मकर से ऋतुराज बसंत (दोहा छंद)-बाबू लाल शर्मा
मकर से ऋतुराज बसंत (दोहा छंद)-बाबू लाल शर्मा सूरज जाए मकर में, तिल तिल बढ़ती धूप।फसले सधवा नारि का, बढ़ता रूप स्वरूप।।.पशुधन कीट पतंग भी, नवजीवन मम देश।वन्य जीव पौधे सभी, कली खिले परिवेश।।.तितली भँवरे मोर पिक, करते हैं मनुहार।ऋतु बसंत के आगमन, स्वागत करते द्वार।।.मानस बदले वसन ज्यों, द्रुम दल बदले पात।ऋतु राजा जल्दी … Read more