Tag: #बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’

यहाँ पर हिन्दी कवि/ कवयित्री आदर ० बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ के हिंदी कविताओं का संकलन किया गया है . आप कविता बहार शब्दों का श्रृंगार हिंदी कविताओं का संग्रह में लेखक के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा किये हैं .

  • फागुन मास पर कविता

    फागुन में वर्षा होती है, बारिश की बूँदें वातावरण को स्वच्छ कर देती हैं तथा पूरा वातावरण सुंदर प्रतीत होता है। आसमान अत्यंत साफ़ सुथरा लगता है, प्रकृति में चारों तरफ़ हरियाली ही हरियाली होती है, वातावरण शीतल तथा शांत हो जाता है।

    महाशिवरात्रि (Maha Shivratri), विजया एकादशी, होलिका दहन (Holika Dahan) आदि कई प्रमुख व्रत-त्योहार फाल्गुन माह में ही मनाए जाते हैं. कहा जा सकता है कि होली के पर्व के साथ ही एक सौर वर्ष का समापन होता है. सौर धार्मिक कैलेंडर में, फाल्गुन का महीना सूर्य के मीन राशि में प्रवेश के साथ शुरू होता है.

    फागुन मास पर कविता

    falgun mahina
    फागुन महिना पर हिंदी कविता

    फागुन का मास।
    रसिकों की आस।।
    बासंती वास।
    लगती है खास।।

    होली का रंग।
    बाजै मृदु चंग।।
    घुटती है भंग।
    यारों का संग।।

    त्यज मन का मैल।
    टोली के गैल।।
    होली लो खेल।
    ये सुख की बेल।।

    पावन त्योहार।
    रंगों की धार।।
    सुख की बौछार।
    दे खुशी अपार।।


    वासुदेव अग्रवाल नमन

  • मनोज्ञा छंद “होली” – बासुदेव अग्रवाल

    मनोज्ञा छंद “होली” – बासुदेव अग्रवाल

    मनोज्ञा छंद "होली" - बासुदेव अग्रवाल
    holi

    भर सनेह रोली।
    बहुत आँख रो ली।।
    सजन आज होली।
    व्यथित खूब हो ली।।

    मधुर फाग आया।
    पर न अल्प भाया।।
    कछु न रंग खेलूँ।
    विरह पीड़ झेलूँ।।

    यह बसंत न्यारी।
    हरित आभ प्यारी।।
    प्रकृति भी सुहायी।
    नव उमंग छायी।।

    पर मुझे न चैना।
    कटत ये न रैना।।
    सजन याद आये।
    न कुछ और भाये।।

    विकट ये बिमारी।
    मन अधीर भारी।।
    सुख समस्त छीना।
    अति कठोर जीना।।

    बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
    तिनसुकिया

  • शिव स्तुति

    प्रस्तुत कविता शिव स्तुति भगवान शिव पर आधारित है। वह त्रिदेवों में एक देव हैं। इन्हें देवों के देव महादेव, भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र, नीलकंठ, गंगाधार आदि नामों से भी जाना जाता है।

    इन्द्रवज्रा/उपेंद्र वज्रा/उपजाति छंद

    शिव स्तुति

    परहित कर विषपान, महादेव जग के बने।
    सुर नर मुनि गा गान, चरण वंदना नित करें।।

    माथ नवा जयकार, मधुर स्तोत्र गा जो करें।
    भरें सदा भंडार, औघड़ दानी कर कृपा।।

    कैलाश वासी त्रिपुरादि नाशी।
    संसार शासी तव धाम काशी।
    नन्दी सवारी विष कंठ धारी।
    कल्याणकारी शिव दुःख हारी।।१।।

    ज्यों पूर्णमासी तव सौम्य हाँसी।
    जो हैं विलासी उन से उदासी।
    भार्या तुम्हारी गिरिजा दुलारी।
    कल्याणकारी शिव दुःख हारी।।२।।

    जो भक्त सेवे फल पुष्प देवे।
    वाँ की तु देवे भव-नाव खेवे।
    दिव्यावतारी भव बाध टारी।
    कल्याणकारी शिव दुःख हारी।।३।।

    धूनी जगावे जल को चढ़ावे।
    जो भक्त ध्यावे उन को तु भावे।
    आँखें अँगारी गल सर्प धारी।
    कल्याणकारी शिव दुःख हारी।।४।।

    माथा नवाते तुझको रिझाते।
    जो धाम आते उन को सुहाते।
    जो हैं दुखारी उनके सुखारी।
    कल्याणकारी शिव दुःख हारी।।५।।

    मैं हूँ विकारी तु विराग धारी।
    मैं व्याभिचारी प्रभु काम मारी।
    मैं जन्मधारी तु स्वयं प्रसारी।
    कल्याणकारी शिव दुःख हारी।।६।।

    द्वारे तिहारे दुखिया पुकारे।
    सन्ताप सारे हर लो हमारे।
    झोली उन्हारी भरते उदारी।
    कल्याणकारी शिव दुःख हारी।।७।।

    सृष्टी नियंता सुत एकदंता।
    शोभा बखंता ऋषि साधु संता।
    तु अर्ध नारी डमरू मदारी।
    पिनाक धारी शिव दुःख हारी।८।।

    जा की उजारी जग ने दुआरी।
    वा की निखारी प्रभुने अटारी।
    कृपा तिहारी उन पे तु डारी।
    पिनाक धारी शिव दुःख हारी।९।।

    पुकार मोरी सुन ओ अघोरी।
    हे भंगखोरी भर दो तिजोरी।
    माँगे भिखारी रख आस भारी।
    पिनाक धारी शिव दुःख हारी।।१०।।

    भभूत अंगा तव भाल गंगा।
    गणादि संगा रहते मलंगा।
    श्मशान चारी सुर-काज सारी।
    पिनाक धारी शिव दुःख हारी।।११।।

    नवाय माथा रचुँ दिव्य गाथा।
    महेश नाथा रख शीश हाथा।
    त्रिनेत्र थारी महिमा अपारी।
    पिनाक धारी शिव दुःख हारी।।१२।।

    करके तांडव नृत्य, प्रलय जग में शिव करते।
    विपदाएँ भव-ताप, भक्त जन का भी हरते।
    देवों के भी देव, सदा रीझो थोड़े में।
    करो हृदय नित वास, शैलजा सँग जोड़े में।
    रच “शिवेंद्रवज्रा” रखे, शिव चरणों में ‘बासु’ कवि।
    जो गावें उनकी रहे, नित महेश-चित में छवि।।

    (छंद १ से ७ इंद्र वज्रा में, ८ से १० उपजाति में और ११ व १२ उपेंद्र वज्रा में।)
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    लक्षण छंद “इन्द्रवज्रा”

    “ताता जगेगा” यदि सूत्र राचो।
    तो ‘इन्द्रवज्रा’ शुभ छंद पाओ।

    “ताता जगेगा” = तगण, तगण, जगण, गुरु, गुरु
    221 221 121 22
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    लक्षण छंद “उपेंद्रवज्रा”

    “जता जगेगा” यदि सूत्र राचो।
    ‘उपेन्द्रवज्रा’ तब छंद पाओ।

    “जता जगेगा” = जगण, तगण, जगण, गुरु, गुरु
    121 221 121 22
    **************
    लक्षण छंद “उपजाति छंद”

    उपेंद्रवज्रा अरु इंद्रवज्रा।
    दोनों मिले तो ‘उपजाति’ छंदा।

    चार चरणों के छंद में कोई चरण इन्द्रवज्रा का हो और कोई उपेंद्र वज्रा का तो वह ‘उपजाति’ छंद के अंतर्गत आता है।
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    बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
    तिनसुकिया

  • अयोध्या मंदिर निर्माण /बासुदेव अग्रवाल

    अयोध्या मंदिर निर्माण /बासुदेव अग्रवाल

    राम जन्मभूमि मंदिर एक हिंदू मंदिर है जो भारत के उत्तर प्रदेश के अयोध्या में राम जन्मभूमि के पवित्र तीर्थ स्थल पर पुनः नए रूप में बनाया जा रहा हेैं। राम जन्मभूमि राजा राम का जन्मस्थान है, जिन्हे भगवान विष्णु के सातवे अवतार के रूप में पूजा जाता है। मंदिर का निर्माण श्री राम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र द्वारा किया जाएगा।

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    अयोध्या मंदिर निर्माण / बासुदेव अग्रवाल


    अवधपुरी भगवा हुई, भू-पूजन की धूम।

    भारतवासी के हृदय, आज रहे हैं झूम।।


    दिव्य अयोध्या में बने, मंदिर प्रभु का भव्य।

    सकल देश का स्वप्न ये, सबका ही कर्तव्य।।


    पाँच सदी से झेलते, आये प्रभु वनवास।

    असमंजस के मेघ छंट, पूर्ण हुई अब आस।।

    मन में दृढ संकल्प हो, कछु न असंभव काम।

    करने की ठानी तभी, खिला हुआ प्रभु-धाम।।


    डर बिन सठ सुधरैं नहीं, बड़ी सार की बात।

    काज न हो यदि बात से, आवश्यक तब लात।।


    रामलला के नाम से, कटते सारे पाप।

    रघुपति का संसार में , ऐसा प्रखर प्रताप।।


    बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’तिनसुकिया

  • श्राद्ध-पक्ष (पितृपक्ष अमावस्या पर दोहे)

    श्राद्ध-पक्ष (पितृपक्ष अमावस्या पर दोहे)

    श्राद्ध पक्ष में दें सभी, पुरखों को सम्मान।
    वंदन पितरों का करें, उनका धर हम ध्यान।।

    रीत सनातन श्राद्ध है, इस पर हो अभिमान।
    श्रद्धा पूरित भाव रख, मानें सभी विधान।।

    द्विज भोजन बलिवैश्व से, करें पितर संतुष्ट।
    उनके आशीर्वाद से, होते हैं हम पुष्ट।।

    पितर लोक में जो बसे, कर असीम उपकार।
    बन कृतज्ञ उनका सदा, प्रकट करें आभार।।

    मिलता हमें सदा रहे, पितरों का वरदान।
    भरें रहे भंडार सब, हों हम आयुष्मान।।

    बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
    तिनसुकिया

    01-09-20