंभू से नहीं है जुदा।

    *_सुधीर कुमार*

  • शिव – मनहरण घनाक्षरी

    शिव – मनहरण घनाक्षरी

    उमा कंत शिव भोले,

    डमरू की तान डोले,

    भंग संग  भस्म धारी,

    नाग कंठ हार है।

    शीश जटा चंद्रछवि,

    लेख रचे ब्रह्म कवि,

    गंग का विहार शीश,

    पुण्य प्राण धार है।

    नील कंठ  महादेव,

    शिव शिवा एकमेव,

    शुभ्र वेष  मृग छाल,

    शैल ही विहार है।

    किए काम नाश देह,

    सृष्टि सार  शम्भु नेह,

    पूज्य  वर  गेह   गेह,

    चाह भव पार है।

    आक चढ़े बेल भंग,

    पुहुप   धतूरा   संग,

    नीर  क्षीर अभिषेक,

    करे जन सावनी।

    कावड़ धरे  है भक्ति,

    बोल बम शिव शक्ति,

    भाव से  चढाए भक्त,

    मान गंग पावनी।

    वृषभ सवार  प्रभो,

    सृष्टि करतार विभो,

    हिम गिरि  शैल पर,

    छवि मनभावनी।

    राम भजे शिव शिव,

    शिव रखे  राम हिय,

    माया  हरि त्रिपुरारि,

    नीलछत्र छावनी।

    बाबू लाल शर्मा बौहरा ‘विज्ञ’

    सिकन्दरा, दौसा, राजस्थान

  • शिव महाकाल पर कविता – बाबू लाल शर्मा

    हे नीलकंठ शिव महाकाल

    भक्ति गीत- हे नीलकंठ शिव महाकाल (१६,१४मात्रिक)

    हे नीलकंठ शिव महाकाल,
    भूतनाथ हे अविनाशी!
    हिमराजा के जामाता शिव,
    गौरा के मन हिय वासी!

    देवों के सरदार सदाशिव,
    राम सिया के हो प्यारे!
    करो जगत कल्याण महा प्रभु,
    संकट हरलो जग सारे!
    सागर मंथन से विष पीकर,
    बने देव हित विश्वासी!
    हे नीलकंठ शिव महाकाल,
    भूतनाथ हे अविनासी!

    भस्म रमाए शीश चंद्र छवि,
    गंगा धारा जट धारी!
    नाग लिपटते कंठ सोहते,
    संग विनायक महतारी!
    हे रामेश्वर जग परमेश्वर,
    कैलासी पर्वत वासी!
    हे नीलकंठ शिव महाकाल,
    भूतनाथ हे अविनाशी!

    आँक धतूरे भंग खुराकी,
    कृपा सिंधु अवढरदानी!
    वत्सल शरणागत जग पालक,
    त्रय लोचन अविचल ध्यानी!
    आशुतोष हे अभ्यंकर हे,
    विश्वनाथ हे शिवकाशी!
    हे नीलकंठ शिव महाकाल,
    भूतनाथ हे अविनाशी!


    ✍©
    बाबू लाल शर्मा बौहरा
    सिकंदरा दौसा राजस्थान